दुनिया में किसी देश के शीर्ष प्रमुख की अपनी औकात क्या होगी, उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा, यह आप के बड़बोलेपन या हांकने पर निर्भर नहीं करता है, यह आपकी आर्थिक और सामरिक ताकत, रणनीतिक समझौतों और देश की जनता के साथ आपके रिश्ते पर निर्भर करता है।
ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को बुलाकर अपने मन से या उनके आग्रह पर राष्ट्रपति ट्रंप ने जैसा व्यवहार किया है, जिस तरह अपमानित किया और बार-बार उन्हें और उनके देश की भी औकात बताई, वह साबित करता है कि कहने के लिए भले सभी देश संप्रभु हैं, सभी देश के प्रमुखों की दुनिया में समान हैसियत है, यह एक सैद्धांतिक बात है, व्यवहारिक सच यह है कि दुनिया, अन्य देश, आपके देश या आपके देश का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति के साथ क्या व्यवहार होगा, यह आपके देश की दुनिया में हैसियत पर निर्भर करती है।
ट्रंप ने जेलेंस्की से साफ-साफ निम्न बातें कही-
1- आप हमारे सहयोग के बिना रूस के खिलाफ युद्ध में एक दिन टिक नहीं सकते हैं। आप जितना टिके हुए हैं, वह हमारे सहयोग के चलते हैं।
2- आपको रूस से समझौता करना ही पड़ेगा। साफ-साफ इशारा कर दिया गया है या कहा गया कि रूस से आपका जो शांति समझौता होगा, उसमें देश का वह हिस्सा जिस पर रूस ने कब्जा कर लिया है, वह आपको फिलहाल मिलने नहीं जा रहा है।
3- रूस के खिलाफ आपके युद्ध में हमने (अमेरिका) ने 350 बिलियन डॉलर खर्च किया है, यह आपको लौटाना होगा। इसके बदले में आपको यूक्रेन में मौजूद रेयर मिनरल्स देना पड़ेगा। रेयर मिनरल्स वे खनिज पदार्थ हैं, जो दुनिया के बहुत कम देशों में मौजूद हैं, जिनकी चाहत सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और देशों को है। यूक्रेन को उनकी भावी पीढ़ियों का मिनरल्स देना पड़ेगा, उसके पास अमेरिका का यह 350 बिलियन डॉलर चुकाने का कोई अन्य रास्ता नहीं है।
4- ट्रंप ने साफ कह दिया कि हम रूस को आक्रमणकारी नहीं मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी रूस को आक्रमणकारी घोषित करने के प्रस्ताव का अमेरिका ने समर्थन नहीं किया।
5- ट्रंप और अमेरिकी उपराष्ट्रपति वांस ने जेलेंस्की को धमकाते हुए कहा कि रूस आपके देश और यूरोप के लिए खतरा होगा, हमारे लिए वह कोई खतरा नहीं है।
6- पुतिन और रूस की मित्रता हमारे लिए आप से ज्यादा मायने रखती है।
7- आपके देश के भविष्य और आप और रूस के बीच के युद्ध का खात्मा का समझौता अमेरिका आपको इसमें शामिल किए बिना कर सकता है और ट्रंप प्रशासन ने सऊदी अरब की राजधानी रियाद में बिना यूक्रेन को शामिल किए बात-चीत न केवल शुरू कर दिया, बल्कि समझौते के करीब पहुंच गया है।
8- ट्रंप ने जेलेंस्की को तानाशाह भी कह दिया है, क्योंकि उन्होंने तय समय पर चुनाव नहीं कराया है। बिना चुनाव के ही राष्ट्रपति बने हुए हैं। यहां तक कि ट्रंप ने यह भी कहा कि आपको आपकी जनता के सिर्फ 5 प्रतिशत लोगों का समर्थन प्राप्त है।
9- ट्रंप ने यह भी कहा कि आपकी सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंड़ता की जिम्मेदारी मेरी नहीं है, यह जिम्मेदारी आपकी है या यूक्रेन का खुद को सहयोगी कहने वाले यूरोप की है।
ये सब या ऐसे संवाद केवल बातें नहीं, धमकियां नहीं हैं, इसमें अधिकांश लागू हो चुका है। इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति ने कैमरे के सामने जेलेंस्की के साथ जिस तरह का अपमानजनक व्यवहार किया, जिस तरह एक राष्ट्र प्रमुख को बेइज्जत किया, वह सब मीडिया के सामने आ चुका है।
ऐसे अपमान और बेइज्जती का सामना सिर्फ जेलेंस्की ने सहा, यह कहना ठीक नहीं होगा। जिस तरह हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्रंप के दरबार में बुलाया गया और उनकी उपस्थिति में जिस तरह की बातें कि गईं, जिस तरह समझौतों को लिए बाध्य किया गया है। इस यात्रा से पहले और यात्रा के बाद भारत सरकार ने ट्रंप को खुश करने के लिए जिस तरह की घोषणाएं की वह सब अब दुनिया और देश के सामने आ चुका है। यह सब चीजें किसी भी देशवासी की तरह मेरे लिए भी शर्मनाक ही थीं।
