किसान आंदोलन पर आखिर किस बिना पर सॉलिसिटर/अटार्नी जनरल कर रहे थे दावा!

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सरकार के साथ किसानों की 8 जनवरी को आठवें दौर की बातचीत फेल हो गई है, क्योंकि सरकार तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस न लेने पर अड़ी है और किसान कानूनों की वापसी से कम पर समझौता नहीं करने पर अड़े हैं। इस पृष्ठभूमि में आखिर किस उम्मीद पर  सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय में सरकार और किसानों के बीच इस गतिरोध के जल्दी ही समापन का मिथ्या कथन किया था।

उच्चतम न्यायालय में चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ के सामने सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसानों से अभी बातचीत चल रही है, इसलिए पीठ को इस मामले को सुनवाई के लिए टालना चाहिए। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि हमें उम्मीद है कि दोनों पक्ष किसी मुद्दे पर सहमत हो जाएंगे। इस पर सीजेआई बोबड़े ने कहा कि हम हालात से वाकिफ हैं और चाहते हैं कि बातचीत और बढ़े। हम हालात पर पूरी तरह से नजर बनाए हुए हैं। 11 जनवरी को इस मामले में उच्चतम न्यायालय में सुनवाई होनी है। 

तो क्या कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल सच कह रहे हैं कि मोदी सरकार की नीयत साफ़ नहीं है। जिनकी, तारीख़ पे तारीख़ देना स्ट्रैटेजी है! एक अन्य ट्वीट में राहुल गांधी ने यह भी दोहराया है कि मोदी सरकार ने अपने पूंजीपति मित्रों के फ़ायदे के लिए देश के अन्नदाता के साथ विश्वासघात किया है।

एक ओर तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े किसान नेताओं ने शुक्रवार को सरकार से दो टूक कहा कि उनकी ‘घर वापसी’ तभी होगी जब वह इन कानूनों को वापस लेगी। दूसरी ओर सरकार ने कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने की मांग खारिज करते हुए इसके विवादास्पद बिंदुओं तक चर्चा सीमित रखने पर जोर दिया। किसान संगठनों की मांग है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दी जाए। अपनी मांगों को लेकर हजारों किसान दिल्ली के निकट पिछले करीब 40 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि वार्ता के दौरान किसान संगठनों द्वारा तीनों कानूनों को निरस्त करने की उनकी मांग के अतिरिक्त कोई विकल्प प्रस्तुत नहीं किए जाने के कारण कोई फैसला नहीं हो सका। सरकार को उम्मीद है कि अगली वार्ता में किसान संगठन के प्रतिनिधि वार्ता में कोई विकल्प लेकर आएंगे और कोई समाधान निकलेगा। सरकार का कहना है कि ये कानून कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के कदम हैं और इनसे खेती से बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी तथा किसान अपनी उपज देश में कहीं भी बेच सकते हैं।

अब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के इस दावे में भी झोल ही झोल है। अब तक बातचीत के आठों दौर में किसान संगठन इस बात पर कायम हैं कि तीनों किसान कानूनों की वापसी से कम पर वे समझौता नहीं करेंगे, फिर उनका कोई और विकल्प नहीं है। फिर अगली वार्ता में किसान संगठन के प्रतिनिधि कोई विकल्प लेकर आएंगे इसकी दूर दूर तक संभावना नहीं है।

आज की बैठक में सरकार ने किसानों से कहा कि अब फैसला सुप्रीम कोर्ट करे तो बेहतर है, लेकिन किसान नेताओं ने इसे नहीं माना। किसान नेता हनान मुल्ला ने कहा कि हम कानून वापसी के अलावा कुछ और नहीं चाहते। हम कोर्ट नहीं जाएंगे। कानून वापस होने तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी।

दरअसल बैठक में वार्ता ज्यादा नहीं हो सकी और वार्ता की 15 जनवरी की अगली तारीख उच्चतम न्यायालय में इस मामले में 11 जनवरी को होने वाली सुनवाई को ध्यान में रखते हुए तय की गई है। उच्चतम न्यायालय किसान आंदोलन से जुड़े अन्य मुद्दों के अलावा तीनों कानूनों की वैधता पर भी विचार कर सकता है।

लगभग एक घंटे की वार्ता के बाद किसान नेताओं ने बैठक के दौरान मौन धारण करना तय किया और इसके साथ ही उन्होंने नारे लिखे बैनर लहराना आरंभ कर दिया। इसके बाद तीनों मंत्री आपसी चर्चा के लिए हॉल से बाहर निकल आए। आज की बैठक शुरू होने से पहले तोमर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और दोनों के बीच लगभग एक घंटे वार्ता चली।

वार्ता के दौरान एक किसान के हाथों में पर्ची थी, जिस पर लिखा हुआ था हम या तो मरेंगे या जीतेंगे। मीटिंग के दौरान किसानों ने साफ कर दिया है कि कानून वापस लिए जाने तक आंदोलन खत्म नहीं होगा। वहीं, बैठक के दौरान एक किसान नेता ने कहा कि हमारी घर वापसी तब ही होगी, जब आप लॉ वापसी करेंगे।

एक अन्य नेता ने किसानी से जुड़े मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि चूंकि उच्चतम न्यायालय ने खेती को राज्य सरकार का मुद्दा बनाए जाने की घोषणा कर दी है, तो कायदे से केंद्र को कृषि मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि आप मुद्दा सुलझाना नहीं चाहते, क्योंकि इतने दिनों से बातें जारी हैं। किसानों ने सरकार से सीधा जवाब दिए जाने की मांग की है। किसान नेता ने कहा, “ऐसे हालात में आप कृपया कर हमें साफ जवाब दें और हम चले जाएंगे। क्यों सभी का समय खराब करना।”

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इलाहाबाद में रहते हैं।)

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