INDIA को संविधान से छेड़छाड़ और लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया बाधित करने की हर साजिश का जवाब देना होगा

17 सितंबर, मोदी जी के जन्मदिन को छात्र-युवा पिछले कई वर्षों से राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस, National Unemployment Day के रूप में observe करते रहे हैं। इस साल भी संयुक्त युवा मोर्चा के नेतृत्व में देश के कई इलाकों में युवा-संगठन यह अभियान चला रहे हैं। उधर 18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र शुरू हो रहा है, जिसका एजेंडा ही रहस्यमय बना हुआ है। आशंका है कि इस दौरान संविधान के साथ छेड़छाड़ तथा कानूनी बदलावों द्वारा लोकतांत्रिक चुनावों को असम्भव बना देने की खतरनाक योजना पर कदम बढ़ाए जा सकते हैं।

राष्ट्रीय राजनीति में इतनी अनिश्चितता और आशंकाओं भरा माहौल शायद ही कभी रहा हो। विशेष सत्र के एजेंडा का आंशिक खुलासा हुआ है, जिसमें चुनाव आयुक्तों की चयन समिति से CJI को बाहर करने का खतरनाक बिल तथा कुछ pending बिल शामिल हैं, पर अभी भी मोदी-शाह और उनके चुनिंदा लोगों के अलावा कोई नहीं जानता कि इस सत्र का असली मकसद और एजेंडा क्या है। सम्भव है जो आंशिक खुलासा किया गया है, वह विपक्ष और देश को गफलत में रखने के लिए बस tip of the iceberg हो।

आज कोई नहीं जानता, एक राष्ट्र एक चुनाव का जो राग छेड़ा गया है, अंततः इसके क्या implications होने जा रहे हैं, आखिर आम चुनाव कब होगा और यह कैसा होगा? हालत यह है कि आसन्न विधानसभा चुनावों की टाइमिंग को लेकर भी अनिश्चितता का वातावरण बन गया है।

उधर मोदी जी और संघ परिवार के तमाम संगठन विभाजनकारी एजेंडा को हवा देने में युद्धस्तर पर सक्रिय हो गए हैं।

दरअसल, मोदी जी के पास सकारात्मक मुद्दों का पूरी तरह अकाल है। उनके 2 कार्यकाल की एक भी ऐसी उपलब्धि गिनाने के लिए नहीं है, जिससे जनता के जीवन में कोई स्थायी बेहतरी और खुशहाली आयी हो। यह अनायास नहीं है कि high-stake विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियान में उतरते हुए उन्होंने मध्यप्रदेश में जो भाषण दिया, उसमें तमिलनाडु के एक गुमनाम मंत्री की टिप्पणी उनका केंद्रीय विषय बन गयी। सनातन को लेकर उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणी को बड़ा मुद्दा बनाने और उस पर आक्रामक होने के लिए वे अपनी पार्टी के सांसदों और नेताओं को पहले ही ललकार चुके थे।

उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणी की मेरिट और उसकी टाइमिंग या राजनीतिक नफे-नुकसान को लेकर बहस अलग विषय है, पर यह तो पाखंड की पराकाष्ठा है कि उनकी टिप्पणी पेरियार की लगभग एक सदी पुरानी जिस विचारधारा की स्वाभाविक derivative है, उस विचारधारा पर आधारित DMK/AIDMK के साथ गठबंधन बनाकर भाजपा मजे से सरकार चला चुकी है और आज मोदी जी वैसे ही गठबंधन के लिए INDIA alliance को हिन्दू विरोधी घोषित कर रहे हैं और कोस रहे हैं।

इस मुद्दे पर मोदी जी के जोर से साफ है कि इसे आने वाले महीनों में चुनाव का सर्वप्रमुख मुद्दा बनाया जाएगा। वे विपक्ष पर आरोप लगा रहे हैं कि वह सनातन हिन्दू धर्म का विरोधी है और भारत को फिर 1,000 साल की गुलामी की ओर ले जाना चाहता है। इस 1,000 साल की गुलामी अर्थात मुस्लिम शासकों के काल और मुगल पीरियड की थीम पर वह बार बार वापस लौट रहे हैं।

मुगल काल को हिंदुओं की गुलामी और अंधकार युग साबित करने के नैरेटिव का objectivity से कोई लेना देना नहीं है और इतिहासकार इसे खारिज कर चुके हैं। पर मोदी जी को इस सच्चे इतिहास से कुछ लेना देना नहीं है। उन्हें तो बस संघी historiography द्वारा गढ़े गए इस झूठ से हिंदुओं को डराना है कि विपक्ष हिंदुओं को मुसलमानों का गुलाम बनाना चाहता है। यह वही ‘हिन्दू संकट में हैं’ का पुरानी संघी राग है, नए फ़ॉर्मेट में।

