सवा 3 लाख मौतों का जश्न और आगे बढ़ गया डिजिटल इंडिया

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन टीवी पर आ कर बोले- “हर वो ज़िंदगी जो खत्म हो गई, मैं उस के लिए दुखी हूं। एक प्रधानमंत्री के रूप में मैं हर उस चीज की जिम्मेदारी लेता हूं जो सरकार ने की है।”

ऑस्ट्रेलिया ने एक मरीज के संक्रमण का स्रोत नहीं मिलने पर सिडनी में लॉकडाउन लगा दिया था। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपने मुख्य मेडिकल सलाहकार विशेषज्ञ फाउची के साथ हर दिन प्रेस के सामने आते और जांच, इलाज से लेकर टीके तक पर सवालों के जवाब देते, अपनी तैयारी बताते। जवाबदेही उनकी संस्कृति में है। हमारी में नहीं है। अब जब योजना ही नहीं बताते तो योजना के अभाव में हुई मौतों का हिसाब कहां से बताएंगे? न हिसाब बताएंगे, ना जिम्मेदारी लेंगे।

सरकारी आकड़ों के अनुसार सवा 3 लाख अपनों को खो देने के बाद अब हम आगे बढ़ गए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा है कि अब हम 10 गुना ऑक्सीजन का उत्पादन कर रहे हैं। चैनलों पर राज्यों के मुख्यमंत्री बता रहे हैं कि कैसे उन्होंने कोरोना को हरा दिया है। राज्यों में लॉकडाउन खोलने की तैयारी है। कुछ ही दिनों में ज़िंदगी फिर पहले जैसी हो जाएगी।

ठहरना हमारी आदत नहीं है। हम इतने गतिशील हैं कि सवा 3 लाख मौतों से भी उबर गए। इतने प्रगतिशील हैं कि भूतकाल में फंसे नहीं रहते। भविष्य की तरफ देखते हैं। हम भावनाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते। सवा तीन लाख दिवंगतों के परिजनों के संताप का हिस्सा बनना, मौत के कारणों में जाना… हम इस तरह के लोग ही नहीं हैं। कोरोना मौतों का अकेला कारण नहीं था। बेड-ऑक्सीजन की कमी से कई लोग मरे हैं लेकिन इस गणित में पड़ने की बजाए हम आगे देख रहे हैं।

लेकिन क्या हम वाकई आगे भी देख पा रहे हैं? दस गुना ऑक्सीजन तो है लेकिन तीसरी लहर से लड़ने का मुख्य हथियार तो वैक्सीन है ना? उस का प्लान प्रधानमंत्री ने देश को नहीं दिया। जैसे पहली लहर के बाद ऑक्सीजन का नहीं दिया था। राज्य भी नहीं दे रहे।

हम योजना क्यों नहीं बताते? आंकड़ों के साथ क्यों नहीं बताते? वैज्ञानिक तथ्यों के साथ भविष्य का खाका क्यों नहीं खींच कर देते? पीएम ने यह क्यों नहीं बताया कि बच्चों को कैसे बचाएंगे?

राज्यों की सरकारें अब लॉकडाउन खोलने के साथ ही आम आदमी को टास्क देंगी। पिछले वर्षों में हम 138 करोड़ लोग टास्क पूरा करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी आबादी हो गए हैं।

दशकों पहले लालबहादुर शास्त्रीजी ने एक दिन का उपवास रखने को कहा था, तब देशहित में हम ने व्रत रखा था, लेकिन अब सरकारें अपनी जिम्मेदारी हम पर डालने और ध्यान बंटाने के लिए टास्क देती हैं। हम हर्ष और उल्लास के साथ टास्क के बर्तन बजाने लगते हैं।

बहरहाल, राज्य सरकारें हमें टास्क देंगी कि लॉकडाउन खुलना तभी सार्थक होगा जब “अमुक 10 काम” करेंगे। लेकिन क्या खुद सरकारें लॉकडाउन खोलने के लिए डब्ल्यूएचओ की सलाह यानी युद्धस्तर पर टेस्टिंग, ट्रेसिंग, आईसोलेशन का काम करेंगी?

हम तो मौतों को झुठलाने में लगे हैं। कुछ सीएम तो कह रहे हैं कि राज्य में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत ही नहीं हुई।

अब आप बताइए, ऑक्सीजन या बेड दिलाने के लिए जितने मैसेज आए थे उन सब को आप यह सब दिला पाए थे क्या? जिन्हें नहीं दिला पाए क्या वे आज सकुशल हैं? उस तबके की भी सोचिए जिसे यह नहीं पता कि बेड के लिए ट्विटर पर सोनू सूद को टैग कैसे करना है? ऑक्सीजन को तरस रहा उन का परिजन जिंदा है क्या?

देश और राज्यों का नेतृत्व आशावाद से भरी जो बातें कर रहा है उस के नेपथ्य में घोर अंधेरा है, क्योंकि इस आशावाद में न जवाबदेही है, न पश्चाताप और न भविष्य को ले कर भरोसेमंद योजना।

(मदन कोथुनियां स्वतंत्र पत्रकार हैं और आज कल जयपुर में रहते हैं।)

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