2024 की लड़ाई के लिए बीजेपी में फेरबदल शुरू, फायदे की जगह हो सकता है नुकसान

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव-2024 के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की बदहवासी साफ तौर पर देखी जा सकती है। पीएम मोदी किसी भी कीमत पर लोकसभा चुनाव जीतना चाहते हैं। इसके लिए वह तैयारी भी करने लगे हैं। लेकिन उनकी हर तैयारी जीत की राह में बाधा बनती हुई दिख रही है। चुनावी जीत की तैयारी में बीजेपी ने मंगलवार को चार प्रदेशों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब और झारखंड में नए प्रदेश अध्यक्षों को नियुक्ति किया। वहीं गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल और जम्मू और कश्मीर को नए अध्यक्ष देने के लिए कुछ और केंद्रीय मंत्रियों को पदस्थापित करने की संभावना है।

पार्टी ने इस कदम को संगठनात्मक सुधार बताते हुए कहा कि अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले प्रमुख राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में बीजेपी के भीतर एक दृढ़ विचार है कि वरिष्ठ और अनुभवी लोगों को सरकार में बने रहने के बजाय जमीनी स्तर पर नेतृत्व करने की जरूरत है। फिलहाल, मोदी सरकार ने देर से ही सही एक तरह यह मान लिया कि अब सरकार में अनुभवी लोगों की जरूरत नहीं है क्योंकि जब 9 सालों में इनके अनुभव ने कोई रंग नहीं दिखाया, तो अब जाने की बेला में क्यों आशा की जाएं।

केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी को तेलंगाना, पूर्व केंद्रीय मंत्री डी. पुरंदेश्वरी को आंध्र प्रदेश, सुनील कुमार जाखड़ को पंजाब और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को झारखंड बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया है। इन नियुक्तिओं से प्रदेश में संगठन मजबूत होने की बजाए संगठन में टकराव और दूसरी सहयोगी पार्टियों के दूर जाने की संभावना व्यक्त की जाने लगी है।

बीजेपी के अंदरूनी हलकों में यह चर्चा आम हो गई है कि पहले तो राज्यों में सरकार बनाने के सिलसिले में दूसरे दलों के विधायकों को तोड़कर लाया गया, अब साल भर पहले ही दूसरे दलों से आए नेताओं को पार्टी अध्यक्ष बनाया जा रहा है। संघ-भाजपा के कई वरिष्ठ नेता पार्टी के इस निर्णय से खफा है। ऐसे नेताओं का मानना है कि चुनावी जीत के लिए पार्टी अपने विचार को छोड़ रही है और कॉडर को हतोत्साहित कर रही है।

दूसरे दलों के जिन नेताओं की भाजपा में लैटरल एंट्री यानि सीधी भर्ती हुई और प्रदेश अध्यक्ष का कमान सौंप दिया गया उसमें कांग्रेस से आए सुनील जाखड़, भारत राष्ट्र समिति से आए ई. राजेंद्रन, कांग्रेस से आई डी. पुरंदेश्वरी, झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के संस्थापक अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी शामिल हैं। मरांडी तो संघ-भाजपा के पुराने कैडर रहे हैं। संघ-भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं को कांग्रेस और बीआरएस से आए नेताओं को प्रदेश संगठन का सर्वोच्च पद सौंपना अखर रहा है।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि “पहले बीजेपी दूसरे दलों से आए नेताओं को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करने में काफी हद तक झिझकती रही है। लेकिन अब न्यू इंडिया है।”

भाजपा सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय मंत्रियों की नियुक्ति महत्वपूर्ण राज्य चुनावों और लोकसभा चुनावों के लिए अपनी तैयारियों को बढ़ाने और समन्वय करने की रणनीति का हिस्सा है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद में नये चेहरों को शामिल किये जाने के साथ फेरबदल की भी चर्चा हो रही है। पार्टी नेताओं के मुताबिक, गुजरात बीजेपी प्रमुख सी आर पाटिल जैसे राज्य के नेताओं को दिल्ली लाया जा सकता है।

बीजेपी के एक नेता ने कहा, “चुनाव में सरकार की भूमिका सीमित है लेकिन संगठन को पूरी तरह सक्रिय रहना होगा। नई नियुक्तियों का उद्देश्य लोकसभा चुनावों के लिए संभावित नुकसान को कम करना और अधिकतम लाभ प्राप्त करना है।”

चार प्रदेशों में प्रदेश अध्यक्षों के बदलाव के बाद लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी की रणनीति कितनी सफल होगी। या यह बदलाव बीजेपी के हार का कारण बन सकता है? एक-एक राज्य के राजनीतिक हकीकत को देखते हैं:

तेलंगाना में जी. किशन रेड़्डी कितना कारगर

तेलंगाना में बीआरएस की सरकार है। कांग्रेस और बीजेपी वहां प्रमुख दल हैं। कर्नाटक चुनाव के बाद राज्य में कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं और पार्टी अकेली दम पर सरकार बनाने की हुंकार भर रही है। उधर राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के गठबंधन में बीआरएस के शामिल न होने से कांग्रेस पूरी तरह बीआरएस पर हमलावर है। राजनीतिक हलकों में ऐसा कहा जा रहा है कि मोदी सरकार के दबाव में केसीआर ने कांग्रेस से गठबंधन में शामिल नहीं हुए। लेकिन राज्य की राजनीति की वजह से वह बीजेपी के साथ भी जाने से हिचक रहे हैं।

