बनारस की सड़कों पर गूंज रही एक बेटी की चीख़, मगर मोदी के दौरे की चमक में दबा दी गई उसकी पुकार, क्या यही है ‘बेटी बचाओ’ का असली चेहरा?

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वाराणसी। बनारस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र -वह जगह जहां हर गली से उम्मीदें जुड़ी हैं और हर नुक्कड़ से विकास के नारे सुनाई देते हैं। मगर इन नारों की गूंज में कहीं एक मासूम की चीख दबा दी गई है। 11 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावित दौरे से पहले बनारस की पुलिस व्यवस्था को चमकाने में जुटी है, लेकिन इस तैयारी के बीच एक बेटी के साथ हुई दरिंदगी को जैसे मिटा देने की कोशिश की जा रही है।

29 मार्च की सुबह बनारस की एक मासूम बेटी किताब लेने घर से निकली थी। वो लड़की, जो बैडमिंटन की दुनिया में उड़ान भरने का सपना देख रही थी, फिर कभी वैसे नहीं लौटी। एक साधारण दिन, एक साधारण सी बात-मगर इसके बाद जो हुआ, उसने पूरे परिवार की ज़िंदगी को झकझोर कर रख दिया।

बनारस में गूंज रहे विरोध के स्वर

पीड़िता के पिता की आंखें भर आती हैं। वो कहते हैं, “उस दिन बेटी ने कहा था-‘पापा, कुछ किताबें लेनी हैं, एक सहेली के साथ जा रही हूं।’ मैं एक ड्राइवर हूं, गाड़ी चलाकर परिवार पालता हूं। हमें लगा, जैसे हर बार जाती है, वैसे ही लौट आएगी। मगर उस दिन वो लौटकर नहीं आई। बाद में मेरी बेटी का मोबाइल बंद हो गया। रिश्तेदारों को फोन किया, दोस्तों से पूछा-हर दरवाज़े पर उम्मीद की एक दस्तक दी, लेकिन कहीं कोई जवाब नहीं मिला। हम डर गए। थाने पहुंचे, पुलिस को लापता होने की जानकारी दी। पुलिस ने सिर्फ हुलिया पूछा और कह दिया कि पता करते हैं।”

छह दिन बाद लौटी तो टूटी हुई थी

पीड़िता के पिता अपनी व्यथा सुनाते हुए रोने लगते हैं। कुछ देर बाद वो कांपती आवाज में कहते हैं, “चार अप्रैल की सुबह पुलिस बेटी को लेकर घर पहुंची। बेसुध, टूटी हुई, जैसे आत्मा ही शरीर से निकल गई हो। वो बोल नहीं पा रही थी। दो दिन तक बस दीवारों को घूरती रही। किसी को पहचान तक नहीं पा रही थी। थोड़ा-बहुत सामान्य होने में उसे 48 घंटे लगे। जब बेटी ने जो कुछ बताया-वो सुनकर मां बेहोश हो गईं। तब से हमारे पूरे परिवार के लोगों की आंखों से आंसू थम नहीं पा रहे हैं।

“बेटी ने बताया-“उसके अपने ही क्लास के दोस्त, जिनपर उसने भरोसा किया था-दानिश, साजिद, आयुष, राज खान-उसे बहला-फुसलाकर ले गए। उसके बाद, 6 दिनों में 23 लड़कों ने उसके साथ दरिंदगी की। और जब वो बिल्कुल टूट गई, तो उसे सड़क किनारे फेंक दिया। इन लड़कों को वो अपने भाई जैसा मानती थी। उसके अपने दोस्तों ने ही उसके सपनों का रेप कर दिया। उसकी आत्मा को कुचल डाला। घटना के बाद बेटी मानसिक रूप से बुरी तरह टूट चुकी है। किसी भी लड़के को देखकर वो चीखने लगती है, डरने लगती है। पुलिस के कहने पर हम घर पर ही उसका इलाज करा रहे हैं, लेकिन जो घाव उसकी रूह पर लगे हैं, उनका कोई इलाज नहीं।”

