सोहराबुद्दीन मामले के आखिरी गवाह आजम खान का उदयपुर से अजमेर जेल तबादला, जताई हत्या की आशंका

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17 मई को गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख, उनकी पत्नी कौसरबी और उनके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की कथित न्यायेतर हत्याओं से संबंधित हाई-प्रोफाइल मामले में एक महत्वपूर्ण गवाह आजम खान को उदयपुर सेंट्रल जेल से अजमेर जिले के घोघरा में उच्च सुरक्षा वाली जेल में भेज दिया गया। खान के एक रिश्तेदार ने मुझे बताया कि जब वह उदयपुर में था उस दिन सुबह करीब 10.30 बजे उन्होंने उससे कैदियों से बात करने के लिए उपयोग होने वाले एक फोन के जरिए बात की थी। उन्होंने याद किया कि खान ने उन्हें बताया था कि पुलिस अधिकारियों ने उन्हें लगभग आधे घंटे पहले फैसले के बारे में सूचित किया था। रिश्तेदार ने कहा, “यह सब अचानक हुआ”।

शेख, कौसरबी और प्रजापति को जानने वाले खान ने 3 नवंबर 2018 को मुंबई में मामले की सुनवाई कर रही एक विशेष केंद्रीय जांच ब्यूरो अदालत के समक्ष गवाही देते हुए कई विस्फोटक दावे किए थे। उसी महीने बाद में उसकी पत्नी रिजवाना खान ने राजस्थान उच्च न्यायालय में अपने पति के लिए सुरक्षा की मांग करते हुए एक याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि उसका तबादला नहीं किया जाए और उसे और उसके परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाए। याचिका में आरोप लगाया गया था कि खान और उसके परिवार को “धमकियों की बढ़ती संख्या का सामना करना पड़ रहा था” और पुलिस अधिकारियों ने उन्हें चेतावनी दी थी कि उसे “रास्ते में तुलसीराम प्रजापति की तरह मार दिया जाएगा।” यह याचिका न्यायालय के समक्ष लंबित है।

दिसंबर में बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में रिजवाना ने कहा कि अक्टूबर से लेकर अब तक कई बार उसके पति को इस तरह की धमकी दी जा चुकी है, विशेष रूप से यह कि उन्हें अजमेर की उच्च सुरक्षा वाली जेल में भेज दिया जाएगा “और उसके बाद जब भी उसे अजमेर से उदयपुर अदालत में पेशी के लिए लाया जाएगा, तो अज्ञात अपराधियों के जरिए या गैंग वॉर की आड़ में कोई भी प्रतिकूल घटना हो सकती थी।”

मैंने खान के तबादले की पुष्टि करने और अंतर्निहित कारण पर विवरण मांगने के लिए राजस्थान के कई पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया। उदयपुर रेंज के महानिरीक्षक अजय पाल लांबा ने मुझे बताया, “दरअसल, यह हमारा मामला नहीं है और मैं इसके बारे में बोलने के लिए उपयुक्त व्यक्ति नहीं हूं।” उदयपुर के पुलिस अधीक्षक विकास शर्मा ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि यह सवाल पूछना सही है। पहले आप मुझे बताएं कि आप मुझसे इस व्यक्ति के बारे में क्यों पूछ रही हैं… यह प्रशासनिक मुद्दा है, उन्हें किसी कारण की आवश्यकता नहीं है… यह एक बहुत ही नियमित प्रक्रिया है, मैम।” राजस्थान के जेल महानिदेशक भूपेंद्र कुमार डाक ने जवाब दिया, “आपको किसने बताया, किसने बताया…बताइए, आपको यह जानकारी कहां से मिली।” उन्होंने कहा,”कारवां पत्रिका को आजम खान में इतनी दिलचस्पी क्यों है?”

