चीनी का उत्पादन घरेलू ख़पत से 25% ज़्यादा है, लेकिन हम न तो पर्याप्त निर्यात कर पा रहे हैं और ना ही इतना एथनॉल बना पा रहे जिससे चीनी उद्योग की सेहत सुधर सके।
Surplus production के विकट संकट ने चीनी उद्योग को जकड़ रखा है। गन्ना किसान भी इससे प्रभावित हैं। चीनी उद्योग, माँग और पूर्ति के नियमों से कम और सरकारी नीतियों से ज़्यादा प्रभावित होता है, क्योंकि गन्ने से लेकर चीनी तक सारा कारोबार सरकार की मुट्ठी में है। चीनी मिलें, सरकार की आउटसोर्सिंग एजेंसी की तरह काम करती हैं। सरकारें ही गन्ने का समर्थन मूल्य तय करती हैं, वो ही चीनी मिलों से किसानों को गन्ने का दाम दिलवाने की गारंटी देती हैं, वो ही तय करेंगी कि चीनी का दाम क्या होगा और चीनी मिल रोज़ाना कितनी चीनी बेचेंगे?
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यदि आप गन्ना उत्पादक किसान हैं तो ज़रूर जानना चाहिए कि बीते 11-12 साल से भारतीय चीनी उद्योग माँग से ज़्यादा उत्पादन करने यानी Surplus production के दलदल में धँसा हुआ है। इसे विकट संकट से उबारने के लिए सरकार ने अनेक क़दम उठाये, समस्या कुछ घटी भी, लेकिन इसके जल्द ख़त्म होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसीलिए सरकार भले ही ना कहे लेकिन हालात की नज़ाकत तो यही कहती है कि गन्ना उत्पादक किसानों की तकलीफ़ें आगामी अनेक वर्षों तक यदि बढ़ेंगी नहीं, तब भी ख़त्म तो हर्ग़िज़ नहीं होने वाली। हालात का सिर्फ़ एक ही टिकाऊ समाधान है कि किसान कम से कम अपने गन्ने की फसल का रक़बा कतई ना बढ़ाएँ, बल्कि हो सके तो इसे घटाकर अन्य नकदी फ़सलों को आज़माएँ।
क्या है गन्ना किसानों की सबसे बड़ी तकलीफ़?
देश के करोड़ों गन्ना उत्पादक किसानों की सालों-साल से ये शिकायत रही है कि जिस रफ़्तार से गन्ने की खेती की लागत बढ़ती रही, उसी अनुपात में इसका समर्थन मूल्य (Support price) नहीं बढ़ा। इससे गन्ने की खेती करने वाले किसानों की कमाई बहुत घट गयी। बीते दशकों में चीनी मिलों पर गन्ने के दाम का बकाया भले ही कम या ज़्यादा रहा हो, लेकिन तमाम तकनीकी प्रगति के बावजूद फसल बेचते ही जेब में रुपये आने क ख़ुशी गन्ना किसानों को कभी नहीं मिली। इसलिए यदि आप गन्ना उत्पादक किसान हैं तो आपको भी अतिशय पैदावार (Surplus production) वाली चीनी की मौजूदा अर्थव्यवस्था में छिपे हुए ख़तरों से सावधान रहना चाहिए।
उपरोक्त हरेक पहलू के विस्तार से बताने के लिए ‘जनचौक’ अभी सबसे पहले तो आपको ये बता रहा है कि आख़िर क्यों गन्ना किसान और पूरा चीनी उद्योग Surplus production के दलदल में धँसा हुआ है? फिर इसी स्टोरी के आगामी हिस्सों (पार्ट-2, 3 और 4) में हम आपको बताएँगे कि देश में गन्ना किसानों के बकाया के भुगतान की स्थिति क्या है और कितनी किसान हितैषी हैं सरकारें?, क्यों घटती जा रही है गन्ने की खेती से कमाई? क्या है इससे उबरने का तरीका? और, चीनी उद्योग को संकट से उबारने के लिए क्या कर रही है सरकार? तो सबसे पहले बात ‘Surplus production के दलदल’ की।
ख़पत से 25% ज़्यादा है चीनी का उत्पादन
केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने 2 फरवरी 2022 को लोकसभा को बताया कि भारतीय चीनी उद्योग, साल 2010-11 के गन्ना सीज़न से ही Surplus production का सिलसिला झेल रहा है। 2016-17 में पड़े सूखे के बावजूद Surplus का आलम जारी है। बीते साल 2020-21 में भारत में चीनी की सालाना ख़पत जहाँ 265 लाख टन रही, वहीं उत्पादन 310 लाख टन रहा। इसमें वो 22 लाख टन चीनी शामिल नहीं है जिससे एथनॉल (Ethanol) बनाया गया, जो एक तरह का अल्कोहल है और जिसे पेट्रोल में मिलाकर ईंधन की तरह इस्तेमाल करते हैं।
ज़ाहिर है, यदि चीनी से एथनॉल नहीं बनाया जाता तो कुल उत्पादन 332 लाख टन होता, जो घरेलू ख़पत से 67 लाख टन यानी 25% ज़्यादा है। वैश्विक बाज़ार में चीनी की कीमतें बढ़ रही हैं। इसके बावजूद न तो हम चीनी का पर्याप्त निर्यात कर पा रहे हैं और ना ही इतना एथनॉल बना पा रहे हैं जिससे चीनी उद्योग की सेहत सुधर सके। बता दें कि देश में करीब 496 चीनी मिलें हैं।
चीनी सीज़न (अक्टूबर से सितम्बर) | घरेलू चीनी का निर्यात (लाख टन) | एथनॉल बनाने वाली चीनी (लाख टन) |
2017-18 | 6.2 | — |
2018-19 | 38 | 3.37 |
2019-20 | 59.6 | 9.26 |
2020-21 | 70 | 24 |
2021-22 (31.01.2022 तक) | 26.5 | 35 (सम्भावित) |
स्रोत: पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार, 02 फरवरी 2022 |
क्या है इस साल की तस्वीर?
मौजूदा साल 2021-22 में कुल उत्पादन 308 लाख टन, घरेलू ख़पत 270 लाख टन और चीनी से एथनॉल बनाने में 35 लाख टन चीनी के इस्तेमाल होने का सरकारी अनुमान है। इसका मतलब ये हुआ कि पिछले साल के मुक़ाबले इस साल 15 लाख टन यानी 146% अतिरिक्त चीनी से एथनॉल बनाया जाएगा। हालाँकि, एथनॉल उत्पादन की ऐसी उच्च वृद्धि दर हासिल करना बहुत मुश्किल है।
दरअसल, इस साल हमें चीनी के निर्यात के मोर्चे पर मायूसी हाथ लगी। केन्द्र सरकार का अनुमान है कि 2021-22 में निर्यात 50 से 60 लाख टन के बीच रहेगा जबकि पिछले साल ये 70 लाख टन था। 31 जनवरी 2022 तक भारत से 26.5 लाख टन चीनी का निर्यात हो चुका है। ये मात्रा उस 40 लाख टन में शामिल है जिसके निर्यात का ऑर्डर भारत के पास अभी मौजूद है। बाक़ी 31 मार्च 2022 तक 10 से 20 लाख टन चीनी के लिए निर्यात का नया ऑर्डर हासिल करने की बातें व्यावहारिक नहीं लग रहीं।
गन्ना का मूल्य निर्धारण नीति
गन्ना किसानों को जानना चाहिए कि चीनी सीज़न 2009-10 से पहले तक किसान चीनी मिलों के मुनाफ़े में क़ानूनन आधे-आधे के हक़दार हुआ करते थे। हालाँकि, गन्ना किसानों को कभी इसका फ़ायदा नहीं मिला। इसलिए सरकार ने क़ानून में बदलाव करके वैधानिक समर्थन मूल्य (Statutory Minimum Price, SMP) की जगह उचित और लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price, FRP) का फ़ार्मूला लागू किया। इसके अनुसार ही ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ (Commission for Agricultural Costs and Prices, CACP) की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सुरक्षा 23 चुनिन्दा फसलों को मिलती है। बता दें कि गन्ने के मामले में CACP की ओर से निर्धारित होने वाले समर्थन मूल्य के अलावा गन्ना उत्पादक राज्यों की ओर से भी State Advisory Price (SAP) तय होते हैं तो अक्सर SMP से ज़रा ज़्यादा होते हैं।
कल पढ़िए – देश में गन्ना किसानों के बकाया के भुगतान की स्थिति क्या है और कितनी किसान हितैषी हैं सरकारें?
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)
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