ढह गया हिंदी-उर्दू के बीच का एक पुल

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हिंदी और उर्दू के बीच पुल बनाने वाले अब बहुत कम लेखक रह गए हैं। अली जावेद उन लेखकों की मानो अंतिम कड़ी थे। हिंदुस्तान की साझी विरासत और दो जुबान की आपसी दोस्ती को जिंदा रखने वाले लेखक और एक्टिविस्ट थे अली जावेद। वे मेरे अग्रज मित्र और सहकर्मी रामकृष्ण पांडेय के अज़ीज़ मित्र थे और इस नाते वे मेरे दफ्तर अक्सर आते थे। रामकृष्ण जी और उनके साथ चाय पीने वालों में मैं भी होता था और फिर गप शप। पीडब्ल्यूए की हर जानकारी मुझे देते थे और हम लोग खबर चलाते थे। उनको जब देखा सफेद कुर्ता पैजामा में देखा। साम्प्रदायिकता और फासिज्म के खिलाफ उनके मन में काफी बेचैनी और आक्रोश था। वह इस लड़ाई को जमीन पर लड़ते रहते थे। लेखक तो बहुत होते हैं पर एक्टिविस्ट लेखक कम होते हैं। अली जावेद में संगठन की क्षमता थी। वे अक्सर कोई जलसा सेमिनार में मुब्तिला रहते थे।

वे प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एवम उर्दू के प्रसिद्ध लेखक तथा सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उनका इंतक़ाल कल आधी रात को जीबी पन्त अस्पताल में हो गया। वह 68 वर्ष के थे।

उनके परिवार में पत्नी के अलावा दो पुत्र और दो पुत्री हैं।

उनके इंतक़ाल पर हिंदी उर्दू के लेखकों तथा लेखक संगठनों ने गहरा शोक व्यक्त किया है और फ़िरक़ा परस्ती तथा फासीवाद के खिलाफ लड़ाई में उनके योगदान को याद किया है। उन्होंने कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव के रूप में उन्होंने साम्प्रदायिकता और फासीवाद के खिलाफ संघर्ष में बड़ी भूमिका निभाई।

जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच से जुड़े लेखकों प्रसिद्ध लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी, असग़र वज़ाहत, विभूति नारायण राय, शाहिद परवेज राना सिद्दीकी, वीरेंद्र यादव, अजय तिवारी, केवल गोस्वामी, संजीव कुमार, राजीव शुक्ला, अनिल चौधरी, उर्मिलेश, कुलदीप कुमार, सूर्यनारायण, हरीश पाठक आदि ने गहरा शोक व्यक्त किया है। प्रसिद्ध लेखक एवं संस्कृति कर्मी अशोक वाजपेयी ने भी उनके निधन को हिंदी उर्दू के लिए गहरा आघात बताया है।

दिल्ली विश्विद्यालय से उर्दू विभाग से 2019 में सेवानिवृत्त प्राध्यापक श्री जावेद को 12 अगस्त को मैक्स अस्पताल में ब्रेन हैमरेज के कारण भर्ती कराया गया था। बाद में उनकी स्तिथि में सुधार होने लगा फिर तबियत खराब होने पर जीबी पन्त अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्होंने कल रात अंतिम सांस ली।

उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में 31 दिसम्बर,1954 में जन्मे जावेद ने इलाहाबाद  विश्विद्यालय से उर्दू में बीए करने के बाद जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय से उर्दू में एमए, एमफिल और पीएचडी की वह दिल्ली विश्विद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कालेज में पढ़ाने लगे।

जावेद नेशनल कौंसिल फ़ॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू के निदेशक भी थे।

आज अली जावेद जैसे साथियों की बेहद जरूरत है। पिछले दिनों वे अपने प्रगतिशील साथियों के साथ एक अप्रिय विवाद में फंसे थे। दरअसल दिल्ली विध्विद्यालय के कुछ कॉलेजों में उर्दू विभाग को बंद किये जाने से वे आहत थे। वे चाहते थे कि इस लड़ाई में उनकी प्रगतिशील साथी साथ दें। इस घटना ने उनको बहुत परेशान किया और उन्होंने एक लंबा लेख लिखा जो विवादों में रहा। बहरहाल हिंदी उर्दू के इस पुल के ढहने से अदब और तरक्कीपसंद लोगों की दुनिया में मातम छाया है।

(विमल कुमार वरिष्ठ पत्रकार और कवि हैं। आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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