सीएम बनने पर हत्यारोपी थे योगी, अब चुनाव लड़ने के दौरान मर्डर ट्रायल के बगैर हो गए दोषमुक्त!

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जब आप आज यह रिपोर्ट पढ़ रहे होंगे तब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के छठें चरण में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के किस्मत का फैसला गोरखपुर सदर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम मशीनों में बंद हो रहा होगा। योगी यूपी के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो जब सीएम बने थे, तब उन पर राजनीतिक मुकदमों के साथ हत्या जैसे जघन्य अपराधों का मुकदमा लंबित था और जब योगी मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल बाद विधानसभा का पहली ब़ार चुनाव लड़ रहे हैं तो उनके चुनावी हलफनामे के अनुसार उन पर कोई मुकदमा नहीं है। मर्डर जैसे जघन्य मामले का ट्रायल कब हुआ यह पब्लिक डोमेन में नहीं है। इतना जरूर है कि सरकार बनते ही योगी और उनके डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ मुकदमा वापसी की प्रक्रिया यूपी सरकार ने शुरू की थी। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने गोरखपुर सदर से नामांकन का पर्चा भरा है। इस पर्चे के साथ दाख़िल किए गए हलफ़नामे के मुताबिक़, योगी आदित्यनाथ की मौजूदा सालाना आय क़रीब 13 लाख रुपये है, जबकि 2016-17 में यह 8.4 लाख रुपये थी। हलफ़नामे में योगी आदित्यनाथ ने यह घोषणा की है कि उनके खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला लंबित नहीं है और ना ही किसी मामले में उन्हें दोषसिद्ध किया गया है।

दरअसल चुनाव के लिए नामांकन करते वक़्त हर प्रत्याशी को अपनी आय, चल-अचल संपत्ति, और आपराधिक मामलों की जानकारी चुनाव आयोग को देना होता है। ये सूचनाएं सार्वजनिक तौर पर चुनाव आयोग के ऐप KYC-EC पर भी उपलब्ध होती है।

इसके विपरीत वर्ष 2014 के गोरखपुर लोक सभा चुनाव से जुड़े नामांकन के हलफ़नामे में योगी ने अपने ऊपर लगे सभी मामलों के बारे में जानकारी दी थी।

1999: उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री पर इस साल महाराजगंज जिले में आईपीसी की धारा 147 (दंगे के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से दंगे), 295 (किसी समुदाय के पूजा स्थल का अपमान करना), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण), 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 307 (हत्या का प्रयास) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए दंड) के मामले दर्ज हुए थे। पुलिस ने इन मामलों में क्लोजर रिपोर्ट तो साल 2000 में ही दाखिल कर दी थी, लेकिन स्थानीय अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

1999: यहां भी मामला महाराजगंज का ही है, जहां उन पर धारा 302 (मौत की सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसके अलावा 307 (हत्या का प्रयास) 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाते हुए शरारत) के तहत भी उन पर मामला दर्ज हुआ था। पुलिस ने 2000 में ही क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी थी, लेकिन फैसला आना बाकी है।

1999: इसी साल महाराजगंज में उन पर आईपीसी की धारा 147 (दंगे के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से दंगे), 149, 307, 336 (दूसरों के जीवन को खतरे में डालना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाते हुए शरारत) के तहत मामले दर्ज किए गए। एफिडेविट के मुताबिक पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन फैसला आना बाकी है।

2006: गोरखपुर में उन पर आईपीसी की धारा 147, 148, 133A (उपद्रव को हटाने के लिए सशर्त आदेश), 285 (आग या दहनशील पदार्थ के संबंध में लापरवाही), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण) के तहत मामला दर्ज किया गया था। यहां भी पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन फैसला अभी नहीं आया।

2007: गोरखपुर के एक अन्य मामले में वह जमानत पर रिहा हैं। यहां उन्हें धारा 147, 133A, 295, 297, 435 (100 रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाने के इरादे से आग या विस्फोटक द्रव्य द्वारा शरारत) और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

हलफ़नामे के मुताबिक़ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास एक रिवाल्वर है जिसकी कीमत एक लाख रुपये है। मुख्यमंत्री के पास 80 हज़ार रुपये की एक राइफल भी है ।

गौरतलब है कि दिसम्बर 2017 में यह खबर छपी थी कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित वरिष्ठ भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज राजनीतिक मुकदमों को खत्म कराने की कवायद शुरू कर दी है। ये मुकदमे उनके 20 हजार राजनीतिक मुकदमों (धारा 107 व 109 सीआरपीसी के तहत दर्ज) से अलग हैं, जिन्हें शासन ने गत दिनों कोर्ट से खत्म कराने का ऐलान किया था।

 न्याय विभाग के अनु सचिव अरुण कुमार राय की ओर से गोरखपुर के जिलाधिकारी को भेजे गए पत्र में कहा था कि शासन ने गोरखपुर के थाना पीपीगंज में 1995 में धारा 188 के तहत योगी आदित्यनाथ, राकेश सिंह पहलवान, कुंवर नरेंद्र सिंह, समीर कुमार सिंह, शिवप्रताप शुक्ला विश्वकर्मा द्विवेदी, शीतल पांडेय (वर्तमान में विधायक) सहित अन्य के खिलाफ दर्ज मुकदमे को वापस लिए जाने के लिए लोक अभियोजक को कोर्ट में प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करने की लिखित अनुमति देने का निर्णय लिया है।

20 दिसंबर, 17 को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि राज्यपाल ने इस वाद में अभियोजन को वापस लेने के लिए कोर्ट में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने की अनुमति प्रदान की है। गौरतलब है कि 1995 में योगी आदित्यनाथ पीपीगंज कस्बे में धरना प्रदर्शन करने गए थे। उस समय कस्बे में धारा 144(निषेधाज्ञा) लागू थी।

इसके अलावा अन्य मामलों को कब वापस लिया गया या मर्डर का ट्रायल हुआ या वापस लिया गया यह तथ्य पब्लिक डोमेन में नहीं है न ही इसका विवरण योगी के वर्तमान हलफनामें में ही किया गया है।

(इलाहाबाद से वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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