गैंगरेप की शिकार लड़की के पिता कहते हैं, “पुलिस ने पहले तो कार्रवाई करने में टालमटोल की। एफआईआर दर्ज नहीं की गई। परिवार अकेले लड़ता रहा, रोता रहा, चिल्लाता रहा। फिर जब मामला मीडिया में आया, तब जाकर सात अप्रैल को FIR दर्ज की गई। ये वही FIR है, जो इंसाफ की पहली सीढ़ी होनी चाहिए थी, मगर पुलिस के लिए वो सिर्फ कागज़ का एक टुकड़ा था-वो भी तब बना जब सवाल उठने लगे।”

यह बताते हुए पिता की आवाज़ भारी हो जाती है। वह कहते हैं, “हम गरीब हैं, पर हमारी बेटी के सपने बड़े थे। वो बैडमिंटन खिलाड़ी बनना चाहती थी। उसके पास शूज़ भी नहीं थे, लेकिन जुनून था। अब वो शटल की बात नहीं करती, बस चुपचाप रहती है। उस सुबह जब बेटी कमरे से बाहर आई, उसकी आंखें लाल थीं और चेहरा उतरा हुआ। जैसे किसी ने उसके भीतर की पूरी रौशनी छीन ली हो। मैंने धीरे से पूछा- “कैसी तबीयत है बेटा?” वह कुछ बोल नहीं सकी, बस कांपते होंठों से बस इतना कहा- “पापा, मैं अब किसी लड़के को नहीं देख सकती, डर लगता है, बहुत डर लगता है…।”

टूट गया बेटी का सपना

पीड़िता के पिता यह भी कहते हैं, -वो बेटी जो पहले मां से लड़ती थी कि “मुझे बैडमिंटन की नई रैकेट चाहिए”, आज कमरे के कोने में तकिए में मुंह छिपाकर पड़ी रहती है। अब खेल नहीं, खामोशी उसकी दुनिया है। उसके सपनों को किसी ने लूट लिया, उसकी आवाज़ को छीन लिया। जब बेटी ने बताया कि उसे कैसे बहला-फुसलाकर ले जाया गया, कैसे उसे नशे का आदी बना दिया गया, और कैसे एक के बाद एक हैवान उसका सबकुछ छीनते गए-तो मेरी रूह कांप उठी। मैं पिता हूं, मगर उस दिन मैं खुद को माफ़ नहीं कर पाया। मैंने खुद से पूछा- “क्या मैं इतना असहाय था कि अपनी बेटी को नहीं बचा सका? जवाब सिर्फ सन्नाटा था।

4 अप्रैल को जब पुलिस बेटी को घर लाई थी, तो सिर्फ एक शरीर वापस आया था। आत्मा तो कहीं खो गई थी। हमने फिर हिम्मत जुटाई और थाने पहुंचे। लेकिन वहां भी हमें टालने की कोशिश हुई। 7 अप्रैल को जब FIR हुई, तब भी हमें यक़ीन नहीं हो रहा था कि इतने दिन क्यों लगे? क्या इसलिए कि हम ग़रीब हैं? क्या इसलिए कि हमारी आवाज़ में ताक़त नहीं? पुलिस जब आरोपियों को पकड़कर लाई, तो लगा शायद अब कुछ उम्मीद है। लेकिन जिस तरह दिन भर मेडिकल, रात में कोर्ट, फिर जेल-इस पूरे घटनाक्रम को नाटकीय तरीके से अंजाम दिया गया, उससे एक सवाल बार-बार मन में उठता है,”क्या हमारी बिटिया की इज्जत भी किसी नाटक का हिस्सा थी?”

“जिन लोगों पर विश्वास किया, उन्होंने ही उसकी दुनिया उजाड़ दी। दोस्त के नाम पर फरेब मिला, हमदर्दी के नाम पर साजिश। बेटी बार-बार एक ही सवाल करती है- “पापा, क्या सब दोस्त ऐसे ही होते हैं? और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता। जिन होटलों, हुक्का बार और कैफे में बेटी को नशे में रखकर हैवानियत की गई, वहां आज भी लोग हंसते-बोलते नज़र आते हैं। मगर मेरी बेटी जब उन्हीं रास्तों का नाम सुनती है, तो कांपने लगती है। पुलिस की टीमें भले ही जांच में जुटी हैं, लेकिन हमारे लिए हर गुजरता दिन एक सजा है। हर रात बेटी के चीखने की आवाज़ हमारे कानों में गूंजती है। उसकी मां अब शायद ही बिना रोए सो पाती है।”