सीबीआई की विशेष अदालत के समक्ष खान द्वारा दी गई गवाही के अनुसार शेख, प्रजापति और खान सहयोगी थे और एक-दूसरे को करीब 2002 से जानते थे। गवाही में खान ने बताया कि उसने उदयपुर में रहने के लिए जगह खोजने में उनकी मदद की थी और शेख और कौसरबी की शादी की व्यवस्था भी की थी, जिसके कारण शेख और वह करीब आ गए थे।

अपनी गवाही में, खान ने एक चौंकाने वाला दावा किया: शेख ने उसे बताया था कि उसने दो अन्य लोगों, शाहिद रामपुरी और नईम खान के साथ मिलकर गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पंड्या की हत्या की थी। खान ने कहा, “मुझे दुख हुआ और मैंने सोहराबुद्दीन से कहा कि उसने एक अच्छे इंसान को मार डाला है। इसके बाद सोहराबुद्दीन ने मुझे बताया कि हत्या का यह ठेका श्री वंजारा ने दिया था।”

पंड्या की हत्या के शुरुआती महीनों में गुजरात पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी डीजी वंजारा ने मामले को लेकर अपराध शाखा की जांच का नेतृत्व किया। बाद में मामला सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया था। शेख, कौसरबी और प्रजापति की कथित न्यायेतर हत्याओं की एजेंसी की बाद की जांच में प्रमुख रूप से वंजारा को मामले के प्रमुख अभियुक्तों में से एक के रूप में दिखाया गया था। खान की गवाही ने पंड्या की मौत की आधिकारिक रिपोर्ट की सत्यता के बारे में परेशान करने वाले सवाल उठाए, जिसे जुलाई 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। इसके अनुसार हत्या हिंदुओं में आतंक फैलाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा थी।

बीजेपी के नेता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य पंड्या 26 मार्च 2003 की सुबह अपनी कार में मृत पाए गए थे। पंड्या के पिता का मानना था कि हत्या एक राजनीतिक हत्या थी और वे चाहते थे कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी इस मामले की जांच करें। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर एक याचिका भी दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

नवंबर 2005 में शेख, कौसरबी और प्रजापति बस से हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहे थे। सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार पुलिस अधिकारियों ने रास्ते में उन्हें रोका। शेख और कौसरबी को आखिरकार गांधीनगर के पास एक फार्म हाउस में ले जाया गया, जहां उन्हें मार दिया गया। सीबीआई ने गुजरात, राजस्थान और आंध्र प्रदेश के पुलिस कर्मियों पर साजिश में शामिल होने और उसे अंजाम देने का आरोप लगाया।

शेख की हत्या की खबर सामने आने के तुरंत बाद, गुजरात पुलिस ने कथित तौर पर दावा किया कि वह पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा था और कथित तौर पर मोदी की हत्या की साजिश रच रहा था। पुलिस ने यह भी दावा किया कि अधिकारियों ने शेख को मार डाला क्योंकि जब उन्होंने उसे पकड़ने की कोशिश की तो उसने उन पर गोली चला दी। इस मामले में सीबीआई के एक आरोप पत्र के अनुसार शेख और कौसरबी के साथ बस से उतरे प्रजापति उनके अपहरण के गवाह थे।

हत्याओं के एक महीने से भी कम समय के बाद, प्रजापति को एक अलग हत्या के मामले में उदयपुर सेंट्रल जेल में कैद किया गया था। जिसके बाद से प्रजापति अपने जीवन पर ख़तरे के बारे में सचेत रहा और यहां तक ​​कि मदद के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी लिखा। कथित तौर पर उसकी मां ने उसे कई बार यह कहते हुए सुना, “मेरा एनकाउंटर हो जाएगा।” दिसंबर 2006 में प्रजापति का डर सच निकला। वह अहमदाबाद में अदालत की सुनवाई से उदयपुर लौट रहा था, जब उसके साथ गए पुलिस अधिकारियों के अनुसार वह कथित रूप से उनकी हिरासत से भाग गया, जिस कारण उन्हें घातक कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