भले ही देश की इज्जत के नाम पर मोदी-भाजपा के समर्थक के तौर हम इसे ढंकने-तोपने की कोशिश करें या यह कहें कि नहीं, नहीं वैसा व्यवहार नहीं हुआ, जैसा जेलेंस्की के साथ हुआ। हां यह सच है कि भारत या नरेंद्र मोदी जी उस तरह नहीं फंसे हैं, जैसे जेलेंस्की, लेकिन भारत और नरेंद्र मोदी फंसे तो बुरी तरह हैं। इस फसान में 1991 के बाद आर्थिक नीतियों, अमेरिका परस्त रणनीतिक समझौतों और पिछले 10 सालों में मोदी की आर्थिक और विदेश नीति की भी एक बड़ी भूमिका है। खासकर देश की आर्थिक और सामरिक नीति को भाजपा के वोट बैंक की नीति में बदल देना और दुनिया में झूठी छवि चमकाने की कोशिश करना है।
ट्रंप पुतिन, शी जिननपिंग या ईरान के राष्ट्रपति को अपने मनसबदार की तरह बुलाने की हिम्मत भी नहीं जुटा सकते हैं, वह मोदी, जेलेंस्की और मैक्रोन को ही बुला सकते हैं, अपने दरबार में हाजिर होने के लिए कह सकते हैं या दरबार में हाजिर होने के इन शासकों के निवेदन को स्वीकार करते हैं।
अब तक का इतिहास बताता है कि यह हैसियत किस तरह की होती है। पहली तो यह कि आप दुनिया के आर्थिक और सामरिक तौर पर सबसे शक्तिशाली देश हों या ऐसे शक्तिशाली देशों में एक हों या उनसे थोड़ी कम या ज्यादा आपके पास आर्थिक-सामरिक और अन्य शक्तियां हों। जैसे आज के चीन और रूस की हैं। ये दोनों देश आर्थिक और सामरिक तौर इस स्थिति में हैं कि यदि आज की दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी इनसे उलझने की कोशिश करेगा, तो भले ही वह पराजित न हो, लेकिन वह इस युद्ध में निर्णायक तौर पर जीत भी नहीं सकता है और यदि युद्ध लंबा चल जाए तो अमेरिका आर्थिक तौर पर तबाह तो ज़रूर हो जाएगा, भले ही इन देशों को भी तबाही झेलनी पड़े।
चीन के पास आर्थिक और सामरिक शक्ति दोनों है, रूस आर्थिक तौर पर तो उतना मजबूत नहीं है, लेकिन उसकी सामरिक शक्ति आज भी अमेरिका को कई बार तबाह करने लायक है। इसके साथ ही वह आर्थिक तौर पर अमेरिका पर बिल्कुल भी निर्भर नहीं है। यहां तक कि वह चीन जितना भी अमेरिका पर निर्भर नहीं है।
रूस का न तो अमेरिका में कोई बड़ा पैसा लगा है, या निवेश है, न ही वह बडे़ पैमाने वस्तुओं और सेवाओं को अमेरिका को निर्यात करता है। जो आर्थिक निर्भरता थी, वह भी अमेरिका के चलते खत्म हो गई है। रूस की तुलना में चीन आर्थिक तौर ज्यादा अमेरिका पर निर्भर है, दोनों की अर्थव्यवस्था एक दूसरे से काफी जुड़ी हैं, दोनों की एक दूसरे पर निर्भरता भी है। लेकिन चीन की आर्थिक और सामरिक ताकत आज दुनिया में अमेरिका के बाद सबसे बड़ी है, संयुक्त रूप से यूरोप से भी ज्यादा।
दूसरा अमेरिका जैसे दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश का मुकाबला आप अपने देश की जनता के बल पर कर सकते हैं, यहां तक कि अमेरिका को हरा भी सकते हैं, उन्हें पीछे हटने या समझौता करने को बाध्य कर सकते हैं। जैसे हाल में अफगानियों ने किया। इससे पहले वियतनामियों ने किया था। क्यूबा ने किया था, आज जैसे उत्तर कोरिया कर रहा है।
तीसरी स्थिति ईरान की है, जो अपनी संप्रभुता की रक्षा और अपने देश की स्वतंत्रता एवं सम्मान के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार है।
अगर इन दोनों या तीनों में कोई एक भी चीज आपके देश, प्रतिनिधि या देश के पास नहीं है, तो आपको अपमानित होने और दोयम दर्जे का व्यवहार सहने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। जैसा व्यवहार जेलेंस्की और उसके पहले नरेंद्र मोदी ने सहा।
(डॉ. सिद्धार्थ लेखक और पत्रकार हैं।)
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