संसदीय समिति ने स्कूल न खोलने के बताए ख़तरे, कहा- अनदेखी न की जाए

“एक साल से अधिक समय से पढ़ाई का जो नुकसान हो रहा है, उसमें छात्रों का गणित, विज्ञान और भाषा संबंधी विषयों में मौलिक ज्ञान कमजोर हुआ होगा। पढ़ाई का यह नुकसान बड़ा है और इससे बच्चों की ज्ञान संबंधी क्षमता कमजोर हो सकती है। इससे समाज के कमजोर तबकों के बच्चों पर ज्यादा बड़ा असर हुआ है, जो महामारी के दौरान डिजिटल माध्यम से पढ़ाई नहीं कर सके।”

उपरोक्त बातें संसद की एक समिति ने कहा है। समिति ने कहा है कि कोरोना महामारी के चलते स्कूलों के बंद होने के कारण पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। समिति के अनुसार, स्कूलों के बंद होने से बच्चों की पढ़ाई, आहार, मानसिक स्वास्थ्य और चौतरफा विकास को ख़तरा पैदा हुआ है और यह भी आशंका है कि कुछ छात्र खासकर लड़कियां शायद अब स्कूल नहीं लौट पाएं। समिति ने सिफारिश की है कि पढ़ाई के डिजिटल स्वरूप को देखते हुए हर स्कूल को इसके लिए उपयुक्त बनाया जाए और इसका दायरा पूरे देश में बढ़ाने के लिए अतिरिक्त धन का आवंटन किया जाये।

समिति की सिफारिश में कहा गया है कि जिन विषयों का नुकसान हो रहा है उसमें खासकर गणित, विज्ञान और भाषा संबंधी विषयों में मौलिक ज्ञान कमजोर हुआ होगा। शिक्षा, महिला, बाल, युवा और एवं खेल संबंधी संसद की स्थायी समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में यह टिप्पणी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल नहीं खोलने के खतरे इतने गंभीर हैं कि उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

इसके साथ ही समिति ने महामारी से सुरक्षा और बचाव के लिये सलाह दिया है कि सभी छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए वैक्सीनेशन को बढ़ावा दिया जाए ताकि स्कूल जल्द से जल्द सामान्य रूप से काम करना शुरू कर सकें। साथ ही स्कूल में छात्रों की संख्या कम रखने के लिए वैकल्पिक दिनों में या दो पालियों में कक्षाएं आयोजित कराई जा सकते हैं। साथ ही शारीरिक दूरी, फेस मास्क पहनना अनिवार्य है, बार-बार हाथ साफ करने सरीखे कोविड प्रोटोकॉल का पालन हों। अटेंडेंस के समय नियमित रूप से थर्मल स्क्रीनिंग और किसी भी संक्रमित छात्र, शिक्षक या कर्मचारी की तुरंत पहचान करने और उन्हें आइसोलेट करने के लिए रैंडम RT-PCR टेस्ट कराए जा सकते हैं।

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