“though this be madness, yet there is method in it”? -Polonious, in ‘Hamlett’ by Shakespeare
असम के बारपेटा जिले के शोना बानू की दास्तान /1/ कई-कई बार दोहरायी जा चुकी है। वह अभी भी उन पलों को याद करके सिहर जाती है कि किस तरह स्थानीय पुलिस स्टेशन पर उसे बुलाया गया और बाद में 13 अन्य लोगों के साथ बांगलादेश की सीमाओं के पास ले जाया गया और बाकायदा बांगलादेश की सीमाओं के अंदर ढकेल दिया गया। कई दिन तक बांगलादेश के अंदर भूख-प्यास से तड़पते हुए बीताने के बाद उसे बांगलादेश के अधिकारियों ने भारत को लौटा दिया।
मई माह का अंत था जब सूबा असम की हुकूमत अपनी इस विवादास्पद पुशबैक नीति के चलते सूर्खियां बना रही थी, /2/ जब यह पाया गया कि सरकार बाकायदा ‘गैरकानूनी विदेशियों’ को बांगलादेश की सीमाओं के अंदर ढकेल रही है। /3/
गौरतलब था कि जब उसकी इस विवादास्पद नीति की राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चर्चा होने लगी, मानवाधिकार संगठनों की तरफ से इसकी भर्त्सना की जाने लगी तो अपनी इस नीति पर पुनर्विचार करने के बजाय असम कैबिनेट ने दूसरी एक योजना को बाकायदा मंजूरी दी जिसने उसके इरादों पर नए सवाल खड़े किए। वह एक विशेष योजना थी जिसका मकसद बताया गया कि सीमावर्ती इलाके जहां मूलनिवासी लोग ‘‘असुरक्षित और दूर के इलाकों’’ में रहते हैं, उन्हें सुरक्षित बनाया जाए।
कहा जाने लगा कि यह लोग बेहद असुरक्षा में जीवन बीता रहे हैं, खासकर बांगलादेश में पिछले साल से तेजी से बदलते घटनाक्रम के बाद। बांगलादेश की सीमाओं के अंदर से उन पर हमलों को खतरा बढ़ रहा है, यहां तक कि अपने गांवों में भी वह सुरक्षित नहीं हैं। /4/
अगर सरकार के इन तर्कों को मान भी लें कि वहां असुरक्षा की भावना बढ़ी है, तो उसकी तरफ से प्रस्तावित योजना में कहीं से भी इन इलाकों में सुरक्षा बढ़ाने या सुरक्षा बलों को अधिक प्रशिक्षण देने या उन्हें अधिक कार्यक्षम बनाने की बात नहीं थी बल्कि सारा जोर इस बात पर था कि नागरिकों को हथियारों के लाईसेन्स देकर उन्हें ही अपनी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार बनाया जाए। /5/
नागरिक अधिकार हिमायतियों का विरोध
लाजिम है कि असम सरकार की इस योजना की नागरिक अधिकार संगठनों, विपक्षी पार्टियों और सरोकार रखने वाले नागरिकों की तरफ से जबरदस्त आलोचना की गयी । राज्य सरकार की इस बात के लिए निंदा की गयी कि वह चुनावों के ऐन पहले ‘असुरक्षित नागरिकों’ को हथियारों के लाइसेंस देकर एक तरह से ‘अराजकता’ को निमंत्रण दे रही है। /6/
इस निर्णय की विवेचना करते हुए विश्लेषकों ने बताया कि आधुनिक राज्य में, नागरिकों की सुरक्षा राज्य की ही अहम जिम्मेदारी होती है और किसी भी सूरत में उससे इन्कार करना तथा अपनी सुरक्षा के लिए नागरिकों के हाथों की हथियारों को सुगम करना, यह अपनी जिम्मेदारी से भागना है और अपनी असफलता को कबूल करना है। जाहिर है कि यह मांग जोरदार ढंग से उठायी गयी है कि असम सरकार अपने इस निर्णय को तत्काल निरस्त कर दे।
कांग्रेस पार्टी ने साफ लब्जों में कहा कि यह एक तरह से ‘बंदूक संस्कृति’ को बढ़ावा देना है और एक ऐसे वक्त़ में जब सूबे का युवा रोजगार मांग रहा है, उस समय सरकार उसे हथियारों के लाइसेन्स दे रही है और शायद यह कह रही है कि अस्सी और नब्बे के दशक का जो पीड़ादायी दौर था, वही अब लौटेगाा।/7/
‘द टेलीग्राफ’ ने अपने एक जोरदार सम्पादकीय में जिसका शीर्षक था ‘उनके हथियार वापस लो’ / डिसआर्म देम/8/ असम कैबिनेट के इस फैसले को चुनौती देते हुए लिखा कि ‘किस तरह सुरक्षावाद का आख्यान’ इस प्रयास के विवादास्पद स्वरूप को ढंक देता है। [how the rhetoric of protectionism offered conceals the contentious nature of this endeavour] क्योंकि अनुभव यही बताता है कि ‘नागरिकों के लिए हथियार सुगम करना किस तरह हमेशा ही एक खतरनाक प्रस्ताव होता है’। ऐसा कोई भी कदम एक तरह से इस बात को कबूल करना होता है कि राज्य में तैनात सुरक्षा बल एक तरह से कानून और व्यवस्था की चुनौती से निपटने में अक्षम हैं। इसका मतलब यही होता है कि सरकार खुद अपनी नाकामयाबी कबूल कर रही है।
असम जातिय परिषद / एजेपी/ के लुरिनज्योति गोगोई, एक तरह से अधिक स्पष्ट थे, उनके मुताबिक यह योजना एक तरह से चुनावों के ऐन पहले दो समुदायों को आपस में जानबूझकर बांटना है और तनाव पैदा करना है। /9/
एक अन्य सम्मानित अख़बार के सम्पादकीय में सरकार द्वारा इस कदम को उठाने के चिन्ताजनक नतीजों के बारे में अवगत कराते हुए बताया गया था कि इस मामले में कई राज्यों का- जम्मू कश्मीर, पंजाब और उत्तर पूर्व के अन्य राज्य, छत्तीसगढ़ आदि के अनुभव से सीखना चाहिए। /10/
अख़बार के मुताबिक जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा आतंकवाद का विरोध करने के लिए ग्राम सुरक्षा दस्ते / विलेज डिफेन्स स्क्वाड/ बनाए गए थे, उन्हें खतम करना पड़ा क्योंकि बंदूकों के लाईसेन्स तथा उसके दुरूपयोग के कई प्रसंग उजागर हुए। प्रशिक्षित नागरिकों को स्पेशल पोलिस आफिसर बनाने की पंजाब सरकार की योजना भी उतनी ही विनाशकारी साबित हुई थी।
नक्सल उग्रवाद से निपटने के नाम पर छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने आदिवासी युवकों को हथियार दिए और ‘सलवा जुडूम’ नाम से समूहों का गठन किया। /2006/ इन समूहों के हाथों मानवाधिकारों के उल्लंघन के तमाम मसले सामने आए और इनके द्वारा गैरकानूनी ढंग से हथियार जमा करने की भी कई घटनाएं उजागर हुई। अंततः सर्वोच्च न्यायालय को ही इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और उस योजना को खत्म करने का निर्देश देना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में जो कहा गया था वह याद करनेलायक है।
‘‘हमारी आबादी के वंचित तबकों के युवाओं के इस कदर अमानवीयकरण के वातावरण का निर्माण, जिसमें उनके हाथों किताबों के बजाय हथियार दिए जाएं, उन्हें हमारे जंगलों की लूट और विनाश का पहरेदार बनाया जाए, यह कदम एक तरह से राष्ट्रीय विनाश का रास्ता है।’’ /11/
