इलाहाबाद: नाम में धड़कता एक शहर, देखिये पूरी डाक्यूमेंट्री

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जनचौक ब्यूरो

नई दिल्ली। (यूपी की योगी सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया है। और इसके साथ ही उसका विरोध भी शुरू हो गया है। लोगों के विरोध के अपने वाजिब कारण और तर्क हैं। दरअसल इलाहाबाद का एक इतिहास है उसकी अपनी एक विरासत है। जो मध्य युग से शुरू होकर आज तक चली आ रही है। ये बात किसी से छुपी नहीं है कि आधुनिक युग में आजादी की लड़ाई का केंद्र रहे इस शहर ने शैक्षणिक और साहित्यक क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनायी। लेकिन सत्ता ने उसकी इन पहचानों को ही उससे अलग करने का फैसला कर लिया है। नाम बदलने का मतलब ही लोगों को उसके इतिहास और विरासत से काट देना है। इलाहाबाद स्थूल रूप में केवल नाम नहीं है बल्कि वो एक विचार और संस्कृति का रूप ले चुका है। और एक लंबी यात्रा में वहां के बाशिंदों की जेहनियत का हिस्सा बन गया है।

हर किसी को अपनाने का काम करने वाला इलाहाबाद अब उनके लिए ही बेगाना हो जाएगा। सच्चाई ये है कि अगर कोई एक साल भी इलाहाबाद में बिता लेता है तो खुद को इलाहाबादी कहलाए जाने पर गर्व करने लगता है। नाम बदलने से भी किसी को एतराज नहीं होता अगर उसके पीछे कोई गलत मंशा काम नहीं कर रही होती। दरअसल इस कवायद में शहर के एक हिस्से को उससे काट देने की साजिश छिपी हुई है। और ये विभाजन केवल नामों तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसकी लकीर जमीन और लोगों के दिलों को चाक कर देगी। जो किसी भी रूप में न तो इस शहर के लिए और न ही उसके बाशिंदों के लिए उचित होगा।  इस पूरे विवाद पर पत्रकार राहुल पांडेय ने नवभारत टाइम्स में संपादकीय पेज के प्रभारी और एक दौर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र रहे चंद्रभूषण से बात कर इलाहाबाद का मतलब जानने की कोशिश की। आप भी सुनिये, देखिये और उस मतलब को समझिए। पेश है पूरी बातचीत डाक्यूमेंट्री के रूप में-संपादक) 

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