सुनने में यह बात अजीब लग सकती है, लेकिन मध्यप्रदेश के भिंड जिले की हकीकत यही है। यह राज्य पिछले दो दशक से भाजपा के शासन के तहत है, जिसमें अपवाद स्वरूप कुछ समय तक कांग्रेस ने सरकार चलाई थी। भिंड जिले में कुछ दिन पहले तीन स्थानीय डिजिटल मीडिया के पत्रकारों ने पुलिस अधीक्षक असित यादव पर कई गंभीर आरोप लगाये हैं। पत्रकार प्रीतम सिंह राजावत (यूट्यूब पत्रकार), शशिकांत गोयल (लोकल न्यूज़ चैनल) और अमरकांत चौहान (डिजिटल मीडिया) का दावा है कि 1 मई को एसपी साहब ने उन्हें अलग-अलग समय पर अपने चैम्बर में बुलवाया। वहां पहुंचने पर उन्होंने पुलिस के खिलाफ खबरें चलाने पर अपशब्द कहे और अपने अधिनस्थों से थप्पड़ मारने से लेकर चप्पलों से पिटाई की।
इस घटना को हुए 5 दिन बीत चुके हैं, लेकिन मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने कोई सुध नहीं ली है। अब इन पत्रकारों ने देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को पत्र लिखकर न्याय की मांग की है। ऐसा सुनने में आ रहा है कि 7 मई तक सुनवाई न होने की सूरत में इन पत्रकारों ने आत्महत्या करने की धमकी भी दी है।
यह सब विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हुआ, लेकिन यह खबर देश की राजधानी दिल्ली की मीडिया के कानों में अभी तक नहीं गूंज रही। बताया जा रहा है कि इन पत्रकारों का कुसूर सिर्फ इतना था कि इन्होंने अपने न्यूज़ चैनलों में अवैध रेत खनन और वसूली की खबरें चलाई, जिसके चलते भिंड पुलिस प्रशासन बेहद खफ़ा था। पत्रकारों को चाय पर बुलाकर चप्पलों से स्वागत की यह परंपरा शायद मध्यप्रदेश के भिंड-मुरैना जैसे बीहड़ जगहों पर आजादी के 75 वर्ष बीत जाने पर भी आम हो, लेकिन सवाल उठता है कि फिर पत्रकार राज्य हित, आम लोगों के हितों को न उठाये तो क्या करे?
सोशल मीडिया पर चल रही खबरों के मुताबिक तो करीब आधा दर्जन से भी अधिक पत्रकारों को बुलाकर पीटा गया। लेकिन जिन तीन पत्रकारों का विशेष रूप से उल्लेख किया जा रहा है, उन तीनों के साथ भी अलग-अलग सुलूक किया गया है। जैसे, शशिकांत गोयल, जो असल में जाटव समुदाय से आते हैं, ने अपने बयान में बताया है कि एसपी कार्यालय में घुसते ही उनसे उनका पूरा नाम पूछा गया। जाटव सुनते ही सवाल किया गया कि पुलिस के खिलाफ खबरें लिखेगा, और उसके बाद गिरीश शर्मा नामक सब इंस्पेक्टर ने दे दनादन चप्पल से मार-मारकर गाल और आंखों को सुजा दिया।
इस हादसे के बाद इन पत्रकारों ने उसी रात जिलाधिकारी संजीव श्रीवास्तव के साथ मुलाक़ात कर लिखित शिकायत दर्ज करा दी थी।
अपनी आपबीती बताते हुए शशिकांत रोते हुए भोपाल के एक न्यूज़ चैनल से कहते हैं, “मैंने अपने मकान पर ताला लगाकर अपने परिवार को यहां से कहीं और स्थान पर भिजवा दिया है, क्योंकि पुलिस कल और आज भी ढूंढ कर रही है। ऐसा सुनने में आ रहा है कि एसपी साहब ने मेरे खिलाफ मामला बनाने के लिए कुछ सुबूत जुटाने के लिए निर्देश दिए हैं। मेरे परिवार वाले मेरी हत्या को लेकर बेहद सशंकित हैं।”
दूसरे पत्रकार हैं अमरकांत, जो इलाके के वरिष्ठ पत्रकार हैं। अमरकांत के साथ कोई मारपीट तो नहीं की गई, लेकिन उन्हें भी उस दिन पुलिस से गाली-गलौज का सामना करना पड़ा था। उनका कहना है कि उन्हें भी एसपी साहब ने खुद फोन किया था, लेकिन फोन नहीं उठाने पर एएसआई ने दोबारा फोन कर बुलाया। एसपी के चैम्बर में पहुंचते ही फोन छीन लिया गया, और गालियां दी गईं। इनके दोनों बच्चे भिंड से बाहर हैं, और पत्नी को मायके भेज दिया है। अब ये पत्रकार परिवार सहित दर-बदर होकर अपनी जान बचाते फिर रहे हैं।
तीसरे पत्रकार, प्रीतम सिंह का स्थानीय समाचारपत्रों में जो बयान सामने आया है, उसके मुताबिक प्रीतम अपने चाचा के रिटायरमेंट का कार्ड देने एसपी दफ्तर गये हुए थे। एसपी ने कहा, तू ही खबरें चलाता है पुलिस के खिलाफ? इसके बाद करीब पांच मिनट तक उनकी पिटाई की गई।
