Friday, March 29, 2024

अडानी समूह पर शेल कंपनियों से फंड लेने के आरोप और विनोद अडानी की भूमिका

हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में अडानी समूह द्वारा किए गए शेल कंपनियों द्वारा निवेश और शेयरों में ओवर प्राइसिंग और अन्य घपलों के बारे में विस्तार से यह समझाया गया है कि, कैसे इस समूह ने धोखाधड़ी और राजकृपा से पिछले नौ सालों में अप्रत्याशित विकास किया और एक समय दुनिया के दूसरे सबसे अमीर घराने में शुमार किया जाने लगा। इस रिपोर्ट के आने के बाद, स्टॉक मार्केट में अडानी समूह के शेयरों के भाव गिरने लगे, समूह को अपना एफपीओ, ओवर सब्सक्राइब होने के बाद भी वापस लेना पड़ा, और अभी हाल ही में, छत्तीसगढ़ स्थित डीबी थर्मल पॉवर प्लांट का सौदा, ₹7000 करोड़ की रकम, न चुका पाने के कारण, रद्द करना पड़ा।

समूह अब भी अपने निवेशकों का खोया हुआ भरोसा पाने की पूरी कोशिश कर रहा है, पर अभी भी निवेशकों का विश्वास बहाल नहीं हो पा रहा है, और समूह, अपने राजनीतिक संबंधों, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने संबंधों के कारण विपक्ष के निशाने पर भी है।

इन्हीं सब झंझावातों के बीच, फोर्ब्स की एक ताजा रिपोर्ट, जो फोर्ब्स के स्टाफ राइटर, जॉन हयात (John Hyatt) और गियोकॉमि टोगिनी (Giacomo Tognini) द्वारा लिखी गई है, इस समूह के निवेश में शेल कंपनियों की साठगांठ पर विस्तार से प्रकाश डालती है। इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद, अडानी समूह के इतनी तेजी से अमीर बनने और साम्राज्य विस्तार को लेकर, जो कुछ भी हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में छपा है, उसकी पुष्टि होती है। इस रिपोर्ट में अडानी समूह पर खातों में हेराफेरी, अकाउंटिंग धोखाधड़ी और स्टॉक हेरफेर का आरोप लगाया गया है। हालांकि अडानी समूह ने इन आरोपों को निराधार बताया है।

लेकिन आरोप, निराधार कैसे हैं, इसे उन्होंने, हिंडनबर्ग को भेजे गए अपने जवाब में, स्पष्ट नहीं किया है। रिसर्च रिपोर्ट में, एक नाम का उल्लेख 151 बार किया गया है और समूह की धोखाधड़ी और शेल कंपनियों का मायाजाल, इसी नाम के इर्दगिर्द बुना हुआ दिखता है, यह नाम है विनोद शांतिलाल अडानी का, जो अडानी समूह के चेयरमैन, गौतम अडानी के सगे बड़े भाई हैं, और यूएई (संयुक्त अरब अमीरात) में रह कर व्यापार करते हैं। हिंडनबर्ग की पड़ताल के अनुसार, “विनोद अडानी, उस घोटाले के केंद्र में नज़र आते हैं, जिस घोटाले ने उनके भाई, गौतम अडानी के साम्राज्य और भारतीय व्यापार और एक शीर्ष राजनीतिक व्यक्तित्व को इस समय घेर रखा है।”

हिंडनबर्ग रिपोर्ट के अनुसार, विनोद अडानी, “अपतटीय (ऑफशोर) शेल संस्थाओं की एक विशाल भूलभुलैया का प्रबंधन करता है।” जिसने “सामूहिक रूप से सौदों की आवश्यक पारदर्शिता का पालन करते हुए, भारतीय उद्योगपति, गौतम अडानी को, उनके समूह की सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनियों और उसकी निजी संस्थाओं में अरबों डॉलर का फंड स्थानांतरित किया है।” साथ ही, “विनोद अडानी ने, अडानी समूह को भारतीय कानूनों से बचाने में भी मदद की है, जिसके लिए गैर-अंदरूनी लोगों के स्वामित्व वाली कंपनी में, सार्वजनिक रूप से कारोबारी स्टॉक का कम से कम 25% होना आवश्यक है।” यानी न्यूनतम शेयर जो नियमानुसार किसी पब्लिक लिमिटेड कंपनी के जनता में हो सकते हैं, यानी 25%, उतने शेयर, जनता में हैं। शेष, अडानी परिवार के पास हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, विनोद अडानी ने अडानी समूह में अपनी ऑफ शोर शेल कंपनियों, द्वारा भारी निवेश किया है। हालांकि, अडानी समूह ने, समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी का, उनके भाई विनोद अडानी के साथ बताए जा रहे, अनुचित कारोबारी संबंधों से इनकार किया है।

