एक और हाथरस कांड अब वीवीआईपी शहर बनारस में भी  

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2020 में हाथरस के रेप और बाद में यूपी पुलिस द्वारा जबरन दाह-संस्कार की घटना से पूरा देश दहल गया था। कुछ इसी प्रकार की घटना बनारस में देखने को मिल रही है, जिसमें एक नाबालिग छात्रा की मौत को जहां वाराणसी पुलिस आत्महत्या का मामला बता रही है, तो वहीं पीड़ित परिवार रेप और मर्डर का आरोप लगा रहे हैं।

यह घटना 1 फरवरी की बताई जा रही है। बिहार राज्य के सासाराम जिले के वार्ड नंबर 11 तकिया के निवासी सुनील सिंह की 17 वर्षीय बेटी अपनी NEET परीक्षा की तैयारी के लिए वाराणसी में आकर इसकी तैयारी कर रह रही थी। इसके लिए वह पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के पॉश इलाके भेलूपुर स्थित रामेश्वरम गर्ल्स हॉस्टल में रहकर वह कोचिंग ले रही थी। 

लेकिन 1 फरवरी को सुबह सासाराम में रह रहे मृतका के माता-पिता को बनारस से उनके एक जानकार ने खबर की कि उनकी बेटी की मौत हो चुकी है तो परिवार भागे-भागे बनारस पहुंचा। मृतका के माता-पिता का कहना है कि जब वे रामेश्वरम हॉस्टल पहुंचे तो स्नेहा कुशवाहा का शव फंदे पर लटका हुआ नहीं था, जैसा कि पुलिस रिकॉर्ड और सोशल मीडिया में वायरल तस्वीर में दिखाया जा रहा है। उनके पहुंचने से पहले ही फंदे को काटकर उसके शरीर को बेड पर लिटाया हुआ था। 

मृतका के परिजनों के घटनास्थल पर पहुंचने के बाद पुलिस ने बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था। लेकिन परिवार का आरोप है कि पुलिस ने अपने मन मुताबिक यह पोस्टमार्टम कराया है। ये सारे आरोप मृतका के मां-पिता वाराणसी में देने के बजाय सासाराम में पहुंचने के बाद बिहार के यूट्यूब चैनलों के सामने दे सके हैं। 

पीडिता की मां रो-रोकर बता रही हैं कि, “पुलिस ने सारी कार्रवाई अपने आप अंजाम दी थी। 50 पुलिस वालों के साथ बॉडी को घाट पर ले जाया गया था, जबकि हम पहुंचे ही नहीं थे। हमने मांग की थी कि शव को हमें सौंप दिया जाए, लेकिन यूपी पुलिस ने कहा कि यहीं हरिश्चन्द्र घाट पर दाह संस्कार करा दीजिये।” 

इतना ही नहीं पीड़िता की मां का साफ़ आरोप है कि पुलिस वालों ने कहा कि तुम लोग नहीं जलाओगे तो हम जला देंगे। हमें बहुत मजबूर किया गया। उन्होंने आगे कहा, “यूपी पुलिस ने हमें धमकाया कि तुम्हारा बिहार नहीं है ये। यहां बिहार का कानून नहीं है, यूपी का कानून दूसरा है। एक ही देश में दो कानून हो गया? जब हमने कहा कि मामला दर्ज कीजिये, हस्ताक्षर कीजिये, तो कहा कि शव जल जाने के बाद प्राथमिकी दर्ज करेंगे।”

सोशल मीडिया और यूट्यूब में कल से यह मामला गर्माने के बाद जाकर अब हिंदी के स्थानीय अखबारों ने इस खबर पर तवज्जो देनी शुरू की है। लेकिन वहां भी खोजी पत्रिकारिता की जगह जैसा पुलिसिया बयान में मिला, उसे ही छापकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करने की मंशा दिख रही है। 

कल सासाराम के सांसद, मनोज कुमार ने भी लोकसभाध्यक्ष ओम बिड़ला को पत्र लिखकर मामले पर संसद के भीतर इस गंभीर विषय में जानकारी प्रस्तुत करने का निवेदन किया है। उनकी इस मांग पर गौर किया जायेगा, इसको लेकर संदेह है क्योंकि मामला पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र से जो जुड़ा है।  

वाराणसी के एक स्थानीय हिंदी दैनिक में प्रकाशित कवर में बेहद हास्यास्पद तरीके से बताया गया है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने रामेश्वरम पांडेय नाम के एक गुमनाम शख्स के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर दिया है। समाचार में इस बारे में स्पष्ट किया गया है कि रामेश्वरम पांडेय के बारे में पुलिस सहित स्थानीय लोगों को कोई जानकारी नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हो सकता है कि छात्रा के हॉस्टल के बाहर रामेश्वरम लिखा देख मृतका के पिता ने रामेश्वरम पांडेय के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया हो।

सवाल उठता है कि वाराणसी शहर के जवाहर नगर एक्स्टेन्शन कॉलोनी में स्थित रामेश्वरम हॉस्टल में अपने कमरे स्नेहा ने कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा है। एक तस्वीर में उसे अपने बेड के पास फंदे से लटकता हुआ दिखाया जा रहा है, जबकि पैर जमीन को छू रहे हैं। इसे कोई आत्महत्या कैसे बता सकता है? 

