विश्वगुरु भारत आधुनिक गुलामों की सर्वाधिक संख्या वाला देश

पीएम मोदी के भारत के विश्वगुरु बनने की घोषणा और अमृतकाल पर एक और कुठाराघात हाल में प्रकाशित मॉडर्न स्लेवरी 2023 की रिपोर्ट करती है। हालांकि जनसंख्या में अनुपात के लिहाज से यदि गौर करें तो भारत चोटी के 10 सर्वाधिक गुलामी के प्रतिशत में नहीं आता है। लेकिन कुल संख्या के मामले में भारत का नंबर अव्वल है।

वाक फ्री संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 2023 में विश्व में गुलामी भरा जीवन जीने वाले लोगों की तादाद 5 करोड़ तक पहुंच गई है। आधुनिक गुलामी में जी रहे लोगों की भारत में संख्या 1.10 करोड़ है, चीन में 58 लाख, उत्तरी कोरिया में 26 और पाकिस्तान में 23 लाख है।

हालांकि कुल जनसंख्या के प्रतिशत के लिहाज से भारत में गुलाम लोगों की संख्या कई देशों से कम है। सबसे खराब रैंकिंग वाले देशों में उत्तरी कोरिया, एरिट्रिया, मॉरिटानिया, सऊदी अरबिया, तुर्किये, ताजकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात एवं रूस हैं। वहीं दूसरी तरफ स्विट्ज़रलैंड (160) सबसे निचली रैंकिंग पर मौजूद है। नॉर्वे, जर्मनी, नीदरलैंड्स, स्वीडन, डेनमार्क, बेल्जियम, आयरलैण्ड, जापान एवं फ़िनलैंड सबसे कम आधुनिक गुलामी के शिकार हैं।

वाक फ्री ने आधुनिक गुलामी के दायरे में जबरन श्रम, जबरन शादी या शादी के लिए महिलाओं को खरीदने, जबरन व्यावसायिक यौन उत्पीड़न, मानव-तस्करी, बंधुआ मजदूरी सहित बच्चों की खरीद-बिक्री और शोषण को रखा है। इसमें यदि निजी या आर्थिक हित की खातिर किसी भी व्यक्ति की वैयक्तिक स्वतंत्रता को छीनने, उनके द्वारा अपने नियोक्ता को छोड़ अन्य नियोक्ता को चुनने, या उसे कब और किससे शादी करनी है के हक से मरहूम रखा गया है, तो इसे आधुनिक गुलामी की श्रेणी में रखा गया है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि आधुनिक गुलामी के इंडेक्स में 160 देशों में विद्यमान 3 प्रमुख प्रश्नों को लिया गया है। 1) आधुनिक दासता में कुल कितने लोग अभी भी रह रहे हैं। 2) लोग कैसे इसकी चपेट में आ जाते हैं, और 3) इससे निपटने के लिए उन देशों की सरकारें क्या ठोस कदम उठा रही हैं।

वाक फ्री के चार्ट पर देखने पर पता चलता है कि विश्व में सबसे अधिक एशिया महाद्वीप में लोगों को जबरन दासता की बेड़ियों में जकड़ा जा रहा है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 2.9 करोड़ लोग इसकी चपेट में रह रहे हैं, जबकि अफ्रीका महाद्वीप भयानक गरीबी और भुखमरी के बावजूद 70 लाख की संख्या में जबरन दासता की चपेट में है। यूरोप एवं मध्य एशिया में 60 लाख, अमेरिकी महाद्वीप में 50 लाख और अरब मुल्कों में 20 लाख लोग दासता में रह रहे हैं।

गुलामी की स्थितियों को दूर करने के प्रयासों में जो देश सबसे आगे बढ़कर प्रयास कर रहे हैं, उनमें इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड्स, पुर्तगाल और अमेरिका जैसे देश आते हैं, जबकि सबसे कम कार्रवाई करने वाले देशों में उत्तरी कोरिया, एरिट्रिया, ईरान, लीबिया और सोमालिया को शुमार किया गया है।

भारत के संदर्भ में इस रिपोर्ट में कुल जनसंख्या 1.38 अरब बताई गई है। प्रति व्यक्ति आय को पीपीपी से आंकते हुए 6,525 डॉलर बताया गया है। भारत में हर 1,000 व्यक्ति पर 8 लोगों को गुलामी के जीवन में जीने के लिए मजबूर पाया गया है। कुल आबादी के प्रतिशत के लिहाज से भारत को 34वें स्थान पर रखा गया है, लेकिन सर्वाधिक गुलामों की संख्या मौजूदा सरकार के दावों की पोल खोलते हैं।

इसी के साथ भारत सरकार के लिए कुछ ठोस उपाय भी सुझाए गये हैं, जो इस प्रकार से हैं-

1- आधुनिक दासता के शिकार सभी लोगों के लिए लैंगिक, आयु, राष्ट्रीयता एवं धर्म को न देखते हुए सबके लिए आवश्यक सहायता प्रदान करने को सुनिश्चित किया जाये।

2- पीड़ित व्यक्ति के द्वारा उसके शोषक के नियंत्रण के तहत किये गये कार्यों और उनके व्यवहार के लिए उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई न हो, इसके लिए आवश्यक क़ानून लाया जाये।

3- सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को आपराधिक गतिविधि मानकर आवश्यक कानून तैयार किया जाये और उसे लागू किया जाए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही कम ज्यादा हो लेकिन आज भी दासता किसी न किसी रूप में विश्व में हर देश में विद्यमान है। उदाहरण के लिए जबरन शादी-ब्याह का मामला उन देशों में है जहां का समाज आज भी पितृसत्तात्मकता की जकड़ से उबर नहीं पाया है। इसके चलते वहां पर लैंगिक भेदभाव और असमानता व्याप्त है। यहां पर लड़कियों के लिए पैतृक भूमि पर हक़ नहीं है, और 18 साल से पहले शादी का कानून नहीं है।

कई देशों में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों की संख्या है, जहां पर पर्याप्त श्रमिक कानूनों के अभाव में उन्हें जबरन श्रम के लिए मजबूर होना पड़ता है। कई ऐसे देश भी हैं जहां पर जबरन श्रम को सरकार के द्वारा बढ़ावा दिया जाता है, जो पीड़ित लोगों को उनके हाल पर छोड़ देना है।

भारत में आज भी बड़े पैमाने पर बाल-विवाह की प्रथा है, लड़की की तुलना में बेटे को प्राथमिकता का चलन ग्रामीण ही नहीं शहरी इलाकों में भी देखा जा सकता है। जबरिया श्रम के लिए देश में लाखों की संख्या में चल रहे ईंट-भट्टों में होने वाले शोषण की अनदेखी नहीं की जा सकती है।

गन्ने की कटाई के लिए छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से किस प्रकार महाराष्ट्र सहित दक्षिण के राज्यों में महिलाओं को उपयोग में लाया जाता है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। सेक्स-रैकेटिंग और बच्चा चोरी की संख्या कम होने के बजाय लगातार बढ़ रही है। भारत के संदर्भ में 1.10 करोड़ का आंकड़ा पूरी तस्वीर नहीं बताता है, जिसमें कोविड-19 महामारी के बाद गुणात्मक उछाल आया है।

फिलहाल भारत जी-20 देशों की अध्यक्षता के सिलसिले में व्यस्त है, और देश के कोने-कोने में जी-20 से संबंधित विभिन्न बैठकें चल रही हैं। इसके लिए कई शहरों में गरीबों की झुग्गियों एवं अस्थाई निवास को जमींदोज किया जा रहा है। पीएम मोदी के भारत के विश्वगुरु बनने की दहलीज पर पहुंचने के नारे की हवा निकालती यह रिपोर्ट भारत के मध्य-वर्ग को एक बार फिर से जमीनी हकीकत दिखाने के लिए एक खिड़की खोलती है, जो तेजी से खोखली होती अर्थव्यस्था में K-shape विकास के सिर्फ एक पहलू को देखकर ही अहा-अहा कर सबसे तेजी से बढती अर्थव्यस्था की पश्चिमी धुन पर आंखें मूंदे बड़ी तेजी से अंधी सुरंग में बुलेट ट्रेन की गति से बढ़ा जा रहा है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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