
‘‘अरे भागो-दौड़ो,कौवा कान ले गया।’’ किसी ने कहा। सुनने वाले ने अपने कान टटोलने की बजाय कौवे के पीछे भागना शुरू कर दिया। जब कौवा हाथ न लगा तो कानों पर हाथ लगाया ‘‘अरे! कान तो कान की जगह सलामत हैं। पर जब तक ये एहसास हुआ बहुत देर हो चुकी थी।
लोकतंत्र के दरबार में कोहराम मचा है। अफवाह फैल चुकी थी कि सत्ताधारी पार्टी का अंग-भंग हो चुका है।
विपक्षियों ने ज़मीन-आसमान एक कर दिया। विपक्ष का मुखिया दहाड़ते हुए बोला – ‘‘अरे! सीएजी की अलमारी में रखा सत्ताधारी पार्टी की ईमानदारी का कान कौवा ले गया। ये कन कटी पार्टी सदाचारी नहीं हो सकती। अंग-भंग भ्रष्टाचार की निशानी है। कटा कान रिश्वतखोर है। बेईमानी के वादे-इरादे अब बेधड़क सरकार के दरबार में नाच-गा रहे हैं। सीएजी तिजोरी का पहरेदार ब्रह्मज्ञानी है। उसकी छठी इंद्री ने कौवे को कान ले जाते हुए देखा है। ’’
सबने संविधान की सच्चाई की मशाल हाथ में लिए सीएजी ज्ञानी की तरफ आदर से देखा। सीएजी ज्ञानी ने मशाल की क़सम खाते हुए इत्मिनान से जवाब दिया – “हां, मैंने देखा कि कौवा सत्ताधारी पार्टी का कान ले उड़ा।’’ और फिर…चोर-चोर, लुटेरे-लुटेरे, चिल्लाते विपक्षियों की आवाज़ों से जनता की आवाज़ें मिलने लगी।
तिजोरी की चाबी सरकार के पास थी। ये भी पता था कि कान सही सलामत अंदर विराजमान है। मगर जनता जनार्दन को तिजोरी खोलकर कान के दर्शन करवाने की इजाज़त नहीं थी। सत्ताधारी पार्टी ने मिमियाते हुए कान के सही सलामत होने की वक़ालत की। पर सब बेकार। इस मिमियाहट को अनसुनी करने के लिए गगन भेदी मजमे का इंतज़ाम कर लिया गया था। ये नज़ारा है लोकतंत्र के मुखौटे दरबार का। जहां सत्ताधारी पार्टियों का राज रहता है।
अब लोकतंत्र के असली दरबार में चलते हैं –
सत्ताधारी पक्ष – मालिक हमने आपके कहे अनुसार ही सब नीतियां बनाई हैं। जनता के जंगल- जमीन, हक़-अधिकारों का आप जैसे चाहे इस्तेमाल करें। जनता चूं करे तो उसे सबक सिखाने वाले ग़ुलामों सरीखे कानून भी बनाए। फिर भी हमारा कान कौवे को दे दिया?
मालिक (मुस्कराते हुए) – दिया कहां है अभी…तुम्हारी तिजोरी में सही-सलामत है कि नहीं। अगले आदेश पर जब हम निकालने के लिए कहें तो निकाल कर दिखा देना।
सत्ताधरी पक्ष (खिसियाकर) – सो तो है मालिक। पर हमारी थू-थू करवाने से क्या लाभ?
मालिक (अकड़कर) – लाभ-हानि हमें सोचने दो। तुमसे जितना कहा जाए उतना करो। कुछ दिन इसी काले मुंह के साथ घूमों। वक़्त आने पर टीशू पेपर दे दिया जाएगा।
सत्ताधारी पक्ष – ज… जी मालिक। जैसा आप कहें।
मालिक – और देखो कोई गड़बड़ न होने पाए। मुंह बंद, मतलब मुंह बंद। विश्व व्यापार में कॉम्पटीशन दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। कुछ समय के लिए हमें ज़ीरो परसेंट इनवेस्टमेंट पर 100 प्रतिशत मुनाफा चाहिये। और उसके लिए तुम्हारे विपक्षी बेहतर विकल्प हैं। इसलिए अब इनकी बारी। तुम कुछ समय के लिए आराम करो।
सत्ताधारी पार्टी – जो हुक़्म मालिक।
मालिक – तो विपक्षियों, अब तुम्हारी बारी।
विपक्षी (खुश होते हुए) – ‘‘जी मालिक!’’