यह सच है कि कुछ समय पहले तक तेलंगाना में बीजेपी की स्थिति अच्छी थी। केसीआर के दाहिने हाथ माने जाने वाले ई राजेंद्रन बीजेपी में शामिल हुए तो यह सोचकर शामिल हुए थे कि पार्टी की कमान उनको मिलेगी। तेलंगाना के वर्तमान अध्यक्ष बंदी संजय कुमरा से उनका तालमेल नहीं बैठ रहा था। पार्टी के अंदर तीव्र आंतरिक कलह मची थी। केंद्रीय नेतृत्व ने आंतरिक कलह को समाप्त करने के लिए जी किशन रेड्डी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। वह बंदी संजय कुमार की तुलना में अधिक स्वीकार्य चेहरा हैं। लेकिन बीआरएस से आए राजेंद्रन संगठन प्रमुख और चुनाव से पहले अपने को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने की मांग कर रहे थे। ऐसे में जी किशन रेड्डी के अध्यक्ष की कमान सौंपने के बावजूद राज्य में आंतरिक कलह शांत होने की गुंजाइश कम हैं।

और राजेंदर एक ऐसा संयोजन है जिसे पार्टी अपने तुरुप के पत्ते के रूप में देखती है। भाजपा राज्य में एक विकल्प के रूप में उभरने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, लेकिन तीव्र आंतरिक कलह के कारण संघर्ष कर रही है। जहां रेड्डी से पार्टी को एकजुट करने की उम्मीद की जाती है, वहीं राजेंद्रन ऐसे नेता हैं जिनके बारे में पार्टी सोचती है कि वह अपनी रणनीतियों और संसाधनों का उपयोग करके कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भर सकते हैं।

पिछड़ा वर्ग अब तक तेलंगाना में बीजेपी का आधार रहा है। रेड्डी जहां ऊंची जाति का चेहरा हैं, वहीं राजेंद्रन ओबीसी का प्रतिनिधित्व करते हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने नियुक्ति पर निर्णय लेते समय जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखा। बीजेपी राजेंदर को केसीआर के खिलाफ चेहरा बनाना चाहती है। लेकिन बिना किसी ठोस आश्वासन के ई. राजेंद्रन बीजेपी के लिए मुश्किल ही खड़े करेंगे।

आंध्र प्रदेश में डी. पुरंदेश्वरी की नियुक्ति से टीडीपी जा सकती है दूर

आंध्र प्रदेश में इसकी बीजेपी की चुनावी संभावनाएं बहुत उज्ज्वल नहीं हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में कुछ बेहतर संभावनाओं के लिए टीडीपी से गठबंधन की बातचीत चल रही थी। लेकिन टीडीपी संस्थापक एनटी रामा राव की बेटी पुरंदरेश्वरी की नियुक्ति ने कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि पुरंदरेश्वरी के नेतृत्व में टीडीपी के साथ पार्टी की संभावित साझेदारी खराब हो सकती है। टीडीपी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू का विवाह पुरंदरेश्वरी की छोटी बहन भुवनेश्वरी से हुआ है।

जबकि कुछ लोग कहते हैं कि इससे भाजपा को कम्मा वोटों को मजबूत करने में मदद मिल सकती है, वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इससे उलटफेर हो सकता है।

पंजाब में सुनील जाखड़ से मिलेगी मदद?

भाजपा ने अश्विनी शर्मा की जगह जाखड़ को टिकट दिया है जो पिछले साल कांग्रेस से पार्टी में शामिल हुए थे। कुछ लोकसभा सीटें जीतने और पंजाब में एक राजनीतिक ताकत के रूप में उभरने के लिए बेताब, पार्टी ने सुनील जाखड़ के साढ़े तीन दशकों के अनुभव पर भरोसा कर रही है। पंजाब में बीजेपी किसी हिंदू को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाती है। ऐसे में जाखड़ की नियुक्ति से बीजेपी को बहुत लाभ होने की गुंजाइश नहीं है। पिछले साल के विधानसभा चुनावों में, बीजेपी ने पूर्व कांग्रेस सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब लोक कांग्रेस सहित छोटे संगठनों से हाथ मिलाया, लेकिन केवल दो सीटें जीतने में सफल रही।

झारखंड में उम्मीदों पर कितने खरे उतरेंगे बाबूलाल मरांडी

बाबूलाल मरांडी चार बार लोकसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। वह झारखंड के मुख्यंत्री भी रह चुके हैं। लेकिन मतभेद की वजह से उन्होंने बीजेपी छोड़कर झारखंड विकास मोर्चा बना लिया था। राज्य में अपने आदिवासी समर्थन आधार को फिर से हासिल करने के लिए उन्हें एक बार फिर प्रदेश संगठन की कमान सौंपा गया है। दरअसल, बीजेपी झारखंड में गैर-आदिवासी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के सहारे प्रदेश में राज करना चाहती थी। लेकिन हेमंत सोरेन के आने से अब इनको आदिवासी चेहरा सामने लाने की मजबूरी हो गई। ऐसे में बाबूलाल मरांडी को आगे करना पड़ा। मरांडी से उम्मीद की जा रही है कि वह गुटबाजी से जूझ रही झारखंड भाजपा को एकजुट रखेंगे। लेकिन अब अर्जुन मुंडा और गैर-आदिवासी सीएम रघुबर दास उनके सामने रोड़ा अटकाने से बाज नहीं आएंगे।

(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)

प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments