किताब कौतिक: ताकि सोशल मीडिया के दौर में भी पढ़ी जाती रहें किताबें

नैनीताल। दो दिन पहले उत्तराखंड के हल्द्वानी से एक खबर आई। माता-पिता ने 13 साल की अपनी बेटी को मोबाइल की जगह किताबें पढ़ने के लिए कहा तो किशोरी ने पहले अपने हाथ की नस काटी और फिर फांसी लगा ली। किशोरी की मौत हो गई। ऐसी कई अन्य घटनाएं भी देश में कई जगहों पर हुई हैं।

ये घटनाएं बताती हैं कि छोटी उम्र के बच्चों से लेकर बड़ी उम्र तक के लोगों ने किताबें पढ़ना लगभग छोड़ दिया है। उनका ज्यादातर वक्त मोबाइल पर गुजर रहा है। ऐसे वक्त में उत्तराखंड में कुछ युवाओं ने एक अभियान शुरू किया है। नाम दिया गया है ‘किताब कौतिक’। कौतिक का अर्थ होता है मेला। किताब कौतिक अर्थात् पुस्तक मेला। खास बात यह है कि यह मेला न सिर्फ कस्बों और शहरों, बल्कि बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों में भी आयोजित किया जा रहा है।

कुमाऊं क्षेत्र के कई हिस्सों में सफलतापूर्वक किताब कौतिक आयोजित किये जाने के बाद अब गढ़वाल मंडल में भी इस तरह के किताब कौतिक आयोजित करने पर विचार किया जा रहा है। खास बात यह है कि यह सिर्फ पुस्तक मेला नहीं होता। बल्कि, इसमें अनेक तरह की दूसरी गतिविधियां भी शामिल होती हैं। इन गतिविधियों में विभिन्न विषयों पर सेमीनार, छात्रों के कैरियर काउंसिलिंग, नेचर वॉक, बर्ड वाचिंग, खेलकूद, कला, संगीत, बच्चों के लिए लेखन और ड्राइंग प्रतियोगिताएं आदि शामिल होती हैं।

जनचौक ने नैनीताल जिले के भीमताल में आयोजित किताब कौतिक की एक-एक गतिविधि पर नजर रखी। यहां इन तमाम गतिविधियों को समेटने का प्रयास किया जा रहा है। भीमताल में किताब कौतिक का आयोजन 5, 6 और 7 अक्टूबर को किया गया। पहले दिन 5 अक्टूबर को अभियान से जुड़े युवाओं और इस आयोजन में शामिल विषय विशेषज्ञों ने भीमताल के आसपास के एक दर्जन से ज्यादा सरकारी स्कूलों में जाकर बच्चों के साथ पुस्तकों, लोककला, पर्यटन आधारित रोजगार, रचनात्मक लेखन, परंपरागत औषधि, रंगमंच, संगीत आदि के साथ ही कैरियर काउंसिलिंग पर बातचीत की।

अगले दो दिन भीमताल के ग्राफिक ऐरा हिल यूनिवर्सिटी परिसर में पुस्तक मेला लगा। पुस्तक मेले में पिथौरागढ़ की आरंभ ग्रुप की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूणर्प रही। हर तरह की पुस्तकें आरंभ के स्टॉल पर उपलब्ध थी। आरंभ युवाओं का वही ग्रुप है, जिसने करीब तीन वर्ष पहले पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना पिथौरागढ़ पुस्तक आंदोलन चलाया था। यह ग्रुप किताब कौतिक का महत्वपूर्ण स्तंभ होने के साथ ही हर सप्ताह अलग-अलग जगहों पर युवाओं के साथ बैठता है और किसी पुस्तक पर चर्चा करता है।

आरंभ में ग्रुप के अलावा किताब कौतिक में कई अन्य प्रकाशकों ने हिस्सा लिया। इनमें समय साक्ष्य, अविचल, बुक्स ट्री, अंकित, विनसर आदि प्रकाशन शामिल थे। लगभग हर तरह का साहित्य इस कौतिक में नजर आया। इसमें इतिहास, लोक संस्कृति, लोक साहित्य और मुख्य रूप से बच्चों का साहित्य शामिल था। पुस्तक न खरीद पाने की स्थिति में बच्चों के लिए किसी भी स्टॉल से अपनी पसंद की पुस्तक लेकर कौतिक में ही पढ़ने की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई थी। इसके साथ ही बच्चों को यह भी कहा गया था कि जो पुस्तक उन्हें पसंद आएं, उनकी सूची बनाएं ताकि भविष्य में वे अपनी पसंदीदा पुस्तक खरीद सकें।

