शिवराज सिंह चौहान और सिंधिया।

मध्य प्रदेश में अपने मंत्रियों को ‘मलाई’ दिलाने में सफल रहे सिंधिया

महज चार महीने पहले कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश में भाजपा को सत्ता दिलाने की कीमत की एक और बड़ी किस्त आज वसूल कर ली। दस दिन पहले राज्य मंत्रिपरिषद के विस्तार में वे अपने 9 समर्थकों को मंत्री बनवाने में सफल रहे थे और अब उन मंत्रियों को आज मलाईदार विभाग भी मिल गए। दरअसल भाजपा नेतृत्व के निर्देश पर शिवराज ने जिस तरह सिंधिया समर्थक मंत्रियों को मलाई बांटी है उसमें राजस्थान के घटनाक्रम की भी भूमिका रही है। एक तरह से राजस्थान के कांग्रेसी विधायकों को संदेश दिया है कि अपना विकास चाहते हो तो उठाओ बगावत का झंडा और आओ हमारे साथ, किसी को निराश नहीं करेंगे। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपनी मंत्रिपरिषद का विस्तार करने के बाद अपने सहयोगी मंत्रियों के बीच जिम्मेदारियों का बंटवारा करने में पूरे दस दिन लग गए और इस सिलसिले में उन्हें दिल्ली की यात्रा भी करना पड़ी। मंत्रिपरिषद के विस्तार की तरह मंत्रियों को विभागों के बंटवारे में भी उनकी मर्जी नहीं चल पाई और उनकी मजबूरी साफ़ तौर पर उभरी’ यानी यहां भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के हस्तक्षेप से सिंधिया अपने समर्थकों को मनचाहे मलाईदार विभाग दिलवाने में सफल रहे। भाजपा के पुराने मंत्रियों को हल्के-फुल्के विभागों से ही संतोष करना पड़ा। 

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इसी महीने की दो तारीख को अपनी मंत्रिपरिषद का विस्तार किया था। विस्तार में सिंधिया समर्थक 9 और पूर्व विधायकों को मंत्री बनाया गया था। इसके अलावा कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए तीन अन्य पूर्व विधायकों को भी मंत्रिपरिषद में जगह दी गई थी। इस प्रकार कुल 28 नए चेहरे मंत्री बनाए गए थे। 

मंत्रिपरिषद के विस्तार के बाद से ही विभागों के बंटवारे को लेकर खींचतान चल रही थी। सिंधिया अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा मलाईदार विभाग दिलाने के लिए अड़े हुए थे, जबकि भाजपा के पुराने मंत्रियों की मांग भी इन्हीं विभागों की थी। मसला भोपाल में हल नहीं हुआ तो शिवराज सिंह को दिल्ली दरबार में हाजिरी लगानी पड़ी। सिंधिया को भी दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह सहित कई नेताओं से मिलना पड़ा। 

पूरे दस दिन की कवायद के बाद 12 जुलाई की आधी रात को शिवराज सिंह ने मंत्रियों को बांटे गए विभागों की सूची जारी की। सूची जारी होने के बाद साफ़ हो गया कि जो सिंधिया चाहते थे, लगभग वही हुआ। मसलन, सिंधिया के सबसे खास और पुराने वफादार तुलसीराम सिलावट को जल संसाधन (साथ में मछुआरा कल्याण तथा मत्स्य विभाग भी) और गोविंद सिंह राजपूत को राजस्व और परिवहन जैसे अहम विभाग मिल गए।

सिंधिया समर्थक अन्य मंत्रियों में इमरती देवी को महिला एवं बाल विकास विभाग, प्रभुराम चौधरी को लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, महेंद्र सिंह सिसोदिया को पंचायत और ग्रामीण विकास, प्रद्युम्न सिंह को ऊर्जा और राज्यवर्धन सिंह दत्तीगाँव को औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन जैसे अहम विभाग मिले हैं। 

बताया जाता है कि सिंधिया वाणिज्यिक कर विभाग भी अपने समर्थक मंत्री के लिए चाहते थे, लेकिन शिवराज इसके लिए तैयार नहीं थे। इस विभाग को लेकर हुई खींचतान के चलते भी विभागों के बंटवारे में देरी हुई। आखिरकार यह विभाग शिवराज अपने पुराने मंत्री जगदीश देवड़ा को देने में सफल रहे। वित्त विभाग का दायित्व भी उन्हें ही सौंपा गया है। 

सिंधिया समर्थक राज्यमंत्री बृजेंद्र सिंह यादव को लोक स्वास्थ्य एवं यांत्रिकी, गिरिराज दंडोतिया को किसान कल्याण तथा कृषि विकास, सुरेश धाकड़़ को लोक निर्माण और ओ.पी.एस. भदौरिया को नगरीय विकास एवं आवास विभाग का दायित्व सौंपा गया है।

कमलनाथ सरकार को गिराने में भागीदार बने कांग्रेस के तीन अन्य पुराने विधायकों को भी भाजपा में शामिल होने के पुरस्कार स्वरूप बड़े विभाग सौंपे गए हैं। इन पूर्व विधायकों में बिसाहूलाल सिंह को खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण, एंदल सिंह कंसाना को लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी और हरदीप सिह डंग को नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण विभाग की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।

शिवराज की पूर्व मंत्रिपरिषद में कई-कई भारी-भरकम महकमों की ज़िम्मेदारी संभालने वाले मंत्रियों की हैसियत बदले हुए हालात में बेहद पतली हो गई है। मसलन आठ बार के विधायक और कमलनाथ सरकार के दौरान विपक्ष का नेता रहे वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव को लोक निर्माण और कुटीर एवं ग्रामोद्योग जैसे विभागों से ही संतोष करना पड़ा है, जबकि शिवराज की पूर्व सरकारों में वे लगभग आधा दर्जन अहम विभाग संभालते थे। 

मुख्यमंत्री पद के दावेदार और सरकार में नंबर दो माने जाने वाले नरोत्तम मिश्रा के पास गृह और लोक स्वास्थ्य विभाग पहले था। ताज़ा वितरण के बाद बेहद अहम स्वास्थ्य विभाग उनसे लेकर सिंधिया समर्थक प्रभुराम चौधरी को दे दिया गया है। जबकि मिश्रा की जिम्मेदारियों में जेल, संसदीय कार्य और विधि विभाग जोड़ दिए गए हैं।’

इसी तरह आदिवासी वर्ग के एक अन्य वरिष्ठ मंत्री विजय शाह को महज वन विभाग ही मिल पाया है। शिवराज की पूर्व की सरकारों में शाह के पास भी तीन से लेकर पाँच-छह विभागों का जिम्मा था। कमलनाथ सरकार में खनिज मंत्री रहे निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल ने कमलनाथ सरकार के गिरते समय पाला बदला था। शिवराज ने उन्हें खनिज विकास निगम का अध्यक्ष बना कर कैबिनेट मंत्री का दर्ज़ा दिया है।

छतरपुर ज़िले के बड़ा मलेहरा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने वाले प्रद्युम्न सिंह लोधी को इतवार को ही खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष पद की कुर्सी से नवाजा गया। लोधी ने एक दिन पहले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा है। सुबह ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था। उन्हें भाजपा में लाने में उनकी सजातीय उमा भारती ने अहम भूमिका निभाई।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और उनके पत्रकारिता जीवन का बड़ा हिस्सा मध्य प्रदेश में गुजरा है।)

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