गौरतलब है कि ठीक इसी तरह कुछ दिनों पहले विदेश यात्रा से लौटने के बाद MP के बूथ स्तर कार्यकर्ताओं को ऑनलाइन संबोधित करते हुए उन्होंने अचानक कॉमन सिविल कोड का राग छेड़ दिया था। आदिवासियों, पंजाब तथा पूर्वोत्तर के भारी विरोध के बाद फिलहाल उस पर चुप्पी है। लेकिन desperation में फिर वे इसे resurrect कर सकते हैं और एक देश, एक कानून के नाम पर इस विभाजनकारी प्रावधान को देश पर थोप सकते हैं।

दरअसल, UCC का राग, “इंडिया बनाम भारत” की बहस तथा सनातन पर यह hype एक ही पैकेज का हिस्सा है। मोदी जी सभी सम्भव प्रतीकों के माध्यम से अपने को हिन्दू राष्ट्रवाद के crusader के रूप में तथा विपक्षी दलों को हिन्दू विरोधी, मुस्लिम व विदेश-परस्त तत्वों के रूप में पेश करना चाहते हैं।

मोदी जी के भाषणों द्वारा बनाये जा रहे नैरेटिव को सड़क पर उतारने के लिए लव-जेहाद, धर्मांतरण व सनातन को मुद्दा बनाकर 30 सितंबर से बजरंग दल की शौर्य जागरण यात्रा शुरू हो रही है, यह आने वाले महीनों में राममंदिर के उद्घाटन को केंद्र कर हिंदुत्व की उन्मादी लहर खड़ा करने की तैयारी है, जिसका उद्देश्य समाज मे भीषण सामाजिक विभाजन और तनाव पैदा करना है।

बहरहाल मोदी-राज में जिंदगी के असल सवालों को लेकर बदहाल जनता अब इन खोखले भावनात्मक मुद्दों के झांसे में आने वाली नहीं है। यह पिछले दिनों हुए तमाम चुनाव-उपचुनाव नतीजों से साफ है।

चंद महीनों पहले हुए कर्नाटक के चुनाव में प्रधानमंत्री पद की सारी मर्यादा और संवैधानिक शपथ को भूलकर जिस तरह मोदी जी एक निचले स्तर के संघी प्रचारक की तरह चुनाव रैलियों में बजरंग बली का नारा लगवा रहे थे, उसका हस्र लोग भूले नहीं हैं। चुनाव विश्लेषणों ने साबित किया कि उससे कोई लाभ तो नहीं ही हुआ, उल्टे नुकसान हो गया। कर्नाटक की जनता ने विभाजन और ध्रुवीकरण की उनकी उन्मादी राजनीति को खारिज कर दिया और विपक्ष के सकारात्मक एजेंडा पर भ्रष्टाचार और लूट के खिलाफ जनादेश दिया।

यह सच है कि झूठ-सच-गल्प-मिथक का अकल्पनीय घालमेल करते हुए भीषण लफ्फाजी द्वारा राई को पहाड़ बनाने और नैरेटिव गढ़ने में मोदी जी को महारत हासिल है, पर कर्नाटक में उनका उन्मादी प्रचार जिस तरह मुंह के बल गिरा उससे यह मिथक भी ध्वस्त हो गया कि जनता की नब्ज पर उनकी कोई करिश्माई पकड़ है। वे यह समझ ही नहीं पाए कि उनकी प्रचार की रणनीति boomerang कर रही है।

शायद अब उनके पास बहुत विकल्प बचे भी नहीं हैं। जिस चौतरफा आर्थिक तबाही के मुकाम पर मोदी-राज में देश पहुंच गया है,  राजनीतिक भंवर में घिरती मोदी सरकार ने देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए जो घनघोर संकट खड़ा कर दिया है, उसमें उन्माद, अराजकता और अधिनायकवाद की राजनीति ही उनका अंतिम आश्रयस्थल है।

मोदी राज में आज़ाद भारत की जो सर्वोच्च बेरोजगारी दर लगातार बनी हुई है, न उसका इस सरकार के पास कोई समाधान है, न आर्थिक गतिरुद्धता के साथ जारी भारी मुद्रास्फीति का। युवा पीढ़ी का पूरा भविष्य-शिक्षा, रोजगार सब कुछ दांव पर लग गया है।

एकजुट होता विपक्ष जाति जनगणना आदि मुद्दों के माध्यम से नए सामाजिक ध्रुवीकरण में लगा है। हर मोर्चे पर उसे वैकल्पिक नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से जनता के जीवन की बेहतरी और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का ठोस आश्वासन देना होगा।

आने वाले महीनों में विपक्ष को सरकार और हिंदुत्व-ब्रिगेड के हर संविधानेत्तर दुस्साहसवाद का सड़क पर उतर कर मुकाबला करना होगा। सर्वोपरि संविधान से छेड़छाड़ और लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को बाधित करने की हर साजिश का मुंहतोड़ जवाब देना होगा।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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