मालिक – बगै़र वक़्त गंवाए। वर्तमान सत्ताधारियों के कारनामों पर अपनी चेपी चिपकाओ। अपने धर्म कल्याण, राष्ट्रकल्याण वगैरह-वगैरह के ऐजेंडे को ढाल बनाकर हमें 100 प्रतिशत लाभ के दर्शन करवाओ।
विपक्षी – जी मालिक! एहसान आपका।
मालिक – ध्यान रहे, जो काम तुमसे करवा रहे हैं ये भी कर सकते हैं। पर हम अंग्रेजों के तरीके़ के मुरीद हैं। अलग काम के लिए अलग मुखौटा। समझे। बस इतनी बात है। किसी ग़लतफ़हमी में मत रहना।
विपक्षी – जी मालिक। जैसा आप कहें।
सात साल बाद आज फिर लोकतंत्र के बाहरी दरबार में हंगामा है।
जनता को बताया जा रहा है कि 1 लाख 76 हजार करोड़ कहीं और नहीं जनता के मोबाइल में सस्ते इंटरनेट रूपी कान लगाने में काम आए हैं। नज़र का धोख़ा हुआ था। भूतपूर्व सत्ताधारी पार्टी के कान आज भी सुरक्षित हैं। अब अगर इनके कानों को कोसा गया तो जनता के कान मुश्किल में पड़ सकते हैं।
जनता सकते में है। कान सलामत हैं तो सीएज ज्ञानी ने झूठ क्यों बोला? ये संविधान के पुजारी पद का अपमान है। सीएजी ब्र्रहमज्ञानी को उसकी छठी हिस्स समेत कालकोठरी में डाला जाए।
लोकतंत्र के असली दरबार का नज़ारा कुछ ऐसा है –
सीएजी ज्ञानी (पसीने में नहाए हुए) – मालिक, मैंने वही किया जो आपने आज्ञा दी। क्या इसके लिए मुझे कालकोठरी का मुंह देखना पड़ेगा!
मालिक – हमने वादे के मुताबिक तुम्हें पद्म भूषण से नवाज़ा। और, ढेरों लाभ के पद दिए। दिए कि नहीं।
सीएजी ज्ञानी – जी हुज़ूर दिए। पर कालकोठरी की बात तो नहीं हुई थी।
मालिक डांटते हुए- तो क्या अभी तुम कालकोठरी में हो?
सीएजी ज्ञानी (घबराते हुए)- नहीं मालिक। पर….
मालिक – अपना हाल हम पर छोड़ो। मुंह बंद रखकर आराम करो।
सीएजी ज्ञानी (पसीना पोंछते हुए) – जैसा आप कहें मालिक।
वर्तमान सत्ताधारी पक्ष – मालिक, कम से कम 10 साल सत्ता हमारे पास रहने दीजिये। हम आपको ऊंचाईयों पर पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
मालिक – तुम्हें किसी ने कुछ कहा?
वर्तमान सत्ताधारी पक्ष – कहा तो नहीं मालिक, पर…विपक्ष का कान इतनी जल्दी मिल जाएगा तो हमारा कान कट जाए…गा..
मालिक – किसका कान कब कटना हैं, कहां रखना है, कहां नहीं ये हम पर छोड़ दो। तुम अपना काम करो। समझे।
वर्तमान सत्ताधारी पक्ष (गर्दन झुकाकर) – जी, समझे मालिक।
मालिक – वर्तमान विपक्ष, याद है न, जितनी आज्ञा हो उतना ही मुंह खोलना है।
वर्तमान विपक्ष (विनम्रता से) – जी मालिक।
मालिक – गुड। सभा समाप्त।
(वीना फिल्मकार-पत्रकार हैं।)
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