विध्वंसक दौर के अंत की शुरुआत
हया यकलख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता! परेशान न हों, आप को ग़ज़ल सुनाने का मन नहीं है। सिर्फ़ यह कहना है कि कुछ चीज़ें [more…]
हया यकलख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता! परेशान न हों, आप को ग़ज़ल सुनाने का मन नहीं है। सिर्फ़ यह कहना है कि कुछ चीज़ें [more…]