“हम चाहते हैं कि दोषियों को सख़्त सजा मिले। लेकिन सिर्फ इतना काफी नहीं। हमें वो भरोसा भी चाहिए जो टूट गया है-कि गरीबों की बेटियां भी महफूज़ हैं। कि स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियां सिर्फ किताबें और सपने लेकर लौटें, किसी दरिंदगी का दर्द नहीं। मेरी बेटी अब भी अपने आप से जूझ रही है। उसके घाव अब भी हरे हैं। हमें नहीं पता कि आगे क्या होगा। मगर हम चुप नहीं रहेंगे। जो हुआ, वह किसी और बेटी के साथ न हो-अब यही हमारी ज़िंदगी का मक़सद है।”

गिरफ्तार किए गए नौ अभियुक्त

उत्तर प्रदेश की धार्मिक राजधानी वाराणसी में हाल ही में सामने आए गैंगरेप मामले ने एक बार फिर महिला सुरक्षा, पुलिस की कार्यप्रणाली और न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब सवाल यह है कि क्या बनारस जैसे शहर में, जहां गंगा बहती है, संस्कार बहते हैं-वहीं की एक बेटी की अस्मिता यूं ही बहा दी जाएगी? क्या दोस्त अब सबसे बड़ा धोखा बन गए हैं? क्या पुलिस की निष्क्रियता ऐसे मामलों को और नहीं बढ़ा रही?

गैंगरेप के अभियुक्तों को अस्पताल में मेडिकल परीक्षण के लिए लेकर जाती पुलिस

वाराणसी में सामने आए एक बहुचर्चित गैंगरेप मामले में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए नौ आरोपियों को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों में पहला नाम राज विश्वकर्मा का है, जो राजकुमार विश्वकर्मा का पुत्र है और सीर करहिया, थाना लंका का निवासी है। उसकी उम्र 20 वर्ष बताई गई है। दूसरा अभियुक्त आयुष धूसिया है, जो अशर्फी लाल का पुत्र है और नई बस्ती, हुकुलगंज, थाना लालपुर का रहने वाला है, उसकी उम्र 19 वर्ष है।

तीसरे अभियुक्त साजिद की उम्र भी 19 वर्ष है, वह गुलाम ज़फर का पुत्र है और बादशाहबाग, लल्लापुरा, थाना सिगरा में रहता है। चौथा नाम सुहैल शेख का है, जो मोहम्मद नूर का बेटा है और हुकुलगंज, थाना लालपुर का निवासी है, उसकी उम्र 20 वर्ष है। पांचवां अभियुक्त दानिश अली है, जिसकी उम्र 20 वर्ष है और वह लियाकत अली का पुत्र है, उसका निवास लालपुर, पाण्डेयपुर में है।

छठे अभियुक्त इमरान अहमद की उम्र 19 वर्ष है। वह महताब अहमद का पुत्र है और बड़ा चकरा, लल्लापुरा, थाना सिगरा का रहने वाला है। सातवां आरोपी शब्बीर आलम उर्फ समीर अहमद है, जिसकी उम्र 21 वर्ष है। वह तौफीक अहमद का पुत्र है और बड़ा चकरा का निवासी है। आठवां अभियुक्त सोहेल खान है, जो अतीक खान का पुत्र है और इंग्लिशिया लाइन, थाना सिगरा का निवासी है, उसकी उम्र 20 वर्ष बताई गई है।

नवां और सबसे उम्रदराज अभियुक्त अनमोल गुप्ता है, जिसकी उम्र 28 वर्ष है। वह शरद गुप्ता का पुत्र है और मीरापुर बसही, थाना शिवपुर, वाराणसी का निवासी है। सभी आरोपियों के खिलाफ संबंधित धाराओं में मामला दर्ज कर लिया गया है और पुलिस जांच की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही है। मामला गंभीर प्रकृति का होने के कारण इसे लेकर प्रशासन और समाज दोनों में तीव्र प्रतिक्रिया देखी जा रही है।

इस दर्दनाक घटना में पीड़िता के साथ हुई दरिंदगी जितनी भयावह थी, उससे कहीं अधिक चौंकाने वाला पुलिस का रवैया सामने आया है। दिनभर मेडिकल जांच की औपचारिकताएं निभाने के बाद आरोपियों को देर रात कोर्ट में पेश किया गया। आरोप है कि पुलिस ने आरोपियों को बचाने की कोशिश की, जबकि पीड़िता को न्याय दिलाने में लापरवाही बरती गई।

