बहराइच। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के महराजगंज कस्बे में सन्नाटा पसरा हुआ है। यह वह इलाका है जिसे गंगा-जमुनी तहजीब और भाई-चारे की वजह से जाना जाता रहा है। महराजगंज में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान 13 अक्टूबर 2024 को एक युवक की हत्या कर दी गई थी।
वारदात के अगले दिन 14 अक्टूबर को जमकर उपद्रव हुआ और सड़कों के किनारे खड़ी तमाम गाड़ियों में आग लगा दी गई और बाइक बेचने वाली हीरो के शोरूम और एक नर्सिंग होम में आग लगा दी गई। दोनों प्रतिष्ठान मुसलमानों के थे।

सांप्रदायिक हिंसा के बाद महराजगंज कस्बे में कई घरों में या तो ताला लगा हुआ है या फिर लोग ऐसे ही घर छोड़कर भाग गए हैं। महराजगंज कस्बा पूरी तरह से पुलिस छावनी में तब्दील है। पुलिस का खौफ ऐसा है कि घटना के बाबत कोई कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है।
उपद्रवियों ने जिन गाड़ियों में आग लगाई थी, उनके मलबे साफ कर दिए गए हैं, लेकिन हीरो कंपनी के जिस शोरूम में उपद्रवियों ने आग लगाई थी, उसमें जली करीब 35 बाइकें खाक हो गई हैं। उनका ढांचा बचा है। शोरूम पर ताला लगा दिया गया है।
महराजगंज कस्बे में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान 13 अक्टूबर को हिंदुओं और मुसलमानों के बीच झड़प हुई और राम गोपाल मिश्रा नामक के युवक की गोली मार कर हत्या कर दी गई।

इस घटना के बाद कई मुसलमानों के घरों और दुकानों में आग लगा दी गई। इस बीच राम गोपाल मिश्रा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और हिंसा को लेकर फैलाई जा रही अफ़वाह को लेकर बहराइच पुलिस ने कड़ी चेतावनी दी है। पुलिस अधीक्षक वृंदा शुक्ला कहती हैं,
”सोशल मीडिया पर भ्रामक दावे किए जा रहे और झूठे तथ्य प्रसारित किए जा रहे हैं। जिन लोगों ने इस घटना के बाबत झूठी बातें सोशल मीडिया पर फैलाई है, उनकी जांच की जा रही है और पुलिस ऐसे सभी लोगों के खिलाफ विधिक कार्रवाई करेगी।”
पुलिस अधीक्षक वृंदा यह भी कहती हैं, ”युवक राम गोपाल मिश्रा की मौत गोली लगने से हुई है और इससे इतर जितने भी दावे किए जा रहे हैं वो गलत और मनगढ़ंत हैं। यह बात पूरी तरह से झूठी है कि युवक के नाखून उखाड़े गए थे। इस घटना से इतर अन्य जितने भी दावे किए जा रहे हैं वो पूरी तरह गलत और मनगढ़ंत हैं।”
बहराइच के जिस इलाक़े में हिंसा हुई है, वो क़स्बा महसी तहसील के अंतर्गत आता है और जिला मुख्यालय से क़रीब 26 किमी दूर है। घटनाक्रम के मुताबिक, समूचा विवाद दुर्गा विसर्जन के दौरान डीजे पर भड़काऊ गाना बजाने को लेकर शुरू हुआ, जिस पर मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति जताई थी।

पुलिस के मुताबिक, घटना के दिन विवाद तब बढ़ा, जब हिन्दू पक्ष डीजे बंद करने के लिए तैयार नहीं हुआ।
मुस्लिम पक्ष के लोग काफी नाराज़ हो गए और एक युवक ने डीजे से पेन ड्राइव निकाल दिया, जिसके बाद प्रतिमा विसर्जन में शामिल भीड़ ने हंगामा करना शुरू कर दिया। यहीं से विवाद शुरू हुआ और बढ़ता चला गया। इस घटना के बाद स्थिति बेकाबू हो गई।
दोनों पक्षों की तरफ से पथराव शुरू हो गया। सबसे खास बात यह रही कि घटना पर मौजूद पुलिस के जवान तमाशबीन बने रहे। किसी ने उपद्रवियों को न तो समझाने की कोशिश की और न ही तत्काल कोई सख्त कदम उठाया। पुलिस पर यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि सांप्रदायिक हिंसा के बाद मौके पर मौजूद एएसपी पवित्र मोहन त्रिपाठी लापता हो गए थे।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़, डीजे पर आपत्ति जवाने वाले युवक सरफराज अहमद जब पेन ड्राइव निकाली तभी दुर्गा प्रतिमा विसर्जन जुलूस में शामिल युवक राम गोपाल मिश्र उसके घर की छत पर चढ़ गया और बारावफात के समय लगाए गए झंडे को उतारकर वहां भगवा झंडा फहरा दिया।

इस घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसमें युवक राम गोपाल भगवा झंडा फहराते देखा जा सकता है। इस दौरान घर के अंदर से गोली चली, जिसमें राम गोपाल की मौत हो गई।
गोली चलाने के आरोपित सरफ़राज़ पुलिस ने एनकाउंटर के बाद गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने अभियुक्त के पैरों में गोली मारी है और उसका पिता अब्दुल हामिद फ़रार है।
