कल मोदी ने खुद वणिकों की एक सभा को संबोधित करते हुए कह दिया कि वे किसानों की भलाई के लिए जो कदम उठा रहे हैं, उनसे उद्योगपतियों के पंजे से अभी तक बचा हुआ कृषि क्षेत्र भी उनके लिए पूरी तरह से खुल जाएगा; अर्थात् अब वे इस क्षेत्र का भी अबाध रूप से दोहन कर पाएंगे।
मजे की बात यह है कि इतने नग्न रूप में उद्योगपतियों के लाभ की बात कहने के बावजूद उतनी ही बेशर्मी से मोदी यह कहने से नहीं चूकते हैं कि उनके तीनों कृषि कानून किसानों के लाभ के लिए लाए गए हैं!
सचमुच यह पूरा मामला मोदी की एक बहुत ही करुण सूरत पेश करता है। मार्क्स के द्वारा एक बहु-प्रयुक्त कथन है- ‘वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं?’ अर्थात्, वे नहीं जानते कि वे जो कर रहे हैं, उनसे अंततः खुद के सिवाय किसी और को बेपर्द और खारिज नहीं कर रहे हैं!
यह किसी भी विमर्श में पूर्वपक्ष कहे जाने वाले विषय के प्रस्ताव की विडंबना की कहानी है, जो एक पूरे शास्त्रार्थ को उत्प्रेरित करके भी यह नहीं जान रहा होता है कि पूरे विमर्श के अंत तक आते-आते उसे पूरी तरह से खारिज हो जाना है।
विवेकहीन, अदूरदर्शी व्यक्ति किसी भी मामले में उत्पात मचाने में तो माहिर होता है, पर जब तक विषय स्थिर होता है, देखा जाता है कि उसके समूचे उपद्रव से सकारात्मक कुछ भी हासिल नहीं होता है।
मोदी हमारे देश के एक ऐसे ही नेता हैं और सचमुच यह देश के लिए बेहद दुर्भाग्यजनक है।
(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और चिंतक हैं। आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)
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