सूत्रों के मुताबिक, आरोपियों के ब्लड और सीमेन के सैंपल लिए गए, लेकिन मेडिकल प्रक्रिया को दिनभर खींचा गया। इसके बाद उन्हें सीधे रात को कोर्ट में पेश किया गया। यह देरी और समय-चयन साफ तौर पर मीडिया व आम जनता की निगाहों से बचने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है।

गैंगरेप के मामला पांडेयपुर थाना क्षेत्र का है, जहां एक लड़की के साथ वारदात को अंजाम दिया गया। घटना के बाद न केवल पीड़िता को मानसिक और शारीरिक आघात सहना पड़ा, बल्कि अब वह सिस्टम की क्रूरता का भी शिकार बन चुकी है। गैंगरेप के बाद 6 अप्रैल को जब पीड़िता अपने घर लौटी, तो उसकी हालत चिंताजनक थी। नशे की हालत में थी-उसे ड्रग्स का ओवरडोज़ दिया गया था। इसके बावजूद पुलिस की पहली चिंता पीड़िता की सुरक्षा या इलाज नहीं, बल्कि मामले को “दबाने” की थी।

पीड़िता को पहले बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया, लेकिन वहां उसे भर्ती नहीं किया गया। फिर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां से कुछ ही समय में उसे हटा दिया गया। पुलिस की कोशिश थी कि किसी भी सूरत में यह मामला अस्पताल की फाइलों में न जाए। इलाज अधूरा था, मगर उसे जबरन घर भेज दिया गया और फिर पीड़िता के परिवार पर एक और हमला हुआ, इस बार “मौन रहने” का अल्टीमेटम देकर।

छापेमारी या सिर्फ दिखावा ?

छात्रा से गैंगरेप की शर्मनाक घटना के बाद पुलिस प्रशासन थोड़ा हरकत में आया और पिछले मंगलवार को शहर में चल रहे स्पा सेंटरों और बार पर छापेमारी की। एसीपी गौरव कुमार के नेतृत्व में सिगरा और चेतगंज थाना क्षेत्रों में पुलिस ने एक बड़ी छापेमारी अभियान चलाया गया, जिसमें 10 से अधिक स्पा सेंटर और बार निशाने पर रहे। आधी रात में 18-20 पुलिसकर्मियों की टीम के साथ एसीपी खुद फील्ड में उतरे। सबसे पहले चेतगंज इलाके के स्पा और कैफे में छापेमारी की गई। पुलिस को देखकर कई स्पा सेंटरों के संचालकों ने शटर गिराकर फरार होने की कोशिश की, वहीं कई युवक-युवतियां मौके से भाग खड़े हुए। सूत्र बताते हैं छापे की सूचना पहले ही काले कारनामे करने वालों तक पहुंच गए थे। यही वजह रही कि पुलिस के हाथ कुछ भी नहीं आया।

खास बात यह है कि छापेमारी के दौरान पुलिस ने ग्लोबल स्पा एंड सैलून समेत कई सेंटरों में अंदर घुसकर जांच की। सभी कमरों की तलाशी ली गई और वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज भी खंगाले गए। कुछ फुटेज ऐसे मिले जिनमें युवक-युवतियां आपत्तिजनक अवस्था में नजर आ रहे थे। इन फुटेज को पुलिस ने जब्त कर लिया है और जांच के लिए संरक्षित कर लिया गया है, लेकिन एक्शन किसी के खिलाफ नहीं लिया गया।

पुलिस ने चेतगंज के बाद सिगरा क्षेत्र में ‘ड्रिंक्स एंड बोर्ड’, ‘DGP’, ‘Vibe’, ‘चाय-चुस्की’ जैसी जगहों पर छापेमारी की। यहां बड़ी संख्या में युवक-युवतियां मौजूद थे। पुलिस ने संचालकों से पूछताछ की और उन्हें सख्त चेतावनी दी कि किसी भी तरह की अवैध गतिविधि पाई गई तो कठोर कार्रवाई की जाएगी। पुलिस को जांच के दौरान पता चला है कि वाराणसी शहर में करीब 40 ऐसे स्पा सेंटर और कैफे-बार हैं जहां संदिग्ध गतिविधियां चलने की आशंका है। कैंट, सारनाथ, चेतगंज, सिगरा, भेलूपुर और लंका थाना क्षेत्र में ऐसे सेंटरों की संख्या सबसे ज्यादा है।