हरदी के नवनियुक्त थानाध्यक्ष प्रभारी इंस्पेक्टर कमल किशोर चतुर्वेदी ने जनचौक से कहा, ”इस घटना के बाद भारतीय न्याय संहिता की धारा 191(2)191(3)190 और 103(2) के तहत महाराजगंज निवासी अब्दुल हमीद, सरफ़राज़ फ़हीम, साहिर ख़ान और ननकऊ वमारूप अली सहित अन्य अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया है।

हिंसा भड़काने के मामले में करीब 85 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इन सभी के खिलाफ सीसीटीवी कैमरे में उपद्रव करने के सबूतों के आधार पर पकड़ा गया है। पुलिस अभियुक्तों की तलाश कर रही है। उपद्रवियों की गिरफ्तारी के लिए उनके संभावित ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है।”
यह घटना बहराइच ज़िले के महसी विधानसभा क्षेत्र की है, जहां के स्थानीय बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह का कहना है कि भड़काऊ गाना नहीं बजाया गया था, बल्कि वह गाना पाकिस्तान के ख़िलाफ़ था।
महसी क्षेत्र के बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह ने सांप्रदायिक हिंसा के लिए पुलिस और एलआईयू को कसूरवार ठहराया है। वह कहते हैं कि पुलिस नींद में थी। इसलिए हिंसा भड़क गई। पुलिस व एलआईयू पूरी तरह फेल है। महराजगंज में 40 साल से उसी रास्ते से मूर्ति विसर्जन जुलूस निकलता है।
हर बार जगह-जगह पीएसी तैनात रहती थी और चाक चौबंद व्यवस्था रहती थी। इस बार इसके पहले गणेश पूजा के दौरान भी गाने को लेकर उन लोगों ने आपत्ति जताई थी। लेकिन यह विषय न तो पूजन समितियों ने बताया और न ही पुलिस ने।
बीजेपी की भूमिका पर सवाल
महाराजगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मामले में नया मोड़ तब आ गया जब बीजेपी के महसी विधानसभा क्षेत्र के विधायक सुरेश्वर सिंह ने खुद भाजपा नगर अध्यक्ष सहित सात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। इन नामजद आरोपियों में नगर अध्यक्ष के साथ एक परिषदीय विद्यालय के शिक्षक भी शामिल हैं।

विधायक सुरेश्वर सिंह की ओर से दर्ज कराई गई तहरीर पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं-347/24, 191(2), 191(3), 3(5), 109(1), 125, 324(2), 351(3), और 352 के तहत मामला पंजीकृत किया है। विधायक सिंह ने अपनी तहरीर में लिखा है कि 13 अक्तूबर की रात महाराजगंज गोलीकांड के बाद मृतक रामगोपाल के शव को अस्पताल के सामने रखकर प्रदर्शन कर रही भीड़ को समझाने के दौरान उनके काफिले पर पत्थरबाजी और फायरिंग की गई।
विधायक सुरेश्वर सिंह के मुताबिक, वह अपने अंगरक्षकों और सहयोगियों के साथ प्रदर्शन स्थल पहुंचे थे। वहां से डीएम से मुलाकात करने के बाद वे सीएमओ कार्यालय गए, जहां सिटी मजिस्ट्रेट भी मौजूद थे। इसके बाद सभी अधिकारी उनके साथ मृतक के परिजनों और ग्रामीणों से बातचीत करने पहुंचे और शव को मोर्चरी ले जाने लगे।
इसी दौरान कुछ उपद्रवी, जिनमें भाजपा नगर अध्यक्ष अर्पित श्रीवास्तव, अनुज सिंह रैकवार, शुभम मिश्रा, कुशमेंद्र चौधरी, मनीष चंद्र शुक्ल, पुंडरीक पांडेय (अध्यापक), और सुंधाशु सिंह राणा शामिल हैं, गाली-गलौज करने लगे और नारेबाजी शुरू कर दी।
विधायक के मुताबिक, शव को मोर्चरी में रखवाने के बाद जब वे और डीएम अपनी गाड़ी में बैठने लगे और वाहन को मोड़ने लगे, तब उपद्रवियों ने उनकी कार को रोकने की कोशिश की। इसी दौरान भीड़ से पत्थरबाजी शुरू हुई और फायरिंग भी की गई, जिससे उनकी कार का शीशा टूट गया।
इस घटना में विधायक के पुत्र अखंड प्रताप सिंह बाल-बाल बचे। उन्होंने दावा किया कि घटना के सीसीटीवी फुटेज में ये सब स्पष्ट रूप से दर्ज है। नगर कोतवाली पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ दंगा करने, घातक हथियार से हमला करने, हत्या का प्रयास, व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने, मारपीट समेत कई गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया है।
बाद में विधायक सुरेश्वर सिंह ने हाल में सफाई देते हुए कहा कि घटना के समय महाराजगंज में भड़काऊ गाना नहीं बजाया गया था, बल्कि वह गाना पाकिस्तान के ख़िलाफ़ था। सुरेश्वर सिंह के मुताबिक, जो लोग सांप्रदायिक हिंसा के लिए ज़िम्मेदार हैं, उनको बख़्शा नहीं जाएगा, हालांकि किसी निर्दोष को परेशान नहीं किया जाएगा। कांग्रेस के नेता राजेश तिवारी का कहना है कि डीजे पर सामान्य संगीत बजाया जा रहा था न कि कोई भड़काऊ गाना बजाया जा रहा था। विवाद की जड़ में डीजे नहीं, बल्कि वह झंडा था, जिसे हटाकर भगवा झंडा लहराया गया था।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का सच?
महसी थाने के रोजनामचे में दर्ज मुकदमे के मुताबिक, युवक राम गोपाल मिश्रा जब अब्दुल हामिद के घर की सीढ़ियों से उतर रहा था, तभी अब्दुल हामिद ने गोली चला दी, जिससे उसकी मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक़ गोली नज़दीक से चलाई गई थी।
पोस्टमार्टम के बारे में मीडिया में आ रही ख़बरों का बहराइच पुलिस ने खंडन किया है। पुलिस ने बयान जारी कर कहा है, “सोशल मीडिया में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के उद्देश्य से भ्रामक सूचना जैसे मृतक को करंट लगाना, तलवार से मारना एवं नाखून उखाड़ना आदि बातें फैलाई जा रही हैं जिसमें कोई सच्चाई नहीं है। पोस्टमार्टम में मृत्यु का कारण गोली लगने से होना पाया गया है।”
बहराइच पुलिस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जारी एक बयान में कहा, “13 अक्तूबर को घटित घटना में एक हिंदू व्यक्ति की हत्या के संबंध में सोशल मीडिया में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के उद्देश्य से भ्रामक सूचना जैसे मृतक को करंट लगाना, तलवार से मारना एवं नाखून उखाड़ना आदि बातें फैलाई जा रही हैं जिसमें कोई सच्चाई नहीं है।”
पुलिस ने आगे लिखा है, “पोस्टमार्टम में मृत्यु का कारण गोली लगने से होना पाया गया है। इस घटना में एक व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य किसी की मृत्यु नहीं हुई है। अफ़वाहों पर ध्यान न दें व भ्रामक सूचनाओं को प्रसारित न करें।” बहराइच पुलिस ने कहा है कि ‘सांप्रदायिक घटनाओं से जुड़े हुए भ्रामक और झूठे तथ्य कुछ सोशल मीडिया अकाउंट्स पर गलत तरीके से प्रसारित किए जा रहे हैं।’ पुलिस ने कहा है कि ऐसे सभी अकाउंट्स के विरुद्ध ‘विधिक कार्यवाही’ की जाएगी।
महाराजगंज की सांप्रदायिक हिंसा में बुरी तरह घायल सुधाकर तिवारी कहते हैं, ”आसपास के घरों से और मस्जिद से पथराव किया जा रहा था, जिसकी वजह से उनके सिर में चोट लगी है।” प्रत्यक्षदर्शी प्रदीप मिश्रा का कहना है कि पहले गाना बजाने को लेकर विवाद हुआ। उसके बाद पथराव होने लगा, जिसकी वजह से भगदड़ मच गई। इस घटना के बाद पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया, जिसकी वजह से सब लोग भागने लगे।
हिंदू पक्ष की तरफ़ से आरोप लगाया जा रहा है कि पथराव से मूर्ति खंडित हो गई थी। प्रदीप मिश्रा का कहना है कि महाराजगंज बाज़ार में पिछले साल भी हल्का बवाल हुआ था, लेकिन पिछली बार पुलिस बहुत थी, लेकिन इस बार पुलिस कर्मचारियों की संख्या बहुत कम थी।
महसी थाने पर तैनात एक मुंशी ने जनचौक से कहा कि थाना प्रभारी ने संवेदनशीलता का हवाला देते हुए अतिरिक्त फोर्स भेजने के लिए पुलिस उच्चाधिकारियों को पत्र भेजा था, लेकिन अफसरों ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। अतिरिक्त फोर्स भेजी ही नहीं गई।
दोबारा कैसे भड़की हिंसा?
बहराइच के महाराजगंज कस्बे में सांप्रदायिक हिंसा के ऐसे तमाम निशान तहां-तहां बिखरे पड़े हैं। 13 अक्टूबर की सांप्रदायिक हिंसा के बाद प्रशासन ने तत्काल मूर्ति विसर्जन करा दिया, जिसके बाद ये माना जा रहा था कि हालात सामान्य हो गए हैं। लेकिन अगले दिन 14 अक्टूबर 2024 को हालात दोबारा बिगड़ गये।
दरअसल, पोस्टमार्टम के बाद सोमवार को तड़के क़रीब तीन बजे राम गोपाल मिश्रा का शव उनके गांव आया, जिसके बाद गांव के आसपास लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। इसी बीच कुछ लोग, राम गोपाल के शव को लेकर महसी तहसील आए और धरना देने लगे। बाद में इलाक़े के बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह ने लोगों को समझा बुझाकर शांत किया और मृतक के शव का अंतिम संस्कार कराया।

मृतक राम गोपाल मिश्र के शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाए जाने के बाद भीड़ एकाएक उग्र हो गई और सड़क पर उतर आई। भीड़ ने मुसलमानों के घरों को निशाना बनाया। कई घर जला दिए गए। मुसलमानों की दुकानों को भी निशाना बनाया गया।
महाराजगंज के आसपास के कुछ इलाक़ों में भी हिंसा फैल गई। 13 और 14 अक्टूबर 2024 को हुई हिंसा में घटनास्थल के पास बनी मस्जिद को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया गया। हालांकि मस्जिद और उसके पड़ोस में चलने वाला मदरसा दोनों ही बंद हैं।
महराजगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मामले में एएसपी पवित्र मोहन त्रिपाठी के अलावा डिप्टी एसपी रुपेंद्र गौड़, इंस्पेक्टर सुरेश कुमार वर्मा, महसी के चौकी इंचार्ज शिवकुमार समेत कई पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया गया है।
सांप्रदायिक हिंसा के समय लापरवाही बरतने के आरोप में महसी के तहसीलदार विष्णुकांत द्विवेदी को हटाकर जिला मुख्यालय से संबद्ध कर दिया गया है। तहसील का चार्ज नायब तहसीलदार फिलहाल सौरभ सिंह को सौंपा गया है।
महाराजगंज में प्रतिमा विसर्जन के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर बीजेपी से जुड़े व्यापारी नेता दीनानाथ गुप्त ने गंभीर बयान दिया है। उन्होंने स्वीकार किया कि 13 अक्टूबर की शाम प्रतिमा विसर्जन जुलूस के दौरान तनाव और हिंसा की शुरुआत जुलूस में शामिल कुछ लोगों द्वारा की गई थी। गुप्त ने कहा, “संभव है कि कुछ लोग नशे में रहे हों, जिससे स्थिति बिगड़ी हो।”
दीनानाथ गुप्त के अनुसार, हर वर्ष इस समय पीएसी (प्रांतीय सशस्त्र बल) की तैनाती की जाती थी, लेकिन इस वर्ष सुरक्षा बल की तैनाती में लापरवाही की गई, जिससे हालात काबू से बाहर हो गए। उन्होंने यह भी बताया कि जुलूस के दौरान मक्का-मदीना पर गीत बजाए जा रहे थे, जिस पर मुस्लिम समुदाय ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा कि विसर्जन जुलूस में ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था, परंतु उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में कोई पूर्व नियोजित योजना नहीं थी।

दीनानाथ गुप्त ने सीधे तौर पर प्रशासन को इस हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया। उनका मानना है कि अगर पर्याप्त सुरक्षा बल तैनात होता, तो शायद यह घटना नहीं होती। उन्होंने कहा, “हम पुलिस प्रशासन को इस घटना के लिए जिम्मेदार मानते हैं। अगर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए होते, तो स्थिति को काबू में रखा जा सकता था।”
“इस सांप्रदायिक हिंसा के चलते हिंदू और मुसलमान समुदायों के बीच एक मनमुटाव पैदा हो गया है, जो समय के साथ ही भर पाएगा। उन्होंने दोनों पक्षों से इस स्थिति पर सोच-समझकर विचार करने की अपील की, ताकि सांप्रदायिक तनाव को कम किया जा सके।” गुप्त का यह बयान स्थानीय प्रशासन और दोनों समुदायों के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है कि ऐसे संवेदनशील अवसरों पर संयम और सावधानी का पालन किया जाना अत्यंत आवश्यक है
भयभीत है मुस्लिम समुदाय
महाराजगंज कस्बे में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद भी स्थिति सामान्य नहीं हुई है। महाराजगंज के आसपास के गांवों रहने वाले लोग भी पुलिस से भयाक्रांत हैं। आरोप है कि आधी रात के बाद पुलिस छापेमारी कर रही है। जिस कस्बे में हर समय भारी भीड़ रहा करती थी, वहां इस समय सन्नाटे जैसे हालात हैं।
बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग लापता हो गए हैं। मोहम्मद कलीम नामक एक शख्स ने दबी जुबान से कहा, ”उग्र भीड़ ने उनके घर में तोड़फोड़ की और उनकी दो बाइकें जला दी। जब भीड़ आई तो वह भाग गए और जान बचाने के लिए छिप गए। पहले बच्चों को दीवार पार कराया फिर परिवार के दूसरे लोगों को बाहर निकाला। हिंसक भीड़ कीमती सामान और रुपये-पैसे भी लूट रही थी।”
