बेरोजगार युवा फासीवादी वाहिनी का अंग बनेंगे या रोजगार-आंदोलन के सिपाही : यही तय करेगा लोकतन्त्र का भविष्य

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लोग तय नहीं कर पा रहे हैं कि भारत ने चीन को जो जनसंख्या के मोर्चे पर पछाड़ा है, वह खुश होने का अवसर है या दुःखी। कुछ दिनों पहले की बात होती तो अर्थशास्त्री इसे वरदान बताते क्योंकि इसका अर्थ है कि हमारी वर्किंग एज (age) पापुलेशन और युवा आबादी चीन से अधिक है, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है। एक तो चीन की आबादी हम से कम हो गयी है, दूसरे उनकी जीवन-प्रत्याशा (life expectancy) भारत से अधिक होने के कारण उनकी आबादी में वर्किंग एज (age) पापुलेशन का अनुपात भी कम है। 

याद कीजिये मोदी जी ने 2013-14 में भारत को नौजवानों का देश बताते हुए डेमोग्राफिक डिविडेंड की बारम्बार अपने लच्छेदार भाषणों में चर्चा की थी और इसी बिना पर बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए थे। युवाओं को हर साल 2 करोड़ रोजगार भी उसी पैकेज का हिस्सा था। लेकिन आज 9 साल बाद वे सारे सपने दुःस्वप्न में बदल चुके हैं। डेमोग्राफिक डिविडेंड दरअसल डेमोग्राफिक डिजास्टर में बदल चुका है। मोदी राज की विनाशकारी अर्थनीति से पैदा भयावह बेरोजगारी के कारण अधिक जनसंख्या वरदान की बजाय अभिशाप बनी रहेगी। चीन को इस एकमात्र मोर्चे पर पछाड़ना प्रगति नहीं तबाही का ही सबब बनेगा।

अब जब मोदी जी के कार्यकाल का आखिरी और 10 वां साल आ गया है, पूरे समाज के लिए ठंडे दिल दिमाग से -क्या खोया, क्या पाया-का बही-खाता बनाने का समय है। वैसे तो जनता हर चुनाव के पहले चुप-चाप यह करती रही है और उसके आधार पर अगले जनादेश का फैसला करती है। पर इस बार  दांव पर बहुत कुछ लगा है। इस बार न सिर्फ विभिन्न तबकों के हित दांव पर हैं, बल्कि जैसा किसानों ने सूत्रबद्ध किया, यह चुनाव “देश और लोकतन्त्र बचाने” का है। लोकतन्त्र के बिना किसी भी तबके के हितों की लड़ाई बेमानी और असम्भव हो जाएगी, उसके हालात ही नहीं बचेंगे !

स्वाभाविक रूप से इस असाधारण परिस्थिति की मांग के अनुरूप समाज के सभी संवेदनशील तत्व, विभिन्न तबकों/वर्गों/ हित समूहों (interest-groups) के संगठनों/आंदोलनों के प्रतिनिधि भी सचेष्ट और सक्रिय हैं।

आज हर सचेत देशभक्त नागरिक का यह राष्ट्रीय कर्तव्य है कि वस्तुगत और सचेत  (dispassionate) रूप से, भावुकता और संकीर्ण पहचानों से ऊपर उठकर मौजूदा हालात पर, पिछले 9 साल में देश की अर्थव्यवस्था, समाज, राज्य-राजनीति- कहां पहुंची इसको देखे-समझे। स्वयं उसका अपना हाल क्या है और इसी रीति-नीति पर देश चलता रहा तो 2024 के आगे का भविष्य कैसा होगा, उसका लेखा-जोखा करे।

मौजूदा चिंताजनक हालात पर संजीदगी से रिस्पांड( respond) करना वैसे तो पूरे समाज का ही दायित्व है, पर शायद यह सबसे ज्यादा जरूरी देश के युवाओं के लिए है। जिनमें पहली बार मतदान करने वाले वोटर्स (1st time voters) से लेकर, शिक्षा- रोजगार, गुणवत्तापूर्ण आय (descent earning) और सुखमय भविष्य की आकांक्षी समूची युवा पीढ़ी शामिल है, क्योंकि आज देश और लोकतन्त्र के बेहतर भविष्य में सबसे ज्यादा दांव उन्हीं का लगा है और इसे रूपाकार ( shape) करने में सबसे बड़ी भूमिका भी उन्हीं की होनी है।

जाहिर है जैसा देश वे बनाएंगे, उसकी सबसे बड़ी फसल उन्हें ही काटनी है। वह मुहावरा आज सबसे ज्यादा उन्हीं पर लागू है-“As u sow, so shall u reap ! “

याद करिए कितनी उम्मीदों से देश की युवा पीढ़ी ने मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाया था, जब उन्हें लगा था कि ‘भ्रष्ट’ कांग्रेस की तुलना में वे ईमानदारी के पुतले हैं जो घर-परिवार, निजी जीवन सब कुछ त्यागकर देश के लिए रात दिन एक किये हुए हैं। वे और भारत को चीन की तरह मैंनुफैक्चरिंग हब( manufacturing hub) बनाकर हर साल 2 करोड़ रोजगार देने वाले हैं। उनकी सारी रैलियों और सभाओं में मोदी-मोदी का सम्मोहक उन्मादी कोरस करने वाले कोई और नहीं देश के युवा ही थे।

लेकिन अब 9 साल बीतने के बाद वे कहां पहुंचे? हालत यह हो गयी है कि रोजगार दे पाने में नाकाम मोदी सरकार ने बेरोजगारी का खौफनाक सच छिपाने के लिए बेरोजगारी के आंकड़े ही देना बंद कर दिया!

