Saturday, April 20, 2024

विश्व मानवता के लिए वरदान सोवियत अक्टूबर क्रांति

आज 1917 की महान रूसी क्रांति को एक सौ चारवीं वर्षगांठ हो चले हैं। 1917 में 07 नवंबर ही के दिन सोवियत रूस में महान वैज्ञानिक समाजवादी क्रांति संपन्न हुई और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गरीबों – मजदूरों – किसानों – आमजन के मुक्तिदाता, मसीहा, महामानव, क्रांति के अग्रदूत व्लादीमीर इल्यीच उल्यानोव लेनिन के नेतृत्व में एक नई मानवता, नई सभ्यता और नई संस्कृति का जन्म हुआ। दुनिया के इतिहास में सामंतों और पूंजीपतियों की सत्ता पलट दी गई और वहां पर किसानों और मजदूरों की सत्ता और सरकार ने जन्म लिया और मानव इतिहास में पहली बार किसान और मजदूर अपने भाग्य विधाता बने और उन्होंने कुछ नई मानव कल्याण, आम जन कल्याणकारी, जनोपयोगी, समानता की पक्षधर कुछ ऐसी नीतियों को जन्म दिया जिनका विवरण इस प्रकार है-

महान सोवियत अक्टूबर क्रांति के बाद सत्ता में आई सरकार ने अपने देश और समाज के सभी नागरिकों को सुरक्षा की गारंटी दी, बीमारों को मुफ्त इलाज और वृद्धावस्था पेंशन की गारंटी दी, क्रांतिकारी सरकार ने शोषित जनता के दिलों दिमाग से हजारों साल पुराना भय और भूत निकाल दिया। यह भूत बेकारी, अन्याय, शोषण, भेदभाव, बीमारी, बुढ़ापा और मंदी का था। पूंजीवादी व्यवस्था असुरक्षा, शोषण, भेदभाव व अन्याय की बुनियाद पर खड़ी होती है तो समाजवादी व्यवस्था ने उन सारे विकृतियों और अनावश्यक भय की नींव ही खोद डाली। नई क्रांतिकारी समाजवादी व्यवस्था ने स्वार्थ और परमार्थ का समन्वय कर और सब को धन – धान्यपूर्ण कर दिया, सबको साम्य कर दिया और समरस कर दिया। साम्यवादी सोच यही तो  सिखाती है, उसने अमीरी – गरीबी के शाश्वत कलह का ही विनाश कर दिया। बुद्धि और चेतना को आजाद कर दिया, अपने देश के सभी नागरिकों  को अच्छा कारीगर, अच्छा टेक्नीशियन, अच्छा इंजीनियर, अच्छा डॉक्टर, अच्छा बुद्धिजीवी और सबसे बड़ी चीज अपने सभी नागरिकों को बेहतर इंसान बना दिया, जिसमें करूणा, दया, सहिष्णुता आदि मानवीय गुण के साथ मिलजुलकर, मिलबांट कर खाने व शांतिपूर्ण ढंग से रहने की आदत सिखा दिया। वहां लागू की गई नई क्रांतिकारी नीतियों ने वहां के हर स्त्री – पुरूष और बच्चों के दिमाग में यह भावना भर दी कि यहां की उत्पन्न पैदावार सभी की है, यहां का ज्ञान सभी का है, यहां की संस्कृति सबकी साझी मिल्कियत है। उनके मुंह से यही निकला कि हमारा देश, हमारे कारखाने, हमारे खेत, हमारी दुकानें, हमारे सिनेमा, यानी कि सब चीज हमारी है और वहां मैं, मेरा, मेरी आदि की स्वार्थी सोच सदा के लिए खत्म कर दी गई। समाजवादी सोच ने इस उन्नत व मानवीय संस्कृति के बीज बो दिए यानी यह देश सबका है, यही भावना सबके अंदर भर दी गई।