महाराजगंज कस्बे की सबीना बानो फोटो नहीं छापने की शर्त पर वो मुश्किल से बात करने के लिए तैयार हुईं। उनका कहना था कि उग्र भीड़ और मारकाट देखकर हमारा परिवार धान और गन्ने के खेतों की ओर भागा। हम सभी खेतों में छिप गए। बाद में पुलिस आई, तब हमारी जान में जान आई।
पुलिस के साथ हम महसी तहसील पहुंचे। बाद में पुलिस ने ही हमें घर तक पहुंचाया। सांप्रदायिक हिंसा में हुई तोड़फोड़ और लूटपाट के चलते हमें भारी नुकसान हुआ है। दंगाइयों ने मुस्लिम समुदाय के तमाम लोगों के घरों पर काफी तोड़फोड़ की है।

महराजगंज कस्बे से बाहरी इलाके में नेशनल आटो सेल्स की दुकान में सर्वाधिक तोड़फोड़ और आगजनी की गई। यहां हीरो का शोरूम हुआ करता था, जिसमें करीब 35 गाड़ियां थी, जिनमें छह स्कूटर और तीन एक्सटीम बाइकें थीं।
नेशनल आटो सेल्स का शोरूम जिस स्थान पर था वह बिल्डिंग सईद अहमद की है। अभिलेखों में शो-रूम अनूप कुमार शुक्ला के नाम है, लेकिन उसका संचालन कर रहे थे मुस्लिम समुदाय के भोनू सोनार।
अभिलेखों के मुताबिक, हीरो की एजेंसी अनूप कुमार शुक्ला के नाम है। जनचौक से बातचीत में अनूप ने कहा, ”महाराजगंज कस्बे में भड़की हिंसा के बाद उपद्रवी शोरूम में घुसे और तोड़फोड़ के बाद बाइकों में आग लगा दी। घटना के समय हम गुड़गांव स्थित मेदांता हास्पिटल में अपना हेल्थ चेकअप कराने गए थे।
14 अक्टूबर को हमारे पास दोपहर में फोन आया कि शोरूम में आग जल रहा है। हमने तत्काल फायर ब्रिगेड को फोन किया तो पता चला कि हरियाणा के दमकल विभाग के लोग बोल रहे हैं। हम तत्काल गुड़गांव से भागे और महाराजगंज पहुंचे तब तक सब कुछ खत्म हो गया था।”
अनूप कुमार शुक्ला बीजेपी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। वह कहते हैं, ”महसी थाना पुलिस नींद में थी और दंगाइयों को लूटमार करने की जैसे छूट मिल गई थी। यह कैसे संभव है कि एक दिन पहले हुए सांप्रदायिक हिंसा के बाद कस्बे में पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती न की जाए।
जितनी पुलिस फोर्स इस समय मौजूद है, प्रतिमा विसर्जन के अगले दिन रही होती तो दंगा कतई नहीं भड़कता। हमारे शोरूम के बगल में स्थित एक चिकित्सक के क्लिनिक में भी आग लगाई गई। हमें लगता है कि महराजगंज में सब कुछ पहले से ही तय था। लूटमार और तोड़फोड़ की पटकथा शायद पहले से ही तैयार रही होगी, अन्यथा यह कैसे संभव है कि हिंसा के बाद कस्बे को पुलिस अफसरों ने भगवान भरोसे छोड़ दिया? ”
क्या प्रशासन से हुई चूक?
14 अक्टूबर को हिंसक भीड़ को काबू करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सूबे के गृह सचिव और एडीजी लॉ एंड आर्डर अमिताभ यश को बहराइच भेजा। अमिताभ ने हालात को सुधारने की कोशिश कम, दिखावा ज्यादा किया। वो नंगी रिवाल्वर लेकर दौड़ने और फायरिंग करने लगे।
अमिताभ यश की वो तस्वीरें सोशल मीडिया वायरल पर इस समय भी जमकर वायरल की जा रही हैं, जिसमें वो पिस्टल लेकर भीड़ को दौड़ाते नज़र आ रहे हैं।
एडीजी लॉ एंड आर्डर अमिताभ यश के सड़क पर ख़ुद उतरने के बाद सुरक्षा बलों ने मुस्तैदी से मोर्चा संभाला, जिसके बाद हालात थोड़े काबू में आ गए। अब कई ज़िलों से बुलाई गई फ़ोर्स और पीएसी मौक़े पर तैनात है। बहराइच की एसपी वृंदा शुक्ला ने बताया कि इस मामले में क़रीब 85 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है और छापेमारी जारी है।

बहराइच की एसपी वृंदा शुक्ला मीडिया से कहती हैं, “प्रथम दृष्यटा पुलिस की लापरवाही उजागर हुई है। महसी सर्किल के सीओ के अलावा थानाध्यक्ष और चौकी इंचार्ज को निलंबित किया गया है। बाक़ी ज़िम्मेदार लोगों को चिह्नित करने के लिए विभागीय जांच चल रही है।
सीसीटीवी के फुटेज खंगाले जा रहे हैं और जो लोग नजर आ रहे हैं, उनका नाम रोजनामचे में दर्ज किया जा रहा है। घटना के बाद से संदिग्ध लोगों पर नजर रखी जा रही है। रेहुआ मंसूर गांव को फिलहाल सील कर दिया गया है। सांप्रदायिक हिंसा में मारा गया 24 वर्षीय राम गोपाल मिश्र इसी गांव का युवक था।
महाराजगंज कस्बे में हालात तेजी से सामान्य हो रहे हैं और उम्मीद है कि दिवाली से पहले तक स्थिति पूरी तरह नार्मल हो जाएगी। हिंसा में जो लोग शामिल नहीं हैं वो अपने घरों में अभी तक नहीं लौटे हैं, उनके आने पर कोई रोक-टोक नहीं है। पुलिस उन्हें हर संभव सुरक्षा मुहैया कराएगी।”
अनसुलझे सवाल
सांप्रदायिक हिंसा के कारण महराजगंज कस्बे में आम जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। सैकड़ों लोग यहां से पलायन कर गए हैं, लेकिन तमाम ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब सरकार और पुलिस-प्रशासन के पास नहीं है। महाराजगंज में पर्याप्त फ़ोर्स ना होने के कारण पुलिस को घटना वाले दिन और उसके अगले दिन क्यों पीछे हटना पड़ा?
संख्या बल के हिसाब से भीड़ अधिक थी और पुलिस वाले कम थे, जिसके चलते एक्शन लेने में विलंब हुआ। कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि क्या डीजे बजाने को लेकर सरकार ने या स्थानीय प्रशासन ने कोई गाइडलाइन जारी की थी?
पुलिस और प्रशासन पर यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि अगर डीजे पर भड़काऊ गाना बज रहा था, तो पुलिस ने क्यों नहीं रोका? कुछ साल पहले यूपी सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान डीजे को लेकर एक गाइडलाइन जारी की थी। इस मामले में उसके उल्लंघन से इनकार नहीं किया जा सकता।
अमूमन जुलूस में बाधा डालने वालों को पुलिस तुरंत हिरासत में लेती है, लेकिन इस केस में ऐसा क्यों नहीं हुआ? 14 अक्टूबर 2024 को युवक राम गोपाल मिश्रा का शव परिजनों को सौंपने से पहले इलाक़े में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए गए? जब भीड़ जुटने लगी तब भी अद्धसैनिक बलों को क्यों नहीं बुलाया गया? हिंसक भीड़ को मार-काट व तोड़फोड़ करने की छूट क्यों और किसने दी?
इस बीच, न्यूज पोर्टल भास्कर ने स्टिंग किया, जिसमें दो युवक दावा कर रहे हैं कि पुलिस ने हमें तोड़फोड़, आगजनी और उपद्रव करने के लिए सिर्फ दो घंटे का समय दिया था। पोर्टल दावा करता है कि महराजगंज से पांच किलोमीटर दूर बेडवा गांव की सड़क पर दो युवक मिले, जिन्होंने दावा किया वे हिंसा में शामिल थे?

शुरू में तो उन्होंने इनकार किया, लेकिन काफी देर बातचीत हुई तो उन्होंने उपद्रव को सिलसिलेवार तरीके से बताया।
स्टिंग में सबूरी मिश्रा ने कहा, ”14 अक्टूबर को हम लोग महाराजंगज में थे।” रिपोर्टर ने सवाल किया कि तुम लोगों ने फूंका था। इस पर यह युवक कहता है, ”हां-हां और क्या? गाड़ियां जल गईं। दुकानें जल गईं। कई महंगी-महंगी गाड़ियां फूंक दी गईं। कई बंदे एक साथ गए थे, जरूरी नहीं कि हम ही फूंकेंगे, जिसका नंबर आ आएगा, वही फूंक देगा। दूसरे युवक प्रेम मिश्रा ने कहा कि कुछ लोगों ने गद्दारी कर दी, नहीं तो पूरा महराजगंज खत्म हो जाता। पुलिस वालों ने टाइम दिया था दो घंटे। इस पर पहले युवक ने कहा कि तभी तो सारे पुलिस वाले हट भी गए थे।”
दोनों युवक जिस उपद्रव की बात बता रहे हैं, वो 14 अक्टूबर 2024 को हुआ था। उस दिन रामगोपाल मिश्रा की शव यात्रा निकाली गई। आसपास के गांवों से सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल हुए थे। इस दौरान महाराजगंज में विशेष वर्ग के घरों और दुकानों पर धावा बोल दिया।
यहीं पर हीरो बाइक की एजेंसी में आग लगा दी गई। उसमें 35 गाड़ियां जलकर राख हो गईं। यह एजेंसी अरुण कुमार शुक्ला के नाम से है, लेकिन इसमें पैसा सिराज उर्फ भोनू सोनार का लगा था। भीड़ में शामिल लोगों को यह बात पता थी। इसी के बगल में लखनऊ सेवा अस्पताल भी फूंक दिया गया। यह भी एक मुस्लिम का ही था। पुलिस ने वादा नहीं निभाया अन्यथा समूचा महाराजगंज हम जला देते।” फिलहाल महसी थाना पुलिस ने दोनों युवकों को पुलिस वे गिरफ्तार कर लिया है।
उल्लेखनीय है कि करीब पांच हजार की आबादी वाले महाराजगंज कस्बे में 85 फीसदी मुस्लिम और 15 फीसदी हिन्दू रहते हैं। महराजगंज कस्बे में ज्यादातर दुकानें किराना, आभूषण, दवा, लोहा-बर्तन आदि की हैं। आसपास के गांवों के ज्यादातर लोग इसी कस्बे में सामानों की खरीदारी करते हैं।
महसी थाने की निकटवर्ती चौकी महराजगंज से करीब दस किमी दूर रम्पुरा में है। सांप्रदायिक हिंसा में बड़ी संख्या में लोग घायल हुए और ज्यादातर लोगों ने लुक-छिपकर अपना इलाज कराया। जिन्हें ज्यादा चोटें आई थीं उनमें विनोद कुमार मिश्र, सरोज, सत्यवान मिश्र, सुधाकर त्रिपाठी, लाल बढ़ई आदि आदि थे। इलाज के बाद ये सभी लौट आए हैं।
बुल्डोजर की धमकी, और दहशत
बहराइच जिला प्रशासन के निर्देश पर लोक निर्माण विभाग ने 23 लोगों के मकानों और दुकानों पर नोटिस चस्पा किया, जिससे क्षेत्र में हड़कंप मच गया। नोटिस चस्पा होने के बाद बुलडोजर कार्रवाई की आशंका से शनिवार सुबह से ही आरोपी अपने घरों और दुकानों से सामान हटाने लगे।

इलाके के कई लोग अपने मकान और दुकानों से सामान सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के लिए पिकअप और ट्रैक्टर-ट्राली का सहारा ले रहे हैं। स्थानीय लोगों में दहशत का माहौल है, लेकिन इसके साथ ही पीड़ितों के चेहरों पर गुस्सा और दिलों में दर्द भी झलकता नजर आ रहा है।
बुल्डोजर की कार्रवाई के खिलाफ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स संस्था ने पिछले रविवार को जनहित याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि नोटिस में मानकों के उल्लंघन का हवाला देकर कार्रवाई के लिए कहा गया है। लेकिन नोटिस में मानकों के बारे में जानकारी नहीं दी गई है।
साथ ही जवाब देने के लिए तीन दिन का ही समय दिया गया जो अपर्याप्त है। अदालत ने सरकार से नोटिस पर विस्तृत जवाब दाखिल करने के लिए तीन दिन का समय दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय ने बुलडोजर एक्शन पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी थी। नोटिस का जवाब देने के लिए 15 दिन का समय बढ़ा दिया था।
महराजगंज कस्बे के 23 लोगों के घरों को ढहाने के लिए नोटिसें जारी की है, जिनमें तीन हिंदू और बाकी बीस मुसलमानों के हैं। इनमें हाजी भोलू उर्फ मसूद अहमद, मोहम्मद शरीफ पुत्र नूर मोहम्मद, शमी उल्ला पुत्र अब्दुल रहमान, मोहम्मद हुसैन पुत्र तुफैल, राजू खा पुत्र मुर्तजा खां, ननकू पुत्र राम प्रसाद, अब्दुल हामिद पुत्र अब्दुल अजीज आदि को नोटिस देकर कुछ दिनों की मोहलत दी गई है।
बुलडोजर एक्शन के डर से लोग अपनी दुकानों और मकानों से टीन, फर्नीचर और अन्य सामान हटाते नजर आए। प्रशासन के इस कड़े कदम से इलाके में सन्नाटा पसरा हुआ है, और लोग अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।
घरों पर बुल्डोजर चलाने की य़ोजना का मामला अब हाईकोर्ट में पहुंच गया है। बहराइच में मूर्ति विसर्जन के दौरान हुई हिंसा मामले में ध्वस्तीकरण नोटिसों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने याचिका पर अगली सुनवाई 04 नवंबर को तय की है।

सरकार के अधिवक्ता ने याचिका पर आपत्ति जताई कि याची को यह पीआईएल दाखिल करने का हक (लोकस) नहीं है। ऐसे में यह याचिका सुनवाई के लिए ग्रहण करने योग्य नहीं है। इस पर कोर्ट ने सरकार को दो दिन का वक्त इन आपत्तियों को रजिस्ट्री अनुभाग में दाखिल करने को दिया।
न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने यह आदेश एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स संस्था के पूर्वी उत्तर प्रदेश उपाध्यक्ष के जरिये दाखिल पीआईएल पर दिया। इसमें बहराइच के कथित अतिक्रमणकर्ताओं को इसी 17 अक्तूबर को जारी ध्वस्तीकरण नोटिसों को चुनौती देकर इन्हें रद्द करने के निर्देश देने का आग्रह किया गया है।
साथ ही कहा गया है कि सरकारी अमला समुदाय विशेष के लोगों के निर्माणों को अवैध बताकर ढहाने की कार्रवाई कर रहा है। जबकि वहां पर सड़कों आदि पर कोई अतिक्रमण नहीं किया गया है।
याचिका दाखिल करने वाले अधिवक्ता सौरभ शंकर श्रीवास्तव ने बताया कि अदालत के सवाल पर जानकारी दी कि याचिका दाखिल करने वाली संस्था सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत है। संस्था का कोई संबंध किसी भी याचिकाकर्ता से नहीं है। लोकहित में सरकारी प्रकोप का लक्ष्य बने लोगों की मदद करने के लिए संस्था ने जनहित याचिका दाखिल की है। संस्था का विस्तृत परिचय और उसके कार्यों की व्याख्या जल्द ही दाखिल कर देंगे।
उधर, राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले को पीआईएल के जरिये चुनौती नहीं दी जा सकती। ऐसे में यह याचिका खारिज करने लायक है।
जिन कथित अवैध निर्माण कर्ताओं के निर्माणों को ढहाने की नोटिस जारी की गई है, उन्हें इनका जवाब दाखिल करने को 15 दिन का समय देकर अफसरों को मामले का निस्तारण करने का आदेश भी दिया था। फिलहाल कोर्ट के सख्त रवैये के चलते पुलिस प्रशासन मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर चलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।
फिलहाल हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने बुलडोजर की कार्रवाई रोकते हुए योगी सरकार से जवाब मांगा है। इस बीच, पीडब्ल्यूडी के विशेष सचिव ने 22 अक्तूबर 2024 को देर शाम आदेश जारी करते हुए अधीक्षण अभियंता (सिविल) बहराइच श्रावस्ती सर्किल मलिखान को इटावा स्थानांतरित कर दिया।
आदेश में अभियंता को इटावा सर्किल में कार्यभार ग्रहण करने के लिए कहा गया। अदालत में हिंसा के आरोपियों के घरों पर चस्पा नोटिस पर सवाल उठाए गए हैं। फिलहाल जिन दुकानों और मकानों पर नोटिसें चस्पा की गई हैं, उसे लोगों ने खुद ही खाली कर दिया है।
रामगोपाल की पत्नी का बयान
महाराजगंज हिंसा में मारे गए राम गोपाल मिश्रा की पत्नी रोली मिश्रा ने 15 अक्तूबर 2024 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाक़ात की। साथ में युवक के माता-पिता भी थे। परिजनों ने मुख्यमंत्री से इंसाफ़ मांगा और कहा कि राम गोपाल मिश्रा केटरिंग का काम करता था।
अपने धंधे को बढ़ाने के लिए दिवाली बाद दिल्ली जाने की तैयारी कर कर रहा था। बाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक्स पर लिखा, “हमने बहराइच के पीड़ित परिवारवालों से मुलाक़ात की है, इस मामले में सरकार की न्याय दिलाने की प्राथमिकता रहेगी। जनपद बहराइच की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में काल-कवलित हुए युवक के शोक संतप्त परिजनों से आज लखनऊ में भेंट की। दुख की इस घड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार पूरी संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता से पीड़ित परिवार के साथ खड़ी है। आश्वस्त रहें, पीड़ित परिवार को न्याय दिलाना सरकार की शीर्ष प्राथमिकता है। इस घोर निंदनीय और अक्षम्य घटना के दोषियों को किसी भी क़ीमत पर बख़्शा नहीं जाएगा।”

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने से पहले के बाद तक राम गोपाल मिश्रा के घर पर औपचारिक तौर पर पुलिस तैनात थी। लेकिन बाद में रोली मिश्रा ने एक वीडियो जारी करते हुए आरोप लगाया कि पुलिस और प्रशासन उन्हें न्याय नहीं दे रहा है।
इसके बाद वहां पुलिस फोर्स बढ़ा दी गई और कई ऐसे दरोगाओं को तैनात कर दिया गया जो किसी भी हालत में मीडिया और राजनीतिक दलों के लोगों को रोली मिश्रा के घर के आसपास तक न फटकने दें। मृतक की पत्नी रोली मिश्रा की ओर से जारी वीडियो में कहा गया है, “हमें इंसाफ़ चाहिए और जैसे हमारे पति के साथ हुआ वैसी ही कार्रवाई अभियुक्तों के ख़िलाफ़ भी होनी चाहिए।”
रेउआ मंसूर निवासी राम गोपाल मिश्रा की शादी इसी साल जुलाई महीने में हुई थी। 13 अक्टूबर को गांव में स्थापित प्रतिमा विसर्जन के लिए वह गांववालों के साथ घाट पर जा रहे थे। ये पहली बार नहीं है, जब जुलूस के दौरान डीजे पर भड़काऊ गाना बजाने को लेकर बढ़े विवाद ने सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया।
घटना के बाद महाराजगंज कस्बे में शांति है, लेकिन तनाव बना हुआ है। लोग पुलिस के आतंक से ज्यादा भयभीत हैं। जिस रेहुआ रघुनाथपुर गांव का युवक हिंसा में मारा गया, उस गांव को लोगों के जुबान बंद है।
ग्रामीणों ने दबी जुबान जनचौक से बातचीत में कहा, ”पुलिस आधी रात के बाद आती है और डकैतों की तरह घर में घुस जाती है। मारते-पीटते थाने ले जाती है। पकड़े गए लोगों को छुड़ाने की कवायद शुरू होती है। पुलिस पर जब दबाव पड़ता है तो सादे कागजों पर दस्तखत कराने के बाद छोड़ दिया जाता है।
किसी में सामर्थ नहीं है कि वह पुलिस जुल्म के खिलाफ आवाज उठा सके। रेहुआ रघुनाथपुर गांव से पुलिस ने कुछ रोज पहले ललित तिवारी, कुलभूषण अवस्थी, भालेंद्र भूषण और आनंद मिश्रा उर्फ बाटा को आधी रात के बाद उठाया था। खूब पिटाई की थी। बाद उन्होंने छोड़ दिया गया। इस गांव के ज्यादातर युवक पलायन कर गए हैं। यहां सिर्फ बूढ़े, बच्चे और महिलाएं ही बचे हैं।”
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं और बहराइच से उनकी ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट।)
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