पटना में छात्रों पर लगातार किए जा रहे बर्बर दमन ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया है। भले ही उसे राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां न मिल रही हों, लेकिन बिहार में अब वह राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। पहले इलाहाबाद, और अब पटना तथा पूरे बिहार में भारी दमन के बावजूद छात्रों-युवाओं की ललकार सबूत है कि रोजगार का सवाल विस्फोटक आयाम ग्रहण करता जा रहा है। क्या बिहार का छात्रांदोलन जनांदोलन बनेगा और बिहार एक बार फिर देश को रास्ता दिखाएगा?
भाकपा माले नेता धीरेन्द्र झा ने अपने बयान में कहा है: बिहार में आपातकाल से भी बड़ा अघोषित आपातकाल है। विरोध के हर तरीके पर रोक है। गांधीजी की मूर्ति के नीचे कोई अगर इंसाफ के लिए सत्याग्रह करता है, तो उस पर लाठियां चलती हैं।
जुलूस पर रात में लाठियां और पानी की बौछार! प्रदर्शनकारियों से आधारकार्ड मांगा जाता है। मुख्यमंत्री के कार्यक्रम से पहले नेताओं को घर से उठा लिया जाता है। लाठी भांजू दमनकारी नीतीश सरकार के खिलाफ चौतरफा आक्रोश! सरकार कितनी डरी हुई है और कितनी दमनकारी है कि माननीय विधायकों, विधान पार्षदों को विधानसभा गेट से राजभवन तक जाने की अनुमति नहीं देती है!
रोजगार अधिकार अभियान की संचालन समिति की ओर से जारी वक्तव्य में राजेश सचान ने कहा है : कल एक बार फिर पटना में बीपीएससी अभ्यर्थियों व छात्रों पर बर्बर लाठीचार्ज और भीषण सर्दी के मौसम में वाटर कैनन से पानी की बौछार की गई।
नीतीश- भाजपा सरकार की इस अमानवीय और लोकतंत्र विरोधी कार्रवाई की रोजगार अधिकार अभियान की ओर कड़ी निंदा की गई है। रोजगार अधिकार अभियान ने बिहार की जदयू-भाजपा सरकार से मांग की है कि छात्रों से वार्ता कर उनके सवालों को हल किया जाए और उनके दमन पर तत्काल रोक लगाई जाए।
बता दें कि बीपीएससी की 70 वीं प्रारंभिक परीक्षा 13 दिसंबर 2024 आयोजित परीक्षा में बीपीएससी व बिहार सरकार ने पटना के बापू परीक्षा केंद्र में गड़बड़ी व लापरवाही को स्वीकार करते हुए इस परीक्षा केंद्र में पुनर्परीक्षा आयोजित कराने का निर्णय लिया है।
स्पष्ट है कि परीक्षा की शुचिता भंग हुई है और अन्य परीक्षा केंद्रों पर भी गड़बड़ी से इंकार नहीं किया जा सकता है। एक परीक्षा केंद्र में पुनर्परीक्षा से नार्मालाईजेशन करना होगा। जबकि नार्मालाईजेशन में पारदर्शिता व वैज्ञानिक पद्धति का अभाव है और पूरी तरह से यह पद्धति भेदभाव पूर्ण है। ऐसे में छात्रों की पुनर्परीक्षा की मांग वाजिब है।
भाजपा वन नेशन वन इलेक्शन की तो जोरदार वकालत कर रही है लेकिन इसका तार्किक आधार उसके पास नहीं है कि एक चरण में पूरी परीक्षा को आयोजित कराने की छात्रों की मांग अनुचित कैसे है? छात्रों की इस न्यूनतम मांग का समाधान करने के बजाय बिहार की जदयू-भाजपा सरकार उनके दमन पर आमादा है।
बिहार में छात्रों के असंतोष की बड़ी वजह बेरोज़गारी की गंभीर होती समस्या भी है। रोजगार सृजन और रिक्त पड़े पौने पांच लाख पदों को भरने को लेकर सरकार के पास कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है।
बदतर शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी और औद्योगिक विकास को लेकर भी बयानबाजी से ज्यादा ठोस रूप से कुछ नहीं किया गया है।”