अडानी समूह ने हिंडनबर्ग को, 29 जनवरी, 2023 को भेजे अपने, 413 पन्नों के जवाब में लिखा है, “विनोद अडानी, अडानी समूह की, किसी भी सूचीबद्ध कंपनियों या उनकी सहायक कंपनियों में, किसी भी, प्रबंधकीय पद पर नहीं हैं और समूह की कंपनियों के दैनिक मामलों में उनकी कोई भूमिका भी नहीं है।” अडानी समूह ने कहा है कि, समूह ने संबंधित पक्षों से जुड़े सभी लेन-देन की “विधिवत पहचान की है और उन्हें इस जवाब में स्पष्ट” भी कर दिया गया है।

हालांकि, फोर्ब्स में प्रकाशित लेख में, विनोद अडानी और अडानी समूह के बीच संबंधों के साथ साथ, अपतटीय निधियों (ऑफशोर फंड) से जुड़े उन लेन-देन की भी पहचान की गई है, जिन्हें, अडानी समूह ने, जानबूझ कर छुपाया है। लेख के अनुसार, ये पोशीदा लेनदेन, अडानी समूह को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से, डिज़ाइन किए गए प्रतीत होते हैं। ये सौदे हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में वर्णित, अडानी समूह पर, लेखा अनियमितताओं के संदर्भ में, लगाए गए आरोपों को और बल देते हैं।”

ऑस्ट्रेलिया स्थित कॉर्पोरेट और वित्तीय विश्लेषण फर्म क्लाइमेट एनर्जी फ़ाइनेंस के निदेशक टिम बकले, जिन्होंने अडानी समूह और ऑस्ट्रेलिया में कोयला खदान विकसित करने की, समूह की योजना का अध्ययन किया है, कहते हैं, “मैंने हमेशा सोचा था कि यह उनके बीच (अडानी बंधुओं के) एक साझेदारी है। एक तरफ, गौतम अडानी का गर्मजोशी से भरा, मैत्रीपूर्ण, मिलनसार सार्वजनिक चेहरा है तो दूसरी ओर, किसी निजी टैक्स हेवन में मास्टरमाइंड, असली कठपुतली मास्टर के रूप में विनोद अडानी है।”

अडानी समूह और विनोद अडानी ने, फोर्ब्स द्वारा भेजे गए कुछ सवालों के जवाब नहीं दिए। फोर्ब्स ने अपने सवालों के जवाब भेजने का अनुरोध, विनोद अडानी से, उनके ईमेल पता, जो दुबई में उनके नाम पर पंजीकृत कई संपत्तियों से जुड़ा हुआ है, जिसमें एक अडानी ग्लोबल डोमेन है, पर भेजे थे।

अब फोर्ब्स ने, कुछ उन सौदों का उल्लेख अपने लेख में किया है, जो अडानी समूह के साथ विनोद अडानी ने किए हैं, और जिनका विवरण सबके सामने हैं।

कुछ उदाहरण इस प्रकार है:

1. पिछली गर्मियों में, अंबुजा सीमेंट की सार्वजनिक फाइलिंग के अनुसार, विनोद अडानी की कंपनियों में से एक, एंडेवर ट्रेड एंड इंवेस्टमेंट लिमिटेड, ने भारतीय सीमेंट कंपनियों अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड और एसीसी लिमिटेड में स्विस फर्म होल्सिम के 10.5 बिलियन डॉलर के अधिग्रहण के लिए अडानी समूह के अधिग्रहण वाहन के रूप में काम किया। इस सौदे ने अडानी समूह को भारत की दूसरी सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी बना दिया।

2. पिनेकल ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट प्रा लिमिटेड, सिंगापुर की एक कंपनी है जो, अप्रत्यक्ष रूप से विनोद अडानी द्वारा नियंत्रित की जाती है। 2020 में, पिनेकल ने रूस के, राज्य स्वामित्व वाले वीटीबी बैंक (VTB Bank) के साथ एक ऋण समझौता किया। अप्रैल 2021 तक, पिनेकल ने $263 मिलियन डॉलर उधार लिए थे और एक अनाम संबंधित पार्टी को $258 मिलियन उधार दिए थे। यहीं यह सवाल उठता है कि, पिनेकल ने रूस के बैंक से लोन लिया तो क्यों लिया, क्या उस रकम को, किसी अनाम कंपनी को पुनः कर्ज देने के लिये ऋण लिया गया था।

