अनाथ बच्चों को भी जुमलों की सौगात

पीएम मोदी ने कोविड-19 के कारण अनाथ हुए बच्चों के लिए 29 मई को ‘पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रेन’ योजना के तहत राहत की घोषणा की। उनकी तरफ से ऐसी किसी घोषणा का कई दिनों से इंतजार हो रहा था, क्योंकि न केवल ज्यादातर राज्यों ने अपनी तरफ से राहत पैकेजों की घोषणाएं कर दी थीं, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे बच्चों की जानकारी जुटा कर उनकी देखभाल की व्यवस्था करने का निर्देश सभी जिलाधिकारियों को दे दिया था।

लेकिन पीएम मोदी की घोषणा में ऐसा क्या था जिसने सबको मायूस कर दिया? दरअसल ज्यादातर इन अनाथ बच्चों की जिंदगी काफी कठिन स्थिति में है। कई तो ऐसी स्थिति में हैं कि उनके इर्द-गिर्द उनकी देखरेख करने वाला कोई रिश्तेदार तक नहीं है। ऐसी स्थिति में उन्हें तत्काल संरक्षण और आर्थिक संबल की सख्त जरूरत है, अन्यथा उनके टूट जाने, दर-ब-दर की ठोकरें खाने के लिए विवश हो जाने और जिंदगी के बिखर जाने का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री जी ने जो व्यवस्था की है उसके अनुसार इन बच्चों के नाम एक सावधि जमा योजना शुरू की जाएगी और पीएम केयर्स कोष से एक विशेष योजना के तहत इसमें योगदान दिया जाएगा ताकि उनके 18 साल का होने पर प्रत्येक के लिए 10 लाख रुपये का कोष बनाया जा सके। अगले 5 साल तक इस कोष का मासिक ब्याज उन्हें उच्च शिक्षा के दौरान उनकी जरूरतों के लिए वजीफे की तरह मिलता रहेगा और उनके 23 साल का होने पर 10 लाख की धनराशि मिल जाएगी।

इसका सीधा आशय यह है कि इन बच्चों की देखभाल के लिए आज की तारीख में उन्हें एक पैसा नहीं मिलना है। इन बच्चों में से कुछ तो दुधमुंहे हैं। उन्हें भी प्रधानमंत्री जी द्वारा लगाये गये इस पेड़ का पहला फल चखने के लिए भी कम से कम अगले 18 सालों तक इस बेरहम दुनिया में जिंदा रहना होगा। ग़ालिब के लफ्जों में कहें तो:

हमने माना कि तग़ाफुल न करोगे लेकिन,

ख़ाक हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार ऐसे बच्चे, जिनके मां-बाप दोनों की कोविड से मौते हो गयी हैं, उनकी संख्या अभी तक 577 है। सरकारी आंकड़ों की विश्वसनीयता तो यों भी कठघरे में है। इस महामारी ने भारत में लाखों जिंदगियों को निगल लिया है। जहां सरकारी आंकड़े अभी तक 3 लाख 26 हजार मौतें बता रहे हैं, वहीं न्यूयॉर्क टाइम्स की रिसर्च टीम ने सेरोलॉजिकल सर्वे तथा अन्य उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर गणना करके बताया है कि भारत में इस महामारी से मरने वालों की संख्या 42 लाख तक भी हो सकती है। इस तरह से तो इन अनाथ बच्चों की संख्या भी मंत्रालय द्वारा बतायी गयी संख्या से कई गुना, यानि कई हजार हो सकती है। आंकड़ों को दबाने-छिपाने के आरोपों से चौतरफा घिरी सरकार इन अनाथ बच्चों की सही संख्या पूरी नेकनीयती से खोजवाएगी और उन्हें चिन्हित करके उनकी मदद करेगी इस पर बौद्धिक दायरों में काफी संदेह बना हुआ है।

इस महामारी से निपटने में भारतीय शासक वर्ग की अक्षमता और कुप्रबंधन के ब्यौरों से पश्चिमी मीडिया भरा पड़ा है। भारत में भी बौद्धिक वर्ग की टिप्पणियों तथा कई उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बार-बार जारी दिशा-निर्देशों में व्यक्त तल्खी में भी इसे देखा जा सकता है। हालांकि भारतीय मुख्य धारा के मीडिया का बड़ा हिस्सा चाहे कॉरपोरेट नियंत्रण के नाते, चाहे सत्ता की जूठन के लालच में, चाहे सच को उजागर करने के साहस के अभाव के चलते सत्ताधारी पार्टी के आनुषांगिक मोर्चे की तरह सरकार की विफलताओं की पर्देदारी में जी-जान से जुटा हुआ है। इसके बावजूद कहीं न कहीं से सच्चाई के छींटे छिटक कर बाहर आ ही जा रहे हैं। इन छींटों को भी छिपाने की कोशिश में सरकार वैकल्पिक मीडिया और सोशल मीडिया पर नकेल कसने के लिए ही लगातार एक के बाद दूसरी तिकड़मों में लगी हुई है।