बहरहाल बेरोजगारी के खौफनाक सच को जानने के लिए अब आंकड़ों की जरूरत भी नहीं रही। उसे अब रामनवमी जुलूसों में हाथों में तलवार त्रिशूल लिए उन्मादी नफरती नारे लगाते, गाली-गलौज करते, दूसरे धर्म के पूजा स्थलों पर हमले करते गरीब परिवार के युवाओं के हुजूम को देखकर समझा जा सकता है। ये वही अभागे युवा हैं जिन्हें कभी नौकरियां पकड़ाने का वायदा किया गया था, लेकिन अब नौकरियों की जगह उनके हाथों में त्रिशूल पकड़ा दिया गया है और दिल-दिमाग में नफरती-जहर भर दिया गया है।

सार्थक शिक्षा-सांस्कृतिक विकास से वंचित, उज्ज्वल भविष्य की किसी भी उम्मीद से रहित ये बेकार-बेरोजगार, मानवीयता खोते ( dehumanised) युवा फासीवादी गिरोहों के फूट सोल्जर( foot soldier) सत्ता के साजिशी खेल में भाड़े के हत्यारे ( supari killer ) और दंगाई बनने के लिए अभिशप्त हैं। जय श्रीराम के नारों के साथ हाल ही में अतीक-अशरफ की हत्या करने वाले 18-23 साल के बेहद गरीब परिवारों के अशिक्षित,बेरोजगार,अपराधिक प्रवृति (criminalised) के लड़के ऐसे ही युवाओं की ताजा बानगी हैं, जिन्हें शातिर राजनीति और सत्ता के खेल में इस्तेमाल किया जा रहा है।

जाहिर है बेरोजगारी से पैदा होने वाला युवाओं का अमानवीयकरण/ लंपटीकरण (dehumanisation/lumpenisation) धर्म/जाति/सम्प्रदाय की सीमाओं से परे एक सर्वव्यापी हकीकत है। वह उन्हें आत्मघात की ओर ले जा रहा है। ऐसे युवा हर तरह के कट्टरपंथ, नफरती राजनीति के लिए बेहद काम की चीज हैं और वे सम्प्रदायिकता, पुनरुत्थानवाद, फासीवादी राजनीति का चारा बनते रहेंगे।

वस्तुस्थिति की भयावहता को इस बात से समझा जा सकता है कि हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने का वायदा करके सत्ताशीन हुए मोदी जी आठ सालों के दौरान केन्द्र सरकार में महज 7 लाख लोगों को नौकरी दे सके, जिनके लिये आवेदन 22 करोड़ लोगों ने किया। जबकि स्वयं सरकार की स्वीकारोक्ति के अनुसार अकेले केंद्र सरकार में 10 लाख पद खाली हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े नियोक्ता  (employer) रेलवे में स्वयं मंत्रालय के अनुसार 3.12 लाख पद खाली हैं। वहां पिछले चार साल से एक भी पद विज्ञापित नहीं हुआ है। आखिरी बार 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले NTPC और Group-D की भर्ती आयी थी।

बहरहाल, चुनाव के मद्देनजर अब एक बार फिर मोदी जी अगले 1 साल में केंद्र सरकार में 10 लाख पदों को भरने का वायदा कर रहे हैं। जाहिर है अब युवाओं को इस पर यकीन नहीं रहा।

निराशा का आलम यह है कि ‘लेबर फ़ोर्स पार्टिसिपेशन रेट’ (Working age आबादी का वह हिस्सा जो रोजगार में है या उसकी तलाश में है) 40% से भी नीचे चला गया है, जो तमाम देशों में 60% के आसपास है।

यह स्वागत योग्य है कि 100 से ऊपर युवा संगठनों ने मिलकर रोजगार के कानूनी/संवैधानिक अधिकार के लिए ‘संयुक्त युवा मोर्चा’ का गठन किया है। जरूरत है कि तमाम संगठित लोकतान्त्रिक, प्रगतिशील छात्र/युवा संगठनों के साथ सहयोग(co-ordinate) करते हुए इसे व्यापक और सशक्त बनाया जाय।

उम्मीद है, आने वाले दिनों में किसानों-मेहनतकशों के संघर्षों के साथ मिलकर छात्र-युवा आंदोलन “देश और लोकतन्त्र बचाने” की निर्णायक लड़ाई में एक बार फिर अपनी ऐतिहासिक भूमिका का निर्वाह करेगा।

(लाल बहादुर सिंह, पूर्व अध्यक्ष इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ)

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