3. उसी साल, बाद में, पिनेकल ने ऋण के लिए गारंटर के रूप में दो निवेश फंड, एफ्रो एशिया ट्रेड एंड इंवेस्टमेंट्स लिमिटेड और वर्ल्डवाइड इमर्जिंग मार्केट होल्डिंग लिमिटेड की पेशकश की। जून 2020 और अगस्त 2022 में भारतीय स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग के अनुसार, विनोद अडानी, वर्ल्डवाइड इमर्जिंग फाइलिंग के फंड के मालिक प्रतीत होते हैं। विनोद, मॉरीशस स्थित एक्रोपोलिस ट्रेड एंड इंवेस्टमेंट्स लिमिटेड के अंतिम लाभकारी मालिक हैं, जो वर्ल्डवाइड इमर्जिंग मार्केट होल्डिंग लिमिटेड का 100% शेयरधारक है।

4. एफ्रो एशिया ट्रेड और वर्ल्डवाइड दोनों ही अडानी ग्रुप के बड़े शेयरधारक हैं। अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी ट्रांसमिशन, अडानी पोर्ट्स और अडानी पावर में, दोनों फंडों के, कुल मिलाकर $4 बिलियन (16 फरवरी के बाजार मूल्य के करीब) का स्टेक है, जो सभी फंड को “प्रमोटर” संस्थाओं के रूप में स्वीकार करते हैं।

5. निवेश ट्रैकिंग वेबसाइट ट्रेंडलाइन के अनुसार एफ्रो एशिया ट्रेड और वर्ल्डवाइड के पास कोई अन्य प्रतिभूतियां नहीं हैं। इसका मतलब यह है कि, पिनेकल का ऋण, अडानी कंपनी के फंड के शेयरों के मूल्य से प्रभावी रूप से सुरक्षित है। किसी भी फंड ने इन चार अडानी कंपनियों के लिए, भारतीय वित्तीय फाइलिंग में गिरवी शेयर का खुलासा नहीं किया है, जिसमें उन्होंने निवेश किया है।

फोर्ब्स के निष्कर्षों की समीक्षा करने वाले एक भारतीय प्रतिभूति विशेषज्ञ ने कहा, “अडानी समूह में निवेश किए गए धन के पीछे, अनिवार्य रूप से, कहीं से, उधार से लिया गया धन है।”

भारत के प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने, अडानी समूह, पर, सुप्रीम कोर्ट में लगाए गए, आरोपों के के जवाब में, कहा है कि, “वह “हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों के साथ-साथ बाजार गतिविधि, दोनों की जांच कर रहा है।”

विनोद अडानी के स्वामित्व वाली इन दो अपतटीय संस्थाओं को, विनोद अडानी की कंपनी पिनेकल ने, रूस के वीटीबी बैंक से ऋण लेने के लिए गिरवी रखा था। तथ्य यह है कि पिनेकल ने अपने पास रखे, अडानी कंपनी के शेयरों के बजाय निवेश फंडों को गिरवी रखा है। “गिरवी रखे शेयरों का खुलासा करने के दायित्व से फंड को छूट मिल सकती है”, ऐसा भारतीय प्रतिभूति विशेषज्ञ का कहना। पिनेकल, एफ्रो एशिया और वर्ल्डवाइड इमर्जिंग मार्केट से भी फोर्ब्स ने, सवाल पूछा था, पर उनका कोई जवाब, फोर्ब्स को नहीं मिला।

लेख में गौतम और विनोद दोनो भाईयो के व्यक्तित्व पर एक रोचक टिप्पणी भी है। उसके अनुसार, “जहां गौतम अडानी, अडानी साम्राज्य का सार्वजनिक चेहरा हैं, वहीं विनोद अडानी, लो प्रोफाइल रहते हैं। विनोद की कुछ सार्वजनिक तस्वीरों में से एक में उन्हें, खुद को संबोधित एक पट्टिका के साथ भारतीय ध्वज प्रदर्शित करते हुए दिखाया गया है। साइप्रस के पासपोर्ट धारक और सिंगापुर के स्थायी निवासी, विनोद अडानी को कई नामों से जाना जाता है, जिसमें एक नाम विनोद शांतिलाल शाह भी शामिल हैं। उनकी जन्मतिथि भी एक रहस्य बनी हुई है और उस पर भी विवाद है।”

