Saturday, April 27, 2024

बीबीसी डॉक्यूमेन्टरी: भारत में बोलने की आजादी

बीबीसी के भारत में स्थित दफ्तरों पर आयकर विभाग की कार्यवाही 14 फरवरी को शुरू हुई और तीन दिन चली। आयकर विभाग ने इस कार्यवाही को ‘सर्वे‘ बताया जबकि कई समीक्षकों एवं एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे ‘छापा’ करार दिया। वैश्विक मीडिया ने इस कार्यवाही को बीबीसी द्वारा एक डॉक्यूमेन्टरी ‘इंडियाः द मोदी क्वेशचन’ के प्रसारण से जोड़ा। यह भारत में प्रजातांत्रिक संस्थाओं पर एक और हमला था।

जैसा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल के आकार पटेल ने कहा “भारत सरकार निश्चित रूप से बीबीसी को परेशान करने और धमकाने की कोशिश कर रही है। आयकर विभाग की शक्तियों और अधिकारों को अत्यंत वृहद रूप दे दिया गया है और उनका उपयोग असहमति और विरोध को कुचलने के हथियार के बतौर किया जा रहा है। और यह बार-बार हो रहा है।”

इस मामले में अमेरिका और इंग्लैंड की सरकारों की प्रतिक्रिया दिलचस्प रही। जहां ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने प्रधानमंत्री मोदी का बचाव किया वहीं अमेरिकी सरकार के प्रवक्ता ने पहले तो उत्तर देने से बचने की कोशिश की और बाद में केवल इतना कहा कि अमेरिका प्रेस की स्वतंत्रता का पक्षधर है। यह साफ है कि अमेरिका और इंग्लैंड मोदी को नाराज नहीं करना चाहते।

बीबीसी की डॉक्यूमेन्टरी दो हिस्सों में है, पहले हिस्से में गुजरात कत्लेआम में नरेन्द्र मोदी की भूमिका का वर्णन किया गया है और दूसरे में बतौर प्रधानमंत्री मोदी की अल्पसंख्यक-विरोधी नीतियों पर चर्चा है। डॉक्यूमेन्टरी के पहले भाग का प्रसारण वैश्विक दर्शकों के लिए 17 जनवरी 2023 को किया गया था। भारतीय दर्शकों ने भी इसे देखा।

सरकार ने अपनी आपातकालीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए डॉक्यूमेन्टरी पर प्रतिबंध लगा दिया। परंतु इस बीच डॉक्यूमेन्टरी का लिंक अनेक लोगों द्वारा ट्विटर पर शेयर कर दी गई। इस लिंक के सहारे बड़ी संख्या में लोगों ने फिल्म को डाउनलोड कर उसे देखा। विद्यार्थियों के कई संगठनों ने भी इस फिल्म के सार्वजनिक प्रदर्शन आयोजित किए। कुछ सफल हुए कुछ नहीं।

सरकार ने यह कार्यवाही क्यों की? डॉक्यूमेन्टरी के भाग 1 में शुरुआत में ही भाजपा के इस दावे को स्वीकार किया गया है कि साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगाने वाले मुसलमान थे।

सरकार और भाजपा का कहना था कि डॉक्यूमेन्टरी पूर्वाग्रह से ग्रस्त है, निष्पक्ष और तटस्थ नहीं है और उसमें औपनिवेशिक मानसिकता साफ नजर आती है। यह भी कहा गया कि यह फिल्म घृणित प्रचार का हिस्सा है। उस समय ब्रिटेन के विदेश विभाग ने गुजरात कत्लेआम की जांच करवाई थी। यह डॉक्यूमेन्टरी इसी जांच की रिपोर्ट पर आधारित है।

अप्रैल 2002 में प्रस्तुत इस रपट में कई ऐसी बातें कही गईं हैं जो मन को अशांत और विक्षुब्ध करने वाली हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार गुजरात में हुए दंगे पूर्व नियोजित कत्लेआम थे और इनमें मारे गए लोगों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों से कहीं ज्यादा थी। जिस ब्रिटिश राजनयिक ने यह रिपोर्ट लिखी थी, उसे डॉक्यूमेन्टरी में नहीं दिखाया गया है।

डॉक्यूमेन्टरी के अनुसार रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पुलिस से यह कहा गया था कि वह हिंसा के दौरान मूकदर्शक बनी रहे। डॉक्यूमेन्टरी के अनुसार, तत्कालीन गृहमंत्री हरेन पंड्या ने जन न्यायाधिकरण के समक्ष गवाही देते हुए बताया कि 27 फरवरी की शाम हिंसा भड़कने के बाद मोदी ने अपने निवास पर बुलाई गई बैठक में पुलिस अधिकारियों से कहा था कि गोधरा की घटना पर हिन्दू प्रतिक्रिया होगी और पुलिस को हिन्दुओं को उनका गुस्सा निकालने देना चाहिए।

यही बात वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट ने कही थी। बाद में हरेन पंड्या की हत्या हो गई और संजीव भट्ट एक दूसरे मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। ईसाई पादरी फादर सेड्रिक प्रकाश, जिन्होंने हरेन पंड्या से न्यायाधिकरण के सम़क्ष गवाही देने का अनुरोध किया था, ने पुष्टि की कि पंड्या न्यायाधिकरण के समक्ष उपस्थित हुए थे।

