एक वर्ष से राजस्थान में बीजेपी का राज है, लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा नवसृजित 9 जिलों और तीन नए संभागों की मान्यता को रद्द करने में भजनलाल शर्मा सरकार को लंबा वक्त लग गया। बता दें कि पूर्ववर्ती अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार ने राज्य में 17 नए जिले और 3 संभाग पाली, सीकर और बांसवाड़ा बनाये गये थे।
ये सभी जिले विधानसभा चुनावों से कुछ समय पहले ही बनाये गये थे, इसलिए इसमें चुनावी लाभ की मंशा से भी इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन इसी के साथ यह भी सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या भाजपा सरकार का यह फैसला उचित है?
जिन 9 जिलों की मान्यता को रद्द किया गया है, वे हैं दूदू, केकड़ी, शाहपुरा, नीमका थाना, गंगापुर सिटी, जयपुर ग्रामीण, जोधपुर ग्रामीण, अनूपगढ़ और सांचौर। ये जिले यथावत बने रहेंगे- बालोतरा, खैरथल-तिजारा, ब्यावर, कोटपूतली-बहरोड़, डीडवाना-कुचामन, फलोदी और सलूंबर।
इस प्रकार अब राजस्थान में कुल 7 संभाग और 41 जिले रहेंगे। गहलोत सरकार में राजस्थान में कुल जिलों की संख्या 50 तक पहुंच गई थी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा के अनुसार, जोगाराम पटेल, रिटायर्ड आईएएस अधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर राज्य में नए जिलों एवं संभाग का अध्ययन किया गया था।
भूभाग की दृष्टि से राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। राज्य में आम लोगों के लिए प्रशासन तक पहुंच एवं अन्य सुख सुविधा को ध्यान में रखकर यह फैसला लिया गया था, जिसके तहत 17 नए जिले बनाये गये थे।
लेकिन 28 दिसंबर को राजस्थान की भजनलाल सरकार ने जो फैसला सुनाया है, उस पर राज्य में भारी असंतोष पैदा हो गया है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का इस बारे में कहना है कि पूरा देश स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मृत्यु पर 7 दिवसीय शोक में डूबा हुआ है। ऐसे वक्त में भजनलाल सरकार का यह फैसला पूरी तरह से दुर्भावनापूर्ण है।
इसके साथ ही हाई कोर्ट बंद होने के कारण कोई जनहित याचिका भी नहीं लगाई जा सकती है। 3 संभाग और 9 जिले निरस्त करना कहीं से भी उचित नहीं है, आज तक किसी भी सरकार ने ऐसा गलत निर्णय नहीं लिया। जो नए जिले बनाये गये थे, वहां पर लंबे समय से जनता इसकी मांग कर रही थी।
जिलों का निर्माण पूरी तरह से प्रशासनिक तौर पर लोगों को ज्यादा से ज्यादा सुविधा मिले, को ध्यान में रखकर किया गया था। लेकिन भजनलाल की भाजपा सरकार ने बदले की भावना से काम लिया है।
कांग्रेस प्रवक्ता, गोविंद पटेल के अनुसार, इन 9 जिलों में लोगों का गुस्सा देखने को मिल रहा है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान इसके लिए बाकायदा मैपिंग की गई थी, उसके बाद ही सारी प्रक्रिया को पूरी करने के बाद जिलों की घोषणा की गई थी।
जिन 17 नये जिलों में से 9 जिलों को रद्द किया गया है, उन सभी जिलों में लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को अपने पक्ष में जनादेश नहीं मिला था, उसी का बदला लिया गया है। बीजेपी नेता झावर सिंह झाबरा ने भी एक बयान में कहा था कि सीकर, चुरू और झुंझनु की जनता को इसके परिणाम देखने को मिलेंगे।
वहीं भाजपा के नेताओं का कहना है कि पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए जल्दबाजी में यह फैसला लिया था। हमने 9 जिलों को हटाया है और 8 जिलों को यथावत रखा है। यह काम बिना समुचित समीक्षा किये हुए किया गया था, इसके लिए राष्ट्रीय औसत को ध्यान में रखा जाना चाहिए था।
किसी जिले में कितनी तहसील, जनसंख्या, वित्तीय और मानव संसाधन सहित भवनों की उपलब्धता जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर को ध्यान में रखा जाता है। हमारी कमेटी ने इसकी पूर्ण रूप से समीक्षा की, जिसके बाद यह फैसला लिया गया है।
इसके साथ ही भाजपा की ओर से यह भी तर्क रखा जा रहा है कि 1956 से 2023 तक सिर्फ 7 नए जिले बनाये गये थे, लेकिन 2023 में ठीक चुनाव से पहले 17 जिले बना दिए गये। बीजेपी का इसके साथ ही कहना है कि उसने दो कमेटी गठित की। जिसका निष्कर्ष था कि कुछ जिलों को यथावत रखा जा सकता है, जबकि कुछ जिलों का दर्जा खत्म किया जाना चाहिए।
राज्य के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन लगातार तेज
भजनलाल शर्मा सरकार के द्वारा जिलों को खत्म करने के फैसले की खबर वायरल होते ही राज्य के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। कांग्रेस का कहना है कि वो जैसे ही सत्ता में दोबारा आएंगे, वे दुबारा से इन जिलों को बना देंगे। इस बीच राज्य के कई हिस्सों में इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है।
