नई दिल्ली/लखनऊ। यूपी की योगी सरकार की मज़दूरों पर नई मार उनके काम के घटों को बढ़ाने के तौर पर पड़ी है। सरकार ने काम के घंटों को 8 से बढ़ाकर 12 कर दिया है। इसके साथ ही शिकागो की लड़ाई में मिले मज़दूरों के अधिकारों का कम से कम यूपी में खात्मा हो गया है। यूपी की योगी सरकार ने उसकी कब्र खोद दी। आज से दो दिन पहले कैबिनेट से प्रस्ताव पारित करने के बाद अध्यादेश के ज़रिये सरकार ने सारे श्रम कानूनों को तीन साल के लिए स्थगित कर दिया था। यानि किसी भी मज़दूर का अब कोई अधिकार नहीं रहेगा।

सरकार की ओर से जारी आज की अधिसूचना में देश में जारी कोरोना महामारी का ज़िक्र किया गया है। इसके साथ ही उसमें कहा गया है कि इससे आपात कोटि की आंतरिक अशांति उत्पन्न हो गयी है। इसके बाद कारख़ाना अधिनियम की विभिन्न धाराओं का हवाला देते हुए कहा गया है कि “कोई वयस्क कर्मकार किसी भी कारख़ाना में किसी एक कार्य दिवस में 12 घंटे तथा एक सप्ताह में 72 घंटे से अधिक कार्य करने के लिए अनुज्ञात नहीं होगा या उससे ऐसा करने की अपेक्षा नहीं की जाएगी”।

इसके साथ ही छह घंटे के अंतराल पर आधे घंटे का विश्राम देने की बात अधिसूचना में की गयी है। हालाँकि तीसरा आदेश समय के घटों के अनुरूप वेतन बढ़ाने के संदर्भ में है। लेकिन यह सबसे बड़ा सवाल बनकर रह जाएगा कि क्या कोई मालिक उसके अनुपात में वेतन बढ़ाने के लिए तैयार होगा। एक ऐसे मौक़े पर जब कि वेतन में कटौतियाँ हो रही हैं और उसको सरकार का खुला संरक्षण हासिल है। तीसरा आदेश न केवल हास्यास्पद लगता है बल्कि खुली आँखों में धूल झोंकने जैसा है।
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