हरियाणा में दिखने लगी किसानों के आंदोलन की गर्मी, निकाय चुनावों में बीजेपी की करारी हार

हरियाणा में पांच नगर निगमों, तीन नगर पालिकाओं और एक नगर परिषद के चुनाव में कुल मिलाकर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। अंबाला, सोनीपत नगर निगम की मेयर सीट के लिए हुए चुनाव में बीजेपी-जेजेपी को जबरदस्त झटका लगा है, जबकि पंचकुला और रोहतक में भाजपा वापसी कर सकी है। स्थानीय निकाय के इन चुनावों में बीजेपी को बढ़त दिलाने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने लोकल से लेकर राष्ट्रीय मुद्दे छेड़े, पंजाबी कार्ड खेला लेकिन सारे नुक्ते धरे रह गए। नगर निगम का चुनाव सत्तारूढ़ बीजेपी-जेजेपी गठबंधन और कांग्रेस ने अपने-अपने पार्टी निशान पर लड़ा था, जबकि ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो ने इसमें पार्टी निशान के तहत चुनाव नहीं लड़ा था। हालांकि बीजेपी-जेजेपी ने बड़ी ही बेशर्मी से स्थानीय निकाय के चुनाव में अपनी बड़ी जीत का दावा किया है लेकिन हकीकत वो नहीं जो बीजेपी-जेजेपी बता रही हैं। स्थानीय निकाय चुनाव नतीजों का सीधा असर जेजेपी के उन असंतुष्ट विधायकों पर पड़ सकता है जो मौके की ताक में बैठे हुए हैं।

ढह गया विज का किला

भाजपा को सबसे बड़ी हार अंबाला में मिली है। अंबाला में जनचेतना पार्टी की शक्तिरानी शर्मा ने बीजेपी की मेयर प्रत्याशी डॉ वंदना शर्मा को सीधे मुकाबले में हरा दिया। हरियाणा के पूर्व मंत्री विनोद शर्मा ने जनचेतना पार्टी की स्थापना की थी। शक्तिरानी शर्मा उनकी पत्नी हैं। विनोद शर्मा कांग्रेस में रहे और जेसिका लाल मर्डर केस में अपने बेटे मनु शर्मा के फंसने के बाद विवादों में आए थे। बाद में कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया, तब उन्होंने अपनी पार्टी जनचेतना स्थापित की।

अंबाला में भाजपा की हार को सबसे बड़ा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि अंबाला अनिल विज और भाजपा का सबसे मजबूत किला कहा जाता रहा है। विज हरियाणा के गृह मंत्री भी हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बाद वरिष्ठता क्रम में विज ही सबसे सीनियर हैं और किसी समय मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी बताए जाते रहे हैं।

अंबाला में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी। मेयर पद के लिए सीधे चुनाव में उसका प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा। कांग्रेस के कुल तीन पार्षद ही चुने गए। भाजपा के सबसे ज्यादा 8 पार्षद चुने गए जबकि जनचेतना पार्टी के सात प्रत्याशी चुने गए। इसी तरह डेमोक्रेटिक फ्रंट के दो पार्षदों को जीत नसीब हुई।

सोनीपत की जीत भी महत्वपूर्ण

अंबाला के बाद विपक्ष ने सोनीपत नगर निगम के मेयर चुनाव में भी शानदार सफलता हासिल की। कांग्रेस के निखिल मदान ने सीधे मुकाबले में भाजपा-जेजेपी गठबंधन के प्रत्याशी ललित बत्रा को धूल चटा दी। सोनीपत की जीत कई मायने में महत्वपूर्ण है। असल में सोनीपत किसानों के अलावा जाट बेल्ट की महत्वपूर्ण सीट है। यहां से अगर भाजपा जीतती तो वह इसे सीधे किसानों की जीत बताकर प्रचारित कर देती है। पाठकों को याद होगा कि हाल ही में जिले के बरोदा विधानसभा उपचुनाव में जनता भाजपा प्रत्याशी और अंतरराष्ट्रीय पहलवान योगेश्वर दत्त को धूल चटा चुकी है। सोनीपत नगर निगम के मेयर की सीट शहरी होने के बावजूद ग्रामीण इलाकों का असर लिए हुए है। इसलिए सोनीपत में सीधे मुकाबले में कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी का जीतना जनता का मूड बताने के लिए काफी है।