विनोद अडानी की संपत्ति के बारे में फोर्ब्स का अनुमान है कि, वर्ल्डवाइड इमर्जिंग मार्केट होल्डिंग लिमिटेड और एंडेवर ट्रेड एंड इंवेस्टमेंट लिमिटेड के अपने स्वामित्व के आधार पर विनोद की संपत्ति, कम से कम $1.3 बिलियन डॉलर की है। साथ ही, उसके पास अडानी समूह की कंपनियों और सीमेंट उत्पादकों अंबुजा और एसीसी के शेयर हैं। संपति का यह आकलन, अंबुजा और एसीसी में शेयर खरीदने के लिए इस्तेमाल की गई उधारी को घटाकर किया गया है।”

लेकिन विनोद अडानी की व्यक्तिगत संपत्ति को गौतम अडानी से अलग करना मुश्किल है, और उसकी कीमत बहुत अधिक हो सकती है। वाशिंगटन, डीसी स्थित गैर-लाभकारी सेंटर फॉर एडवांस्ड डिफेंस स्टडीज द्वारा उपलब्ध कराए गए रियल एस्टेट डेटा के अनुसार, “विनोद के पास दुबई में 10 संपत्तियां भी हैं। सिंगापुर में उसका एक अपार्टमेंट है। पिनेकल कंपनी के फाइलिंग में यह अपार्टमेंट, विनोद अडानी के नाम पर पंजीकृत है, जिसकी अनुमानित रूप से, $4 मिलियन डॉलर है।”

फोर्ब्स ने पाया कि “विनोद अडानी, बहामास, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स, केमैन आइलैंड्स, साइप्रस, मॉरीशस, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात सहित अपतटीय टैक्स हेवन में कम से कम 60 संस्थाओं के मालिक हैं या उनसे जुड़े रहे है।”

विनोद अडानी, कम से कम तीन दशक से विदेश में रह रहे हैं। इकोनॉमिक टाइम्स में एक संपादकीय के अनुसार, “उन्होंने अमेरिका से इंजीनियरिंग की मास्टर डिग्री प्राप्त की और फिर 1976 में मुंबई में एक कपड़ा व्यवसाय स्थापित किया। 1980 के दशक में, विनोद ने अपनी बचत का उपयोग करके 1,000 डॉलर में एक छोटी प्लास्टिक पैकेजिंग फैक्ट्री खरीदी और एक बैंक से ऋण लिया, और इसे चलाने में मदद करने के लिए अपने छोटे भाई गौतम अडानी को लगाया।”

गौतम अडानी ने 2009 में फोर्ब्स को एक बातचीत में बताया था, “हमने अपना कारोबार, वस्तुतः शून्य से शुरु किया है।”

1989 तक, विनोद अडानी ने वस्तुओं में व्यापार करने के लिए अपनी कंपनी का विस्तार किया और उन्होंने सिंगापुर में एक नया कार्यालय खोला। 1994 में वह दुबई चले गए, जहां उन्होंने दुबई, सिंगापुर और जकार्ता, इंडोनेशिया में अपने कारोबारी संबंधों के साथ, चीनी, तेल और धातुओं का व्यापार करना शुरू किया। वह भी तब, जब उन्होंने अपतटीय (ऑफशोर) कंपनियों का साम्राज्य खड़ा करना शुरू कर दिया था। खोजी पत्रकारों के एक संगठन जिसने पनामा पेपर लीक का खुलासा किया है, के अंतर्राष्ट्रीय संघ के अनुसार, “विनोद अडानी ने जनवरी 1994 में बहामास में एक कंपनी की स्थापना की। दो महीने बाद, उन्होंने कंपनी के दस्तावेजों पर अपना नाम विनोद शांतिलाल अडानी से बदलकर विनोद शांतिलाल शाह करने का अनुरोध भी किया।” जाहिर है यह नाम परिवर्तन किसी न किसी कारोबारी घोटाले के उद्देश्य से ही किया गया होगा।

जब विनोद अडानी, दुबई में अपने कारोबार का विस्तार कर रहे थे, तब गौतम अडानी, अपने कैरियर की शुरुआत कर रहे थे। 1988 में अडानी समूह की स्थापना की गई और 1994 में इसे पब्लिक लिमिटेड किया गया। गौतम अडानी, लंबे समय तक, अपने भाई, विनोद अडानी, के व्यवसायों में, गहराई से शामिल रहे हैं। विनोद अडानी की कंपनियों में, गौतम अडानी ने, विभिन्न एक्जीक्यूटिव पदों पर भी कार्य किया है। फोर्ब्स के लेख के अनुसार, “विनोद अडानी के 44 वर्षीय बेटे प्रणव अभी भी अडानी एंटरप्राइजेज में प्रबंध निदेशक हैं।”

2014 में अडानी समूह के 800 मिलियन डॉलर के बिजली संयंत्र उपकरणों के कथित ओवर-इनवॉइसिंग के एक घोटाले में, विनोद अडानी पर भारत के राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) द्वारा अडानी समूह के कर्मचारियों के साथ मिल कर धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया गया था, ताकि “विदेश में विदेशी मुद्रा निकालने की योजना बनाने की साजिश को अंजाम दिया जा सके।” यह मामला, शुरूआत में खारिज कर दिया गया, पर इसकी अपील हुई और अपील अभी भी, भारत के सीमा शुल्क अधिकारियों के समक्ष लंबित है। हालांकि अडानी समूह ने, इस आरोप से इनकार किया है।

भारत मे व्यापारिक घराने, अक्सर एक पारिवारिक समूह द्वारा संचालित होते हैं, और अडानी समूह भी इस प्रवृत्ति का अपवाद नहीं है। मिशिगन यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर और ज्वाइंट सेंटर फॉर ग्लोबल कॉरपोरेट के सह-निदेशक विक्रमादित्य खन्ना कहते हैं, “पारिवारिक व्यवसाय समूहों में एक तरफ सामने दिखने वाला भाई होता है तो दूसरी तरफ, नेपथ्य में रह कर काम करने वाला, और कम दिखाई देने वाला दूसरा भाई होता है। कारोबार करने की यह शैली, पश्चिमी कॉरपोरेट को भले ही अनोखी लगे, पर भारत में ऐसा होना, बिल्कुल भी असामान्य नहीं है।”


वित्तीय कानून और नीति, विषय पर, मिशिगन यूनिवर्सिटी और भारत के जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के बीच एक सहयोग सेमिनार में बोलते हुए, विक्रमादित्य आगे कहते हैं, “उसका एक कारण, एक ही परिवार में, अलग अलग तरह से हुआ, व्यक्तित्व का विकास है। यह भी महत्वपूर्ण है कि, कौन कहां काम करने में सहज महसूस करता है और उनके सापेक्ष, उसके पास कौशल क्या हैं? कुछ लोग धूप में रहना पसंद करते हैं, कुछ लोग छांव में रहना पसंद करते हैं।”

फोर्ब्स ने अपनी रिपोर्ट में साइप्रस, जिसे एक टैक्स हेवेन देश भी कहा जाता है, का भी उल्लेख किया है। “साइप्रस में कॉर्पोरेट रिकॉर्ड के अनुसार, 2012 में लेनदेन की एक सीरीज में, विनोद अडानी के स्वामित्व वाली, साइप्रस की एक कंपनी, वाकोडर इन्वेस्टमेंट्स ने, दुबई में एक अपतटीय फर्म से 232 मिलियन डॉलर का ऋण प्राप्त किया। वाकोडर ने तब अनिवार्य रूप से, अडानी एस्टेट्स और अडानी लैंड डेवलपर्स, जो, अडानी इंफ्रास्ट्रक्चर और डेवलपर्स की सहायक कंपनियां हैं, में, परिवर्तनीय डिबेंचर खरीदने के लिए 220 मिलियन डॉलर खर्च किए थे। डिबेंचर, वे ऋण प्रमाणपत्र होते हैं, जिनपर, ब्याज का भुगतान होता हैं और एक विशिष्ट तिथि पर वे, इक्विटी में परिवर्तित हो जाते हैं। उन डिबेंचर को बाद में 2024 तक बढ़ा दिया गया था, जिसका अर्थ है कि विनोद अडानी के पास आज भी उनके होने की संभावना है।