काम करना सबके लिए अनिवार्य कर दिया गया, कोई भी आदमी या वर्ग निकम्मा नहीं रह सकता था, सभी को श्रम की प्रतिष्ठा सिखाई गई, सबके लिए काम करना अनिवार्य कर दिया गया, कोई भी काम छोटा नहीं है, कोई भी काम बड़ा नहीं है की सोच विकसित की गई। वहां बच्चों के अंदर पढ़ने और काम करने की चाहत और इच्छा भरी गई। गरीबी, सभी अपराधों की जननी है, इसलिए वहाँ गरीबी मिटाकर सभी बुराईयों समूल विनाश कर दिया गया और सब को जीवन की बुनियादी जरूरत को उपलब्ध कराई गई, वहाँ ऐश्वर्य और पूंजी के उँचे टॉवर खड़े करके  झुग्गी, झोपड़ी, भिखारियों, वंचितों, मजलूमों और करोड़ों की संख्या में रात में भूखों सो जानेवाले लोगों की विकृत कुसंस्कृति नहीं पैदा की गई, वहाँ सभी को शिक्षा, भोजन और रोजगार की सुनिश्चित गारंटी दी गई, इस प्रकार वहाँ जुर्म करने के सभी रास्ते बंद कर दिए गए और उन सभी परिस्थितियों को देश निकाला दे दिया गया जो अपराधियों को जन्म देती हैं। सभी के अंदर अलगाव की भावना को खत्म किया गया और सभी के अंदर सौहार्द, भातृत्व, सहयोग, करूणा, प्रेम, इंसानियत आदि भावनाओं की जड़ें खूब ठीक से जमाई गईं। मानव जीवन में नए उत्साह का संचार किया गया, यह भावना आदमी से बड़े से बड़ा त्याग और कार्य करा लेती है। रूसी क्रांति ने अपने समाज में इसी भावना का सूत्रपात किया।

उसके नागरिकों के अंदर जाति, रंग, पेशे के भेदभाव और अंतर को मिटा दिया गया। सभी मानव भाई – भाई हैं, सबके लिए काम है, हर कोई सबके लिए है और सब कुछ देश के हर नागरिक के लिए हैं यह भावना उनमें कूट -कूट कर भर दी गई। वहां के हर नागरिक को स्वस्थ, विकसित और सबल बना दिया गया। दुनिया की पिछड़ी नस्लों,जातियों और वर्गों के लिए सोवियत संघ समानता और समता का देश बन गया और वहां समानता और साम्यवाद का बीज बो दिया गया। मेहनतकशों के लिए मानो स्वर्ग को ही धरती पर उतार लाया गया। क्रांति के बाद नई मानवता नई सभ्यता और संस्कृति का सूत्रपात किया गया। रूस की समाजवादी क्रांति ने इन्हीं सब खूबियों की शानदार ढंग से शुरुआत की।

यह सब बातें सारी दुनिया के लिए बिल्कुल अजूबा थीं, बिल्कुल आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय था मगर बिल्कुल सच और जमीनी हकीकत भी था। नई सभ्यता और संस्कृति की शुरुआत की गई यानी समता, समानता, बराबरी और भाई-चारे का युग शुरू हुआ। रूसी क्रांति के बाद विज्ञान और वैज्ञानिक उपलब्धियों को मनुष्य की सेवा में लगा दिया गया। मशीनों के द्वारा मानव श्रम को आसान बना दिया गया, मशीनें आदमी की सेवा में लग गईं। रूसी क्रांति ने जीवन की सुरक्षा की गारंटी दी। बूढों को सम्मानजनक पेंशन दी और निशुल्क, वैज्ञानिक, आधुनिक और आवश्यक शिक्षा की शुरुआत की। रूसी क्रांति ने सब को निःशुल्क और आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली का लाभ प्रदान किया, सबको समाजोपयोगी शिक्षा दी गई। कथित स्वर्ग को जमीन पर उतार कर लाने की शुरुआत कर दी गई। बच्चों को श्रेष्ठ नागरिक और इंसान बनने की शिक्षा दी गई।