[The creation of such a miasmic environment of dehumanisation of youngsters of the deprived segments of our population, in which guns are given to them rather than books, to stand as guards for the rape, plunder and loot in our forests, would be to lay the road to national destruction]
कोई भी देख सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐलान के पीछे की भावना, असम सरकार के इस ताज़ा कदम पर वैसी ही लागू होती है।
गौरतलब था कि असम सरकार द्वारा अपने कैबिनेट के इस फैसले के ऐलान का वक्त भी निश्चित ही माकूल नहीं था। यही वह समय था जब मणिपुर फिर एक बार सुर्खियों में था, जब ‘अरमबाई टेन्गोल’ ;(Arambai Tenggol)- जो मैतेई लोगों का रैडिकल समूह है’- के नेता अशेम कनान सिंह की कुछ आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी हुई थी- और कई मैतेई बहुल जिलों में इसकी उग्र प्रतिक्रिया हुई थी। /12/
इस समूह की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2023 में जब मैतेई और कुकी जो समूहों के बीच नस्लीय हिंसा की स्थिति बनी, जिसका पूरे राज्य पर असर पड़ा, उन दिनों इस समूह ने मैतेई विधायकों को एकत्रित होने का निर्देश दिया था और अलग अलग पार्टियों के मैतेई विधायक वहां पहुंचे थे और उन्होंने किसी ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किए थे।
हथियारों की बात चल पड़ी है तो मणिपुर के हालिया इतिहास का उस काले अध्याय पर भी निगाह डालनी चाहिए जब मई 2023 में आपसी हिंसा की वारदातें शुरू होने के बाद मणिपुर पुलिस के हथियार घरों / असलाह खानों से हजारों की संख्या में हथियार लूटे गए थे, जिसने इस आपसी हिंसा की उग्रता और बढ़ा दी थी।
चिंताजनक बात है कि सरकार द्वारा इन लूटे गए हथियारों की बरामदगी के लिए कभी सुनियोजित मुहिम चलाने की कोई ख़बर तक नहीं आयी। इतना ही नहीं राज्य के बाहर के कुछ अन्य आतंकी समूहों को इन हथियारों को बेचे जाने के भी समाचार मिले।
सवाल उठता है कि जब समूचा इलाका इस तरह स्वयंभू मिलिटेण्ट समूहों की कारगुजारियों को देख चुका है, जहां आज भी गैरकानूनी हथियारों की लोगों में मौजूदगी चिंता का सबब नहीं है वहां असम कैबिनेट द्वारा इस किस्म का विवादास्पद निर्णय क्यों लिया गया ?
क्या यह कहना उचित है कि इस निर्णय के पीछे विवेक की कमी है, निर्णय लेते समय समग्रता में इस मसले की विवेचना नहीं की जा सकी। इतिहास के इन तमाम सबकों पर गौर नहीं किया गया? मुमकिन है बात बिल्कुल अलग हो, उन्हें यह लगा हो भले ही इसके पहले के ऐसे निर्णय गलत साबित हो चुके हों, जनता के लिए विनाशकारी साबित हो चुके हों, मगर एक ‘निर्णायक नेतृत्व’ के तहत इस योजना के अलग नतीजे हो सकते हैं, जबकि ‘राष्टीय सुरक्षा’ के नाम पर मध्यमवर्ग का अच्छा खासा हिस्सा सरकार के साथ ही खड़ा हो?