दूसरा, पीड़िता की मां का साफ़ कहना है कि उन्हें अपनी बेटी के शव को छूने नहीं दिया गया। उनका आरोप है कि यदि मेरी बेटी ने आत्महत्या की थी तो उसके गले पर निशान होने के साथ ही दोनों हाथों में नीले निशान कैसे थे? 

फिर उनका यह आरोप तो पूरी तरह से वाजिब है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाने के बाद मृतका के शव को पुलिस ने परिवार को क्यों नहीं सौंपा? उन्हें धमकाकर यह क्यों समझाया गया कि यूपी और बिहार के कानून में अंतर है, और अगर वे नहीं माने तो वे शव को खुद ही जला देंगे? 

मृतका के पिता सुनील कुमार के अनुसार, “मेरी लड़की की दोस्त का फोन आया था कि ऐसी घटना हुई है। जब हॉस्टल की मालकिन को मेरी पत्नी ने फोन किया तो उसने कुछ भी बताने से आनाकानी की। जब भागकर हम वहां पहुंचे तो देखा कि बेटी को बेड पर लिटाया हुआ था। गले में ऊंगली के दबाव का निशान था।

उसके बाद आनन-फानन में पुलिस ने पोस्टमार्टम करा दिया और श्मशान घाट पर जबरन ले गई, और शव को अपने कब्जे में एम्बुलेंस में रखा और कहा कि फ़ौरन शवदाह कराओ। मीडिया भी आई हुई थी लेकिन किसी ने पुलिस के आगे कुछ भी पूछताछ करने की हिम्मत नहीं दिखाई।” 

पीड़िता के माता-पिता का यह भी कहना है कि पीएम मोदी जी “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” का नारा देते हैं, लेकिन मैंने बेटी को गर्भ से लेकर 17 वर्ष तक नाजों से पाला-पोसा, और उसके साथ उनके ही संसदीय क्षेत्र में ऐसा नृशंस व्यवहार किया गया। बेटी बचाओ का यह कैसा उदाहरण है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि रामेश्वरम गर्ल्स हॉस्टल से कुछ दूरी पर ही भाजपा का स्थानीय कार्यालय भी मौजूद है। 

घटना के 10 दिन बाद 11 फरवरी 2025 को वाराणसी पुलिस हरकत में दिखी, और डीसीपी काशी के सोशल मीडिया हैंडल से सोशल मीडिया पर इस खबर को वायरल करने वालों को बताया जा रहा है कि पुलिस ने 1 फरवरी को सूचना मिलने पर मृतका के शव का पोस्टमार्टम कराया था, जिसमें मौत की वजह गला घुटने से बताई गई है और मृतका के शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं पाए गये थे। पंचनामा भी परिवार के सामने किया गया था, हालांकि मृतका के पिता की तहरीर पर अभियोग दायर कर मामले की छानबीन की जा रही है।   

लेकिन उस छानबीन का मतलब ही क्या, जो मौत के 10 दिन बाद शुरू हो रही है? मृतका के माता-पिता रो-रोकर बनारस से जा चुके हैं। इस मामले में अब नौ दिन बाद जाकर सोमवार 10 फरवरी 2025 की रात भेलूपुर थाने में पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज की गई है। पिछले तीन-चार दिनों से वे सासाराम में विभिन्न यूट्यूब चैनलों के सामने अपना दुखड़ा रो रहे थे, जिसके बाद जाकर अब वाराणसी पुलिस इस घटना का संज्ञान ले रही है। 

बनारस का पुलिस प्रशासन और समाचार पत्रों की भूमिका निःसंदेह सवालों के घेरे में है। ऐसा जान पड़ता है कि भले ही इस मामले में आरोपी कोई बाहुबली या राजनीतिक व्यक्ति न हो, लेकिन चूंकि यह घटना सबसे वीवीआईपी संसदीय क्षेत्र में हुई, इसलिए प्रशासन इसे अपना परम कर्तव्य मानता है कि मामला किसी भी तरह रफा-दफा हो जाये और किसी प्रकार की बदनामी न हो। यही वह समझ और सोच है, जिससे उत्तर प्रदेश पतन के नए-नए कीर्तिमान स्थापित करता जा रहा है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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