प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाकुंभ में हुई अव्यवस्थाओं और प्रशासनिक लापरवाहियों की सीबीआई जांच की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। सोमवार को मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया।
इससे पहले, 11 मार्च को अदालत ने दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका सामाजिक कार्यकर्ता केशर सिंह, योगेंद्र कुमार पांडेय और कमलेश सिंह द्वारा दायर की गई थी, जिसमें महाकुंभ की तैयारियों में गंभीर खामियों और अनियमितताओं की जांच की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव ने कोर्ट में महाकुंभ मेले में हुई गंभीर अव्यवस्थाओं, प्रशासन की नाकामी और गंगा जल की गुणवत्ता को लेकर अपनी दलीलें पेश कीं। उन्होंने तर्क दिया कि 144 वर्षों बाद आयोजित महाकुंभ में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पहुंचे, लेकिन सरकार द्वारा किए गए भारी बजट के बावजूद व्यवस्थाएं चरमरा गईं।
गंगा जल की गुणवत्ता पर सवाल: प्रशासन की लापरवाही के कारण गंगा जल की शुद्धता संदेह के घेरे में आ गई। याचिकाकर्ताओं ने इस संबंध में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) के आदेश की प्रति और बीओडी-सीओडी रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत की। इन रिपोर्टों के अनुसार, गंगा जल में प्रदूषण का स्तर काफी अधिक था, जिससे श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न हो सकता था।

पब्लिक ट्रांसपोर्ट में विफलता: याचिका में कहा गया कि सरकार ने स्नानार्थियों के लिए शटल बसों की व्यवस्था की थी, लेकिन मेला प्रशासन की नाकामी के कारण यह व्यवस्था असफल रही। इसके चलते श्रद्धालुओं को निजी वाहनों और नावों का महंगा किराया चुकाना पड़ा। श्रद्धालुओं को गंगा पार करने के लिए निर्धारित पांटून पुलों का भी सही तरीके से संचालन नहीं किया गया, जिससे उन्हें 30-40 किमी तक पैदल चलने को मजबूर होना पड़ा।
भगदड़ और सुरक्षा चूक: मौनी अमावस्या पर हुई भगदड़ प्रशासन की बड़ी नाकामी थी। आरोप लगाया गया कि ड्रोन निगरानी प्रणाली काम नहीं कर रही थी और आपातकालीन सेवाओं में भी भारी कमी थी। सुरक्षा उपायों की कमी के कारण संगम क्षेत्र में अफरातफरी मच गई और कई श्रद्धालु घायल हो गए। प्रशासनिक रिपोर्टों में भगदड़ का स्पष्ट विवरण नहीं दिया गया, जिससे प्रभावित श्रद्धालुओं को उचित मुआवजा भी नहीं मिल सका।
बुनियादी सुविधाओं का अभाव: याचिका में यह भी कहा गया कि श्रद्धालुओं के लिए पेयजल, भोजन, विश्राम स्थल और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था अपर्याप्त थी। सरकार ने महाकुंभ के लिए करोड़ों रुपए स्वीकृत किए थे, लेकिन इनका सही उपयोग नहीं हुआ। शहर के होटलों और नावों में जरूरत से ज्यादा किराया वसूला गया, जिससे श्रद्धालुओं को आर्थिक रूप से भी नुकसान उठाना पड़ा।
याचिका क्यों हुई खारिज?
कोर्ट ने याचिका को आधारहीन मानते हुए इसे खारिज कर दिया। अदालत का कहना था कि प्रस्तुत की गई सामग्री पर्याप्त नहीं है और प्रशासन द्वारा किए गए प्रयासों को देखते हुए सीबीआई जांच की आवश्यकता नहीं बनती।
याचिका में डीआईजी महाकुंभ मेला वैभव कृष्णा, कुंभ के डिजिटल कंट्रोलर आईपीएस अजय पाल शर्मा, तुलसीपीठ के स्वामी रामभद्राचार्य, बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री, यूपी विद्युत लिमिटेड, प्रयागराज मंडलायुक्त, जिला मजिस्ट्रेट, एसएसपी मेला, डीसीपी ट्रैफिक और महाकुंभ मेलाधिकारी विजय किरण आनंद सहित कई प्रशासनिक अधिकारियों को पक्षकार बनाया गया था। याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि इन अधिकारियों ने कुम्भ मेले की व्यवस्थाओं में गंभीर लापरवाही बरती, जिससे लाखों श्रद्धालु प्रभावित हुए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद महाकुंभ की अव्यवस्थाओं को लेकर उठे सवालों का कानूनी समाधान फिलहाल नहीं निकला है। हालांकि, याचिकाकर्ताओं की दलीलों ने प्रशासनिक लापरवाही और अव्यवस्थाओं को उजागर कर दिया है। इस फैसले से सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी और पारदर्शिता को लेकर नई बहस छिड़ सकती है।
(आराधना पांडेय स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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