समाज के वंचित तबके, विशेष रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति के कल्याण के लिए भारत सरकार द्वारा कई विशेष योजनाएं लागू की गई हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण योजना शिक्षा के क्षेत्र में इन वर्गों के उत्थान के लिए आर्थिक सहायता के रूप में छात्रवृत्ति है, जो राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है। यह छात्रवृत्ति दसवीं कक्षा के बाद उच्चतर शिक्षा के लिए प्रत्येक छात्र को वार्षिक अध्ययन काल के अंतर्गत उपलब्ध कराई जाती है। इसके लिए राज्य सरकार हर साल अपने बजट में राशि आवंटित करती है। हरियाणा में अनुसूचित जाति और जनजाति सामाजिक कल्याण विभाग इन योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है।
वर्ष 2023-24 में सामाजिक कल्याण और शिक्षा विकास के लिए हरियाणा में 75,661 मेधावी छात्रों को डॉ. आंबेडकर मेधावी छात्र संशोधित योजना के तहत 61.77 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता छात्रवृत्ति के रूप में दी गई। वहीं, वर्ष 2024-25 के लिए बजट में 70 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। (स्रोत: आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25, हरियाणा)
पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, जो अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए है, भारत सरकार और राज्य सरकारें 60:40 के अनुपात में संयुक्त रूप से संचालित करती हैं। इसके तहत छात्रों को विभिन्न वर्गों के आधार पर 2,500 से 13,500 रुपये प्रति वर्ष शैक्षणिक भत्ते के रूप में दिए जाते हैं। वर्ष 2024-25 के लिए इस योजना में 100 करोड़ रुपये का बजट आवंटन किया गया था, लेकिन 31 दिसंबर 2024 तक केवल 19,756 छात्रों को 27.78 करोड़ रुपये ही वितरित हो सके हैं।
जबकि 2023-24 में 82,248 छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के 55,998 छात्रों को 2023-24 में 36.32 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति दी गई। 2024-25 के लिए 60 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान था, लेकिन 31 दिसंबर 2024 तक केवल 2,189 छात्रों को 2.34 करोड़ रुपये ही वितरित हुए हैं।
अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के कल्याण के लिए हरियाणा विधानसभा समिति ने अपनी 48वीं रिपोर्ट हरियाणा विधानसभा में प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट में कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में खामियों, भर्ती में लंबित कार्यों और आवंटित निधि के कम उपयोग का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह रिपोर्ट वर्तमान बजट सत्र में हरियाणा विधानसभा में पेश की गई। इस समिति का गठन मूल रूप से अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के शैक्षणिक एवं आर्थिक उत्थान की योजनाओं की समीक्षा करने और उनके सुचारु कार्यान्वयन के लिए किया गया था।
समिति के अध्यक्ष नीलोखेड़ी (आरक्षित) से विधायक भगवान दास हैं। समिति में रतिया से कांग्रेस विधायक जरनैल सिंह, भाजपा के पूर्व मंत्री डॉ. कृष्ण कुमार (विधायक, बावल), बिमला चौधरी (विधायक, पटौदी), शाहबाद से कांग्रेस विधायक रामकरण काला, रेनू बाला (विधायक, सढौरा), कपूर सिंह (विधायक, बवानीखेड़ा), पवन खरखौदा (विधायक, खरखौदा) और कंवर सिंह (विधायक, महेंद्रगढ़) सहित आठ सदस्य शामिल हैं।
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने जून 2024 में सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण, अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग कल्याण, उच्च शिक्षा और अंत्योदय विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की थी। इस बैठक में लंबित छात्रवृत्ति निधि को जारी करने के निर्देश दिए गए थे, ताकि सभी छात्रवृत्तियां शीघ्र वितरित की जा सकें और छात्र सही समय पर इसका उपयोग कर सकें, जिससे उनकी आर्थिक कठिनाइयां कम हों।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कई गंभीर टिप्पणियां दर्ज की हैं। रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा में बार-बार निर्देशों के बावजूद कई विभाग, बोर्ड, विश्वविद्यालय और निगम आरक्षण नीति के तहत अपने लक्ष्यों को हासिल करने में असफल रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण, अनुसूचित जाति व अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग नीतिगत भर्तियों और प्रोन्नति में कमी के लिए संतोषजनक जवाब देने में पूरी तरह नाकाम रहा है।
समिति ने 85वें संविधान संशोधन की सिफारिशों को लागू करने में जानबूझकर देरी का आरोप लगाया है। साथ ही, 2020-2025 के बीच छात्रवृत्ति वितरण में हुई देरी और अन्य कमियों को भी उजागर किया गया है। वर्ष 2023-24 में लगभग 31,000 अन्य पिछड़ा वर्ग और 8,000 अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति निधि उपलब्ध न होने के कारण लंबित रह गई।
महात्मा गांधी ग्रामीण बस्ती योजना की जांच में समिति ने पाया कि अनुसूचित जाति के परिवारों को समय पर योजना का लाभ नहीं मिल सका, क्योंकि आवेदनों का निपटारा नहीं किया गया। योजनाओं के कार्यान्वयन में सरकारी विभागों के बीच आपसी समन्वय में कई कमियां मौजूद हैं। दीन दयाल बस्ती उत्थान योजना के लिए 2024-25 में 30 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, लेकिन सरकारी विभागों द्वारा इसमें शून्य खर्च किया गया।
प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए 363 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान था, लेकिन वास्तविक खर्च केवल 2 करोड़ रुपये ही हुआ। सामाजिक न्याय को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने हेतु 75 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान था, लेकिन इसमें भी कोई खर्च नहीं हुआ। पिछले एक दशक में अनुसूचित जातियों के खिलाफ दमन की घटनाओं में भारी वृद्धि देखी गई है।
अनुसूचित जाति के अधिकतर आवेदकों को डॉ. बी.आर. अम्बेडकर आवास नवीनीकरण का लाभ मात्र कुछ ही परिवारों को समय पर मिल पाया है। स्वच्छ भारत मिशन और राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के लिए आवंटित 100 करोड़ रुपये में से कोई भी पैसा चालू वित्त वर्ष 2024-25 में सरकार खर्च करने में असफल रही है।
समिति ने अनुशंसा की है कि सरकार अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन करे, ताकि सभी योजनाओं को समयबद्ध रूप से लागू किया जा सके और उनका उचित लाभ मिल सके। समिति ने यह भी कहा है कि गृह विभाग और अभियोग विभाग अनुसूचित जातियों के प्रति सकारात्मक रुख अपनाकर अदालती कार्यवाही में तत्परता सुनिश्चित करें, ताकि इन वर्गों को न्याय मिलने में देरी न हो। इन वर्गों के कल्याण के लिए सरकार के विभागों को सही कार्ययोजना, समन्वय और पालन विधि को बेहतर करने की गंभीर आवश्यकता है। आरक्षण के तहत लंबित भर्ती प्रक्रियाओं की निगरानी कड़ी करने के लिए भी समिति ने जोर दिया है।
समिति की रिपोर्ट ने सरकार के दृष्टिकोण पर ही सवाल उठा दिए हैं कि किस प्रकार इन योजनाओं के प्रति गंभीरता की कमी स्पष्ट रूप से सरकार की सुशासन (गुड गवर्नेंस) की नीति में उजागर हो रही है। डबल इंजन की सरकार के विकास के दावों को समिति की रिपोर्ट कटघरे में खड़ा करती है।
(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं)