आरएसएस एजेंट दीप सिद्धू और केंद्र की साजिश का राज!

25 जनवरी सोमवार शाम को, दीप सिद्धू ने गैंगस्टर से सोशल एक्टिविस्ट बने लक्खा सिधाना के साथ घोषणा की कि वे “दिल्ली के अंदर” मार्च आयोजित करेंगे। दीप सिद्धू ने कल शाम को फेसबुक लाइव किया था। इसमें वो स्पष्ट कहता है कि वो संयुक्त किसान मोर्चा के रूट मैप से सहमत नहीं है।

और दिल्ली के अंदर ट्रैक्टर मार्च का हिमायती है। कमेंट में लोग उसे समझा रहे हैं कि भाई ज्यादा शयाना मत बन। अपने स्वार्थ के चक्कर में किसान आंदोलन को बर्बाद मत कर। किसान जत्थेबंदियों पर भरोसा रख। बड़े बूढ़े किसान नेता जो फैसला ले रहे हैं वही सही है। 

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दीप सिद्धू और लक्खा सिधाना के पास आज मंगलवार सुबह तक एक योजना तैयार थी। सबसे पहले, उन्होंने किसान यूनियनों के आधिकारिक मार्च के निर्धारित समय से पहले ही अपना स्वयं का एक ट्रैक्टर मार्च शुरू किया, और बड़ी संख्या में मध्य दिल्ली की ओर जाने वाली सड़क पर अपने ‘गुर्गे’ तैनात किए। वहां से उन्होंने अन्य ट्रैक्टरों को सहमत मार्ग के बजाय लाल किले की ओर निर्देशित किया। एक समय में, किसान यूनियनों के स्वयंसेवकों ने इसमें हस्तक्षेप करने की कोशिश की, लेकिन दीप सिद्धू और लक्खा सिधाना समूह ने उन्हें गच्चा देकर आगे बढ़ गये।

किसान यूनियनों द्वारा दीप सिद्धू नामक इस अराजक तत्व को बहुत पहले ही समझ लिया गया था। लगभग एक महीने पहले, 32 किसान यूनियनों की एक बैठक के दौरान, नेताओं में से एक ने दीप सिद्धू और लक्खा सिधाना को “इस संघर्ष के दुश्मन” के रूप में निरूपित किया था।

किसान आंदोलन के बिल्कुल शुरुआत में ही संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा भगा दिये जाने के दीप सिद्धू और लक्खा सिधाना ने पंजाब के पटियाला ज़िले में शंभू बैरियर धरना स्थल या जिसे शंभू मोर्चा कहा जा रहा है, मैं अपना अलग मंच लगा लिया था और लगातार दो महीने से वहीं जमा हुआ था। शंभू मोर्चा’, पर मंच सजाने के बाद जल्द ही कुछ समर्थक खालिस्तानी चैनलों से “लाइव स्ट्रीमिंग” के जरिए उसने समर्थन प्राप्त करना शुरू कर दिया और दीप सिद्धू अक्सर संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल यूनियनों के ‘वामपंथी’ नेतृत्व पर हमला करता था। वह यहूदियों के उदाहरण का हवाला देकर लोगों को “सिख मातृभूमि” के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करता।

एक सवाल जो अब उठाया जा रहा है, वो ये कि “हिंदू दक्षिणपंथ” से “सिख दक्षिणपंथी” कैसे हो गया। इस पर वो खुद स्पष्टीकरण देते हुए कहता है कि सिख इतिहास पर नक्सलवादी-खालिस्तान प्रस्तावक अजमेर सिंह की किताबें थीं, जिन्होंने उसकी धारणा बदल दी। हालांकि, किसान यूनियनों ने खुले तौर पर आरोप लगाया है कि दीप सिद्धू अजमेर सिंह का “प्रतिनिधि” हैं।

आंदोलन की शुरुआत के बाद से, 32 संगठनों के बीच आम चिंता यह थी कि ये दोनों यानि दीप सिद्धू और लक्खा सिधाना “संघर्ष” को एक सांप्रदायिक रास्ते की ओर धकेल रहे थे।

कीर्ति किसान यूनियन के उपाध्यक्ष राजिंदर सिंह दीपसिंह वाला कहते हैं, “इस आंदोलन को सांप्रदायिक रंग में रंगने के लिए केंद्र शुरू से ही कोशिश कर रहा था। वे धार्मिक खेलों के मास्टर हैं, लेकिन किसानों के नेतृत्व में किए गए इस संघर्ष में, वे पहली बार  अपनी साजिश में सफल हुए हैं। दीप सिद्धू ने उनकी अच्छी सेवा की है।” 

वहीं ऑल इंडिया किसान सभा महासचिव हन्नान मौला ने कहा है,” आज दिल्ली में जिन्होंने तोड़ फोड़ की, वे किसान नहीं किसान के दुश्मन हैं, ये साजिश का अंग है। आज की गुंडागर्दी से, साजिश से हमने सबक लिया है। भविष्य में आंदोलन में ऐसे लोगों को घुसने का मौका न मिले, हम शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चलाएंगे।” 

बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान, दीप सिद्धू भाजपा को मजबूत करने के लिए प्रचार कर रहे थे, और यहां तक ​​कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ स्टेज भी साझा किया था, क्योंकि वह भाजपा पार्टी के गुरदासपुर के उम्मीदवार सनी देओल के चुनाव एजेंट था। दीप सिद्धू को पंजाब में किसान यूनियनों द्वारा “आरएसएस एजेंट” के रूप में आरोपित किया जाता रहा है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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