शाहीन बाग़ नहीं, शाह को लगा तगड़ा करंट!

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शाहीन बाग़ को करंट लगाने वाले अमितशाह को ज़ोर का झटका ज़ोर से दिया है दिल्ली वालों ने!

झटका ऐसा कि 48 पार की दहाड़, 8 पर मिमियाने लगी।

तो दिल्ली समझती है – बीएसएफ जवान तेजबहादुर यादव ने दाल-रोटी मांगी तो नाफ़रमानी के तमगे के साथ बर्खास्तगी का परचा थमा दिया बेचारे को। हम भुखमरी से आज़ादी मांगेंगे तो मोदी भक्त गोली खिलाएंगे। 

मतदान केंद्रों पर बीजेपी के संघी चेले जय श्री राम चिल्ला रहे थे और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता जवाब में जय हनुमान।

राम के नाम पर गोली और हनुमान के नाम पर जब तक रोटी मिलेगी तो रोटी ही जीतेगी। बता दिया है साफ़-साफ़ दिल्ली वालों ने। लक्ष्मण जब मूर्छित हुए थे राम कुछ न कर पाए थे रोने के सिवा। संजीवनी हनुमान ही लाए थे। कांग्रेस बाबुओं कुछ समझ में आया? राम पे रोटी भारी है।

और इस वक़्त जब धूर्त-हैवान चितपावन पंडों की चेली 

मोदी-शाह की जोड़ी, देश के ग़रीब-दलित-आदिवासी-पिछड़ों-अल्पसंख्यकों को मौत के कुओं में ठूसने की फ़िराक में हैं तो शाहीन बाग़ की औरतें, संजीवनी-चट्टान बनकर इन मौत के सौदागरों के मुक़ाबिल आ खड़ी हुई हैं। 

अंग्रेज़ों से आज़ादी की उम्र से क़रीब 20 साल बड़ी शाहीन बाग़ की दादी पूरी दुनिया को अपने मोहब्बत भरे आँचल में जगह देती है।

जब वो कहती हैं – कि ये लड़ाई हम अपने लिए नहीं सब के लिए लड़ रहे हैं। हमारे पास तो कागज़ हैं दिखा देंगे। पर जिनके पास नहीं हैं, उनका क्या होगा? इस काले क़ानून को सब ग़रीब लोग ही भुगतेंगे। वही लाइनों में लगेंगे। डिटेंशन कैम्पों में भेजे जाएंगे। भले ही किसी जात-धर्म के हों। हम उन्हीं सब मज़लूम हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई-आदिवासी-दलित के लिए अपने घर-बार छोड़ कर रोड पर आए हैं।

आज़ाद भारत की गोद में पली-बढ़ी शाहीन बाग़ की सैकड़ों औरतें-बच्चियां अपनी धरती मां से कह रही हैं – जब तक सरकार की तरफ़ से हमें लिखित में नहीं दिया जाता। जब तक सरकार इन काले क़ानूनों – सीएए, एनपीआर, एनआरसी को वापस नहीं लेती है, तब तक हम यहाँ से नहीं हटेंगे। चाहे कुछ हो जाए। जान से मारेंगे हमें, मार दें। हम सीनों पर गोली खाने को तैयार हैं। पर ज़ुल्म अब और नहीं। तुझसे जन्मे हैं माँ, तुझमें ही मिल जाएंगे। किसी और देश ना जाएंगे।

भारत भूमि की इन रौबदार, निडर, सहनशील, अपने हक़-अधिकार हासिल करने के लिए कड़ी मगर इंसानियत के लिए नरम, मीठी-मोहब्बत से भरी माँओं- बहन-बेटियों की बदौलत आज शाहीन बाग़ ‘भारत माता’ के माथे की गौरव बिंदिया बन, दुनिया में चमक रहा है। 

लिबास से आम सी दिखने वाली, शाही दिल-नज़र, जज़्बात की मालिक, शाहीन बाग़ की ये औरतें शाही लफ्ज़ के मायने बदल देती हैं।

जी हां, डिक्शनरी में अब तक शाही माने रॉयल, राजशाही पढ़ने वाले ख़ुद को  दुरुस्त (अपडेट) कर लें। शाहीन बाग़ की औरतों ने डिक्शनरी में दर्ज “शाही” लफ्ज़ के मायने सही कर दिए हैं। अब शाही का मतलब -रॉयल, राजशाही कतई न पढ़ा-माना जाए।

लोकतंत्र के शब्द ज्ञान पिटारे में अब शाही शब्द के मायने 

होंगे -मेहनतकश, ईमानदार आवाम का अपने हक़-अधिकार के लिए तन कर खड़े होना।  रॉयल लहू  कहलाने के अब से यही अंदाज़ कबूले जाएंगे। शाहीन बाग़ की औरतों ने कमा लिया है  “शाहीन बाग़ की शाही औरतें” का दर्जा।

ख़बरदार! जो लोकशाही में अब किसी ने चापलूसों, धोखेबाज़ों, दूसरों की मेहनत पर पलने-ऐश करने वाले, महंगे-कपड़े-जूते-जवाहरात से लदे परजीवियों को, जिन्होंने ये सब हासिल करने के लिए मुल्क बेच दिए, अपने मरवा दिए, अंग्रेजों की और जिसकी भी चापलूसी करनी पड़ी कर ली। तथाकथित शाही अंदाज़, का ढोंग दिखाने के लिए। उन्हें  रॉयल-शाही कहा। ये भितरघाती-टटपुंजिये हैं।

साहब, यूं नाम करते हैं दुनिया में। आप कहते हैं “कपड़ों को देखकर पता चलता है” जी हां, कपड़ों को देखकर पता चलता है कि लाखों-करोड़ों के कपड़े-लत्तों, जूतों, टोपियों, चश्मों को ढोते आप मामूली हैंगर से ज़्यादा कुछ भी नहीं।

इंसानियत को ठौर-ठिकाना शाहीन बाग़ की “शाही” दादियों की समाजवादी समझ में ही मुमकिन है। 

ख़ैर चाहो तो होश की दवा करो। शाहीन बाग़ के शाही अंदाज़ की ही दुनिया को ज़रूरत है। वरना जाओ जहन्नुम में। वैसे भी वक़्त कौन सा तुम्हारी गुस्ताख़ियों को बर्दाश्त करने वाला है मूर्खों! ग्लेशियर तुम्हारे बमों-तोपों, लड़ाकू जहाजों का जवाब देने आते ही होंगे बस।

(व्यंग्यकार और फिल्मकार वीना जनचौक की दिल्ली हेड हैं।)

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