केरल और तमिलनाडु के बाद कर्नाटक भी नहीं लागू करेगा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति

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नई दिल्ली। कर्नाटक सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के समानांतर एक राज्य शिक्षा नीति लाने का फैसला किया है। मोदी सरकार के राष्ट्रीय शिक्षा नीति और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की पुस्तकों में फेरबदल को कई राज्यों ने अस्वीकार करते हुए पुराने पाठ्यक्रम को ही पढ़ाने का निर्णय लिया है। इन राज्यों में कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल शामिल हैं जिन्होंने एनसीईआरटी की पुस्तकों में बदलाव को अपने राज्यों में लागू करने से मना किया।

संविधान में शिक्षा समवर्ती सूची में रखा गया है। समवर्ती सूची के विषयों पर राज्य और केंद्र दोनों कानून बना सकते हैं। किसी एक ही विषय पर राज्य और केंद्र के कानूनों के बीच टकराव की स्थिति में केंद्रीय कानून वैधानिक माना जाता रहा है। लेकिन मोदी सरकार जिस तरह से शिक्षा का भगवाकरण करने में लगी है और विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में आरएसएस पृष्ठभूमि वाले लोगों की नियुक्ति हो रही है, उसे देखते हुए अब कई राज्य शिक्षा के भगवाकरण का विरोध करने और केंद्रीय कानून न मानने की राह पर चल पड़े हैं।

कर्नाटक सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को वापस लेने और अगले शैक्षणिक सत्र में राज्य शिक्षा नीति लाने का निर्णय किया है। कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा कि यह निर्णय राज्य सरकार के अधिकारियों, शिक्षाविदों और राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद लिया गया।

बैठक के बाद डीके शिवकुमार ने कहा कि “हमने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को रद्द करने का फैसला किया है, जिसे भाजपा सरकार ने अपनाया है। अगले साल, हम नई कर्नाटक शिक्षा नीति लेकर आ रहे हैं। भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित राज्य नीति का विवरण तैयार करने के लिए अगले सप्ताह एक विशेष समिति शुरू की जाएगी।”

कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव घोषणापत्र में विवादास्पद राष्ट्रीय शिक्षा नीति को वापस लेने का वादा किया था। राज्य में अब सरकार बनने के बाद सिद्धारमैया की सरकार अगले शैक्षणिक सत्र से एनईपी को रद्द करने का फैसला किया है।

कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा कि “कई भाजपा शासित राज्यों ने एनईपी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है, जबकि तमिलनाडु और केरल पहले ही इसे खारिज कर चुके हैं। जबकि मोदी सरकार इस नीति पर जोर दे रही है जिसकी देश भर से आलोचना हो रही है।”

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे कर्नाटक पिछले कुछ वर्षों में एक शिक्षा केंद्र बन गया है और इसलिए एनईपी के बिना अपने दम पर प्रबंधन करने में सक्षम होगा। “कर्नाटक एक ‘नॉलेज कैपिटल’ है और हमारे पास सबसे बड़ी संख्या में अंतर्राष्ट्रीय स्कूल, प्राथमिक स्कूल और पेशेवर कॉलेज हैं। हमारे पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अपनी प्रणाली है।”

एनईपी को राज्य नीति से बदलने की कांग्रेस सरकार की योजना के खिलाफ भाजपा पहले ही सामने आ चुकी है। लेकिन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की देश भर में शिक्षाविद, प्रोफेसर और इतिहासकार आलोचना कर रहे हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध करने वालों का तर्क है कि शिक्षा को राजनीतिक विचारधारा के सांचे में नही ढाला जा सकता है।

मोदी सरकार की शिक्षा नीति पर शिक्षाविदों कहना है कि सब कुछ राजनीति के आधार पर तय हो रहा है, तो फिर चाहे वह विश्वविद्यालयों में नियुक्ति हो या पाठ्यक्रमों में बदलाव। मोदी शिक्षा व्यवस्था में आरएसएस की सांप्रदायिक विचारधारा लागू कर रहे हैं। शिक्षा में धर्म और राजनीति का यह घालमेल छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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