इस फिल्म में एक ऐसा व्यक्ति, जो खून की प्यासी भीड़ के हमले में खुद की जान बचाने में किसी तरह कामयाब हो गया था, को यह कहते हुए दिखाया गया है कि उसकी आंखों के सामने एहसान जाफरी ने नरेन्द्र मोदी सहित हरेक से मदद की अपील करते हुए फोन किए परंतु उन्हें कोई मदद नहीं मिली और आखिरकार भीड़ ने उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।

अक्सर ऐसा प्रचार किया जाता है कि एसआईटी ने मोदी को क्लीन चिट दी है। परंतु यह नहीं बताया जाता कि एमीकस क्यूरी राजू रामचन्द्रन ने कहा था कि मोदी को अभियोजित करने के लिए पर्याप्त सुबूत नहीं हैं। इसके अलावा जनरल जमीरउद्दीन शाह ने कहा था कि उनके नेतृत्व में अहमदाबाद पहुंची सेना की टुकड़ी को तीन दिन तक स्थानीय प्रशासन ने हिंसा को नियंत्रित करने के लिए अपेक्षित मदद उपलब्ध नहीं करवाई और इन्हीं तीन दिनों में सबसे ज्यादा हिंसा हुई।

डॉक्यूमेन्टरी के दूसरे भाग में प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल पर चर्चा है। इसमें जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने, जम्मू-कश्मीर का दर्जा राज्य से घटाकर केन्द्र शासित प्रदेश करने और सैन्य बलों को और अधिक अधिकार देने सहित मोदी सरकार के कई निर्णयों को विश्लेषित किया गया है।

इसमें यह भी बताया गया है कि किस तरह गाय और गौमांस के मुद्दे पर समाज को बांटा जा रहा है जबकि उत्तर-पूर्व भारत के भाजपा नेता कह रहे हैं कि वे बीफ खाते हैं। गायों को मारने, गौमांस का भक्षण करने या गायों की खाल उतारने के झूठे आरोप लगाकर बड़ी संख्या में लोगों की लिंचिंग और समाज की मानसिकता पर इसके प्रभाव का अत्यंत प्रभावी चित्रण किया गया है।

और यह उस समय हो रहा है जब वैश्विक बाजार में भारत बीफ के सबसे बड़े निर्यातकों के रूप में उभर रहा है। मोदी सरकार के मंत्रियों द्वारा लिंचिंग के आरोपियों को माला पहनाकर स्वागत करना अत्यंत घिनौना था। यह सब करने वालों को सरकार कोई दंड नहीं देती और एक तरह से ऐसी हरकतों को प्रोत्साहित करती है।

डॉक्यूमेन्टरी में एनआरसी व सीएए के मुद्दों पर आंदोलन और जामिया मिलिया इस्लामिया व अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पुलिस के विद्यार्थियों पर बर्बर हमलों की भी चर्चा है। सीएए, पड़ोसी देशों के प्रताड़ित लोगों को भारत की नागरिकता देने में भेदभाव करता है क्योंकि मुसलमानों को इससे बाहर रखा गया है।

यह कानून हमारे संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर गंभीर प्रहार है। जहां तक एनआरसी का सवाल है, असम में एक लंबी कवायद के बाद यह पाया गया कि उन 20 लाख लोगों, जिनके पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं, में से 12 लाख हिन्दू हैं।

सीएए का असली उद्देश्य है पर्याप्त दस्तावेज न होने के बाद भी हिन्दुओं को पीछे के दरवाजे से देश का नागरिक बनाना और इसी श्रेणी के मुसलमानों को नजरबंदी केन्द्रों में भेजना।

शाहीन बाग आंदोलन ने देश को हिलाकर रख दिया था और मुस्लिम महिलाओं ने बिना किसी लाग लपेट के यह स्पष्ट कर दिया कि मुसलमान भी देश के नागरिक हैं। डॉक्यूमेन्टरी के पहले और दूसरे भागों को जोड़ने वाली कड़ी है मोदी की विघटनकारी राजनीति, जिसमें हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन पूरा सहयोग दे रहे हैं।

डॉक्यूमेन्टरी में जो घटनाएं दिखाई गई हैं उनमें से बहुत सी नई नहीं हैं परंतु वह गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर भारत के प्रधानमंत्री तक की मोदी की राजनैतिक यात्रा के मुख्य बिन्दुओं को सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुत करती है। इंग्लैंड की सरकार की रपट और बाद में यूरोपियन यूनियन की रपट, फिल्म के मुख्य किरदार की बांटने वाली राजनीति पर प्रकाश डालती हैं।

आज रणनीतिक कारणों से इंग्लैंड और अमेरिका इस डॉक्यूमेन्टरी पर चुप्पी साधे हुए हैं परंतु इसमें कोई शक नहीं कि यह भारतीय समाज को आईना दिखाती है। इससे वैश्विक मीडिया और प्रजातांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाली संस्थाओं को यह समझ में आएगा कि भारत सरकार चाहे जो कह रही हो दरअसल भारत में धर्म के नाम पर क्या हो रहा है। इससे दुनिया यह भी जान सकेगी कि भारत की सरकार हर संभव तरीके से अभिव्यक्ति की आजादी को कुचल रही है। आयकर ‘सर्वे‘ इन्हीं में से एक तरीका है।

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया, लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles