जिस देश में 16,091 व्यक्ति दिवालिया या कर्ज में डूबे होने के कारण तथा 9,140 व्यक्ति बेरोजगारी के दंश के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हैं, उस देश के मात्र 21 लोगों की संपत्ति देश की 70 करोड़ लोगों की कुल संपत्ति से ज्यादा है। यह दुःखद सच्चाई हैं ‘न्यू इंडिया’ की। आत्महत्या के ये आँकड़ें स्वयं भारत सरकार के और आर्थिकअसमानता के ये आंकड़े ऑक्सफैम के ताजा रिपोर्ट के हैं। ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा बुलंद करने वाले देश के लोगों के हालात कितने भीषण आर्थिक असमानताओं के संग हिचकोलें ले रहा हैं उसकी बानगी ऑक्सफैम के हालिया रिपोर्ट से स्पष्ट हो रहा है।
‘ऑक्सफैम’ नामक एनजीओ का गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तब हुई, जब अप्रैल 1941 में ग्रीस पर धुरी राष्ट्रों का कब्जा हो गया। ‘एक्सिस पावर्स’ अर्थात जर्मनी और इटली ग्रीस में भयंकर लूटपाट करनें लगे। ग्रीस में जर्मन नात्सी सेना का मनोबल तोड़ने के लिए मित्र देशों ने ग्रीस का हुक्का पानी बंद कर दिया और रसद की सप्लाई पर भी रोक लगा दिया जिसके परिणामस्वरूप ग्रीस में भयंकर अकाल पड़ गया। इस भयंकर अकाल में लगभग तीन लाख लोगों की जान चली गई।
स्थिति को देखते हुए ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड में कुछ शिक्षाविदों और समाजसेवियों ने 5 अक्टूबर 1942 को अकाल राहत और ग्रीस को खाद्यान्न मदद फिर शुरू करने के लिये ऑक्सफोर्ड सहायता समिति’ (Oxford Committee for Famine Relief) नामक एनजीओ की स्थापना किया जो ‘ऑक्सफैम (OXFAM)’ के नाम से जाना गया।
ऑक्सफैम का अंतर्राष्ट्रीय सचिवालय केन्या स्थित नैरोबी में है। इसका उद्देश्य वैश्विक गरीबी और अन्याय को कम करने के लिये कार्य क्षमता को बढ़ाना है। विभिन्न देशों में इसकी एजेंसियां कार्य करती है।
ऑक्सफैम की ‘सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी’ नामक रिपार्ट जिसे स्विट्जरलैंड के दावोस में होने वाली वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) में पेश की जाएगी, के अनुसार- भारत में जहां वर्ष 2020 में अरबपतियों की संख्या 102 थी, वहीं वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 166 पर पहुंच गया है।
भारत के 100 सर्वाधिक अमीर लोगों की संपत्ति लगभग 54 लाख 12 हजार करोड़ रुपये ( 660 अरब डॉलर) से ज्यादा हैं।इस रकम के विशालता को अगर सरल शब्दों में समझनें का प्रयास करें तो अनुमानतः इससे भारत का पूरा बजट 18 महीने तक चलाया जा सकता है।
अगर भारतीय अरबपतियों की कुल संपत्ति पर मात्र दो प्रतिशत टैक्स लगाया जाए तो इससे 40423 करोड़ रुपये अर्जित होंगे जिससे अगले तीन साल तक कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए सभी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है।
कांग्रेस नेता राहुल गाँधी बार-बार मोदी सरकार पर यह आरोप लगाते रहें हैं कि, “मोदी सरकार ‘दो हिंदुस्तान’ बना रहें है, एक अमीर हिंदुस्तान और दूसरा गरीब हिंदुस्तान”
और आज राहुल गांधी का यह आरोप एक बार फिर से सही साबित हुआ हैं। ‘न्यू इंडिया’ में अमीर और अमीर होते जा रहें है, तथा गरीब और गरीब। आर्थिक विषमता की इतनी तेजी से चौड़ी होती हुई खाई पूरी दुनिया के किसी कोने में देखने को नही मिलेगी।
ऑक्सफैम की हालिया रिपोर्ट को अगर समझें तो भारत के 21 सबसे अमीर अरबपतियों के पास वर्तमान समय में देश के 70 करोड़ लोगों से ज्यादा संपत्ति है।
आप देश के भीतर आर्थिक असमानता के भयावह स्वरूप को केवल एक उदाहरण से समझ सकतें हैं कि यदि केवल गौतम अडानी ने वर्ष 2017 से वर्ष 2021 तक जो अविश्वसनीय लाभ अर्जित किया है उस पर केवल एक बार टैक्स की रकम से देश भर के प्राथमिक विद्यालयों के करीब 50 लाख शिक्षकों को एक साल का वेतन दिया जा सकता है।