बाल प्रसाद बनाकर बच्चों को श्रेष्ठ मानव बनने की शिक्षा दी गई। रूसी क्रांति ने औरतों को दुनिया में सबसे पहले आजादी और समानता के आनन्द को महसूस कराई। वहां सबसे पहले औरतों को पुरुषों के बराबर वेतन दिया गया। गर्भवती मजदूर औरतों को पूरा वेतन दिया गया, बच्चों के लिए किंडन गार्टन यानी केजी में रखने की व्यवस्था की शुरूआत रूस में ही सर्वप्रथम शुरू की गई, सार्वजनिक भोजनालयों की व्यवस्था की गई जिसने औरतों को घरेलू काम की झंझट से मुक्ति दिलाई। दहेजप्रथा जैसी कुरीति का खात्मा कर दिया गया, शादी को प्रेम की पवित्र नींव पर प्रतिष्ठित किया गया। रूसी क्रांति ने रूस में वेश्यावृत्ति का खात्मा कर दिया, स्त्रियों को आजाद कराया, सभी नागरिकों को तरह-तरह की भाषाएं सिखाई गईं, जबरन विवाह को सरकार द्वारा रोका गया, सार्वजनिक, निःशुल्क, सभी के स्वस्थ्य मनोरंजन के लिए क्लब घर खोले गए। उन्हें विश्व स्तरीय खिलाड़ी, डॉक्टर, नर्स, शिक्षिका बनाया गया। क्रांति ने 08 मार्च 1928 को पर्दा प्रथा विरोधी दिवस मनाया, जब औरतों ने बुराई के प्रतीक पर्दों और बुरकों को आग के हवाले कर दिया।

रूसी क्रांति ने ही सिखाया कि सत्ता का उपयोग सिर्फ शोषण, अन्याय, जुल्म और भेदभाव करने के लिए ही नहीं बल्कि समता, समानता, न्याय, भाई-चारा कायम करने के लिए भी किया जा सकता है और इसके द्वारा हजारों साल पुराने शोषण, अन्याय, जुल्म, गैरबराबरी और भेदभाव को खत्म किया गया, रूसी क्रांति ने यही मानवीयता और लोकोपयोगी काम किया, इसी पर अमल किया। रूसी क्रांति की यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। रूसी क्रांति ने यह भी सिखाया कि मजदूर और किसान सिर्फ शोषण के लिए ही नहीं बने हैं, सिर्फ काम करने के लिए ही नहीं बने हैं, बल्कि वे अपनी किस्मत को सुधार भी सकते हैं, वे सत्ता में भी आ सकते हैं, वे सरकार में भी आ सकते हैं और सत्ता और सरकार में आकर अपना और समस्त जनता का पूर्ण विकास कर सकते हैं, उसके सभी प्रकार के शोषण, जुल्म, अन्याय और भेदभाव का विनाश भी कर सकते हैं। रूसी क्रांति की यह एक बहुत बड़ी देन है, इसलिए रूसी क्रांति ने बहुत बड़े – बड़े सवालों का जवाब दिया। 1917 की रूसी क्रांति के महान कारनामों और उपलब्धियों को आज भी विस्मयकारी नजरों से देखा जाता है उसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है।

रूसियों द्वारा की गई गलतियों के कारण क्रांति को झटके लगे, वहां के नेतृत्व ने अक्षम गलतियां की जिसे क्रांति का इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। इस सबके बावजूद रूसी क्रांति की महानता, उसकी महत्ता और प्रासंगिकता आज के वर्तमान समय में भी कम नहीं हुई है, वह आज भी अनुकरणीय और अवश्यम्भावी बनी हुई है। वह आज भी इस संसार में मनुष्य का सबसे बड़ा योगदान और कारनामा बना हुआ है। हमें आज भी रूसी क्रांति की विरासत को आगे ले जाने की बहुत – बहुत जरूरत बनी हुई है। आइए, हम सभी इसे आगे ले जाने के अभियान में शामिल हों। रूसी क्रांति द्वारा हासिल किए गए मानवीय, मजदूर – किसान – आम जन कल्याणकारी कार्यों को अपने जीवन में उतारें, उसी के अनुरूप जीने की कोशिश करें और उस अभियान को आगे बढायें। सर्वकालीन मानवतावादी रूसी क्रांति चिरंजीवी हो। महान सोवियत अक्टूबर रूसी क्रांति जिंदाबाद।

साभार- मुनेश त्यागी, जनकवि और सीनियर ऐडवोकेट, मेरठ कोर्ट, मेरठ (उत्तरप्रदेश)

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