फिल्म-आलोचक मैथिली राव का कंगना को पत्र, कहा- ‘एनटायर इंडियन सिनेमा’ न सही हिंदी सिनेमा के इतिहास का थोड़ा ज्ञान ज़रूर रखो

Estimated read time 1 min read

(जानी-मानी फिल्म-आलोचक और लेखिका Maithili Rao के कंगना रनौत को अग्रेज़ी में लिखे पत्र (उनके पेज पर प्रकाशित) का हिन्दी-अनुवाद कुमार मुकेश ने किया है। पेश है पूरा पत्र-संपादक)

प्रिय सुश्री रनौत,

तुमने कल रात अपने साक्षात्कार में दावा किया कि तुम हिंदी सिनेमा जगत की पहली नारीवादी अभिनेत्री हो। दुर्भाग्य से नविका नोक्सियस (हानिकारक) कुमार ने तुम्हारे चापलूसी-भरे साक्षात्कार में इस पर किसी प्रकार का अनुवर्ती प्रश्न पूछने की जहमत नहीं उठाई। 

जहां तक मुझे याद है, तुमने फिल्म ‘क्वीन’ या ‘तनु वेड्स मनु’ का निर्माण, लेखन या निर्देशन नहीं किया था। इन फिल्मों में तुमने नायिका का किरदार निभाया था: पहली फिल्म ने तुम्हें भारत का प्रिय तो दूसरी ने एक विचित्र सम्प्रदायवादी को स्वीकार्य बना दिया। तुम्हें ‘क्वीन’ और ‘तनु वेड्स मनु’ की दूसरी कड़ी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले। बहुत बढ़िया।

लेकिन मुझे तुम्हारे इस दावे से समस्या है कि तुम हिंदी सिनेमा जगत की पहली नारीवादी अभिनेत्री हो। तुम्हें, उस तरह से जिस तरह हमारे प्रधानमंत्री को ‘एनटायर पॉलिटिकल साइंस’ या वैसे ही किसी विषय में महारत हासिल है उसी तरह ‘एनटायर इंडियन सिनेमा’ को भले ही न सही पर हिंदी सिनेमा के एक संक्षिप्त इतिहास को जानने की आवश्यकता है)।

क्या तुमने फिल्म ‘दुनिया न माने’ के बारे में सुना है जिसमें व्ही शांताराम ने हमारी पहली घरेलू गुरिल्ला को चित्रित किया था? ‘मदर इंडिया’ से तो कोई भी अनभिज्ञ हो ही नहीं सकता। या नूतन के साथ बिमल रॉय की फिल्मों से भी। या ‘साहिब बीबी और गुलाम’। ‘गाइड’ में वहीदा रहमान के रूप में एक ऐसी महिला का उल्लेखनीय चित्रण था, जो समझौतावादी नहीं हो सकती। 

मुझे नहीं पता कि तुमने समानांतर सिनेमा की फिल्में देखीं हैं या नहीं जिनमें शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, दीप्ति नवल, रोहिणी हट्टंगड़ी ने भारतीय महिला की छवि को नए सिरे से लिखा। शबाना और स्मिता ने मुख्यधारा की फिल्मों में भी काम किया: ‘अर्थ’ और ‘आखिर क्यों’ जैसी फिल्मों में सशक्त नारीवादी संदेश थे। शबाना की ‘गॉडमदर’ एक और ऐतिहासिक फिल्म थी। 

और हां, तुम्हारे अपशब्दों के निशाने पर रहीं जया बच्चन ने हिन्दी सिनेमा को ‘गुड्डी’, ‘मिली’, ‘अभिमान’, ‘कोरा कागज़’, ‘हज़ार चौरासी की माँ’ जैसी फिल्में दी हैं। शायद बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन ये हमारे पुरुष प्रधान फिल्म उद्योग में उल्लेखनीय फिल्में रही हैं ।

जब हम सब नई सहस्राब्दी में दाखिल हो रहे थे तो उसी दौरान, तब्बू की ‘अस्तित्व’ और ‘चांदनी बार’ जैसी फिल्में भी महिला केंद्रित थीं।

अब हमारे पास तुम्हारी समकालीन विद्या बालन, दीपिका पादुकोण (छपाक), तापसी पन्नू और स्वरा भास्कर जैसी अभिनेत्रियाँ हैं जिन्होंने नारीवादी फिल्मों की सूची को आगे बढ़ाया है।

तो प्लीज अपनी हेकड़ी पर लगाम लगाते हुए बॉलीवुड के योद्धा अवतार को स्वयं पर धारण करने से पहले अपने ही सिनेमा के इतिहास को थोड़ा जान लो।

कुमार मुकेश।

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments