मुंबई से अबू धाबी और मॉरीशस तक फैला है अडानी के फ्रॉड का जाल

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सितंबर 2022 तक, अडानी ग्रुप विदेशों से भारत के सबसे अधिक पैसे पाने वालों में से एक थे। जिसे आधिकारिक तौर पर एफडीआई नाम दिया गया था। 12 महीने के समय में सूचीबद्ध एफडीआई में ग्रुप के 2.5 बिलियन डॉलर में से 526 मिलियन डॉलर अडानी परिवार से जुड़ी दो मॉरीशस कंपनियों से आए। जबकि लगभग 2 बिलियन डॉलर अबू धाबी की इंटरनेशनल होल्डिंग कंपनी से आए।

अडानी कंपनियों में अपारदर्शी विदेशी निवेश की कुल धनराशि अभी  और भी अधिक होगी। क्योंकि आधिकारिक एफडीआई आंकड़ों में न तो विदेशी पोर्टफोलियो निवेश शामिल है, जो एक अलग रिपोर्टिंग व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं, न ही सूचीबद्ध कंपनियों में उनकी चुकता पूंजी के 10 प्रतिशत से कम राशि के निवेश शामिल हैं।

ग्रुप को एफडीआई की आपूर्ति करने वाली अधिकांश कंपनियों को देश से बाहर स्थित (offshore) शेल कंपनियों को अडानी के “प्रवर्तक समूह” के हिस्से के रूप में दिखाया गया है, जिसका अर्थ है कि वे अडानी या उनके नजदीकी परिवार से करीब से जुड़े हुए हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि देश के बाहर स्थित (offshore) संस्थाओं की भूमिका पहले से ही एक एकाधिकारवादी अपारदर्शी संशलिष्ट कार्पोरेट संरचना (Byzantine corporate structure)  बनाती है। अडानी ग्रुप की सैकड़ों सहायक कंपनियां हैं और हजारों संबंधित-पार्टी  के लेनदेन का खुलासा हुआ है। बहुत सारे और भी ढंके-छिपे रहस्य हैं।

पिछले करीब पांच वर्षों में अडानी ग्रुप में जो भी प्रत्यक्ष निवेश हुआ, उसका करीब आधा ( 45.40) हिस्सा उनके परिवार से जुड़ी देश के बाहर स्थित कंपनियों से (offshore) से आया है। जो इस तथ्य को उजागर करता है कि अडानी के भारतीय साम्राज्य के लिए जो बाहर से निवेश प्राप्त हुआ है, उसकी जांच जरूरी है। आखिर कैसे उनके ही परिवार की विदेश स्थित कंपनियां भारत में स्थित उनकी कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रही हैं। वह भी कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का आधा।

भारत के एफडीआई के आंकड़ों का जब  फाइनेंशियल टाइम्स ने विश्लेषण किया तो  पता चला  कि अडानी से जुड़ी ऑफशोर कंपनियों ( देश से बाहर स्थित) ने 2017 और 2022 के बीच ग्रुप में कम से कम 2.6 बिलियन का डॉलर निवेश किया। इस समय में अडानी के कंपनियों में निवेश किए गए कुल विदेशी निवेश का 45.40 प्रतिशत है। 

सबसे बड़ा निवेश अडानी के बड़े भाई विनोद से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी दो कंपनियों से आया, जो स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग में एक साइप्रस नागरिक के रूप में सूचीबद्ध है और दुबई में रहते हैं।

इमर्जिंग मार्केट इन्वेस्टमेंट DMCC, जो सिर्फ विनोद अडानी के फर्म में निवेश करती है,  अपनी वेबसाइट पर बताती है कि 2017 और 2018 के बीच अडानी की कंपनियों में 631 मिलियन डॉलर का निवेश किया। इस बीच मॉरीशस में पंजीकृत गार्डेनिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट ने 2021 और 2022 के बीच अडानी की कंपनियों में 782 मिलियन डॉलर का निवेश किया। जिसका संचालन इमर्जिंग मार्केट के मैनेजर सुबीर मित्रा करते हैं।

अडानी, जो हिंडनबर्ग के आरोपों का दृढ़ता से खंडन करते हैं, उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि उसके विदेशी फंडिंग का इतना बड़ा हिस्सा उन कंपनियों से क्यों आया, जिनके फंड का अंतिम स्रोत स्पष्ट तौर पता नहीं था। हालांकि उन्होंने कहा, “इन  सभी लेन-देन हमारे खातों में पूरी तरह से दिखाया गया है।”

विश्लेषकों ने कहा कि रहस्यमयी मॉरीशस की संस्थाओं से धन का स्थानांतरण चिंता की बात थी। क्योंकि यह पता लगाना असंभव था कि धन “राउंड-ट्रिप” ( देश बाहर भेजना, फिर उसे विदेश निवेश के रूप वापस मंगाना) किया गया था या नहीं। भारत से बाहर एक विनियमन करने वाली वाले विदेश कंपनी के क्षेत्राधिकार में भेजा गया, फिर उसे एक संबद्ध कंपनी में वापस लाया गया। जो इसके शेयर की कीमत को बढ़ावा दें। भारत के विदेशी निवेश नियम राउंड-ट्रिपिंग व्यवस्था पर रोक लगाते हैं।

अडानी ग्रुप की कंपनियों में एफडीआई प्रवाह का एक चौथाई छोटे और लगातार निवेश की एक श्रृंखला के माध्यम से जुड़ी शेल कंपनियों से आया। हाल ही में लेन-देन बड़ा और कम आवर्ती हो गया है।

2017 और 2022 के बीच कनेक्टेड ऑफशोर ( देश से बाहर स्थित कंपनियों) कंपनियों से अडानी की कंपनियों में  होने वाले FDI में 2.6 बिलियन डॉलर  2017 में आया।  FDI डेटा से पता चलता है कि शेल कंपनियों ने उस वर्ष 165 अलग-अलग FDI लेनदेन किए, जिनका औसत मूल्य 4 डॉलर से कम था।।

ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक, 2017 के दौरान अडानी का नेटवर्थ 125 प्रतिशत बढ़कर 10.4 अरब डॉलर हो गया, यह बढ़ोत्तरी उस साल किसी भी भारतीय कार्पोरेट कंपनी से बहुत तेज था।

अडानी कंपनियों में जो पैसा आया कई उसमें मॉरीशस से आने वाले एफडीआई का एक बड़ा हिस्सा था। उदाहरण के लिए, 2021 की पहली तिमाही में  मॉरीशस से जो धन आया, वह कुल धन का 23 प्रतिशत था।

विशेषज्ञों का कहना है कि अडानी ग्रुप की देश से बाहर स्थित संस्थाओं (ऑफशोर) के आसपास की अस्पष्टता उस कंपनी के लिए असामान्य है जो विकास के लिए संस्थागत पूंजी पर निर्भर करती है क्योंकि स्थापित निवेशक उन कंपनियों का समर्थन करना पसंद करते हैं जिन्हें वे समझते हैं। बिजनेस स्कूल इनसीड में एंटरप्रेन्योरशिप और फैमिली एंटरप्राइज के प्रोफेसर बाला विस्सा ने कहा, आमतौर पर, “पारदर्शिता की इस कमी के साथ आप इतनी तेजी से नहीं बढ़ सकते हैं।”

महुआ मोइत्रा, एक विपक्षी राजनेता और पूर्व निवेश बैंकर, जो एक मुखर अडानी आलोचक हैं, ने कहा कि अडानी ग्रुप की पारदर्शिता की कमी अव्यवसायिक थी।

तृणमूल कांग्रेस की नेता और अडानी की मुखर आलोचक पूर्व बैंकर महुआ मोइत्रा के मुताबिक अडानी ग्रुप में पारदर्शिता की कमी उनके अव्यवसायिक चरित्र को बताता है।

इस पूरे समय में अडानी की कंपनियों में कुल 5.7 बिलियन डॉलर विदेशी निवेश हुआ, जिसमें से 2.6 बिलियन डॉलर अडानी के परिवार के सदस्यों के नाम विदेशों में स्थित कंपनियों ने किया। आंकड़े इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि किस तरह से अडानी को अपने विशाल साम्राज्य को बढ़ाने में मदद मिली। अडानी ने खुद को नरेंद्र मोदी के विकास एजेंडे के साथ घनिष्ठ रूप में जोड़ते हुए बुनियादी ढांचे में अपने कारोबार का विस्तार किया।

अडानी ग्रुप से जुड़ी विदेश स्थित कंपनियों से संभावना है कि जो धन आया वह और अधिक हो, क्योंकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आंकड़े विदेशी निवेश के सिर्फ एक हिस्से को ही दर्शाते हैं। अडानी के लोन आधारित तीव्र विकास की पिछले साल जांच हुई थी। जब उनके शेयर की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई थी, जिसने उन्हें दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक बना दिया था। लेकिन अडानी का तीव्र विकास उस समय रूक गया, जब अमेरिकी शार्ट सेलर हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया कि ज्यादात्तर मॉरीशस स्थित शेल कंपनियों के जटिल नेटवर्क का इस्तेमाल अडानी की सात सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर कीमतों में हेरफेर करने या उनकी बैलेंश शीट को मजबूत बनाने के लिए किया था। यह काम इन कंपनियों के जरिये भारत में धन भेज कर किया गया।

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने शेयर बाजार में अडानी कंपनियों को तेजी से झटका दिया। उनकी सात कंपनियों के बाजार मूल्य से 100 बिलियन डॉलर का सफाया हो गया। तब से विपक्षी पार्टियां अडानी के विदेशी कनेक्शनों की जांच की मांग कर रही हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी देश की प्रतिभूति नियामक संस्था( सेबी) को दो महीने के भीतर इसकी जांच करने का निर्देश दिया है।

( स्रोत- फाइनेंशियल टाइम्स।)

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