किताब पर चर्चा; अब ज्यूडिशियरी की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए: वृंद्रा ग्रोवर

नई दिल्ली। ‘ये किताबें हमारे सामने क़ानून को कठघरे में रखती हैं ’, यह कहना है सुप्रीम कोर्ट की वक़ील वृंद्रा ग्रोवर का। वे मोहम्मद आमिर ख़ान की किताब ‘आतंकवादी का फ़र्ज़ी ठप्पा’ पर आयोजित चर्चा में हिस्सा ले रहीं थी।

आमिर की यह आत्मकथा इसी साल 2024 में दिल्ली स्थित ‘गुलमोहर किताब’ प्रकाशन से आई है। यह किताब साल 2016 में अंग्रेज़ी में आई किताब ‘Framed As A Terrorist : My 14-Year Struggle to Prove My Innocence’ का हिंदी अनुवाद है। यह कहानी एक भारतीय मुसलमान नौजवान की है, जिसे अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए 14 साल संघर्ष करना पड़ा।

यह पुरानी दिल्ली की गलियों में रहने वाले एक सामान्य नौजवान की ख़ौफ़नाक व दिल दहलाने वाली कहानी है। जिसका 1998 में पुलिस ने अपहरण कर लिया और उसपर बम विस्फोट करने के 19 गंभीर और फ़र्ज़ी मामले लगाकर तकरीबन चौदह साल तक जेल में डाले रखा।   

9 मार्च, 2024 को इस किताब पर गुलमोहर किताब की ओर से नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में एक बातचीत रखी गई। जिसमें क़ानून और समाज से जुड़े कई जाने-माने लोगों ने शिरकत की और अपने विचार रखे।

प्रसिद्ध वक़ील वृंद्रा ग्रोवर ने कहा कि पूरी ज्यूडिशियरी और क़ानून का हमारे लोकतंत्र में जवाबदेही तय करने का काम है। कोई भी ग़लत करता है यहां तक की सरकार भी तो उसकी जवाबदेही तय करने के लिए ही यह न्याय प्रणाली बनी हुई है। मगर हम जब ऐसे मामले देखते हैं, किताब पढ़ते हैं तो यह सब दिखाता है कि यहां तो जवाबदेही न्याय प्रणाली की भी भी तय होनी चाहिए। इस न्याय प्रणाली में पुलिस भी आती है, क़ानून भी आता है और पूरी न्यायिक व्यवस्था भी आती है। इसलिए यह सवाल हमारे बीच में बार-बार उठना बहुत ज़रूरी है कि यह जो institutional injustice (संस्थागत अन्याय) हो रहा है उसकी ज़िम्मेदारी, जवाबदेही किसकी है।

इसी के साथ उन्होंने ऐसी किताबों को देश की सभी लाइब्रेरी में रखने की सलाह देते हुए कहा कि ऐसी किताबें पुलिस और क़ानून पढ़ाने वाली संस्थाओं की लाइब्रेरी में होना ज़रूरी है।

कार्यक्रम में सबसे पहले यह अन्याय झेलने वाले और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता नंदिता हक्सर के सहयोग से किताब लिखने वाले मोहम्मद आमिर ख़ान ने सबके साथ अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने अपने साथ जो कुछ हुआ और आज जो कुछ हो रहा है, जैसे अभी दिल्ली में नमाज़ियों के साथ पुलिस वाले ने सुलूक किया उसका उल्लेख करते हुए गहरी चिंता जाहिर की और इस सबके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने और एक बेहतर भारत बनाने के लिए सबको साथ आने की अपील की।