अपनी जांच में सीबीआई ने एक भयावह साजिश का आरोप लगाया, जिसकी जड़ें एक अपराधी-राजनीतिज्ञ-पुलिस गठजोड़ द्वारा चलाए जाने वाले जबरन वसूली रैकेट में थीं, जिसमें शेख और प्रजापति हिस्सा थे। आखिरकार, ब्यूरो ने गुजरात के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह को रैकेट और उसके बाद की हत्याओं के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक के रूप में नामित किया। इस मामले से जुड़ी चार्जशीट में वंजारा, उस समय राजस्थान के कनिष्ठ गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया और उदयपुर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक दिनेश एमएन सहित कई अन्य पुलिस अधिकारियों के नाम शामिल थे।

जब प्रजापति को उदयपुर सेंट्रल जेल ले जाया गया, उस समय खान- जिसे महीनों पहले प्रजापति द्वारा की गई हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था- को भी वहीं कैद किया गया था। (शेख, खान और प्रजापति सहित हत्या के सभी आरोपियों को बाद में बरी कर दिया गया था।) खान ने अपनी गवाही में बताया, “तुलसीराम मुझसे मिला और यह कहकर रोने लगा कि सोहराबुद्दीन और कौसरबी को उसकी गलती के कारण मार दिया गया है।” उसने प्रजापति को यह बताते हुए याद किया कि वंजारा और गुजरात पुलिस के अन्य अधिकारियों ने शेख को झूठे बहाने से पकड़ने में प्रजापति का सहयोग लिया था। उन्होंने प्रजापति को आश्वासन दिया था कि शेख को केवल कुछ महीनों के लिए ही गिरफ्तार किया जाएगा, क्योंकि राजनीतिक दबाव था और फिर रिहा कर दिया जाएगा।

सीबीआई के अनुसार प्रजापति की हत्या से पहले के महीनों में राजस्थान और गुजरात पुलिस के अधिकारियों ने संभावित रूप से उन्हें और खान को निशाना बनाने के कई प्रयास किए, जब वे एक मामले के संबंध में अदालत में पेश होने के लिए गुजरात गए थे। इन पुलिस अधिकारियों में दिनेश एमएन सहित कई शेख और कौसरबी की कथित न्यायेतर हत्याओं के आरोपी थे। अपने एक आरोप पत्र में सीबीआई ने अनुमान लगाया कि इनमें से कुछ प्रयासों को विफल कर दिया गया था क्योंकि खान और प्रजापति के रिश्तेदार, जिन्हें दोनों ने अपने जीवन पर खतरे के बारे में सचेत किया था, यात्रा के दौरान पुलिस एस्कॉर्ट्स के साथ उनके साथ थे।

इस तरह की एक अदालत की यात्रा के दौरान, खान ने अपनी गवाही में बताया कि गुजरात के आतंकवाद विरोधी दस्ते के अधिकारियों ने अहमदाबाद पहुंचने पर राजस्थान पुलिस अधिकारियों से उनकी कस्टडी ले ली थी। खान ने कहा कि अदालत में पेश किए जाने से पहले उन्हें साबरमती जेल ले जाया जाता था, लेकिन इस बार अधिकारी उन्हें एटीएस कार्यालय ले गए। खान ने बताया, “मैं और तुलसीराम डरे हुए थे, हम दोनों चिल्लाने लगे कि हमें पुलिस मार देगी।” अंततः उन्हें एक न्यायाधीश के सामने पेश किया गया।

एटीएस ने दावा किया कि वह खान और प्रजापति की रक्षा कर रही थी, क्योंकि गैंगस्टरों के कारण उनकी जान को खतरा था। खान ने बताया, “मैंने जज से कहा कि मुझे पुलिस के हाथों अपनी जान जाने का डर है।” उन्होंने याद किया कि उन्होंने न्यायाधीश से यह भी कहा था कि उन्हें हथकड़ी लगाकर वापस उदयपुर ले जाया जाना चाहिए, ताकि पुलिस बाद में यह दावा न कर सके कि “हमने भागने की कोशिश की और मुठभेड़ में मारे गए।”

