मोदी-अमित शाह की मौजूदगी में पुलिस अधिकारियों ने देश में हिंदू चरमपंथ को खतरा बताया 

देश में हिंदू कट्टरपंथ अपना सिर उठा रहा है इस बात को अब आधिकारिक तौर पर स्वीकृति मिल गयी है। राजधानी दिल्ली में हुई राज्यों के शीर्ष पुलिस अधिकारियों की बैठक में इससे जुड़े कई पेपर पेश किए गए हैं। जिनमें यह बात कही गयी है कि इस्लामिक चरमपंथियों के साथ-साथ हिंदू कट्टरपंथ भी अपना पांव पसार रहा है।20 से 22 जनवरी को चली इस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह शामिल हुए। दिलचस्प बात यह है कि कांफ्रेंस में पेश किए गए इन दस्तावेजों को पुलिस ने अपनी वेबसाइट से हटा लिया है।

इस कांफ्रेंस में देश में बढ़ते चरमपंथ और इस चरमपंथ के साथ हिंदुत्ववादी और इस्लामिक संगठनों के रिश्ते पर भी पेपर प्रस्तुत किए गए। इस कांफ्रेंस की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि पुलिस अधिकारियों ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में अपने पर्चों में इस बात को रेखांकित किया कि बढ़ता हिंदू चरमपंथ देश के लिए चिंता का एक बड़ा विषय है।

देश में इस चरमपंथ को बढ़ावा देने में बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (VHP) की भूमिका का विशेष तौर पर उल्लेख किया गया। इस सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए एक रिसर्च पेपर में बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद को एक चरमपंथी संगठन के रूप में चिन्हित किया गया। पेपर में “बाबरी मस्जिद के विध्वंस,  हिंदू राष्ट्रवाद के उभार, ‘ घर वापसी आंदोलन’ और बीफ के नाम पर लिंचिंग के मामलों को युवाओं में बढ़ती  कट्टरता की जमीन के रूप में चिन्हित किया गया।”

एक पेपर में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, हिंदू सेना, आनंद मार्ग आदि संगठनों को ऐसे संगठन के रूप में चिन्हित किया गया है, जो भारत के बहुलतावादी समाज को एकरूपी समाज में तब्दील करना चाहते हैं। एक अन्य पेपर में हिंदुत्ववादी अतिवाद और इस्लामिक कट्टरपंथ को देश के लिए चुनौती के रूप में देखा गया है।

एक पेपर में अतिवादी दक्षिणपंथ को फासीवाद, नस्लीय श्रेष्ठता और अतिराष्ट्रवाद से जोड़ा गया है। एक पेपर में पैगंबर मुहम्मद के संदर्भ में भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा के बयान और उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या के बीच रिश्ते को जोड़ते हुए कहा गया कि, “ ये प्रतिक्रियाएं बताती हैं कि सभी लोगों को धार्मिक टिप्पणियां करने और घृणा आधारित बयान देने से रोका जाना चाहिए।” पेपर आगे कहता है कि “धार्मिक संवेदनाओं को चोट पहुंचाने वाली घटनाएं निरंतर हो रही हैं।” 

इस कांफ्रेंस में पढ़े गए पेपर बढ़ती इस्लामिक कट्टरता पर चिंता जाहिर करते हैं और इसके समाधान के लिए राजनीति और शासन-प्रशासन में मुसलमानों की और हिस्सेदारी बढ़ाने का सुझाव देते हैं और साथ ही मदरसों के आधुनिकीकरण की भी बात करते हैं। कई सारे पुलिस अधिकारियों ने बढ़ती इस्लामिक कट्टरता को रोकने के लिए राजनीति में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी बढ़ाने और मुसलमानों को आरक्षण देने का  सुझाव दिया। 

इस कांफ्रेंस की विशिष्टता को रेखांकित करते हुए उत्तर प्रदेश पूर्व आईजी दारापुरी कहते हैं, “सभी राज्यों के शीर्ष पुलिस अधिकारियों की यह कांफ्रेंस बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में पहली बार उनकी और गृहमंत्री की उपस्थिति में हिंदू चरमपंथ की देश में उपस्थिति, उसके खतरे और उससे निपटने की जरूरत पर जोर दिया गया। इसके साथ ही इस्लामिक चरमपंथ का रिश्ता हिंदू चरपंथ से है, इसे भी रेखांकित किया गया। इस कांफ्रेंस में अन्य महत्वपूर्ण बात यह कही गई कि इस्लामिक चरमपंथ से सिर्फ पुलिस बल से नहीं निपटा जा सकता है। यह सिर्फ कानून व्यवस्था की समस्या नहीं है। इसके लिए आर्थिक-राजनीतिक और सामाजिक कदम भी उठाने होंगे। कांफ्रेंस में पुलिस अधिकारियों ने अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों की राजनीति-प्रशासनिक प्रक्रिया में हिस्सेदारी व्यापक करने और उन्हें आरक्षण देने का भी सुझाव दिया गया।”

दारापुरी ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “इस कांफ्रेंस की एक रेखांकित करने वाली बात यह भी है कि पहली बार नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के सामने भारत के शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने तथ्य देकर और नाम लेकर बताया कि भारत में हिंदू चरमपंथ और हिंदू चरमपंथी संगठन मौजूद हैं, जिससे यह सरकार और विपक्ष में रहते हुए भाजपा और अन्य हिंदू संगठन इंकार करते रहे हैं। जबकि देश में कई आतंकी घटनाओं और बम ब्लास्ट  में इनका नाम आया था। इन पर मुकदमे चले थे। इन्हें जेलों में रहना पड़ा। प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, सुधाकर द्विवेदी, मेजर (सेनि.) रमेश उपाध्याय, अजय रहीरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी जैसे लोग मालेगांव बम ब्लास्ट के अभियुक्त  पाए गए थे।”

हिंदू चरमपंथ के संदर्भ में जो पेपर पढ़े गए उससे यह साफ तौर निष्कर्ष निकलता है कि देश में चरमपंथ के खिलाफ जीत बिना हिंदू चरमपंथ के खिलाफ संघर्ष किए हासिल नहीं की जा सकती है। चूंकि इस्लामिक चरमपंथ को बढ़ावा देने में हिंदू चरमपंथ की भूमिका है, इसलिए इस्लामिक चरमपंथ से लड़ने के लिए भी हिंदू चरमपंथ के खिलाफ संघर्ष भी जरूरी है। साथ ही राजनीति-प्रशासनिक जीवन में मुसलमानों को व्यापक हिस्सेदारी देनी होगी।  

(जनचौक की रिपोर्ट)

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