2012 तक, अडानी इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपर्स सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली अ़डानी एंटरप्राइजेज की सहायक कंपनी थी। लेकिन उक्त लेन-देन के समय, जून 2012 में, अडानी एंटरप्राइजेज की 2013 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, अडानी एंटरप्राइजेज ने जाहिरा तौर पर अडानी इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपर्स को बेच दिया, जिसने $81.5 मिलियन का लाभ दर्ज किया। चार साल बाद, यही कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज की वार्षिक रिपोर्ट में फिर से दिखाई दी, लेकिन, इस बार “संबंधित उद्यम” के रूप में।

यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स बिजनेस स्कूल में फाइनेंस के एसोसिएट प्रोफेसर मार्क हम्फ्री-जेनर कहते हैं, “तथ्य यह है कि अडानी इन्फ्रास्ट्रक्चर और डेवलपर्स बैलेंस शीट पर फिर से दिखाई दिए, तो यह सवाल उठता है कि क्या तब यह, वास्तविक बिक्री थी? शेयरधारकों को इस बारे में चिंतित होना चाहिए कि क्या दिखाए गए लाभ वास्तव में वास्तविक मुनाफे को दर्शाते हैं या वे केवल, दिखावटी ड्रेसिंग को दर्शाते हैं।”

2012 की बिक्री की रिपोर्ट के बावजूद, फोर्ब्स ने पाया कि 2017 तक, अडानी परिवार, अभी भी अडानी इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपर्स को अडानी प्रॉपर्टीज नाम की एक अन्य कंपनी के माध्यम से, नियंत्रित करता है, जिसका स्वामित्व तीन शेयरधारकों के पास है: एसबी अडानी फैमिली ट्रस्ट; गौतम अडानी के पुत्र, करण अडानी; और अडानी एंटरप्राइजेज की सहायक कंपनी अडानी कमोडिटीज एलएलपी। व्हार्टन स्कूल में अकाउंटिंग के प्रोफ़ेसर डैन टेलर कहते हैं, “ऐसा लगता है कि कमाई बढ़ाने और बुक्स, (लेखाबही) से क़र्ज़ लेने से, कंपनी को फ़ायदा होता है या किसी और को फ़ायदा होता है। और इसलिए सवाल यह उठता है कि (लेनदेन) के लिए वैध व्यावसायिक कारण क्या था?”

लेन-देन के लिए एक और आसान संभावित व्याख्या पारिवारिक राजनीति है। प्रोफेसर खन्ना के अनुसार, “आप कभी-कभी अपने परिवार के एक सदस्य को कंपनी की एक विशेष शाखा चलाने के लिए देना चाह सकते हैं, क्योंकि, भारतीय परिवार के व्यवसायों में परिवार के विभिन्न सदस्यों के बीच यह एक आम व्यवस्था है।”

जबकि हिंडनबर्ग का आरोप है कि, विनोद अडानी अरबों डॉलर की धोखाधड़ी में एक केंद्रीय भूमिका में, सामने आ रहे हैं। शेल कंपनियों का मायाजाल फैला कर, उसके माध्यम से, भारत भेज कर अपने ही भाई, गौतम अडानी के व्यापारिक साम्राज्य में निवेश करना, काले धन, या टैक्स चोरी कर के छिपाए गए धन, को मनी लांड्रिंग करके भारत भेजना हुआ। यह भारतीय कानून के अनुसार, एक दण्डनीय अपराध है।

हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के बाद शेयर बाजार में निवेशकों का भारी नुकसान हो रहा है और यह न हो, इसके लिए सेबी का गठन एक नियामक प्राधिकारी के रूप में हुआ है। सेबी के अनुसार, सेबी, शेयर बाजार से जुड़े घपलों और अनियमितता की जांच कर रही है। लेकिन इसके अतिरिक्त उक्त रिपोर्ट में शेल कंपनियों से जो धन भारत में अडानी समूह में, निवेश के लिए भेजा गया है, उसकी जांच सेबी द्वारा नहीं की जा सकती है। उसकी जांच, या तो ईडी को सौंपी जाय या सीरियस फ्रॉड ऑफिस या डीआरआई करे। पर सरकार ने अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि, वह मनी लांड्रिंग के इस आरोप पर, उसनें क्या कदम उठाया है। जेपीसी की मांग अभी तक लंबित है। अब सुप्रीम कोर्ट ने एक्सपर्ट पैनल के गठन का निर्णय किया है। अब देखना यह है कि, सुप्रीम कोर्ट, जांच के क्या क्या बिंदु तय करता है और जांच का स्वरूप क्या होगा।

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस हैं और कानपुर में रहते हैं।)

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