खास बात यह है कि जिस छात्रा के साथ गैंगरेप हुआ, उसका मुख्य आरोपी अनमोल गुप्ता एक हुक्का बार का मालिक है और पुलिस के अनुसार, एक सक्रिय सेक्स रैकेट भी चला रहा था। उसके सेंटर पर फिलहाल ताला लगा हुआ है। गैंगरेप मामले में पुलिस ने अब तक 12 नामजद और 11 अज्ञात आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया है, जिनमें नौ आरोपियों को जेल भेजा जा चुका है।

एपवा ने दिया पीएम को ज्ञापन

वाराणसी में छात्रा से गैंगरेप मामले को लेकर आक्रोशित महिलाओं ने प्रधानमंत्री के संसदीय जनसंपर्क कार्यालय तक मार्च करने की कोशिश की। यह महिलाएं ऐपवा (एडवाइज़र ग्रुप ऑफ वुमन ऐक्टिविस्ट) की सदस्य थीं, जो हाथों में बैनर और पोस्टर लेकर न्याय की मांग करते हुए कार्यालय की ओर बढ़ीं। हालांकि, पुलिस प्रशासन ने उन्हें आधे रास्ते में ही रोक लिया। मौके पर मौजूद एसीपी कोतवाली प्रज्ञा पाठक ने प्रदर्शनकारी महिलाओं से ज्ञापन लिया और उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। महिलाओं ने प्रशासन की इस कार्रवाई पर नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा, “हम अपने ही शहर के सांसद से न्याय की गुहार नहीं लगा सकते? हमें ज्ञापन सौंपने से रोका जा रहा है। क्या यह लोकतंत्र है?”

एपवा ने मांग की कि पीड़िता का उचित इलाज कराया जाए, बचे हुए आरोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी हो और भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों, इसके लिए ठोस कदम उठाए जाएं। ज्ञापन में यह भी उल्लेख किया गया कि पुलिस और प्रशासन को इस पूरे मामले में संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए, ताकि पीड़िता को न्याय मिल सके और समाज में एक सख्त संदेश जाए कि महिलाओं के खिलाफ अपराध बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।

पीएम को संबोधित ज्ञापन पुलिस को देती महिलाएं

दखल संस्था से जुड़ी इंदू पांडेय कहती हैं कि, “परिजनों से कहा गया है कि वो मीडिया से बात न करें, कोई बयान न दें। क्योंकि प्रधानमंत्री आ रहे हैं और ऐसे में कोई भी “बुरा समाचार” उनकी छवि पर दाग की तरह बैठ सकता है। क्या एक लड़की की चीख प्रधानमंत्री की छवि से बड़ी नहीं है? क्या एक बेटी की आबरू उस राजनीति से छोटी हो गई है, जिसमें सब कुछ इवेंट बनकर रह गया है? “

इंदू यह भी कहती हैं, “ऐसे मामलों को दबाने की यह प्रवृत्ति अब सामान्य हो चुकी है। अपराधियों का मनोबल इस कदर बढ़ गया है कि उन्हें लगता है, पैसा देकर या रसूख के बल पर वो छूट जाएंगे। पुलिस की भूमिका अब न्याय की नहीं, दबाव और लीपापोती की रह गई है। बनारस में गैंगरेप की पुरानी घटनाएं गवाह हैं कि आरोपी या तो गिरफ्तार नहीं होते, या गिरफ्तारी के बाद जल्द ही छोड़ दिए जाते हैं, या फिर चार्जशीट ऐसी तैयार की जाती है कि अदालत में वे स्वतः बरी हो जाते हैं।”

“बनारस की गलियों में, जहां गंगा बहती है, वहीं एक और बेटी बहा दी गई है। सिस्टम की चुप्पी और सत्ता की संवेदनहीनता में। अब वक्त आ गया है कि हम सवाल पूछें, “कब तक? कब तक बेटियों की चीखें नेताओं के नारों में गुम होती रहेंगी? कब तक पुलिस का डंडा इंसाफ को कुचलता रहेगा? और सबसे बड़ा सवाल- क्या मोदी जी बनारस की उस बेटी से भी मिलेंगे, जिसे उनके दौरे के नाम पर चुप करा दिया गया? “