इस निर्णय के पीछे एक वजह यह भी हो सकती है कि नीतिनिर्माताओं को यह विश्वास हो कि मानवाधिकार उल्लंघन के मसले पर न्यायपालिका अपने फैसलों में अक्सर असंगत दिखती है, लिहाजा वह इस योजना को लेकर बाधा नही खड़ी करेगी। निस्सन्देह इस निर्णय के पीछे के कारण गहरे हैं और उनकी अधिक पड़ताल आवश्यक है।
बच्चों को सैन्य प्रशिक्षण
वैसे जिन दिनों भारत के पूर्वी राज्य असम में ‘असुरक्षित समूहों’ को बंदूक के लाइसेन्स देने की इस योजना ने जहां लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा, उसीके साथ साथ भारत के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र सरकार की एक अन्य योजना की भी लोगों के बीच चर्चा होने लगी।
इस योजना का सम्बन्ध राज्य के शिक्षा मंत्राी का यह ऐलान था कि वहां कक्षा 1 से बच्चों को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि उनके अंदर देशभक्ति, अनुशासन और नियमित शारीरिक व्यायाम की आदत बढ़ायी जा सके। /13/ जैसा कि इसके बारे में बताया जा चुका है कि इस योजना में लगभग ढाई लाख पूर्व सैनिकों के अलावा खेल के अध्यापकों, एनसीसी के अधिकारियों को जोड़ा जाएगा। इस प्रस्ताव की कई स्तरों पर आलोचना हुई /14/
मिसाल के तौर पर जानकारों एवं शिक्षा शास्त्रियों ने बताया है कि राज्य का शिक्षा जगत एक जटिल संकट से गुजर रहा है, जिसका प्रतिबिम्बन कमजोर होती अवरचना / इन्फ्रास्टक्चर, अध्यापकों की कमी और नीतियों को लागू करने के रास्ते में आने वाली प्रचंड बाधाओं में उजागर होता है।
शिक्षाशास्त्रिायों ने इस बात को भी रेखांकित किया कि दरअसल इस स्कूल में सैनिक प्रशिक्षण की योजना का सबसे विचलित करनेवाला पहलू यह है कि कक्षा एक के बच्चों में-अर्थात तीन या चार साल के बच्चों में- फौजी प्रशिक्षण शुरू करने का मकसद शिक्षा के बुनियादी मकसद को ही पराजित करता दिखेगा क्योंकि शिक्षा का उददेश्य बच्चों के मनमस्तिष्क पर जो तरह तरह की बेड़ियां समाज, परिवार या राज्य आदि की तरफ से लगायी गयी होती हैं, उनको एक झटके में तोड़ना ताकि वह स्वतंत्र ढंग से सोचना शुरू कर सके होता है। / 15/
इस बात की तरफ भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया गया कि यह प्रधानमंत्राी कार्यालय द्वारा प्रस्तावित नज़रिये से ही मेल खाता है जिसके तहत अन्य स्कूलों में भी सैनिक स्कूल माॅडल को अपनाने पर जोर दिया गया था। /16/
‘असुरक्षित समुदायों’ को हथियारों के लाइसेंस सुगम करना या बच्चों का सैन्य प्रशिक्षण देना- क्या आप इन दोनों योजनाओं के बीच के किसी सूत्र को देख सकते हैं? क्या यह कहा जा सकता है कि रफता रफता समाज का सैन्यीकरण करने या सैन्यीकरण के लिए बचपन से ही मानस तैयार करने की यह योजनाएं हैं?
हमारे खयाल से यह कहना अनुचित नहीं होगा कि इन दोनों योजनाओं का गहराई में जाकर विश्लेषण किया जाए तो उसमें एक पैटर्न निश्चित ही ढूंढा जा सकता है, जिसका ताल्लुक अपने शुरुआती दिनों से ही हिन्दुत्व वर्चस्ववादी ताकतों द्वारा प्रस्तुत इस विचार से है कि समाजों का सैन्यीकरण बेहद जरूरी है ताकि समाज के आंतरिक दुश्मनों से भी निर्णायक लड़ाई हो सके। इन वर्चस्ववादी समूहों के लिए आंतरिक दुश्मन वही है जो भारत के हिन्दू राष्ट्र बनने की उनकी योजना के खिलाफ है या हो सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर अपनी किताब विचार सुमन / बंच आफ थाट्स/ में इन ‘आंतरिक दुश्मनों’ को चिन्हित भी करते हैं, जिनमें वह ‘अन्य धार्मिक समुदायों’ से लेकर कम्युनिस्टों को बाकायदा चिन्हित करते हैं।
यह अकारण नहीं था कि हिन्दू महासभा के अध्यक्ष और संघ के संस्थापक सदस्य /17/ बीएम मुंजे ने इटली की अपनी यात्रा से लौटने के बाद – जिसमें वह मुसोलिनी से भी मिले थे, भारत में भोंसला मिलिटरी स्कूल की स्थापना की थी। विख्यात इतालवी विदुषी मार्जिया कासोलारी अपने आलेख में इसकी विधिवत चर्चा कर चुकी हैं । /18/
लेकिन इस मसले पर विस्तार से चर्चा फिर कभी !