25 दिसंबर 2006 को प्रजापति ने एस्कॉर्टिंग पुलिस अधिकारियों की एक टीम के साथ एक बार और अदालत में उपस्थिति होने के लिए यात्रा की, जिस पर सीबीआई ने आरोप लगाया कि यह फैसला दिनेश एमएन द्वारा लिया गया था। इस सुनवाई के लिए खान प्रजापति के साथ नहीं गए; उन्हें एक अन्य मामले में पुलिस हिरासत में लिया गया था। सीबीआई ने आरोप लगाया कि हालांकि दिनेश इस मामले में खान से कुछ दिन पहले ही पूछताछ कर सकता था, लेकिन उसने अपने सहयोगी से कहा कि वह 25 दिसंबर को खान से मिलना चाहता है।

सीबीआई की चार्जशीट में कहा गया है कि उसने ऐसा इसलिए किया कि “तुलसीराम प्रजापति को अकेले अहमदाबाद जाना पड़े।” इसमें आगे कहा गया है कि दिनेश ने अपने अधीनस्तों से कहा था कि वह खान से व्यक्तिगत रूप से पूछताछ करेगा, लेकिन जब वह पुलिस हिरासत में था तब उसने खान से कभी पूछताछ नहीं की। चार्जशीट में कहा गया है कि “यह केवल यह साबित करता है कि इस सब में उसका एकमात्र उद्देश्य आपराधिक साजिश को आगे बढ़ाते हुए यह सुनिश्चित करना था कि मो. आजम को तुलसीराम प्रजापति की यात्रा के दौरान अलग कर दिया जाए।

28 दिसंबर को प्रजापति की हत्या कर दी गई। अपनी गवाही में खान ने 23 या 24 दिसंबर को जेल में प्रजापति के साथ अपनी अंतिम मुलाकात के बारे में बताया। “हमारे बीच आखिरी बातचीत यह हुई थी कि या तो मैं वापस नहीं आऊंगा या वह वापस जेल नहीं आएगा।”

19 दिसंबर 2018 को सीबीआई अदालत के सामने खान की गवाही के एक महीने से अधिक समय बाद और अदालत के फैसले से कुछ ही दिन पहले, उन्होंने फिर से जांच करने की मांग की। अदालत को दिए एक आवेदन में खान ने लिखा कि उसकी गवाही अधूरी थी क्योंकि उसने गवाही से पहले के दिनों में उदयपुर पुलिस कर्मियों के हाथों लगभग बीस दिनों तक अविश्वसनीय यातनाएं झेली थी और बयान की सुबह भी खान को एक आरोपी ने धमकी दी थी। नतीजतन, आवेदन में लिखा गया हालांकि खान “एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी ‘वंजारा’ का नाम लेने में सक्षम थे” वह अन्य पुलिस अधिकारियों और राजनेताओं का नाम लेने से डर रहे थे।

खान ने दावा किया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज उसके बयान को सरकारी वकील ने सबूत के तौर पर पेश नहीं किया। पुलिस को दिए गए बयानों के उलट, धारा 164 के तहत दिए गए बयान सबूत के तौर पर स्वीकार्य हैं।

आवेदन के अनुसार, उसके बयान से जो विवरण छूट गए थे, उनमें यह तथ्य शामिल था कि 2010 में उसे गुजरात पुलिस के अधिकारियों द्वारा धमकी दी गई थी और एक झूठा हलफनामा देने के लिए अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था। उसे यह लिखने के लिए मजबूर किया गया था कि सीबीआई ने उसे झूठे बयान देने के लिए के लिए मजबूर किया था। खान ने कहा कि उसे अहमदाबाद के एक होटल में जाने के लिए मजबूर किया गया था और वहां ले जाने वाले लोगों में से एक ने उससे कहा, “अदालत में हमारे अभय चुडास्मा सर के खिलाफ बयान देकर तुमने जो किया वह सही नहीं था। तुम सोच भी नहीं सकते कि अब हम तुम्हारा क्या करेंगे।”

शेख और कौसरबी की कथित न्यायेतर हत्याओं के समय चुडासमा गुजरात पुलिस के उपायुक्त और सीबीआई मामले में एक आरोपी थे। खान ने अपने बयान में कहा कि उसे यह भी बताया गया था, “अमित शाहजी को 27 सितंबर 2010 तक जमानत मिल रही है, हमने उनसे पूरी बातचीत की है, हम तुम्हें यहां एक फ्लैट दिलवा देंगे और तुम जो भी कारोबार कहो, हम उसे स्थापित कराने में तुम्हारी मदद करेंगे।”

