तोड़फोड़ के बीच खोरी में भ्रष्टाचार बढ़ाने वाली पुनर्वास नीति पेश

फ़रीदाबाद। नगर निगम फ़रीदाबाद (एमसीएफ) और ज़िला प्रशासन ने मंगलवार को खोरी के लोगों को बसाने के लिए बहुत ही लचर पुनर्वास नीति घोषित की। लेकिन इस नीति को लागू करने से पहले बुधवार से खोरी में तोड़फोड़ शुरू कर दी गई। खोरी के लोगों ने इस तोड़फोड़ का कोई विरोध नहीं किया, बस मायूस नज़रों से जेसीबी का ख़ंजर अपने मकानों पर चलता हुआ देखते रहे। तोड़फोड़ की कार्रवाई अभी कई दिन चलेगी।

मंगलवार को घोषित पुनर्वास नीति को बिना किसी संयुक्त सर्वे (एमसीएफ+खोरी के लोगों की कमेटी) के जारी किया गया है। एमसीएफ की इस नीति से भ्रष्टाचार का नया रास्ता खोला जा रहा है। खोरी के लोगों में से मकान उन्हीं को मिलेंगे जो एमसीएफ के अफ़सरों और कर्मचारियों को रिश्वत देंगे। नगर निगम की यह पुनर्वास नीति बहुत बड़ा स्कैंडल साबित होने जा रही है। वैसे भी क़रीब पौने चार लाख रूपये में मिलने वाले ये फ़्लैट इतने छोटे हैं कि चार लोगों के एक परिवार का गुज़ारा मुश्किल से हो पाएगा।

विरोध का हौसला टूटा

खोरी से अवैध क़ब्ज़ा हटाने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश 7 जून को आया था। एमसीएफ को डेढ़ महीने का समय दिया गया था। एक महीना तो फ़ालतू क़वायद में निकल गया लेकिन अब जब दस दिन बचे तो 14 जुलाई से कार्रवाई शुरू कर दी गई। प्रशासन यहां हिंसा होने की आशंका से डरा हुआ था। एक समुदाय विशेष को लक्ष्य करके गोदी मीडिया में खबरें छपवाई गईं कि यहाँ खूनखराबा हो सकता है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बस्ती में तोड़फोड़ के समय काफ़ी लोग थे लेकिन किसी ने नारा तक नहीं लगाया। बारिश की वजह से यह कार्रवाई रोकनी पड़ी लेकिन गुरुवार से फिर शुरू हो गई। हालांकि इस कार्रवाई से पहले सोमवार और मंगलवार को पुलिस ने बस्ती के कुछ लोगों को जबरन उठा लिया था। उनमें से कुछ लौट आए, कुछ का पता नहीं। समझा जाता है कि ऐसा बस्ती के लोगों को डराने के लिए किया गया।

कौन पूरी कर पाएगा ये शर्तें

एमसीएफ कमिश्नर गरिमा मित्तल ने मंगलवार को डीसी यशपाल यादव की मौजूदगी में जो पुनर्वास नीति खोरी के लिए घोषित की है, उसके मुताबिक़ इस योजना के तहत फ़्लैट सिर्फ़ उन लोगों को मिलेंगे, जिनके पास बड़खल विधानसभा क्षेत्र का वोटर कार्ड, परिवार पहचान पत्र या डीएचबीवीएन द्वारा जारी बिजली कनेक्शन का प्रमाण होगा।

कमिश्नर ने बताया कि फ़रीदाबाद की डबुआ कॉलोनी व बापू नगर में ये फ्लैट उपलब्ध करवाए जाएंगे। आवेदन के लिए शिविर लगेंगे। जो लोग खुद शांतिपूर्ण ढंग से मकान खाली करेंगे, उन्हें फ्लैट आवंटन में प्राथमिकता दी जाएगी। इस कैंप की ज़िम्मेदारी ज्वाइंट कमिश्नर जितेन्द्र यादव को दी गई है।

गरिमा के मुताबिक़ फ़्लैट के लाभार्थी परिवार की आय 3 लाख रुपये वार्षिक से अधिक न हो। जब तक डबुआ में मकानों की मरम्मत का कार्य पूरा नहीं होता, तब तक संबंधित व्यक्ति को कहीं अन्य मकान किराए पर लेने के लिए 2 हजार रुपये प्रतिमाह 6 महीने तक उपलब्ध कराए जाएंगे।

उन्होंने बताया कि जो भी व्यक्ति पुर्नवास योजना के तहत निर्धारित मानदंड पूरा करता होगा, उसे 3 लाख 77 हजार 500 रुपये मूल्य का फ्लैट दिया जाएगा। यह पैसे निर्धारित मासिक किश्तों में चुकाने होंगे। इसमें फ्लैट अलॉटमेंट के 15 दिन के अंदर 17 हजार रुपये एकमुश्त जमा करवाने होंगे। इसके पश्चात 15 वर्षों तक 2500 रुपये की राशि मासिक कि‌श्तों में देनी होगी।

इनमें से ऐसी बहुत सारी शर्तें हैं जिन्हें खोरी के बाशिंदे पूरी नहीं कर पाएँगे। पौने चार लाख रूपये जुटाना भी अधिकांश परिवारों के लिए मुश्किल होगा।

ऐसे होगी स्कैंडल की शुरुआत

एमसीएफ का ज्वाइंट कमिश्नर कैंप लगाकर आवेदन लेगा। वहाँ लाइन लगेगी और पुलिस तैनात रहेगी। गरीब लोगों को ऐसी योजनाओं के फ़ॉर्म कैसे मिलते हैं ये किसी से छिपा नहीं है। फ़ॉर्म की मंज़िल तय होने के बाद उसे दस्तावेज़ों के साथ जमा करना आसान नहीं है। पुलिस की मौजूदगी भी अपना हिस्सा माँगेगी। चलिए फ़ॉर्म जमा हो गए। अब सब कुछ उस ज्वाइंट कमिश्नर और इसके चंद विश्वासपात्र स्टाफ़ के हाथ में होगा कि वो किसके फ़ॉर्म को रिजेक्ट करेगा और किसे मंज़ूरी देगा। इसी मोड़ पर दलाल सक्रिय होंगे जो लाख – पचास हज़ार की रिश्वत के बदले फ़्लैट दिलवाने की ज़िम्मेदारी लेंगे। इनके अलावा राजनीतिक रसूख़ तो चलेगा ही।

संयुक्त सर्वे से भाग रहा एमसीएफ

खोरी के लोगों ने जिस मज़दूर आवास संघर्ष समिति का गठन किया था, वो शुरू से ही एमसीएफ और खोरी के नागरिकों की संयुक्त समिति से सर्वे कराने और उसी हिसाब से फ्लैट आवंटन की माँग की थी। लेकिन एमसीएफ कमिश्नर ने उस माँग को पता नहीं क्यों स्वीकार नहीं किया।

मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव के सदस्य मोहम्मद सलीम ने बताया कि खोरी गांव के लोगों द्वारा आवेदन प्रस्तुत करने के बजाय नगर निगम, नगर प्रशासन तथा मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव की एक संयुक्त टीम गठित होनी चाहिए जो सर्वे का काम करे और पात्रता और अपात्रता वाले सभी परिवारों को सर्वे में सम्मिलित करे। उसके बाद जिन लोगों का नाम सर्वे में सम्मिलित नहीं किया गया या वह वंचित रह गए उन लोगों को भी 10 दिन का समय दिया जाए ताकि वह सर्वे में अपना नाम दाखिल करवा पाए। यह प्रक्रिया होने के बाद अंत में पात्रता एवं अपात्रता रखने वाले खोरी निवासियों को सूचीबद्ध कर अवगत कराया जाए।

समिति के सदस्य निर्मल गोराना ने कहा कि नगर निगम एवं नगर प्रशासन को मिलकर हरियाणा राज्य शहरी प्राधिकरण पुनर्वास योजना में संशोधन के लिए अपनी सिफ़ारिश हरियाणा सरकार को तत्काल भेजनी चाहिए। संशोधन इस रुप में होना चाहिए कि हरियाणा सरकार की पुनर्वास की योजना में कट ऑफ डेट 2003 है जिसे बदलकर 2020 करने की आवश्यकता है। पुनर्वास नीति में परिवर्तन कर खोरी गांव के समस्त परिवारों का उचित पुनर्वास करके हरियाणा सरकार अपना एक अच्छा उदाहरण साबित कर सकती है।

निर्मल गोराना ने बताया कि 1982 में जस्टिस पीएन भगवती के फैसले के अनुसार जब फरीदाबाद के खान मजदूरों को बंधुआ मजदूर स्वीकार किया गया और इसकी आवाज विश्व के कोने कोने में गई। आज फिर से वही अवसर आया है जहां हरियाणा सरकार मजदूरों के प्रति संवेदनशीलता रखते हुए पुनर्वास नीति में संशोधन कर खोरी गांव के प्रत्येक परिवार को पुनर्वास प्रदान करके एक नई मिसाल कायम करे। क्योंकि वर्तमान पुनर्वास की नीति से सभी का पुनर्वास नहीं हो सकता है। 3 लाख की वार्षिक आय की सीमा को भी हटाने की आवश्यकता है।

इसी क्रम में नीमका जेल से छूट कर आए इकरार अहमद का कहना है कि फिलहाल के लिए प्रशासन को तोड़फोड़ की कार्रवाई रोक देनी चाहिए और उचित पुनर्वास के बाद बेदखली के लिए सोचना चाहिए।

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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