किताब कौतिक की गतिविधियां सिर्फ पुस्तकों की प्रदर्शनी और उनकी खरीद-फरोख्त तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि उद्घाटन से लेकर समापन तक कई दूसरी गतिविधियों को भी इसमें शामिल किया गया था। कौतिक का उद्घाटन प्रसिद्ध पुरातत्वविद् प्रो. यशोधर मठपाल, डॉ. बीएस बिष्ट, डॉ. राजेश्वरी कापड़ी, डॉ. हरीश बिष्ट, डॉ. मनोज लोहानी ने संयुक्त रूप से किया।

साहित्यिक सत्र में प्रो. पुष्पेश पंत ने कुमाऊंनी खानपान की विशेषताओं के बारे में बताया। उन्होंने मूल पहाड़ी खान-पान को पर्यटन से जोड़ने की बात कही। इतिहासकार प्रो. प्रयाग जोशी ने कत्यूरी राजवंश और जियारानी के इतिहास के बारे में जानकारी दी। प्रो. शेखर पाठक ने नैनीताल जिले के ऐतिहासिक महत्व पर अपनी बात रखी। इसमें स्वतंत्रता आंदोलन में नैनीताल जिले की भागीदारी, नैनीताल जिले के साहित्यकारों की जानकारी आदि शामिल थी।

लखनऊ विश्वविद्यालय के तमिल भाषा के प्रो. सेंथिल ने भारत की भाषाई विविधता पर अपनी बात रखी तो राज्य के सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने सूचना के अधिकार के बारे में विस्तार से जानकारी दी। 6 अक्टूबर की शाम का सांस्कृतिक सत्र भी कई मायनों में शानदार था। विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राओं के साथ ही प्रह्लाद मिश्रा, घुघुति जागर टीम और कमल जोशी ने लोक गीत प्रस्तुत किये। कवि गोष्ठी का इस मौके पर आयोजन किया गया।

किताब कौतिक के तीसरे और अंतिम दिन की शुरुआत नेचर वॉक और बर्ड वॉचिंग के साथ हुई। सातताल रोड पर नेचर वॉकिंग हुई और रामनगर के पक्षी विशेषज्ञ राजेश भट्ट ने इस क्षेत्र में नजर आ रहे कई पक्षियों के बारे में जानकारी दी। इस दौरान वनस्पति विज्ञानी डॉ. बीएस कलाकोटी ने औषधीय महत्व के पौधों के बारे में जानकारी दी।

कौतिक स्थल में लपूझन्ना जैसी प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक अशोक पांडे ने अपने लेखन और अपनी यात्राओं के बारे में बताया। एचएन बहुगुणा चिकित्सा व्यवस्था की चुनौतियों पर तो पूर्व चिकित्सा निदेशक डॉ. एमएल उप्रेती ने अंगदान के बारे में जानकारी दी। यामिनी पांडे ने उत्तराखंड की लोक कला ऐपण के बारे में तो मंजू साह ने पिरूल हस्तशिल्प के बारे में बताया। शाम के सत्र में लोक गायन के क्षेत्र में लगातार प्रसिद्धि पा रही उप्रेती बहनों ने न्योली प्रस्तुत की। मशहूर कवि और जनगीतकार बल्ली सिंह चीमा ने अपने गीत और गजलें सुनाई।

इस तरह के आयोजन की शुरुआत कैसे हुई। इस बारे में जनचौक ने किताब कौतिक के संयोजक हेम पंत से विस्तार से बातचीत की। हेम पंत के अनुसार हम काफी समय से महसूस कर रहे थे कि किताबों के प्रति लोगों की दिलचस्पी कम हो रही है। इसके साथ ही यह विचार भी लगातार आ रहा था कि उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के बारे में ज्यादातर लोगों को जानकारी नहीं है। इस दोनों बातों के ध्यान में रखकर किताब कौतिक शुरू करने का फैसला किया गया।

दिसंबर 2022 में चम्पावत जिले के टनकपुर से इसकी शुरुआत की गई। इसके बाद बागेश्वर जिले के बैजनाथ के साथ ही चम्पावत, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा के द्वाराहाट में भी किताब कौतिक आयोजित किये गये। वे कहते हैं अगला किताब कौतिक ऊधमसिंह नगर में और इसके बाद गढ़वाल क्षेत्र में भी इस तरह के पुस्तक मेले आयोजित करने पर विचार किया जा रहा है, लेकिन उनका मुख्य फोकस बड़े शहर और कस्बों के बजाय दूर-दराज के क्षेत्र होंगे।

इस तरह के आयोजनों में सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में वे कहते हैं। पहली चुनौती तो फंड की होती है। सरकार ने इसके लिए किसी तरह की कोई मदद करने से हाथ खड़े कर दिये। ऐसे में आम लोगों के सहयोग से ही आयोजन किये जा रहे हैं। इसके साथ ही इन आयोजनों का मुख्य उद्देश्य किताबों की बिक्री न होकर विभिन्न विषयों की पुस्तकों से लोगों और खासकर बच्चों को परिचित कराना है। ऐसे में प्रकाशकों को कोई खास लाभ नहीं होता। एक बड़ी चुनौती तब सामने आती है, जब कुछ लोग यह सवाल उठाते हैं कि हम किस आइडियोलॉजी की पुस्तकें बेच रहे हैं और इस बात को लेकर विवाद शुरू कर देते हैं।

हेमपंत के अनुसार उनका और उनके ग्रुप का मकसद सिर्फ अच्छी पुस्तकें आम लोगों को और बच्चों तक पहुंचाना है। सभी तरह की पुस्तकें इन पुस्तक मेलों में उपलब्ध होती हैं, फिर भी कुछ लोगों को मकसद सिर्फ विवाद खड़ा करना होता है इससे कई बार अप्रिय स्थिति पैदा हो जाती है।

भीमताल किताब कौतिक में राज्य के एक प्रमुख एक्टिविस्ट चारु तिवारी भी मौजूद थे। वे किताब कौतिक जैसे आयोजन से बेहद प्रभावित हैं। कहते हैं, किताब कौतिक ने पढ़ने की संस्कृति को लेकर नई उम्मीद जगाई है। कुछ युवाओं द्वारा शुरू किये गये इस आयोजन में अब और लोग भी जुड़ रहे हैं और यह आयोजन लगातार विस्तार ले रहा है। पुस्तकों से परिचय के साथ ही कैरियर काउंसलिंग, लेखकों के साथ बातचीत, स्थानीय इतिहास पर व्याख्यान, प्रकृति को जानने के लिए नेचर वॉक, विभिन्न विषयों पर विशेषज्ञों के व्याख्यान, पुस्तक लोकार्पण जैसी गतिविधियों से किताब कौतिक का न सिर्फ समृद्ध किया है, बल्कि 60 हजार से ज्यादा पुस्तकों की उपलब्धता ने इसे विराट रूप भी दिया है। पूरी तरह स्थानीय लोगों और अभिभावकों के सहयोग से आयोजित किये जाने वाले इस मेलों के प्रति प्रशासन ने शुरुआती दौर में रुचि दिखाई थी, लेकिन बाद के दौर में हाथ खींच लिए। इसे मैं विडम्बना मानता हूं।

चारु तिवारी कहते हैं, किताब कौतिक ने सबसे बड़ा काम यह किया कि दूरस्थ क्षेत्रों तक पुस्तकें पहुंचाई और लोगों को पढ़ने की संस्कृति से रूबरू किया। साहित्य, संगीत, कला, पत्रकारिता, फिल्म आदि क्षेत्र से जुड़ी प्रतिभाओं को भी इन आयोजनों से महत्वपूर्ण जानकारियां मिल रही हैं। साथ ही ये आयोजन पहाड़ की उन तमाम संस्थाओं, प्रयासों और व्यक्तियों के बीच भी समन्वय स्थापित कर रहे हैं, जो पढ़ने की संस्कृति को लेकर काम कर रहे हैं।

दरअसल किताब कौतिक की शुरुआत यूं ही नहीं हो गई थी। यह शुरुआत लंबे रास्तों से गुजरे सामाजिक-सांस्कृतिक बोध का परिणाम है और इसमें कई लोगों को सहयोग भी शामिल है। हेम पंत, दयाल पांडे और हिमांशु पाठक आदि युवाओं ने इस अभियान को शुरू किया था। इसमें उत्तराखंड के एक प्रशासनिक अधिकारी हिमांशु कफल्टिया की प्रेरणा और सहयोग मुख्य रूप से शामिल था। हिमांशु कफल्टिया अब भी लगातार इन आयोजनों से जुड़े हुए हैं और इसे नयी पीढ़ी की दिशा और दशा सुनिश्चित करने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के हिमायती हैं।

(त्रिलोचन भट्ट वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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