(सुभाष गाताडे लेखक, अनुवादक, न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव (एनएसआई) से संबद्ध वामपंथी कार्यकर्ता हैं)
Notes
1. [ https://www.bbc.com/news/articles/cqj78v79z9do]
2. [https://economictimes.indiatimes.com/news/india/assam-pushback-row-cm-defends-action-as-legal-saikia-flags-rights-violations-and-judicial-breach/articleshow/121520120.cms?from=mdr, https://thewire.in/rights/assams-policy-of-push-back-to-handle-alleged-foreigners-is-illegal-sanjay-hegde]
3. [https://economictimes.indiatimes.com/news/india/assam-pushback-row-cm-defends-action-as-legal-saikia-flags-rights-violations-and-judicial-breach/articleshow/121520120.cms?from=mdr, ; https://maktoobmedia.com/india/india-accused-of-pushing-out-280-people-into-bangladesh-since-early-may-local-police-say-3-indians-in-78-men-cast-into-river/]
4. [https://www.hindustantimes.com/india-news/assam-clears-scheme-to-give-arms-licence-to-indigenous-people-in-vulnerable-areas-himanta-biswa-sarma-101748441027917.html]
5. [https://www.hindustantimes.com/india-news/assam-clears-scheme-to-give-arms-licence-to-indigenous-people-in-vulnerable-areas-himanta-biswa-sarma-101748441027917.html]
6. [https://www.telegraphindia.com/india/dangerous-insult-to-bsf-police-opposition-on-assams-salwa-judum-style-move-to-arm-civilians/cid/2105271]
7. [https://www.telegraphindia.com/north-east/need-jobs-not-guns-congress-slams-assam-government-after-nod-to-arms-for-indigenous-groups-prnt/cid/2104702#goog_rewarded]
8. [https://www.telegraphindia.com/opinion/disarm-them-editorial-on-himants-biswa-sarmas-arms-licences-scheme-for-indigenous-citizens-prnt/cid/2105650]
9. [https://www.telegraphindia.com/india/dangerous-insult-to-bsf-police-opposition-on-assams-salwa-judum-style-move-to-arm-civilians/cid/2105271]
10. [https://www.newindianexpress.com/editorials/2025/Jun/01/aptness-of-civilians-to-bear-arms-is-real-issue]
11. [https://www.newindianexpress.com/editorials/2025/Jun/01/aptness-of-civilians-to-bear-arms-is-real-issue]
12. [https://www.indiatoday.in/india/story/profile-how-arambai-tenggol-rose-to-run-parallel-govt-in-manipur-2739274-2025-06-11]
13. [https://www.nationalheraldindia.com/national/basic-military-training-to-be-given-to-students-from-class-1-in-maharashtra-minister#google_vignette,]
15. https://janchowk.com/military-training-for-children-why-is-this-new-scheme-of-maharashtra-government-a-worrying-initiative/
16. [https://sabrangindia.in/militarising-minds-hindutvaising-the-nation-training-future-military-leaders-imbued-in-hindutva-supremacism/]
17. [Page 16, Khaki Shorts and Saffron Flags, Tapan Basu, Pradip Datta, Sumit Sarkar, Tanika Sarkar, Sambuddha Sen, Orient Longman]
18. “Hindutvaâs foreign tie-up in the 1930s: Archival evidence†in Economic & Political Weekly, January 22, 2000. An Italian scholarMarzia Casolari has provided details of this trip [http://www.epw.in/journal/2000/04/special-articles/hindutvas-foreign-tie-1930s.html]