कार्यक्रम में दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिशयन (डूटा) की पूर्व अध्यक्ष नंदिता नारायण ने अपने विचार रखते हुए आज के हालात पर गहरी चिंता जताई और कहा कि अब तो हमारे बहुत प्रगतिशील साथी जेलों के अंदर हैं। अब तो लोग कहते हैं कि अगर आपको जाने माने कवियों से, लेखकों से, पत्रकारों से, बुद्धिजीवियों से मिलना है तो जेल में जाना पड़ेगा। क्योंकि हमारे समाज के बेहतरीन लोग, रॉल मॉडल जिन्होंने अपने बजाय समाज के बारे में सोचा, ग़रीबों के बारे में सोचा, जो बेज़ुबान थे, उनके लिए आवाज़ उठाई आज वे जेलों में हैं।      

सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित बैज़वाड़ा विल्सन ने आमिर की किताब पर बोलते हुए देश की क़ानून व्यवस्था पर सवाल उठाया और अंडर ट्रायल बेगुनाह क़ैदियों को लेकर सवाल पूछा। उन्होंने पितृसत्ता, छुआछूत का सवाल उठाते हुए जातीय उत्पीड़न पर भी बात की।

अर्थशास्त्री व सामाजिक कार्यकर्ता और किसान आंदोलन का भी एक चेहरा रहीं नवशरण सिंह ने आमिर के अलावा अब्दुल वाहिद व अन्य की किताबों का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह हिंदुस्तान की वार एंड टेरर की नाकामी और उसमें निहित नाइंसाफ़ियों का जीता जागता सुबूत है आमिर और उनके जैसे लोगों के साथ जो गुज़र रही है। उन्होंने कहा कि आज देश में संस्थागत भेदभाव पूरी तरह लागू हो चुका है और उसके सबसे बड़े शिकार ऐसे बेगुनाह मुस्लिम नौजवान हैं। यह शर्मनाक है। उन्होंने सालों बाद मिलने वाले इस न्याय पर भी सवाल उठाया और कहा कि ये न्याय नहीं बल्कि अन्याय है।  

किताब का हिंदी अनुवाद करने वाले प्रोफ़ेसर राजेंद्र चौधरी ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि इतने उत्पीड़न, अत्याचार और झूठे केस में 14 साल जेल काटने के बाद भी आमिर में गुस्सा नहीं है, हताशा या निराशा नहीं है, यह बात आमिर को ख़ास बनाती है।

गुलमोहर किताब की ओर से कवि और राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह ने आमिर और उनके साथ लेखिका नंदिता हक्सर को मुबारकबाद देते हुए कहा कि यह किताब बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह हमारी राज्य व्यवस्था को आईना दिखाती है। उन्होंने कहा कि हिंदी में यह जो किताब आई है वह केवल एक अनुवाद भर नहीं है, बल्कि इसमें बहुत चीज़े ऐसी जोड़ी गईं हैं जो अंग्रेज़ी संस्करण में नहीं है।

कार्यक्रम का संचालन पत्रकार भाषा सिंह ने किया। उन्होंने आमिर के संघर्ष को रेखांकित करते हुए डीयू के पूर्व प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा की रिहाई पर भी ख़ुशी जताई और इन सबके संघर्षों से सीख लेने की बात कही। उन्होंने कहा कि इन संघर्षों का दस्तावेज़ीकरण होना और उनपर बात होना बहुत ज़रूरी है, ताकि सनद रहे कि हम किस दौर में रह रहे हैं।

गुलमोहर किताब की तरफ़ से सभी वक्ताओं और श्रोताओं का स्वागत पत्रकार और यायावर उपेंद्र स्वामी ने किया, जबकि अंत में धन्यवाद कवि-पत्रकार मुकुल सरल दिया। उन्होंने कहा—

जिन लोगों ने भी झेला है जाति का दंश

अपनी पीठ पर झेला है धर्म का कोड़ा

जिन लोगों से छीन लिए गए हैं

उनके जल-जंगल-ज़मीन

उनसे देश मांगता है माफ़ी                        

वे कृपया अगली क़तार में बैठें            

और करें हमारा इंसाफ़ ।

(जनचौक की रिपोर्ट)  

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