ऑक्सफैम रिपोर्ट के मुताबिक देश के 10 सबसें धनी भारतीयों की कुल संपत्ति 27 लाख करोड़ रुपए है। पिछले वर्ष से इसमें 33 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह संपत्ति स्वास्थ्य और आयुष मंत्रालयों के 30 वर्ष के बजट, शिक्षा मंत्रालय के 26 वर्ष के बजट और मनरेगा के 38 वर्ष के बजट के बराबर है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में भारत के मात्र पांच फीसदी लोगों का देश की कुल संपत्ति में से 62 फीसदी हिस्से पर कब्जा था। वर्ष 2012 से 2021 के बीच देश की 40 फीसदी संपत्ति देश के सबसे अमीर एक फीसदी के हाथों में चली गई, वहीं दूसरी तरफ निचली 50 फीसदी जनता के हाथ में महज तीन फीसदी संपत्ति ही आई है।
ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार 64 फीसदी जीएसटी (GST) देश के 50 फीसदी गरीब जनता भर रहे हैं वहीं अरबपतियों के ख़ज़ाने से केवल 10 फीसदी जीएसटी ही आ रहा है। और ऊपर से देश की मोदी सरकार इन रईसों पर किस कदर मेहरबान है उसका अंदाजा केवल इस बात से लगा सकते है कि, केन्द्र सरकार ने वर्ष 2020-21 में देश के कारपोरेट घरानों को 1 लाख करोड़ से ज्यादा की टैक्स छूट दी है। यह टैक्स छूट मनरेगा के बजट से भी ज्यादा हैं। आंकड़ें तो और भी कई हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था और निजी कंपनियों का डेटाबेस बनाने वाली सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Centre for Monitoring Indian Economy) ने वर्ष 2021 में जो रिपोर्ट प्रस्तुत किया था, उसके अनुसार – “कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण देश में एक करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हो गए और देश के 97 प्रतिशत परिवारों की आय में कमी दर्ज की गई है”
कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि संविधान का परिचयात्मक कथन कहलाने वाली उद्देशिका में निहित आदर्श तत्व ‘समाजवाद’ का लक्ष्य अब महज एक काल्पनिक ख़्वाब भर बन कर रह गया है। देश में अमीरी और गरीबी के बीच की खाई निरन्तर और अधिक गहरी व चौड़ी होती जा रही है। अमीर और अमीर बन रहें हैं, गरीब और गरीब होते जा रहें हैं और शाहे बेख़बर ‘मन की बात’ की महफ़िल सजाने में मशगूल है।
कहा गया है,
दहक रहें हैं क्षुदाग्नि से जिनके प्राण अभागे,
निर्दयी है, दर्शन परोसता है जो उसके आगे।
रोटी दो, मत उसे गीत दो जिसको भूख लगी हो,
भूखों में दर्शन उभारना, छल है, दगा ठगी है।
‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा बुलंद करने वाली मजबूत सरकार महज चंद उद्योगपतियों की पूंजीवादी हित साधने वाली उपक्रम के रूप में तब्दील हो चुकी हैं। देश मे बेरोजगारी और बेकारी की समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल होती जा रहीं है। बेरोजगारी और बेकारी की समस्या देश मे कितना भयावह रूप अख़्तियार कर चुका है इसका अंदाजा इसी बात से लग जाएगा कि राज्यसभा में खुद केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक सवाल के लिखित जवाब में बताया था कि देश में वर्ष 2018-2020 के बीच 9140 लोगों ने बेकारी और 16 हजार 91 लोगों ने कंगाली के कारण खुदकुशी की।
देश मे अमीरों की संख्या बढ़े इसमें कोई बुराई नहीं लेकिन उसी अनुपात में गरीबों की संख्या भी तो घटे। अमीरों और गरीबों के बीच की खाई तो पाटी जा सके। कितनी दुर्भाग्यपूर्ण है कि पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की डुगडुगी पीटने वाले ‘विश्वगुरु’ गरीबी के मामले में नाइजीरिया को भी पीछे छोड़ते हुए नंबर वन स्थान पर पहुंच गया है। पूरी दुनिया की गरीब जनता का सबसे ज्यादा हिस्सा, 12.2% भारत और 12.2% नाइजीरिया में है। और इस प्रकार ‘न्यू इंडिया’ अब ‘Poverty Capital’ के रूप में स्थापित हो गया है।
इससे ज्यादा दुःखद और क्या होगा कि देश के भीतर सत्ता के साथ गलबहियां करने वाली पूंजीवादी उद्योगपतियों की तिजोरी कुबेर के खजाने में तब्दील होती जा रही है तथा गरीब और गरीब होते जा रहें हैं। स्विस बैंक में भारतीयों की दौलत में 212% का इज़ाफा हुआ जो बीते 13 वर्षों का रेकॉर्ड ध्वस्त कर चुका है। और दूसरी तरफ आम जनमानस के बैंक एकाउंट में ‘मिनिमम बैलेंस’ के पैसे नहीं हैं।
क्या ‘न्यू इंडिया’ को ‘विश्वगुरु’ के रूप में इसी प्रकार स्थापित किया जाएगा ?
(दयानन्द लेखक व स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
एक शानदार लेख हमेशा की तरह।🙏
साथ ही ये आंकड़े बहुत भयावह है, दुःखद हैं