Friday, March 29, 2024

मुकेश कुमार सिंह

कर्ज़ों वाले पैकेज़ से नहीं बल्कि सरकारी ख़र्चों से ही बचेगी अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था अलग आकारों वाले चार पहियों की सवारी है। यही पहिये ‘ग्रोथ-इंज़न’ भी कहलाते हैं। इन पहियों पर होने वाला खर्च ही GDP (सकल घरेलू उत्पाद) का ईंधन है। खर्च तीन तरह के होते हैं – सरकारी, कारोबारी और...

21 लाख करोड़ के कोरोना पैकेज़ में सीधी राहत के लिए निकले सिर्फ़ 2 लाख करोड़!

12 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस 20 लाख करोड़ रुपये के आत्म-निर्भर पैकेज़ का ऐलान किया था, वो अब बढ़कर क़रीब 21 लाख करोड़ रुपये का हो चुका है। रहा सवाल कि सरकार इतनी रक़म लाएगी कहाँ...

मोदी सरकार का कोरोना पैकेज़ बना पहेली, जनता के लिए ‘बूझो तो जानें’ का खेल शुरू

‘यशस्वी’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन में ‘कर्मठ’ वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने पाँच दिन तक कोरोना राहत पैकेज़ बाँटने का अखंड यज्ञ किया। ताकि 130 करोड़ भारतवासियों को ‘आत्म-निर्भर’ बनने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये...

20 लाख करोड़ का पैकेज नहीं, बजट भाषण दे रही हैं वित्तमंत्री

कोरोना संकट से जूझते देश में चार दिनों से ‘पैकेज़’ की आड़ में सिर्फ़ भाषणों की बरसात और जुगलबन्दी हो रही है। वर्ना, क्या माननीय प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री ये नहीं जानते कि ‘पैकेज़’ और ‘रिफ़ॉर्म’ में फ़र्क़ होता है?...

वित्तमंत्री ने किसानों-मज़दूरों के लिए भी खोला पिटारा, लेकिन खोदा पहाड़ निकली चुहिया

कोरोना संकट से चरमराई अर्थव्यवस्था में जान फूँकने के लिए वित्त मंत्री ने लगातार दूसरे दिन अपना भानुमति का पिटारा खोला, लेकिन अभी तक ये हिसाब साफ़ नहीं है कि 20 लाख करोड़ रुपये में कितने को लेकर ऐलान...

ग़रीबों और मज़दूरों ने प्रधानमंत्री के ‘मन की’ तो सुनी, लेकिन उनकी ‘बात’ कहाँ थी!

प्रधानमंत्री ने 12 मई के अपने राष्ट्रीय के सन्देश में क्या-क्या कहा, ये तो अब तक आप जान ही चुके होंगे। मेरी बात उससे आगे की है। पहली तो यही कि 34 मिनट के भाषण में 2,000 से ज़्यादा...

मज़दूरों के जख़्मों पर मरहम लगाना तो दूर, सरकारें नमक रगड़ने पर आमादा हैं

ऐसे वक़्त में जब कोरोना संक्रमण से पैदा हुई चुनौतियाँ बेक़ाबू ही बनी हुई हैं, तभी हमारी राज्य सरकारों में एक नया संक्रमण बेहद तेज़ी से अपने पैर पसार रहा है। बीते पाँच दिनों में छह राज्यों ने 40...

ज़्यादा से ज़्यादा टेस्टिंग में जुटे बीएमसी कमिश्नर ने पाया तबादले का तोहफ़ा

नौकरशाही को दुनिया भर में समाज के सबसे सुरक्षित तबक़े का स्थान हासिल है। इसके बावजूद जब कभी सियासी हुक़्मरानों की मिट्टी पलीद होती है, उन पर नाकामियों का ठीकरा फूटने की नौबत आती है तो उनकी खाल बचाने...

शराब जिसे भी शर्मनाक लगे, सरकारों के लिए तो संजीवनी और कमाऊ पूत है

लॉकडाउन में ढील मिलते ही राज्य सरकारों ने शराब की दुकानों को क्या खोला वहाँ से एक से एक एक तस्वीरें आने लगीं। तमाम तरह की बातें सुर्ख़ियाँ बनीं। सोशल मीडिया को शानदार मसाला मिला। शराब के प्रति जनता...

असंगठित क्षेत्र और दिहाड़ी मज़दूरों की परवाह से ही पटरी पर लौटेगी अर्थव्यवस्था

भारत के 90 फ़ीसदी लोगों का गुज़र-बसर असंगठित क्षेत्र और दिहाड़ी मज़दूरी के ज़रिये ही होती है। अर्थव्यवस्था में इस तबके का वही मतलब है जो शरीर की कोशिकाओं का है। देश के 90 फ़ीसदी लोगों का भरण-पोषण यही...

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ग्राउंड रिपोर्ट: चुवांड़ी खोदकर पानी पीने को मजबूर पलामू की परहिया जनजाति

झारखंड के पलामू जिला अंतर्गत रामगढ़ प्रखण्ड का एक गांव है मरगड़ा। आदिम जनजाति परहिया के 60 परिवारों वाला...