कनाडा ने भारत के ऊपर अत्यंत गंभीर आरोप लगाया है। उसका सीधा आरोप है कि भारत सरकार ने उसकी भूमि पर उसके नागरिक की हत्या करवाई। इस इल्जाम को सार्वजनिक कर उसने दुनिया में भारत की छवि एक ऐसे देश के रूप में बनाने की कोशिश की है, जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों और कायदों को नहीं मानता। अंतरराष्ट्रीय बोलचाल की भाषा में ऐसे देशों को उच्छृंखल (rogue) देश कहा जाता है। एक समय पाकिस्तान की छवि ऐसे देश के रूप में बनी थी। तब आम बोलचाल में उसे आतंकवाद का प्रायोजक देश कहा जाता था।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपनी संसद के मंच पर खड़ा होकर ना सिर्फ ऐसा आरोप लगाया, बल्कि उनकी सरकार ने कनाडा स्थित भारतीय उच्चायोग में तैनात खुफिया मामलों के प्रभारी राजनयिक को अपने देश से निकालने का फैसला भी कर लिया। इस आरोप से भारत में गुस्से का माहौल बनना लाजिमी है। इस पर भारत सरकार की सख्त प्रतिक्रिया भी अपेक्षित ही थी। भारत ने ना सिर्फ कनाडा के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया, बल्कि जवाबी कार्रवाई के तौर पर समान स्तर के कनाडाई राजनयिक को भारत से पांच दिन के अंदर वापस चले जाने का आदेश दिया।
सारे मामले के केंद्र में कनाडा में जारी कथित खालिस्तान समर्थक गतिविधियां हैं। उन गतिविधियों के संचालकों में से एक- खुद को खालिस्तान समर्थक नेता बताने वाले हरदीप सिंह निज्जर की बीते जून में एक पूजा स्थल के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। कनाडा सरकार का आरोप है कि निज्जर की हत्या भारत सरकार की एजेंसियों ने की। भारत सरकार ने कहा है कि कनाडा ने यह आरोप उसके यहां खालिस्तानी आतंकवादियों को मिल रहे प्रश्रय से ध्यान हटाने के लिए लगाया है।
ट्रूडो ने सोमवार को संसद में भारत की छवि के लिए अत्यंत हानिकारक भाषण देने के एक दिन बाद कहा कि वे भारत के साथ तनाव नहीं बढ़ा रहे हैं, बल्कि भारत से यह कह रहे हैं कि वह इस मामले की तह तक पहुंचने के लिए चल रही जांच में पूरा सहयोग करे। इस बयान का मतलब है कि कनाडा की जांच अभी अपने अंतिम निष्कर्ष तक नहीं पहुंची है। ट्रूडो का दावा सिर्फ इतना है कि उनकी जांच एजेंसियों ने निज्जर की हत्या के बारे में ‘विश्वसनीय साक्ष्य’ इकट्ठे किए हैं। उनका दावा है कि जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए जब वे नई दिल्ली आए, तो यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने उन्होंने इस पूरे प्रकरण को उठाया। लेकिन मोदी ने सिरे से उन्हें ठुकरा दिया।
नई दिल्ली से लौटते ही ट्रूडो ने भारत के साथ चल रही व्यापार वार्ता को रोकने का एलान किया। उसके कुछ दिन बाद उन्होंने संसद में उपरोक्त विस्फोटक बयान दिया। उनकी सरकार के पास क्या ‘विश्वसनीय साक्ष्य’ हैं, यह हम नहीं जानते। भारत सरकार ने उसे कोई तव्वजो नहीं दी है। लेकिन अगर भारत के लिए यह चिंता की बात है कि कई ऐसे देशों ने उसे तव्वजो दी है, जिनसे संबंध को गहरा बनाना आज की भारत सरकार की खास प्राथमिकता रही है।
गौरतलब यह है कि कनाडा Five Eyes गठबंधन का सदस्य है। पांच देशों के इस गठजोड़ के बाकी सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड हैं। इन देशों में समान पहलू यह है कि ये सभी एंग्लो-सैक्सन पृष्ठभूमि से आते हैं। यानी जिन्हें भारत में अंग्रेज कहा जाता है, ये उनके वंशजों के देश हैं। इंग्लैंड उनकी मूल भूमि है। अंग्रेजों ने उपनिवेशवाद के दौर में बाकी चार भू-भागों पर जाकर वहां कब्जा कर लिया और वहां वे देश बसा लिए, जिन्हें आज हम उपरोक्त नामों से जानते हैं।
Five Eyes गठबंधन मुख्य रूप से खुफिया सूचना साझा करने का मंच है। इसकी शर्तों के मुताबिक ये पांचों देश आपस में खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। कनाडा ने बताया है कि निज्जर हत्याकांड के बारे में प्राप्त सूचनाओं को उसने इन देशों के साथ साझा किया था। इस बात की पुष्टि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की प्रतिक्रियाओं से भी हुई है। उन देशों ने कनाडा की तरफ से लगाए गए आरोप पर यकीन करते हुए प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस पर चिंता जताई है। ऑस्ट्रेलिया ने तो भारत से जांच में सहयोग करने को कहा है।
अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक कनाडा ने सूचनाओं को साझा करते हुए बाकी चार देशों से कहा था कि वे यह आरोप लगाने में उसके साथ अपनी आवाज मिलाएं। लेकिन अमेरिका ने ऐसा करने से मना कर दिया। उसने सलाह दी कि ट्रूडो को आपसी संवाद के माध्यमों से भारत के सामने अपनी सूचनाएं और आरोप रखने चाहिए। अमेरिका इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहता था, क्योंकि इस समय जबकि उसकी प्राथमिकता चीन को घेरने में भारत का साथ लेना है, वह भारत सरकार से दूरी नहीं बनाना चाहता है।
लेकिन नई दिल्ली से लौटने के बाद ट्रूडो ने इस आरोप को सार्वजनिक कर दिया। तब अमेरिका और Five Eyes के सदस्य अन्य देशों के सामने विकल्प सीमित हो गए। कहा जा सकता है कि यह सारा प्रकरण अमेरिका को असहज करने वाला है।
बहरहाल, अभी भी सूरत यही है कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया भारत से टकराव बढ़ाना नहीं चाहेंगे। इन देशों की अर्थव्यवस्था मुश्किल में है, जबकि इसी समय चीन को घेरना उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। इस कार्य में भारत की उन्हें बेहद सख्त जरूरत है। ऐसे में वे अंदरूनी कूटनीति के जरिए कनाडा पर भी बात को ज्यादा आगे ना ले जाने का दबाव बना सकते हैं। लेकिन यह भारत के लिए सीमित राहत की बात ही होगी।
असल सवाल है कि कनाडा के आरोपों ने भारत की जो छवि बनाई है, उसे कैसे तोड़ा जाएगा? इसकी दो स्थितियां हो सकती हैः पहली यह कि Five Eyes के बाकी सदस्य देश सार्वजनिक रूप से कनाडा के कथित साक्ष्यों को अविश्वसनीय करार दें। दूसरी सूरत यह हो सकती है कि भारत ऐसा अकाट्य तर्क पेश करे, जिससे ट्रूडो की बातें निराधार साबित हो जाएं।
गौरतलब है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने ट्रूडो के आरोपों को गंभीरता से लिया है। उसने भारत सरकार से कनाडा की जांच में सहयोग करने की मांग की है। इसका मतलब यह है कि कम से कम सिखों का एक तबका कनाडा के आरोपों को वजनदार मान रहा है। ऐसी राय रखने वाले अन्य लोग भी दुनिया में हो सकते हैं।
भारत सरकार को असल चिंता इन लोगों की करनी चाहिए। हालांकि कनाडा भारत का एक बड़ा व्यापार सहयोगी है और कनाडा भारतीय छात्रों के आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र रहा है, लेकिन इन बातों को नजरअंदाज किया जा सकता है। वैसे भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों को सिर्फ लेन-देन के नजरिए से देखना अल्पदृष्टि का परिचायक माना जाता है।
असल मुद्दा भारत की छवि और सॉफ्ट पॉवर का है। दशकों तक गरीब या विकासशील देश रहने के बावजूद भारत का सॉफ्ट पॉवर संसदीय लोकतंत्र आधारित जीवंत राजनीतिक व्यवस्था, कानून के राज पर अमल, देश में खुलेपन के माहौल और अंतरराष्ट्रीय नियमों के पालन के बेहतर रिकॉर्ड से बना था। देश के अंदर लोकतंत्र और कानून के राज पर पालन को लेकर आज कई गंभीर प्रश्न हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित हैं। उधर अब अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों पर अमल के भारत के रिकॉर्ड पर भी सवाल उठा दिया गया है।
हमें यह अवश्य याद रखना चाहिए कि किसी देश की दुनिया में हैसियत जितनी आर्थिक एवं सैनिक शक्ति से बनती है, उसमें उतना ही योगदान सॉफ्ट पॉवर का भी होता है। भारत एक मध्यम आर्थिक और सैनिक ताकत है। ऐसे में वह सॉफ्ट पॉवर को भी गंवा देने का जोखिम नहीं उठा सकता। भारत सरकार को पेश आई ताजा चुनौती का हर जवाब इस बात को ध्यान में रखते हुए ही तैयार करना चाहिए।
(सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)