इस संदर्भ में कई बातें गौरतलब हैं।पहली बात यह कि इतनी बड़ी तादाद में हर राज्य में अधिकांश परीक्षाओं के पेपर आखिर लीक कैसे हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि पेपर माफिया ने सारी प्रतियोगी परीक्षाओं को जैसे हाईजैक कर लिया है, पूरे परीक्षा तंत्र में उसकी जबरदस्त घुसपैठ हो गई है।
जाहिर है शासन, प्रशासन की मिली भगत के बिना यह संभव नहीं है। तमाम निराश प्रतियोगी छात्रों का तो यह मानना है कि सरकार नौकरियां देना नहीं चाहती, इसलिए जान बूझकर पेपर लीक के बहाने परीक्षाओं को टालती रहती है।
आखिर आज तक पेपर लीक मामले में किसी को exemplary punishment क्यों नहीं मिला जिससे पेपर माफिया के दिल में दहशत पैदा होती। इससे यह शक और गहरा होता है कि शासन, प्रशासन के उच्च पदस्थ लोगों की मिली भगत से यह खेल चल रहा है। इस पूरे प्रकरण में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए कोचिंग संस्थानों की भूमिका की भी गहन जांच होनी चाहिए।
छात्रों के इस तर्क में दम है कि मौजूदा मामले में जब पटना के बापू परीक्षा परिसर केंद्र में जहां दस हजार छात्र परीक्षा दे रहे थे वहां पेपर आउट हो गया, तब सोशल मीडिया के जमाने में और कहीं आउट नहीं हुआ होगा यह कल्पना से परे है।
इसलिए केवल पटना के उस केंद्र पर पुनर्परीक्षा सभी परीक्षार्थियों के साथ अन्याय है। छात्रों का आरोप है कि परीक्षा लीक कांड में करोड़ों रुपये का खेल हो चुका है इसलिए सरकार के उच्च पदस्थ लोग फिर से परीक्षा नहीं करवाना चाहते।
13 दिसंबर को 70वीं बीपीएससी प्रारंभिक परीक्षा पेपर लीक के बाद से छात्र अनवरत शांतिपूर्ण आंदोलन चला रहे हैं। इस बीच दो बार उनके ऊपर बर्बर लाठी चार्ज और इस कड़कड़ाती ठंड में वाटर कैनन चल चुका है।
30 दिसंबर को आइसा, RYA तथा अन्य संगठनों ने चक्का जाम का सफल आयोजन किया। आरा दरभंगा आदि में ट्रेन सेवा भी बाधित हुई। 31 दिसंबर को विपक्ष के सांसद, विधायक, विधान पार्षद भी विधानसभा तक मार्च किए, उनके साथ भी सुरक्षाकर्मियों ने धक्का-मुक्की की जिसमें आरा के सांसद सुदामा प्रसाद गिर गए।
छात्रांदोलन में घुसकर राजनीतिक रोटी सेंकने की प्रशांत किशोर की कोशिश को भी छात्रों ने नाकाम कर दिया। कम्बल के बदले छात्रों पर धौंस जमाने का उनका वीडियो भी वायरल हो चुका है। जो प्रशांत किशोर शेखी बघार रहे थे कि पहली लाठी छात्रों से पहले उनके ऊपर पड़ेगी, वे लाठीचार्ज होने के पहले ही वहां से चंपत हो गए।
जाहिर है पीके जेपी नहीं हैं, वे स्वांग चाहे जितना कर लें छात्र युवा आंदोलन का जेपी की तरह नेतृत्व नहीं कर सकते। सच तो यह है कि उनकी विश्वसनीयता ही संदिग्ध है, माना जाता है कि वे बिहार में भाजपा की वृहत्तर रणनीति का हिस्सा हैं और विपक्ष को कमजोर करने में ताकत लगाए हुए है। यह स्वागत योग्य है कि छात्र ऐसे शातिर खिलाड़ियों से सतर्क हैं।
नौकरियों और रोजगार का सवाल बिहार में कितना ज्वलंत है, यह पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी और विपक्ष को इस सवाल पर मिले अपार समर्थन से ही साफ हो गया था, जब नीतीश की सरकार बमुश्किल बन सकी थी।
जरूरत है कि तात्कालिक मुद्दों को रोजगार अधिकार के बड़े परिप्रेक्ष्य से जोड़ा जाए और राज्य के बर्बर दमन के खिलाफ इसे जनांदोलन का रूप दिया जाय। ऐसा हुआ तो नए साल में बिहार देश को युवा आंदोलन की नई राह दिखा सकता है और लोकतंत्र की नई इबारत लिख सकता है।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)