मामले से संबंधित सीबीआई की एक चार्जशीट में कहा गया कि इसकी जांच से पता चला है कि शाह और चुडासमा ने, “न्यायिक हिरासत में रहते हुए गुजरात पुलिस के कुछ अधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण सबूत नष्ट करने और कानून से अभियुक्तों को बचाने के लिए साजिश रची।” खान का अपहरण भी इस उक्त साजिश का हिस्सा था। ब्यूरो ने यह भी पाया कि झूठा हलफनामा दायर करके खान को आरोपी अमित शाह को जमानत दिलाने में मदद करने के उद्देश्य से अपने बयान से पीछे हटने के लिए मजबूर किया गया था।

अपने दिसंबर 2018 के आवेदन में खान ने आरोप लगाया कि उनकी गवाही से पहले के छह महीनों के दौरान उन्हें और उनके परिवार को लगातार परेशान किया गया और धमकाया गया। उस वर्ष 7 जून को आवेदन में दावा किया गया था कि उसके दो भाइयों और उसके चाचा को उदयपुर पुलिस ने उठा लिया था। अधिकारियों ने कथित तौर पर खान की मां को यह कहते हुए धमकाया कि वे उसके रिश्तेदारों को तब तक नहीं जाने देंगे जब तक खान “उनकी इच्छा के अनुसार गवाही नहीं देता।”

आवेदन में यह भी कहा गया है कि खान के रिश्तेदारों को उठाए जाने के सात दिन बाद रिहा कर दिया गया था। लेकिन उनसे उस बयान पर हस्ताक्षर कराया गया जिसमें लिखा था कि उन्हें केवल कुछ घंटों के लिए पूछताछ के लिए ले जाया गया था और उसके बाद वे अपने परिवार को बताए बिना तुरंत अजमेर शरीफ दरगाह के लिए रवाना हो गए थे।

आवेदन में कहा गया है कि जब रिजवाना खान 26 सितंबर को सीबीआई अदालत गई, तो उन्हें अदालत के अंदर एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा धमकी दी गई, जिसने उन्हें कहा कि खान को, जैसा हमने उसे बताया है उसी तरह गवाही देनी पड़ेगी। रिजवाना ने अपने पति की मदद से अदालत में एक लिखित अनुरोध प्रस्तुत किया, जिसमें पूछा गया कि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें अपनी पसंद की तारीख पर गवाही देने की इजाजात दी जाए। कोर्ट ने इस पर सहमति जताई।

आवेदन में आगे बताया गया कि पांच दिन बाद बिना नंबर प्लेट वाली मोटरसाइकिल पर तीन लोगों ने रिजवाना को उस समय रोका जब वह अपने घर से निकल रही थी। उन्होंने उसे अपने साथ पास की एक जगह जाने के लिए मजबूर किया, जहां एक सफेद लग्जरी कार खड़ी थी। कार की पिछली सीट पर बैठे एक व्यक्ति ने कथित तौर पर रिजवाना को धमकी दी कि अगर खान ने अनुकूल बयान नहीं दिया, “जो कौसरबी के साथ हुआ था… उसके साथ होगा” और उसके पति के साथ सोहराबुद्दीन और तुलसीराम से भी बुरा होगा।

6 अक्टूबर को रिजवाना ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को एक पत्र में अपने इस अनुभव के बारे में बताया, जिसकी प्रतिलिपि राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश नरेश हरिश्चंद्र पाटिल को भेजी गई थी। इस पत्र में रिजवाना ने यह भी आरोप लगाया कि कार में बैठे व्यक्ति ने उसे आजम को न्यायमूर्ति लोया का उदाहरण देने के लिए कहा, कि जब लोया ने उनके निर्देश का पालन नहीं किया तो उन्होंने लोया के साथ क्या किया।”

