दिल्ली में 23 मजदूर बनाए गए बंधुआ, सुनवाई न होने पर अदालत पहुंचा मामला

23 मजदूरों से बंदूक की नोक पर कई महीने काम लिया गया। बिना किसी उपकरण के बड़े-बड़े पत्थर उठवाए गए और 9-10 घंटे तक मजदूरी कराई गई। इस दौरान इन मजदूरों से दो किलोमीटर लंबी, 12 फुट ऊंची दीवार बनवाई गई। निर्माण में बड़े-बड़े पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। दीवार बन जाने के बाद जब मजदूरों ने अपनी मजदूरी मांगी तो उन्हें मारा-पीटा गया और मजदूरी भी नहीं दी। यह गैरकानूनी और अमानवीय कृत्य दिल्ली में हुआ है। इन मजदूरों की कहीं सुनवाई न होने पर अब अदालत का दरवाजा खटखटाया गया है। यह 23 मजदूर उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के एक गांव के हैं।

बंधुआ बनाने के एक अमानवीय कृत्य के तहत अनुसूचित जाति के 23 मजदूरों को जून 2019 में प्रकाश नाम का एक व्यक्ति उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के रामगढ़ गांव, मड़रवा तहसील से दक्षिण दिल्ली में जिंदल फ़ार्म में लाया गया था। प्रकाश ने उन सभी को संजय नामक एक ठेकेदार के पास छोड़ दिया। ठेकेदार ने प्रत्येक मजदूर को 400 रुपये प्रति दिन, प्रत्येक मिस्त्री को 600 रुपये प्रतिदिन दिहाड़ी दिलाने का आश्वासन दिया। साथ ही ये भी कहा कि मजदूरी हर चार से आठ दिन में मिल जाया करेगी। इन 23 मजदूरों से दो किलोमीटर लंबी, 12 फुट ऊंची दीवार का निर्माण कराया गया। यह एक जोखिम का काम था, जिसमें उचित उपकरणों के बिना भारी पत्थरों का इस्तेमाल दीवार बनाने में किया गया था, जिससे उन मजदूरों का जीवन खतरे में पड़ गया था।

उन्हें निर्दयतापूर्वक जून 2019 से 16 सितंबर 2019 तक प्रति दिन नौ घंटे से अधिक काम करने के लिए बाध्य किया गया, और ये सब उन्हें बिना उचित आश्रय, भोजन, पानी और दवा जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना करवाया गया। काम के बाद ठेकेदार ने न केवल उनके वेतन का भुगतान करने से इनकार कर दिया, बल्कि हर बार उनके द्वारा अपना मेहनताना मांगे जाने पर उनकी पिटाई भी की। यहां तक ​​कि उन्हें बंदूक की नोक पर धमकाने की हद तक जाकर काम लिया गया। इससे उन्हें अपने जीवन के लिए डर बना रहा। इसके अलावा, उन्हें अन्यत्र कहीं काम करने की अनुमति नहीं थी।

ये सभी 23 मजदूर लगातार ठेकेदार और उनके एजेंटों की निगरानी में रहते थे। इस प्रकार उन्हें किसी भी तरह की आय और स्वतंत्र जीवन जीने की आजादी से वंचित करके बंधुआ गुलाम बनाकर रखा गया। 9 सितंबर 2019 को, एक पुसाउ नामक मजदूर ने बंधुआ मुक्ति मोर्चा के महासचिव निर्मल गोराना से संपर्क किया और उन्हें मामले की जानकारी दी। निर्मल गोराना ने जनचौक से बताचीत में बताया कि इस संदर्भ में कई अभ्यावेदन भेजे गए थे और व्यक्तिगत रूप से संबंधित एसडीएम और डीएम से मिलने के कई प्रयास किए गए, लेकिन यह सब व्यर्थ रहा। 16 सितंबर 2019 को, उक्त ठेकेदार को हमारी शिकायत के बारे में पता चल गया या उसे सूचित कर दिया गया और उसने कार्य स्थल से बाकी के 22 मजदूरों को हटा दिया।

मार्च 2020 में, एक जनहित याचिका दायर की गई पुसाउ बनाम स्टेट ऑफ एनसीटी। याचिका सिविल नंबर 2821/2020 है। ये जनहित याचिका अधिवक्ता ओसबर्ट खालिंग द्वारा दायर की गई थी। हालांकि, लॉकडाउन के चलते इस पर 6 महीने तक सुनवाई नहीं हो सकी। 30 सितंबर 2020 को, एडवोकेट खालिंग ने इस संदर्भ में प्रारंभिक सुनवाई के लिए एक एप्लीकेशन दी और तब जाकर 7 अक्टूबर 2020 को सुनवाई के लिए इस मामले को सूचीबद्ध किया गया। इसके बा उक्त आवेदन पर सुनवाई हुई और उत्तरदाताओं को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया गया।

जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।

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