मोदी-शाह युग का अंत हो चुका है !

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बंगाल में मोदी-शाह ने अपनी सारी शक्ति झोंक दी थी । किसी भी मामले में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी । पर जब जनता डट जाए तो क्या होता है, बंगाल इसका उदाहरण है ।

अब तो साफ़ है कि जिस सूरज का अस्त पूरब में ही हो चुका है, उसका पश्चिम से फिर से उदित होना असंभव है । बंगाल की पराजय के साथ ही भारत की राजनीति के मोदी-शाह युग का अंत हो चुका है । इसे गहराई से आत्मसात् करने की ज़रूरत है ।

बंगाल के बाद से ही हर मामले में मोदी सरकार पूरी तरह से पंगु साबित हुई है । सच यह है कि उसके सारे नख-दंत भी टूट चुके हैं ।

गोगोई काल के सुप्रीम कोर्ट का अवसान भी सिर्फ़ जस्टिस रमना के आगमन के कारण नहीं हुआ है । सच यह है कि चुनाव आयोग भी वह नहीं बचा है जो पहले था । अन्यथा यूपी चुनाव का प्रारंभ पश्चिमी यूपी से शुरू नहीं होता ।

सीबीआई, ईडी भी अब महज़ ख़ानापूर्तियां करते हैं, अर्थात् दिखावटी ज़्यादा है । अन्यथा भाजपाई पीयूष जैन पर छापा नहीं पड़ता । वे अमित शाह के इशारों पर कूच करते हैं, पर कोई काम नहीं करते । अमित शाह के डूबते सितारे को पूरी नौकरशाही साफ़ पढ़ पा रही है ।

सेना पर भी मोदी-शाह का कोई नियंत्रण नहीं बचा है । ये अब तक रावत का विकल्प नहीं खोज पाए हैं और आगे भी उसे खोजना इनके लिए मुश्किल ही है ।

कृषि बिलों की वापसी मोदी-शाह युग के अंत का सबसे पुख़्ता प्रमाण है और यूपी में सांप्रदायिक कार्ड का न चल पाना इनके लिए हर संभावना के अंत का संकेत है ।

इनका मीडिया आज पूरी तरह से तिरस्कृत, कोरा भोंपू बन कर रह गया है । उसका कहा हर शब्द अपने अर्थ के विलोम को ही प्रेषित करता है । वह जितना मोदी-शाह का प्रचार करेगा, उतना ही इनकी बदनामी में और इज़ाफ़ा करेगा । विपक्ष पर उसके प्रहार आज विपक्ष को बल पहुँचा रहे हैं ।

मोदी-शाह की इस दीन-हीन दशा का इस बीच सबसे अधिक लाभ इनके व्यापारी मित्रों ने उठाया है । बेख़ौफ़ इन गिद्धों ने दोनों हाथ से रेकर्ड मुनाफ़ा बटोरा है । कोरोना काल तो इनके मुनाफ़े का स्वर्णिम काल साबित हुआ है ।

आरएसएस के सारे कार्यकर्ता भी आज सिर्फ़ सत्ता की लूट में मतवाले हैं । वे सब स्वयंसेवक नहीं रहे हैं, ताकतवर व्यापारी, सेठ, अर्थात् राजनीतिक कामों के लिहाज़ से हाथी के दिखावटी दांत बन चुके हैं । सबने अयोध्या और अन्य तीर्थ-स्थानों पर नाना प्रकार के धंधों के लिए डेरा डाल रखा हैं । जम कर ज़मीनों का धंधा कर रहे हैं । अमित शाह का घर-घर घूमना भी अब प्रचार की रश्म – अदायगी से अधिक कोई मायने नहीं रखता है ।

बंगाल में जनता ने इन्हें जो किक मारी थी कि अब तक वे हवा में ही लटके हुए हैं, धरती पर लौट नहीं पाए हैं । मोदी की ज़ुबान अब जिस प्रकार लटपटाने लगी है, उनके इन लक्षणों के असली कारणों को जानने की ज़रूरत है । हवा से धरती पर जब गिरेंगे तो इनके सिर्फ चीथड़े ही दिखाई देंगे । यह तय मानिए । किसानों ने उनके पुतलों को ही नहीं, उनकी अब तक की पूरी छवि को ख़ाक कर दिया है । विदेशों से भी मोदी के बारे में एक विभाजनकारी और जनसंहार के पक्षधर नेता की बदनामी ही सुनाई देती है ।

बीजेपी के नेताओं को दौड़ाये जाने के असली दृश्य देखना हो तो यूपी में नहीं, बंगाल में देखिए । यहाँ बीजेपी नामक पार्टी का अस्तित्व ही संदेह के घेरे में आ चुका है ।

इसीलिए अब भी जो आरएसएस-बीजेपी के हज़ारों करोड़ रुपयों की ताक़त और लाखों कार्यकर्ताओं की शक्ति का हौवा खड़ा कर रहे हैं, वे सिर्फ़ इनके मायावी रहस्य के प्रति अपने अंदर के खौंफ को ही ज़ाहिर कर रहे हैं । वे सच्चाई से कोसों दूर डरे हुए लोग हैं । परिस्थितियाँ कैसे बड़े-बड़े महाबलियों को हवा से फूला हुआ बबुआ साबित कर देती है, इस ऐतिहासिक अवबोध का उनमें सख़्त अभाव है ।

हम फिर से दोहरायेंगे कि बंगाल के चुनाव के साथ ही मोदी-शाह युग का अंत हो चुका है ।

(अरुण माहेश्वरी लेखक, चिंतक और स्तंभकार हैं।)

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