न्यायेतर हत्याओं से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही विशेष सीबीआई अदालत की अध्यक्षता करने वाले बीएच लोया की 2014 में 30 नवंबर और 1 दिसंबर की दरमियानी रात रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। रिजवाना ने एनएचआरसी और राष्ट्रीय महिला आयोग को भी पत्र भेजे।

खान जब जमानत पर जेल से बाहर थे, तब उन्हें 12 अक्टूबर को उदयपुर पुलिस की एक विशेष शाखा द्वारा दिल्ली में गिरफ्तार किया गया था। खान के आवेदन में आरोप लगाया गया है कि उसे उदयपुर के भूपालपुरा थाने लाया गया। रिजवाना को अगले दिन पता चला, जब वह उसकी तलाश में निकली। अर्जी के मुताबिक जब वह थाने पहुंची तो उसे खान से बात नहीं करने दी गई। इसके बजाय, थाना प्रभारी हरिंदर सिंह सोडा ने कथित तौर पर रिजवाना के साथ मारपीट की और उसे हवालात में डाल दिया। आवेदन में आरोप लगाया गया है, “उसका फोन भी उससे ले लिया गया था और उसे चार-पांच घंटे, सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक हिरासत में रखा गया था।”

आवेदन में आरोप लगाया गया है कि 13 अक्टूबर से 18 अक्टूबर के बीच खान पर हिरासत में बार-बार हमला किया गया। आवेदन में कहा गया कि 17 अक्टूबर को सोडा ने खान को थाने के परिसर में एक हनुमान मंदिर के सामने बैठने के लिए मजबूर किया और पचास से अधिक पुलिस कर्मियों को उसे पीटने का निर्देश दिया। 23 अक्टूबर को खान को उदयपुर शहर के बाहरी इलाके में एक महिला पुलिस स्टेशन में ले जाया गया, जहां उस समय उप-अधीक्षक भगवत सिंह हिंगड़ ने उन्हें प्रताड़ित किया और “उन्हें बार-बार गुजरात और राजस्थान के पुलिस अधिकारियों को नहीं फंसाने के लिए कहा गया। खान को “यह भी धमकी दी गई थी कि उसे लाते या ले जाते समय तुलसीराम प्रजापति की तरह उन्हें भी मार दिया जाएगा।”

आवेदन के अनुसार 3 नवंबर की सुबह- जिस दिन खान को गवाही देनी थी- उसके साथ गए पुलिस अधिकारी उसे अपने होटल के पास खड़ी एक काली कार में ले गए। जिसमें अब्दुल रहमान बैठा था। रहमान, कथित न्यायेतर हत्याओं के समय राजस्थान पुलिस में इंस्पेक्टर था। वह सीबीआई की जांच में आरोपी ठहराए गए अधिकारियों में से एक था। खान ने आरोप लगाया कि पुलिस टीम ने उन्हें रहमान के साथ लगभग आधे घंटे के लिए छोड़ दिया, जिसने उसे अपने बयान में राजस्थान के किसी भी पुलिस कर्मी का जिक्र नहीं करने के लिए कहा, नहीं तो “उसके खिलाफ और मामले गढ़े जाएंगे।” अर्जी में खान ने यह भी आरोप लगाया कि अगले दिन उदयपुर लौटने पर रहमान ने एक पुलिस स्टेशन में उसे फिर से धमकी दी।

इन मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए 15 नवंबर तक रिजवाना ने राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सुरक्षा की मांग की। साथ ही उदयपुर से खान के तबादले पर रोक लगाने का अनुरोध किया। दो दिन बाद न्यायिक हिरासत में खान को उदयपुर सेंट्रल जेल ले जाया गया, जहां उसके आवेदन के अनुसार, जेल अधीक्षक ने उसे बताया कि उसे अजमेर की उच्च सुरक्षा वाली जेल में स्थानांतरित किया जा रहा है।

आवेदन में आरोप लगाया गया रिजवाना की याचिका लंबित होने के बावजूद 30 नवंबर को उसे स्थानांतरित करने का प्रयास किया गया। खान की मां के उदयपुर सेंट्रल जेल जाने और एक आवेदन जमा करने के बाद उस समय स्थानांतरण रोक दिया गया था। आवेदन में कहा गया था कि अगर उसे स्थानांतरित किया गया तो उसकी जान को खतरा होगा और रिजवाना ने एनएचआरसी और जेलों के लिए राजस्थान के पुलिस महानिदेशक सहित कई अधिकारियों को ईमेल के जरिए शिकायत दर्ज कराई।

सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा खान के आवेदन की फिर से जांच होनी है, साथ ही मामले में एक अन्य गवाह, गुजरात के एक पेट्रोल पंप के मालिक महेंद्र जाला द्वारा दायर इसी तरह के आवेदन को 21 दिसंबर को उसी दिन खारिज कर दिया गया था जब अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी 22 अभियुक्तों को बरी करते हुए अपना फैसला सुनाया था। सीबीआई ने मूल रूप से 38 लोगों को नामजद किया था, जिनमें से विशेष अदालत ने पहले ही 16 को बरी कर दिया था, जिनमें राजनेता और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शामिल थे। जब तक अदालत ने अपना फैसला सुनाया, तब तक मामले के 210 गवाहों में से 92 अपने बयान से पलट चुके थे।

दिनेश एमएन, जिसे 2007 में मामले के संबंध में गिरफ्तार किया गया था और नौकरी से निलंबित कर दिया गया था, को 9 मई 2014 को जमानत पर रिहा कर दिया गया। उसे कथित तौर पर चार दिन बाद राजस्थान पुलिस ने बहाल कर दिया। अगस्त 2017 में उसे सीबीआई की विशेष अदालत ने मामले से बरी कर दिया। फरवरी 2023 में उसे अपराध के लिए राजस्थान पुलिस की अपराध शाखा में अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था।

खान को दूसरी जगह लेकर जाने वाले दिन जब मैं राजस्थान पुलिस के अधिकारियों से पूछताछ कर रही थी, मुझे मनजीत सिंह का फोन आया, जिन्होंने खुद को उदयपुर का अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बताया। जब मैंने उनसे खान के स्थानांतरण का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक नियमित प्रक्रिया है, पुलिस समय-समय पर ऐसा करती है।” उस रात मैंने ज्यादा जानकारी के लिए अजमेर के जेल अधीक्षक पारस जांगिड़ से संपर्क किया। उन्होंने कहा,“हो गया, वो आ गया।” जांगिड़ के मुताबिक खान “दोपहर करीब 3-4 बजे” जेल पहुंचा।

20 मई की दोपहर को खान के वकील अखिलेश मोगरा ने अजमेर जेल में खान से मुलाकात की। मोगरा ने मुझे बताया, “वह काफी डरा हुआ और घबराया हुआ था। उन्होंने कहा कि वह समझ नहीं पा रहा है कि उसका अचानक तबादला क्यों किया गया।” मोगरा के अनुसार, खान उदयपुर सेंट्रल जेल में अन्य कैदियों के साथ एक सेल में था, लेकन अजमेर में वह उच्च सुरक्षा जेल में अपने सेल में अकेला था। मोगरा ने बताया, “उसे न तो किसी से मिलने दिया जा रहा है और न ही किसी से बात करने दे रहे हैं। जब खान ने पुलिस से इस बारे में पूछा तो उसे बताया गया कि जब तक अधिकारियों की तरफ से आदेश नहीं दिया जाता तब तक ऐसा ही रहेगा।

मैंने 21 मई की रात फिर जांगिड़ से बात की। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि खान अपने सेल में अकेला रहता था, उन्होंने दावा किया कि एक और व्यक्ति वहां बंद था। उन्होंने कहा, “जब मैंने जेल का दौरा किया था तो मैंने खुद इसे देखा था।” मैंने उनसे पूछा कि उन्होंने कब दौरा किया था। जांगिड़ ने जवाब दिया, “मैं आपको यह नहीं बता सकता। मैंने आपको पहले ही काफी कुछ बता दिया है और ये सुरक्षा का मामला है।”

(निकीता सक्सेना की रिपोर्ट, कारवां से साभार)

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