सोनीपत में निकाय चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री खट्टर ने खुद भी कमान संभाली थी। उन्होंने खुद को भाजपाई पंजाबियों का नेता बनाकर पेश किया ताकि पंजाबी कार्ड खेला जा सके। पंजाबी सभा के लिए जमीन तक आवंटित करने का प्रचार किया गया। लेकिन सोनीपत की जनता पर खट्टर के पंजाबी कार्ड का कोई असर नहीं पड़ा। कांग्रेस की ओर से पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने निखिल मदान के लिए जमकर प्रचार किया। खुद हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने भी पूरी ताकत लगा दी। सोनीपत में कांग्रेस की जीत को सामूहिक नेतृत्व की जीत कहा जा सकता है, क्योंकि यहां कांग्रेस के नेता बिना किसी गुटबाजी में पड़े चुनाव प्रचार करते रहे। उनकी एकजुटता जनता को भी नजर आई और उसने कांग्रेस प्रत्याशी निखिल मदान को जिताने में कमी नहीं छोड़ी।

तीन नगर पालिकाओं में बीजेपी-जेजेपी साफ

धारूहेड़ा, सांपला और उकलाना नगर पालिकाओं में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन का सफाया हो गया। रोहतक जिले की सांपला और हिसार जिले की उकलाना नगर पालिकाओं में चेयरमैन पद के लिए सीधे चुनाव में कांग्रेस समर्थित या कांग्रेस कार्यकर्ता चुनाव जीते हैं। तीनों नगर पालिकाओं के चुनाव पार्टियों के चुनाव चिह्न पर नहीं लड़ गए थे लेकिन विभिन्न पार्टियों ने स्पष्ट तौर पर समर्थन किया था। सांपला और उकलाना कस्बे किसान और जाट बेल्ट के प्रमुख कस्बे हैं। यहां किसान आंदोलन का सीधा प्रभाव नजर आया। सांपला और उकलाना बीजेपी से भी ज्यादा जेजेपी का गढ़ रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में यहां के लोगों ने दुष्यंत चौटाला का खुलकर समर्थन किया था। लेकिन एक ही साल में बाजी पलट गई। अब इस बेल्ट में दुष्यंत सबसे ज्यादा अलोकप्रिय नेता के तौर पर अपनी छवि बना चुके हैं। इसी तरह गुड़गांव-रेवाड़ी बॉर्डर पर बसे धारूहेड़ा की जीत भी महत्वपूर्ण है। यहां पर इंडस्ट्रियल एरिया है। इस तरह मजदूर वर्ग ने भाजपा समर्थित प्रत्याशी को धूल चटा दी।

कहीं-कहीं इज्जत भी बची

रोहतक और पंचकुला नगर निगमों के मेयर चुनाव में भाजपा अपनी इज्जत बचाने में कामयाब रही। इसी तरह रेवाड़ी नगर परिषद चुनाव में भी भाजपा की पूनम यादव ने जीत दर्ज की है। पंचकुला में मेयर के सीधे चुनाव में बीजेपी के कुलभूषण गोयल ने कांग्रेस की उपेन्दर कौर आहलूवालिया को हरा दिया। इसी तरह रोहतक में बीजेपी के मनमोहन गोयल ने सीधे मुकाबले में कांग्रेस के सीताराम सतदेवा को हरा दिया। इन दोनों नगर निगमों में पहले भी बीजेपी के मेयर थे। इसी तरह रेवाड़ी नगर परिषद चेयरमैन पद पर भी बीजेपी का कब्जा रहा है।

सबसे दिलचस्प तो ये है

सिरसा में एक वॉर्ड का उपचुनाव था। यानी ऐसा वार्ड जिसमें कुछ हजार वोट होते हैं और मुकाबला बहुत नजदीकी रहता है। तो ऐसे ही एक वार्ड के उपचुनाव में एचएलपी प्रत्याशी निशा बजाज ने जीत दर्ज की है। उन्होंने कांग्रेस को हराया। इतने मामूली चुनाव में भी बीजेपी-जेजेपी गठबंधन तीसरे नंबर पर रहा। यह इलाका दुष्यंत चौटाला का गढ़ है। लेकिन मतदाताओं ने बीजेपी-जेजेपी को हाशिए पर धकेल दिया।

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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