Friday, April 19, 2024

मुकेश कुमार सिंह

बीजेपी ने ख़ुद बताया कि ख़तरे में हैं मोदी

चुनाव में तो सभी दल ये दावा करते ही हैं कि उनकी लहर चल रही है और विरोधी कहीं नहीं टिक रहे। मतगणना से ही ऐसे दावों की पोल खुलती है। तब पता चलता है कि किसके दावे हवा-हवाई...

बजट 2022: क्रिप्टो (Crypto) के सामने घुटने टेकने को क्यों मज़बूर हुई सरकार?

तमाम छटपटाहट के बावजूद, आख़िरकार, भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को भी क्रिप्टो करेंसी (Crypto currency) के आगे नतमस्तक होना ही पड़ा। इतिहास गवाह है कि टेक्नोलॉज़ी के आगे बड़े से बड़े शूरमा या सल्तनत को भी...

‘फेंकने’ की लिमिट नहीं, बजट में ये प्रथा न सिर्फ़ क़ायम रही बल्कि फली-फूली भी

बजट-2022 में पूँजीगत खर्च या Capital Expenditure (Capex) में 35.4% का इज़ाफ़ा करने की बात हुई है। इससे Capex को 5.54 लाख करोड़ से बढ़ाकर 7.5 लाख करोड़ रुपये पर पहुँचाया जाएगा। लेकिन ये होगा कैसे? पूँजीगत निवेश आएगा...

नया कृषि क़ानून लागू होता तो सरकार अभी दालों पर स्टॉक की सीमा नहीं लगा पाती

महँगाई से जनता हाहाकार कर रही है। पेट्रोल, डीज़ल, रसोई गैस, सरसों का तेल, दालें और सब्ज़ियों के दाम में लगी आग कहाँ जाकर और कब थमेगी, इसके बारे में शायद प्रधानमंत्री के सिवाय, कोई भी कुछ नहीं जानता।...

भगवा ख़ानदान के लिए संघ ही आत्मा, वही परमात्मा

‘छल-प्रपंच’ हमेशा से राजनीति का अभिन्न अंग रहा है। ‘साम-दाम-भेद-दंड’ इसी के औज़ार हैं। दुनिया के किसी भी दौर की और किसी भी समाज की राजनीति कभी इससे अछूती नहीं रही। ‘छल-प्रपंच’ की ‘इंटेंसिटी’ यानी तीव्रता में ज़रूर फ़र्क़...

मी लॉर्ड! चींटी मारने के लिए तोप चलाना कैसे सही हो सकता है?

दिल्ली हाईकोर्ट को लगा कि ‘राष्ट्रीय महत्व’ वाले ‘सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’ को रोकना सही नहीं है और इसे अदालती दख़लन्दाज़ी के ज़रिये रोकने की माँग न सिर्फ़ अनुचित है, बल्कि ‘जनहित की दुहाई’ देने वाली धारणा का भी ‘बेज़ा...

हिन्दू नववर्ष पर विशेष (अन्तिम भाग):संविधान में भारतीय तिथि क्यों नहीं लिखी गयी?

जैसे पृथ्वी की श्वेत-श्याम कला को दिन और रात का नाम मिला, वैसे ही चन्द्रमा के इसी स्वरूप को शुक्ल और कृष्ण पक्ष कहा गया। शक सम्वत की तरह भारत में बेहद प्रचलित विक्रम सम्वत में भी महीने तो...

चैत्र को आखिर क्यों माना जाता है सम्वत का पहला महीना?

क्या देश की एकता और समरसता से कैलेंडर या पंचांग का कोई नाता हो सकता है? आज़ादी के बाद, 1952 में जवाहर लाल नेहरू ने पाया कि काल-गणना के लिए भारत में कम से कम 30 पंचांग प्रचलित हैं,...

असमिया लोगों को बीजेपी ग़रीब और पिछड़ों से भी ज्यादा निपट मूर्ख मानती है!

‘गुजरात मॉडल’ का नगाड़ा बजाने के बाद संघ-बीजेपी को ‘डबल इंजन’ का झुनझुना बजाने की जैसी लत लग गयी। इसका ताज़ा और शानदार संस्करण इस बार असम और बंगाल के चुनावों में पेश-ए-नज़र है। वैसे अब देश के ज़्यादातर...

क्या बाड़ ही खाने लगा है बीजेपी का खेत? विशेष संदर्भ उत्तराखंड

कुर्सी पर रहते हुए अपनी आभा गँवाने वाले भगवा नेताओं की सूची में त्रिवेन्द्र सिंह रावत सबसे नया नाम है। संघ-बीजेपी भी उनके चार साल के कार्यकाल से बेहद नाख़ुश थे। उनकी नज़र में भी इनका रिपोर्ट कार्ड फिसड्डी...

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मोदी की गारंटी: भाजपा की जगह मोदी, लोकतंत्र की जगह तानाशाही

मतदान की शुरुआत होने में जब महज पांच दिन बचे थे तब कहीं जाकर मौजूदा सत्ता पार्टी भाजपा ने...