वाराणसी के चौबेपुर थाना अंतर्गत श्रीकंठपुर निवासी बसपा नेता राम बिहारी चौबे की हत्या में चंदौली के सैयदराजा के भाजपा विधायक सुशील सिंह और अन्य के खिलाफ यूपी पुलिस द्वारा दाखिल क्लोजर रिपोर्ट को उच्चतम न्यायालय के जस्टिस रोहिंटन नरीमन, नवीन सिन्हा और कृष्ण मुरारी की पीठ ने ख़ारिज कर दिया है। अदालत ने इस मामले की जांच के लिए आईपीएस अधिकारी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है। पीठ ने नोट किया कि जांच और क्लोजर रिपोर्ट, प्रकृति में अत्यंत आकस्मिक और लापरवाही भरा हैं। पीठ ने उत्तर प्रदेश पुलिस की कड़ी आलोचना की। भाजपा विधायक सुशील सिंह कुख्यात गैंगेस्टर बृजेश सिंह के बड़े भाई चुलबुल सिंह के पुत्र हैं।
पीठ पीड़िता के बेटे, अमर नाथ चौबे द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सीबीआई को मामले को स्थानांतरित करने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनकी याचिका को खारिज करने को चुनौती दी गई थी। बसपा नेता राम बिहार चौबे को उनके गांव, श्रीकंठपुर, वाराणसी में दिसंबर, 2015 को गोली मार दी गई थी। पीठ ने दिसंबर 2015 में चौबे की हत्या की गहन जांच करने में यूपी पुलिस के लचर रवैये को गंभीरता से लिया, जिसमें मृतक के बेटे ने सिंह के साथ अपने पिता की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का आरोप लगाया।
विधायक सुशील सिंह का नाम गिरफ्तार एक शूटर और वादी के बयान के आधार पर पुलिस ने मुकदमे की विवेचना में शामिल किया था। हालांकि बाद में चौबेपुर थाने की पुलिस ने ही विधायक सुशील सिंह को क्लीन चिट देते हुए अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी। इसे लेकर उच्चतम न्यायालय ने जिला पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाते हुए तल्ख टिप्पणी की है।
पीठ ने कहा कि हम यह दर्ज करने के लिए विवश हैं कि जांच और क्लोजर रिपोर्ट प्रकृति में अत्यंत आकस्मिक और लापरवाही भरा है। जांच और क्लोजर रिपोर्ट में सुशील सिंह सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ जांच की प्रकृति के संबंध में कोई सामग्री नहीं है। जांच एक दिखावा प्रतीत होता है, जिसे अधिक से अधिक छिपाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। पीठ ने कहा कि पुलिस का प्राथमिक कर्तव्य है कि वह संज्ञेय अपराध के सत्य तक पहुंचने के लिए जांच करे। यह एक संवैधानिक दायित्व है और दंड प्रक्रिया संहिता के तहत एक सांविधिक कर्तव्य है। यह कहना कि आगे की जांच संभव नहीं थी, क्योंकि सूचना देने वाले ने जांच करने के लिए पर्याप्त सामग्री की आपूर्ति नहीं की थी, हमारे दिमाग में, एक पुलिस बयान है, जो पुलिस दे रही है।
निष्पक्ष जांच को जीवन और समानता के अधिकार के रूप में व्याख्यायित करते हुए पीठ ने कहा कि जांच पुलिस का विशेषाधिकार है, जिसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है, लेकिन अगर पुलिस कानून के अनुसार अपने वैधानिक कर्तव्य का पालन नहीं करती है या उचित नहीं है। यह स्पष्ट है कि पुलिस ने ठीक से जांच नहीं की है। अदालत का यह सुनिश्चित करना एक संवैधानिक दायित्व है कि जांच कानून के अनुसार की जाए।
बसपा नेता राम बिहारी चौबे के पुत्र अमरनाथ चौबे के अनुसार छह अप्रैल 2017 की सुबह चौबेपुर थाने की पुलिस शूटर अजय मरदह, आशुतोष और राजू बिहारी को गिरफ्तार करने चांदमारी स्थित एक अपार्टमेंट के फ्लैट में गई थी। तीनों बदमाशों की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए विधायक सुशील सिंह मौके पर पहुंच गए थे। घंटों की हुज्जत के बाद भी पुलिस ने विधायक की एक न सुनी थी और तीनों बदमाशों के खिलाफ पर्याप्त सबूत बताते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।
इसके बाद उनके और राजू बिहारी के बयान के आधार पर पुलिस ने सुशील सिंह का नाम मुकदमे में आपराधिक षड़यंत्र रचने के आरोपी के तौर पर शामिल किया था। राजू बिहारी की कार्रवाई शिनाख्त की प्रक्रिया भी जिला जेल में वारदात स्थल पर मौजूद एक व्यक्ति द्वारा की गई थी। इसके अलावा उनके पिता राम बिहारी चौबे ने भी हत्या से पहले पुलिस और प्रशासन के उच्च अधिकारियों को पत्र लिखा था कि उनकी जान को सुशील सिंह से खतरा है।
इस हत्या की विवेचना आठ विवेचकों ने की थी। इसके बावजूद उनके और शूटर के बयान और पिता के द्वारा पूर्व में लिखे गए पत्रों को खारिज करते हुए चौबेपुर थाने की पुलिस ने एमएलए सुशील सिंह को क्लीन चिट दे दी थी। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी मृतक के पुत्र और अन्य गवाहों को पुलिस सुरक्षा नहीं दी जा रही है।
चार दिसंबर 2015 की सुबह श्रीकंठपुर निवासी बसपा नेता राम बिहारी चौबे के घर में घुस कर दो बदमाशों ने उनका पैर छूने के बाद अंधाधुंध फायरिंग कर हत्या कर दी थी। वारदात के दौरान दो अन्य बदमाश राम बिहारी के दरवाजे के समीप खड़े थे। चौबेपुर थाने की पुलिस एक साल चार महीने तक हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। एसटीएफ की वाराणसी इकाई के इनपुट के आधार पर छह अप्रैल 2017 को चौबेपुर पुलिस ने गाजीपुर के मरदह निवासी शार्प शूटर अजय मरदह और आशुतोष सिंह सनी और बिहार के भभुआ निवासी नागेंद्र सिंह उर्फ राजू बिहारी को गिरफ्तार किया था। फिलहाल अजय मरदह और राजू बिहारी जेल में ही निरुद्ध हैं, जबकि आशुतोष जमानत पर बाहर है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)
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