अब इन पत्रकारों का कहना है कि अपने पूरे जीवनकाल में उन्हें जितना चंबल के डाकुओं से डर नहीं लगा, उससे अधिक भिंड की पुलिस से है। किसी भी समाज में पत्रकार और पत्रकारिता ही किसी समाज की आत्मा का काम करते हैं। संविधान की रक्षा और उस पर अमल करने के लिए जिन व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को जिम्मेदारी दी गई है, उसमें पत्रकारिता उस चौथे स्तंभ के तौर पर काम करती है, जिसकी बुलंद आवाज के बाद ही अक्सर तीनों स्तंभ ज्यादा मुस्तैदी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकते हैं।
लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर या बड़े शहरों में केंद्र, राज्य सरकारें और निजाम जितना लिबरल दिखाई पड़ता है, जमीनी हालात उससे कई-कई गुना बदतर हैं। स्थानीय स्तर के पत्रकारों को दिन-रात प्रशासन के साथ मिलकर काम करने की जरूरत पड़ती है। व्यवस्था में नंगी लूट-खसोट और भ्रष्टाचार का नजारा भी स्थानीय स्तर पर सबसे चरम रूप में दिखाई देता है। अधिकांश लोकल पत्रकार, प्रशासन के लिए काम करते दिख सकते हैं, क्योंकि इसके बगैर उनके परिवार का भरण-पोषण संभव नहीं है।
लेकिन उनमें से यदि कुछ ने प्रशासन की लूट-खसोट और खनन माफिया के बारे में खबर चला दी, या पुलिस महकमे के लोगों को लाइव वीडियो चलाकर घूस लेते दिखा दिया, तो स्थानीय स्तर पर वह खबर वायरल हो जाती है। उदाहरण के लिए 2 मई को NTV Bharat News Channel ने भिंड के फूफ थाना क्षेत्र के पिछली रात का लाइव वीडियो अपने चैनल पर जारी करते हुए, फूफ थाना के ड्राइवर द्वारा अवैध रेत से भरे ट्रक ड्राइवरों से वसूली करते दिखाया था। उससे कुछ दूरी पर पुलिस की गश्त चल रही है। फूफ थाना के प्रभारी सतेन्द्र राजपूत बताये जा रहे हैं, जिन्हें एसपी असित यादव ने छूट दी हुई है।
अब इस प्रकार के वीडियो स्थानीय न्यूज़ चैनल पर जारी होते ही पब्लिक के द्वारा वायरल होने लगती है, जो एंड्राइड फोन के आगमन से पहले वायरल होना संभव नहीं था। हालांकि, भिंड जिला पहले से ही न्यूज़ रिपोर्टरों के लिए कब्रगाह साबित हुआ है। एक खोजी पत्रकार, संदीप शर्मा जो एक राष्ट्रीय समाचारपत्र के लिए स्टोरी करते थे, को भिंड में ट्रक से कुचलकर मार डाला गया था। यह खबर राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में बनी रही, लेकिन भिंड के आम लोगों और संसाधनों की लूट-खसोट में कोई कमी नहीं आई है।
26 मार्च 2018 को समाचार एजेंसी ANI ने पत्रकार संदीप शर्मा को जानबूझकर ट्रक से कुचलने के वीडियो को जारी किया था। अपनी हत्या से पहले संदीप ने स्थानीय पुलिस प्रशासन से अपनी सुरक्षा की मांग की थी, जिसे अनसुना कर दिया गया था।
असल में ऐसे खोजी पत्रकारों को केवल खनन माफिया से ही जान का भय नहीं, अपितु उस पूरे सिस्टम से है जो इस पूरे धंधे में राज्य स्तर से लेकर स्थानीय स्तर पर इस श्रृंखला में सम्बद्ध हैं। 2018 में संदीप शर्मा की हत्या यदि खनन माफिया द्वारा कराई गई, क्योंकि वे राह में रोड़ा बन रहे थे, तो आज मध्य प्रदेश की पुलिस ही बेख़ौफ़ होकर सामने आ चुकी है।
2022 में मध्य प्रदेश के सीधी जिले से पत्रकारों के खिलाफ बर्बरता की एक और तस्वीर वायरल हुई थी, जिसपर तब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई थी। तब थाने में पत्रकारों को अर्धनग्न अवस्था में रखकर परेड कराई गई थी। असल में मध्य प्रदेश में जनसरोकार से जुड़ी पत्रिकारिता करना अक्षम्य अपराध बन चुका है, जबकि दलाल पत्रकारिता में इज्जत और धन-लाभ दोनों है।
यह बताता है कि मध्य प्रदेश में शासन किस स्तर तक पतित हो चुका है। कांग्रेस नेता, जीतू पटवारी ने भी इस विषय में गहरी चिंता जताते हुए अपना रोष प्रकट किया है। लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति कितनी दयनीय है, इसका अंदाजा उनके सोशल मीडिया पोस्ट में नीचे दी गई टिप्पणियों को देखकर ही समझा जा सकता है। शायद मध्य प्रदेश में आम लोगों को भरोसा ही नहीं है कि विपक्ष ऐसे मुद्दों पर जुबानी जमाखर्च से आगे बढ़ेगा। यही कारण है कि ऐसे जघन्य अपराध के बावजूद आम लोगों ने चुप्पी साध रखी है। यह सिलसिला यदि यूं ही जारी रहा तो मध्य प्रदेश में खोजी निडर पत्रकारिता एक विलुप्तप्राय विधा बन जाएगी।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)