एपवा की कुसुम वर्मा कहती हैं, “इस घटना में पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट तक अब तक सबमिट नहीं की गई है। वहीं, शर्मनाक बात यह है कि लड़की को सेक्स वर्कर बताकर पूरे मामले को “कैरेक्टर शेमिंग” की दिशा में मोड़ने की कोशिश की जा रही है। यह वह सबसे क्रूर तरीका है जिससे समाज और तंत्र किसी भी महिला की आवाज को दबा देता है -उसकी अस्मिता पर सवाल उठाकर।”

“सवाल ये है कि जब प्रधानमंत्री के अपने संसदीय क्षेत्र में बेटियां असुरक्षित हैं, तो उनका ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा क्या महज़ एक स्लोगन बनकर रह गया है? क्या ये वही राज्य है जहाँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दावा करते हैं कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में भारी गिरावट आई है? लेकिन एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। वे बताती हैं कि उत्तर प्रदेश आज भी महिलाओं के खिलाफ अपराध में देश के शीर्ष राज्यों में गिना जाता है। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जब सत्ता के शीर्ष चेहरे दौरे पर होते हैं, तब “इमेज मैनेजमेंट” को इंसाफ और इंसानियत से ऊपर रखा जाता है।”

विरोध प्रदर्शन करती एपवा से जुड़ी महिलाएं

मामले की निगरानी कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय नागरिकों ने आरोप लगाया है कि पुलिस की भूमिका शुरुआती से ही संदेह के घेरे में रही है। आरोपियों के साथ पुलिस का रवैया सहानुभूति भरा दिखा, वहीं पीड़िता को बार-बार बयान देने के लिए मजबूर किया गया, जिससे उसकी मानसिक स्थिति और बिगड़ गई। कई सामाजिक संगठनों ने इस केस में एसआईटी (Special Investigation Team) से जांच कराने की मांग की है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि पुलिस ने जानबूझकर आरोपियों को राहत पहुंचाने की कोशिश की या नहीं। कुछ दिन पहले ही बनारस के भेलूपुर इलाके में स्नेहा कुशवाहा नामक छात्रा के साथ भी रेप की घटना हुई थी और उस मामले को भी पुलिस ने दबा दिया था। बीएचयू में छात्रा के साथ गैंगरेप के अभियुक्त कुछ ही महीने में सलाखों से बाहर आ गए थे, क्योंकि वो बीजेपी मीडिया सेल के पदाधिकारी थे।

एक्टिविस्ट मधु गर्ग कहती हैं, “सवाल यह है कि क्या उत्तर प्रदेश पुलिस बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में अब भी आरोपियों के प्रति नरमी बरत रही है? यदि हां, तो यह केवल एक केस नहीं, बल्कि एक बड़े सिस्टम की बीमारी का संकेत है। रात को कोर्ट में पेश करना एक रणनीतिक चुप्पी का हिस्सा दिखता है, ताकि मीडिया कवरेज कम हो और आरोपियों को सार्वजनिक आलोचना से बचाया जा सके। इस मामले में अब जनता और मीडिया की निगरानी बेहद आवश्यक हो गई है। यदि इस तरह के मामलों में समाज चुप बैठा रहा, तो यह एक खतरनाक परंपरा का रूप ले सकता है, जहां पीड़िता को न्याय के लिए लंबी और पीड़ादायक लड़ाई लड़नी पड़ेगी।”

“वाराणसी गैंगरेप केस न केवल एक महिला के साथ हुई अमानवीयता का मामला है, बल्कि यह दर्शाता है कि जब व्यवस्था खुद आरोपियों की ढाल बन जाए, तब न्याय कितना कठिन हो जाता है। जरूरत इस बात की है कि अब पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो, पीड़िता को पूरी सुरक्षा और न्याय मिले, और पुलिस की भूमिका की गहराई से समीक्षा की जाए, क्योंकि एक पिता की पुकार, इस बेटी की चुप्पी और इस शहर की खामोशी-तीनों मिलकर एक सवाल कर रहे हैं, “कब तक बेटियां किताबों की जगह कब्रों की ओर भेजी जाएंगी?”

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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