अंकिता भंडारी केस: सामाजिक कार्यकर्ताओं की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी

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पिछले साल उत्तराखंड के ऋषिकेश की एक नहर में किसी लड़की लाश मिली थी। जांच के दौरान यह पता चला कि लड़की का नाम अंकिता भंडारी है और वह यमकेश्वर के ‘वनन्तर रिजॉर्ट’ में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर काम करती थी। जांच के दौरान यह भी पाया गया कि जिस रिजॉर्ट में अंकिता काम करती थी उसके मालिक पुलकित आर्य और सौरभ भास्कर इस मामले के मुख्य आरोपी हैं। जिनके संबंध भाजपा से हैं।

अब मर्डर की इस घटना को चार महीने से ऊपर का समय बीत चुका है। जिस पर राष्ट्रीय तथ्यान्वेषण दल की टीम ने एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पेश की है। जिसमें अंकिता मर्डर केस से जुड़े सभी मामलों की पड़ताल की गई है।

फैक्ट फाइंडिंग पर चर्चा

मंगलवार को दिल्ली के प्रेस क्लब में “बढ़ती हिंसा और हमारी चुनौतियां’’ नाम से एक चर्चा की गई। जिसमें वृंदा ग्रोवर, जगमती सांगवान, कविता कृष्णन, उमा भट्ट, मैमूना मुल्ला और कविता श्रीवास्तव ने हिस्सा लिया। जिसमें जांच के दौरान पाए गए तथ्यों पर बात रखी गई।

बताया गया कि कैसे महिलाओं को टारगेट किया जा रहा है। साथ ही रिपोर्ट पेश की गई। जिसका शीर्षक “अंकिता भंडारी हत्याकांड की तथ्यान्वेषण रिपोर्ट”। यह रिपोर्ट चार अध्यायों में विभाजित है। जिसमें प्रशासन और अंकिता भंडारी के परिवार के साथ बातचीत, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, महिलाओं की स्थिति, वर्क प्लेस पर महिलाओं के साथ व्यवहार, लगातार महिलाओं के प्रति बढ़ता अपराध का ग्राफ, इस केस से संबंधित महिला आयोग के साथ बातचीत और ज्ञापन सौंपने की बातचीत शामिल है।

मंगलवार को हुई प्रेस कांफ्रेंस में फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में शामिल पैनलिस्ट का कहना था कि स्थिति ऐसी है कि कम रसूख वाले व्यक्ति की कोई नहीं सुनता है। यही स्थिति अंकिता के परिवार के साथ भी थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि दो दिन तक अंकिता के पिता थाने का चक्कर लगाते रहे लेकिन किसी ने उनकी एक न सुनी। हमलोग दुनियाभर के कानूनों की बात करते हैं। लेकिन स्थिति यह है कि वर्क प्लेस पर विशाखा गाइडलाइन का पालन भी नहीं होता है।

पीड़िता को ही अपराधी साबित करने पर तुल जाते हैं

फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट की सदस्य जगमत्ती सांगवान ने कहा कि स्थिति ऐसी होती है कि इस तरह की घटनाओं में न्यू लिबरल वर्ल्ड, राज्य और कॉरपोरेट बीच में होता है। इस केस में भी यही हुआ। जहां राज्य की शक्ति के साथ कॉरपोरेट शामिल था। जिसके बाद पीड़िता को ही दोषी साबित करने की कोशिश की जाती रही है।

जगमत्ती हाल के हरियाणा में खेलमंत्री संदीप सिंह पर लगे महिला खिलाड़ियों के साथ यौन शोषण के आरोप का जिक्र करते हुए कहती हैं कि राज्य का इतना प्रेशर है कि मुख्यमंत्री आरोपी का साथ देते हुए कहते हैं कि लड़कियों ने मंत्री पर अनर्गल आरोप लगाए हैं।

ऐसी स्थिति में हमेशा पीड़िता पर ही आरोप लगाने की कोशिश की जाती है। ऐसा ही हरियाणा की खिलाड़ियों के साथ हुआ। उन्होंने कहा कि महिला सुरक्षा पर कानून तो बनाए जा रहे हैं, लेकिन जरुरी है कि उन कानूनों का पालन किया जाए।

राजनीतिक संरक्षण बड़ा मामला है

वहीं सामजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने इस घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में राजनीतिक संरक्षण बहुत बड़ा मामला है। ज्यादातर केस में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के मामलों में आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण मिल जाता है ।

उन्होंने कहा कि हमारे समाज की स्थिति ऐसी है कि महिलाओं को गलत ठहराने में हम कभी भी समय नहीं लगाते हैं। जिसका नतीजा यह है कि लड़कियां अपने साथ हो रहे अपराध को भी अपने अभिभावकों को नहीं बताती हैं क्योंकि उन्हें लगता है अगर घर में बता देंगी तो उसे ही गलत ठहराया जाएगा और उसे या तो पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी या नौकरी। ऐसे में लड़कियां बाहर अपने किसी दोस्त को बताती हैं। अंकिता भंडारी मामले में भी ऐसा ही हुआ। उसने अपने माता-पिता को बताने के बजाए अपने दोस्त को बताया क्योंकि उसे पता था अगर वह घर में बताएगी तो उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।

कविता ने अभिभावकों से एक गुज़ारिश करते हुए कहा कि बच्चियों का स्कूल और नौकरी छुड़ाने की बजाए उनका साथ दें। ताकि ज्यादा से ज्यादा लड़कियां नौकरियों में आगे आ पाए।

(पूनम मसीह जनचौक की पत्रकार हैं)  

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