इस बीच में तमाम राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्य में अनाथ बच्चों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए एकमुश्त धनराशि के अलावा मासिक मदद की भी घोषणाएं की हैं। केरल ने ऐसे बच्चों को तत्काल 3 लाख रुपये और हर महीने 2000 रु., दिल्ली ने 25 साल की उम्र होने तक 2500 रु. प्रतिमाह, मध्य प्रदेश ने 5000 रु. प्रतिमाह, उत्तराखंड ने 21 साल की उम्र तक 3000 रु. प्रतिमाह, हिमांचल प्रदेश ने 18 साल उम्र तक 2500 रु. प्रतिमाह, छत्तीसगढ़ ने सारे खर्च उठाने और उत्तर प्रदेश ने 4000 रु. प्रतिमाह देने की घोषणाएं की हैं।

राज्य सरकारों की इन घोषणाओँ के बरक्श केंद्र सरकार की घोषणा अकस्मात बेचारगी की खाई में गिर पड़े इन मासूमों के साथ किया गया एक क्रूर मजाक जैसी दिख रही है। आज जब इन बच्चों को सबसे ज्यादा मदद की जरूरत है, उस समय कोई ठोस मदद न करके, इन्हें भविष्य में, वर्षों बाद मिलने वाली किसी धनराशि का दिया गया यह आश्वासन पूरे तंत्र में व्याप्त अमानवीय निर्ममता का ही एक और लक्षण है। यह हमारे समाज के रहनुमाओं द्वारा शताब्दियों से आम जनता को मृत्यु के बाद मिलने वाले स्वर्ग की गारंटी जैसा वादा है। यह वादा 15 लाख रुपये सबके खाते में डालने वाले वादे की तरह ही एक जुमले जैसा दिख रहा है।

दरअसल हर मोर्चे पर बुरी तरह से विफल यह सरकार काल्पनिक शत्रुओं का भय दिखाकर तथा काल्पनिक गौरव के सपने दिखाकर ही अपनी झूठी छवि और अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद कर रही है। एक तो अर्थव्यवस्था लगातार ढलान पर तेजी से गिर रही है और उसकी बागडोर इनके हाथ से छूट चुकी है। लेकिन इसे ये लोग स्वीकार नहीं करना चाहते हैं। दूसरी तरफ जिन कॉरपोरेट द्वारा प्रायोजित और निवेशित प्रचार-रथ पर सवार होकर इन्होंने सत्ता हथियायी है, उन्हें उपकृत करने की जतन में ये लगातार जनोन्मुख समाजवादी नीतियों को छोड़ने तथा कॉरपोरेट परस्त श्रम-विरोधी नीतयों को अपनाने का जबर्दस्त दबाव झेल रहे हैं। इस वजह से इनके पास झूठ, जुमले और वाग्जाल का ही सहारा है। इसी के चक्कर में 12 मई, 2021 को प्रधानमंत्री ने ‘दुनिया में सबसे ज्यादा’ 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी और बताया था कि यह जीडीपी का 10 फीसदी है, लेकिन अर्थशास्त्रियों ने जब विश्लेषण किया तो यह पैकेज वास्तव में मात्र 2 लाख करोड़ रुपये, यानि जीडीपी का मात्र 1 फीसदी निकला। अपनी रोजी-रोटी गंवा चुके प्रवासी मजदूरों तक को वास्तविक मदद न के बराबर मिली।

इसी तरह से टीकों के विकास के लिए टीके बनाने वाली दोनों प्राइवेट कंपनियों, ‘सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया’ (जिसने ब्रिटिश-स्वीडिश ‘ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका’ टीके का भारत में परीक्षण और निर्माण ‘कोवीशील्ड’ नाम से किया) और भारत बायोटेक को वित्तमंत्री द्वारा घोषित 900 करोड़ रुपये का ‘डाइरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर’ कभी मिला ही नहीं, और उन्होंने सारा काम अपने खर्च पर किया, जबकि सत्ता प्रतिष्ठान ने ऐसे पेश किया जैसे मोदी जी जैसे महामानव ने ही दोनों टीकों की खोज और विकास किया और इसी वजह से दुनिया की सारी फार्मा कंपनियां और देश भारत में मौजूद देशद्रोही विपक्ष और वामपंथी-बुद्धिजीवी सभी थरथर कांप रहे हैं और देवतुल्य प्रधानमंत्री की छवि खराब करने की साजिशों में लगे हैं।

वास्तव में प्रधानमंत्री ने काफी कोशिश करके जो अपनी ही-मैन वाली छवि गढ़ी है, उसके भ्रम को जनता में बनाए रखने के लिए हमेशा ‘सबसे बड़ा’, ‘सबसे ज्यादा’, ‘दुनिया में पहली बार’ जैसे खोखले वाग्जाल का सहारा लेते रहना एक मजबूरी बन गई है। सभी मोर्चों पर बुरी तरह से असफल होने के बावजूद अभी तक सरकार इस भ्रम को बनाए रखने में सफल है, यही इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। फिर भी विपदा के मारे इन अनाथ मासूम बच्चों के साथ यह छल तो सभी हदें पार कर गया है।

(शैलेश स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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