शाहपुरा में विरोध दर्ज करवाने के लिए बंद का ऐलान कर दिया गया। फैसले का विरोध करने वालों का कहना है कि भजनलाल सरकार का ये फैसला राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा है। उन्होंने सरकार को चेतावनी दी कि अगर जिलों को खत्म किया गया तो इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।
इस फैसले के तत्काल बाद नीमका थाना में कई प्रदर्शनकारियों ने टायर जला कर अपना विरोध जताया। इसके साथ ही ट्रेन सुविधा को भी बाधित करने की धमकी दी गई है।
विधायक सुरेश मोदी के मुताबिक, भजनलाल का ये फैसला जनता को नुकसान पहुंचाने के लिए लिया गया है। इसके खिलाफ मंगलवार को बाजार बंद रखा जाएगा। नीमका थाना को जिला बनाने की मांग सत्तर वर्षों से की जा रही थी। ये जिला बनने के सभी पैरामीटर को पूरा करता है। ऐसे में इसे खत्म करना जनता के लिए भारी परेशानी को पैदा करेगी।
नीमका थाना के अलावा शाहपुरा, अनूपगढ़ और दूदू में भी विरोध के स्वर सुनाई दिए। हर जगह बंद का ऐलान किया गया है। बंद, धरने-प्रदर्शन, ज्ञापन और रैलियों का दौर शुरू होने लग गया है। इसके तहत कल 30 दिसंबर को सांचौर बंद का आह्वान किया गया। बंद का यहां व्यापक असर देखने को मिला।
वहीं अनूपगढ़ में आक्रोशित भीड़ ने जिला कलेक्ट्रेट के सामने महापड़ाव डाल दिया। प्रदेश के अन्य इलाकों में भी इस फैसले के खिलाफ विरोध की आग भड़कती जा रही है।
जालोर जिले से तोड़कर बनाए गए सांचौर जिले को खत्म करने के बाद जिला बचाओ संघर्ष समिति की ओर से सांचौर बंद का आह्वान किया गया। इसका भारी असर देखा गया और दोपहर होते-होते यहां ग्रामीण इलाकों से भी लोगों का आना शुरू हो गया। समिति की ओर से सांचौर मुख्यालय पर महापड़ाव शुरू किया गया है।
सरकार के फैसले का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि लंबे संघर्ष के बाद उन्हें बड़ी मुश्किल से जिला मिला था। उसे ही सरकार ने खत्म कर दिया।
अनूपगढ़ जिले के लोगों में भी भारी नाराजगी देखी जा रही है। वहां कलेक्टर कार्यालय के सामने आम लोगों ने पड़ाव डाल दिया है। इसमें अनूपगढ़, घड़साना, रावला और 365 हेड के ग्रामीण भी शामिल हैं। धरने को देखते हुए भारी पुलिस बल की तैनाती की गई है।
अनूपगढ़ को जिला के दर्जे से मरहूम करने की नोटिफिकेशन जारी होते ही प्रशासन ने पैकिंग भी शुरू कर दी है। इन सरकारी फाइलों को पैक कर अब श्रीगंगानगर भेजने की तैयारी हो रही है।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा सरकार के फैसले पर प्रश्नचिन्ह खड़े करते हुए कड़ी आलोचना की है। गहलोत का कहना है कि प्रशासनिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए ये जिले बनाए गए थे।
इससे बजट घोषणाओं को पूरा करने में आसानी होती है। मॉनिटरिंग करना भी आसान रहता है। अगर ये गलत था तो सरकार को आते ही यह कदम उठाना था, अब एक साल बाद क्यों?
अशोक गहलोत का यह भी कहना था कि इन जिलों के लिए आम लोगों ने कई बरसों तक आंदोलन किया था। लेकिन भजनलाल सरकार ने बिना सोचे समझे महत्वपूर्ण जिलों को रद्द कर दिया। उन्होंने कहा कि कुछ सेवानिवृत्त ब्यूरोक्रेट्स अब मीडिया में कह रहे हैं कि ये जिले व्यहवारिक नहीं है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। पता नहीं वे किसी डर में हैं या लालच में है।
गहलोत तर्क पेश करते हुए कहते हैं कि मध्य प्रदेश का क्षेत्रफल हमसे कम है और जिले ज्यादा हैं। देश में हर राज्य नए जिले बढ़ा रहा है। एमपी के साथ छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश में नए जिले बनाए गए हैं। हमने जिले बनाने से पहले इस दिशा में पूरा होमवर्क किया था। उसके लिए सारा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया था।
पिछले दो दिनों से राजस्थान के इन क्षेत्रों में धरना, प्रदर्शन और विरोध की लहर उठी हुई है। भजनलाल शर्मा की सरकार वैसे भी पर्ची सरकार के नाम से मशहूर है, जिसे ताकतवर नौकरशाह केंद्र के इशारे पर चला रहे हैं। ऐसे में सत्ता में आते ही सबसे पहले हजारों युवाओं को संविदा से हटाकर अब 9 जिलों की मान्यता को रद्द कर इस सरकार ने कोई सकारात्मक रुख नहीं दिखाया है।
लोकसभा में सभी सीटों पर जीत की आदत जिस पार्टी को लगी हो, उसे आधी सीटें गंवा देने के बाद बदले की कार्रवाई के बजाय अपनी गलतियों को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था। लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि सरकार विपक्षी दल से बदला लेते-लेते आम लोगों के हितों के खिलाफ भी हो गई है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)
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