हम, खासकर उत्तर भारत के लोग ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ (17 सितंबर 1879 - 24 दिसंबर 1973) के बारे में नहीं जानते हैं या बहुत कम जानते हैं। वे भारत की प्रगतिशील बहुजन-परंपरा के ऐसे चिन्तक, लेखक और राजनेता...
भारतीय समाज में बेटे के जन्म पर उछलना और बेटी के जन्म पर सिसकना आम बात रही है। जो बेटा और बेटी के बीच फर्क की गहरी खाई बनाता है। लेकिन बेटा और बेटी के अलावा हमारे समाज में...
कुछ दिनों पहले जब पार्ले, अमूल, मारुति सुजुकी और फ्यूचर ग्रुप के चार काॅरपोरेट अधिशासियों ने घृणा और वैमनस्य का जहर उगलने वाले टेलिविजन चैनलों के साथ अपने-अपने विज्ञापन-शर्तों की समीक्षा करने का ऐलान किया, तब हमें काफी सुकून...
‘‘हरे-भरे हैं खेत
मगर खलिहान नहीं;
बहुत महतो का मान
मगर दो मुट्ठी धान नहीं।
भरा है दिल पर नीयत नहीं;
हरी है कोख-तबीयत नहीं।
भरी हैं आंखें पेट नहीं;
भरे हैं बनिए के कागज
टेंट नहीं।
हरा-भरा है देश
रूंधा मिट्टी में ताप
पोसता है विष-वट का मूल
फलेंगे जिसमें...
कहते हैं कि इतिहास एक ‘ट्रेचरस टेरेन’ है जहां बतायी जाने वाली चीजें कम होती हैं और छिपाई गई या तोड़-मरोड़कर बतायी जाने वाली चीजें ज्यादा। कुछ विद्वान इतिहास को ‘स्टेग्नोग्राफी’ के रूप में भी देखते हैं यानी एक...
जानबूझकर ऐतिहासिक तथ्यों और स्मृतियों का लोप करने वाले और फायदे-नुकसान के लिहाज से इन या उन नेताओं व कारोबारियों पर दर्प और महानता का तिलक लगाने वाले मीडिया घरानों के लिए दिवंगत प्रणब मुखर्जी भले ही अमरत्व को...